Read this article in Hindi to learn about the information processing perspective in humans.
आज के आधुनिक युग में संज्ञानात्मक विकास का सूचना प्रक्रमण का यथार्थ चित्रण मनोवैज्ञानिकों के ध्यान को अपनी ओर आकर्षित कर रहा है । यह यथार्थ चित्रण मानव को Limited Information Channels के रूप में लेता है । इनके द्वारा भविष्यवाणियाँ सम्भव हो सकती हैं, जबकि इसके विपरीत बच्चों के बारे में यह कहा जा सकता है, कि बच्चों अथवा वयस्कों में कोई गुणात्मक भेद नहीं पाए जाते ।
बचपन में संज्ञानात्मक परिवर्तन मात्रात्मक होते हैं; जैसे-सूचना क्षेत्र की क्षमता में परिवर्तन, स्मृति भण्डार की क्षमता में परिवर्तन आदि । यह यथार्थ चित्रण संज्ञानात्मक विकास की व्याख्या करते हुए बच्चे की संज्ञानात्मक योग्यता जैसे कि ध्यान स्मृति और मेटा संज्ञान के विकास को महत्व देता है ।
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यहाँ मेटा का अर्थ संज्ञान चिन्तन के विषय में चिन्तन अपनी ही योग्यताओं को रणनीतिपूर्ण नियन्त्रित और उपयोग करने की योग्यता की ओर इशारा करता है ।
मेटासंज्ञान में रुचि रखने वाले मनोवैज्ञानिकों के अनुसार मशीन की क्षमता में इतने परिवर्तन सम्भव नही होते जितने कि सही समय में सही रणनीतियों के इस्तेमाल में होते हैं, जबकि, बच्चे आयु में बढ़ने लगते हैं, तो वे अल्पकालिक स्मरण (STM) में सूचनाओं को धारण करने के लिए पहले से भी अत्यधिक प्रभावी रणनीतियों को अर्जित करते हैं ।
सूचनाओं को STM से LTM में हस्तान्तरित करने के लिए 5-6 वर्ष के बालक बहुत कम पूर्व में किए गए अभ्यासों का इस्तेमाल करते हैं । इसके विपरीत 8 वर्ष की आयु में वे पूर्व में किए गए अभ्यासों को प्रभावी ढंग से कर सकते हैं । विस्तारण नामक रणनीति की सहायता द्वारा नई सूचनाओं को पहले से अस्तित्व में आए ज्ञान के साथ जोड़ा जाता है ।
छोटी उस के बच्चे इस रणनीति का प्रयोग नहीं कर पाते जबकि बड़ी आयु में इस रणनीति का प्रचुर मात्रा में उपयोग किया जा सकता है । इसी प्रकार बच्चे धीरे-धीरे अपने अवधान का केन्द्रीकरण करके अधिक-से-अधिक प्रभावपूर्ण रणनीतियों का इस्तेमाल शुरू कर देते हैं ।
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वे उस के बढ़ने के साथ ही साथ मेटा संज्ञान का अधिक से अधिक बोध करने लगते हैं, जबकि वे समस्या निवारण प्रक्रमों और स्मृतियों को अधिक-से-अधिक विनियमित और नियन्त्रित करना सीख जाते हैं ।
इन उपागमों को मानने वाले मनोवैज्ञानिकों ने पियाजे के सिद्धान्त की इस आधार पर आलोचना की थी कि संज्ञानात्मक विकास में तो विभिन्न अलग-अलग सूचना प्रक्रमण कौशलों का अर्जन होता है । पियाजे ने संज्ञानात्मक विकास को नापते समय ऐसे कार्यों का इस्तेमाल किया जो इन कौशलों को दूसरे कौशलों से अलग नहीं कर सकते थे ।
किन्तु इस मशीनी युग में इस उपागम को मानने वाले मनोवैज्ञानिकों में आपस में मतभेद उभरकर सामने आये अपितु वे इन प्रश्नों पर आपस में असहमत हैं, कि क्या उन्नति को गुणात्मक रूप से अलग अवस्थाओं की संखला के रूप में समझना चाहिए ।
इसे परिवर्तन द्वारा निरन्तर प्रक्रम की तरह समझना चाहिए । Klahr (1982) के तदनुसार हमें अवस्थाओं की बात ही नहीं करनी चाहिए । साथ-साथ उन्होंने यह भी बताया कि पृथक्-पृथक् सज्ञानात्मक कौशलों की उन्नति सरल व निरन्तर ढंग से होती है ।
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ये सूचना प्रक्रम दूसरे वर्ग में सिद्धान्तवादी रूप में प्रकट होते हैं, जो पियाजे की ही अवस्था माडल को परिवर्तित तथा विस्तृत करते हैं । जिस प्रकार Case (1985) के अनुसार सूचना प्रक्रम कौशलों में क्रमों के परिवर्तन द्वारा बने के चिन्तन में अनिरन्तर और अवस्था समान परिवर्तित होते हैं । इन्हीं कारणों से इन सिद्धान्तवादियों को Neo-Piagetian की संज्ञा दी जाती है ।
आज के आधुनिक युग में इस उपागम को अत्यधिक महत्वपूर्ण माना जाता है । यह अनेक भविष्यवाणियों को करने में सफल पाया गया है । इसके अतिरिक्त यह विज्ञान की दूसरी शाखाओं में प्राप्त ज्ञान का उपयोग प्रभावशाली ढंग से करता है ।