Read this article in Hindi to learn about the Kohlberg’s theory of moral development and its evaluation.

कोहलबर्ग का सिद्धान्त एवं निर्धारक (Kohlberg’s Theory of Moral Development and Its Determinants):

पियाजे के द्विअवस्था मॉडल की तुलना को हलबर्ग अवस्था मॉडल नैतिक विकास के तीन स्तरों का वर्णन करता है और प्रत्येक की दो दो अवस्थाओं पर प्रकाश डालता है ।

ये 3 सार व 6 अवस्थाएँ निम्नलिखित हैं:

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1. प्रथम स्तर (LevelI):

पूर्व पारम्परिक अवस्था (Punishment and Obedience Orientation) कहलाती है । इस अवस्था में बच्चा परिणामों के आधार पर नैतिकता का निर्माण करता है । वह यह जानता है, कि किसी कार्य का शारीरिक परिणाम ही उसके अच्छे अथवा बुरे होने को निर्धारित करता है ।

वह सत्ता का आदर करता है, सत्ता की आवाज को कानून समझता है, तथा सजा से बचने के लिए सही कार्य करता है । इस अवस्था के अन्तर्गत बच्चा अपने आपको कहता है कि, ”व्यक्ति को दूसरे की चीज नहीं चुरानी चाहिए, अन्य था वह दण्ड का भागीदार बनेगा ।”

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द्वितीय अवस्था ‘Naive Hedonistic Orientation अथवा Instrumental Relativist Orientation’ का नाम दिया गया है । इस अवस्था में बच्चा नैतिक विकास को इस आधार पर लेता है, कि क्या व्यवहार उसकी व अन्य लोगों की जरूरतों को पूरा करता है ।

बच्चे के लिए सही कार्य वही होता है, जो उसकी जरूरतों तथा दूसरे व्यक्तियों की जरूरतों को पूरा करे । इस अवस्था में बच्चे के अन्दर Fairness and Reciprocity देखी जाती है । बच्चा Barter System का प्रयोग करते देखा जा सकता है ।

(ii) द्वितीय स्तर (Level-II):

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नैतिक विकास की तीसरी अवस्था ‘Good boy and Nice Girl Orientation’ कहलाती है । इस अवस्था के अन्तर्गत बच्चा सामाजिक मानकों तथा परिचित व्यक्तियों के विषय में मानकों का पालन करने के आधार पर नैतिकता के विषय में निर्णय करता है ।

इस अवस्था के द्वारा बच्चे अच्छा व्यवहार वह मानते हैं, जो दूसरों को प्रसन्ना रखता है, जिससे दूसरों को मदद मिलती है तथा जो औरों के द्वारा अनुमोदित होता है । वह अच्छी बातों पर बल देता है, तथा दूसरों की भलाई के विषय में सोचने लगता है । इससे उसमें सम्बन्धों की पारस्परिकता नजर आती है ।

चतुर्थ अवस्था ‘Law and Orientation’ अथवा ‘Social Order Maintaining Orientation’ कही जाती है । इस अवस्था में सामाजिक नियमों अथवा कानून के केवल जानकार लोगों के बगैर सार्वभौमिक रूप से लागू होने के आधार पर नैतिकता के बारे में निर्णय लिया जाता है । बच्चा सामाजिक क्रम, दायित्वों, सामाजिक कर्तव्यों आदि विषयों के महत्व को समझने लगता है और प्रणाली को लागू रखने की कोशिश करता है ।

(iii) तृतीय स्तर (Level-III):

पश्चात् पारम्परिक स्तर – पाँचवीं अवस्था ‘Social Contract Legalistic Orientation’ कहलाती है । यह अवस्था मानव अधिकारों के आधार पर नैकिता के विषय में निर्णय करती है । इसके अन्तर्गत बालक अधिक-से-अधिक व्यक्तियों के हितों के बारे में बातें करता है ।

वह सोचता है, कि कानून तो सामाजिक संगठन के Agreed Tools कहे जाते हैं और यदि कानून सामाजिक उपयोगिता को पूरा नहीं कर पाते तो इनमें परिवर्तन लाया जा सकता है । Relationism of values को जानने लगता है । छठी अवस्था ‘Universal Ethical Principles of Orientation’ कही जाती है ।

इस अवस्था में बच्चा Self Chosen Ethical Principle के आधार पर नैतिकता के सम्बन्ध में निर्णय लेने लगता है । इस प्रकार कहा जा सकता है, वह नैतिक सिद्धान्तों के आधार पर अधिकार को परिभाषित करता है । अत: ये नैतिक सिद्धान्त केवल अमूर्तन होते हैं ।

बच्चा नैतिक नियमों तथा कानूनी नियमों के बीच अन्तर कर सकता तथा अमूर्त सिद्धान्त के आधार पर अपना लेता है । इस प्रकार से नैतिकता का निर्णय अमूर्त सिद्धान्तों के आधार पर होने लगता है ।

कोहलबर्ग प्रारूप का मूल्यांकन (Evaluation of Kohlberg’s Theory):

1. Gilliean (1982) का कहना है, कि यह मॉडल महिलाओं का न्यून आकलन करता है । महिलाओं के नैतिक निर्णय न्याय के सिद्धान्तों पर आधारित नहीं हुआ करते वरन यह तो Care Based Principle पर आधारित हुआ करते है । कोहलबर्ग बातों पर आधारित नैतिक तर्कणा को सापेक्षिक अपरिपक्व कहा है जो कि नहीं है ।

2. पियाजे अवस्था मॉडल की भांति कोहलबर्ग का मॉडल भी अवस्था मॉडल है, जिसके अनुसार व्यक्ति उत्तरोत्तर असतत् दशाओं की श्रुंखला से होकर गुजरता है । यह वास्तविकता है तब लोगों की एक अवस्था पर नैतिक पर नैतिक तर्कणा में उच्च स्तरीय संगति पायी जानी चाहिए, लेकिन वास्तविकता में यह संगति पाई जाती ।

3. कोहलबर्ग ने नैतिक विकास की दशाओं की चर्चा करते हुए कहा है कि सांस्कृतिक कारकों को मद्देनजर नहीं रखा जा सकता है ।

4. कोहलबर्ग ने केवल न्याय तथा अधिकारों को नैतिक विकास में महत्च दिया है, लेकिन नैतिकता की परिभाषा बहुत विस्तृत होती है ।

5. कोहलबर्ग ने अपने प्रतिदर्श में केवल नर बालक-बालिकाओं को लिया था इसलिए उनके सामान्यीकरण सकीर्ण हैं ।

6. नैतिक तर्कणा तथा नैतिक कार्य के बीच सम्बन्ध इतना आसान नहीं है, जितना कि कोहलबर्ग ने माना है । इस सम्बन्ध को बहुत से कारक प्रभावित करते है ।

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