Read this article in Hindi to learn about the various ways adopted for the management of negative emotions by an individual.
1. उत्तेजना को घटाने का अभ्यास (Practice to Reduce Excitement):
जैसा कि हम जानते है, कि नकारात्मक संवेग व्यक्ति के शरीर तथा मन में कुंठा तथा उपद्रव पैदा करते हैं । जब प्राणी अत्यधिक क्रोधित होता है तो वह न सिर्फ चीखता-चिल्लाता है, बल्कि अधिक उग्र हो जाता है तथा उसकी आन्तरिक शारीरिक क्रियाएँ भी तेज हो जाती हैं- हृदय की धड़कन, नाडी की गति, साँस की गति, रक्तचाप, रक्त संचार के साथ ही मस्तिष्क की तन्त्रिकाएँ सभी उत्तेजित हो जाती हैं ।
प्राणी के चिन्तन तथा सोच-विचार में हलचल मच जाती है । इस स्थिति में सबसे पहले उसकी उत्तेजना (Excitation) को कम करने या नियन्त्राग में लाने की आवश्यकता होती है । शरीर में उत्पन्न तनाव तथा उत्तेजना को दूर करने हेतु बायोफीडबैक (Biofeedback) यन्त्र का सहारा लिया जाता है ।
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इसकी मदद से प्राणी की पेशीय उत्तेजना (Muscular Excitation) को कम किया जा सकता है जिससे अन्य क्रियाओं की तीव्रता में भी वृद्धि नहीं होती है ।
2. शिथिलीकरण का अभ्यास (Relaxation Practice):
यह सत्य है, कि शरीर तथा मन में गहरा सम्बन्ध है । अत: मन की उत्तेजना शरीर को तथा शरीर की उत्तेजना मन को उद्वेलित करती है । अतएव शरीर के विविध अंगों के शिथिलीकरण का अभ्यास संवेगात्मक उत्तेजना को दूर करता है । जैकाँबसन (Jacobson) की पूर्ण शरीर के शिथिलीकरण की तकनीक इस सम्बन्ध में अत्यधिक उपयोग में है ।
3. संज्ञानात्मक पुनर्रचना (Cognitive Restructuring):
प्राय: भय तथा क्रोधजनित मुश्किलों का कारण व्यक्ति की गलत दिशा की सोच या चिन्तन होता है । किसी के लिए कोई प्राणी क्रोध या भय का अनुभव कर रहा है अगर उसके सकारात्मक रूप के विषय में बात की जाए तो व्यक्ति की सोच उसके विषय में बदलती है, तथा नकारात्मक संवेग में भी कमी आती है ।
जब कोई बच्चा या वयस्क यह सोचता है, कि उसे कोई प्यार नहीं करता तो वह असुरक्षा के नकारात्मक भाव से ग्रसित रहता है । किन्तु जब उदाहरणों और घटनाओं के द्वारा उसे समझाया जाता है कि उसके परिवार के लोग उसके प्रति चिन्ता करते हैं, तो उसके संज्ञान में परिवर्तन होता है तथा उसके अवसाद तथा अन्य नकारात्मक भाव दूर होते हैं ।
4. यौगिक विधियाँ (Yogic Methods):
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जिन व्यक्तियों में नकारात्मक संवेग विशेषकर तीव्र क्रोध तथा भय का भाव होता है, ऐसे व्यक्तियों के लिए कुछ चुनी हुई यौगिक विधियों के अभ्यास अधिक उपयोगी पाए गए हैं ।
कुछ ऐसे प्रमुख अभ्यासों का वर्णन नीचे किया जा रहा है:
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योगासन:
शशांकासन, योगमुद्रा आसन तथा पश्चिमोत्तासन
प्राणायाम:
नाडीशोधन भ्रामरी कपाल भारती तथा शीतली ।
ध्यान:
अजपाजप तथा योगनिद्रा ।
किन्तु इन यौगिक क्रियाओं को किसी योग्य योग-शिक्षक से सही ढंग से सीखकर यदि नियमित अभ्यास किया जाए तो न सिर्फ नियन्त्रण में आते हैं, अपितु दमित क्रोध, घृणा तथा भय से पैदा हुए मनोविकार भी दूर हो जाते हैं ।
5. सर्जनात्मक कौशल का विकास (Development of Creative Skill):
जब कोई प्राणी एकाकी जीवन व्यतीत करता है, तो वह नकारात्मक भाव तथा संवेगों का अधिक शिकार होता है । अत: योग्यता तथा रुचि के अनुकूल किसी भी कार्य में समय व्यतीत करना नकारात्मक संवेगों से मुक्त होने का अच्छा उपाय है । सर्जनात्मक कार्यों को करने से आत्म-मनोरंजन तो होता ही है, साथ ही साथ आत्म-सन्तोष भी मिलता है, जिससे नकारात्मक भाव भी कम होते हैं ।
6. प्रेम का प्रसार (Expansion of Love):
प्रेम एक ईश्वरीय शक्ति है, प्राणी के जीवन में प्रेम का प्रसार जितना अधिक होता है । उसकी अपनापन की दुनिया उतनी ही बड़ी होती जाती है । जितना वह लोगों को अपने नजदीक पाता है, उतना ही उसका नकारात्मक संवेग घटता है । जिसके द्वारा व्यक्ति को लोगों द्वारा प्रशंसा तथा सामाजिक प्रतिष्ठा (Social Support) मिलती है, जो उसके नकारात्मक संवेगों को दूर करती है ।
7. सामाजिक सेवा करना (Doing Social Service):
ऐसे सामजिक कार्य, जिससे दूसरे लोगों की कुछ मदद हो, मनुष्य को प्रतिष्ठा तथा आत्मविश्वास प्रदान करता है । वास्तव में प्रेमभाव का विस्तार ही ऐसे सामाजिक सेवा कार्यों मे होता है । किसी बूढ़े बीमार या दु:खी व्यक्ति की थोड़ी-सी सेवा भी व्यक्ति के मन को बहुत सन्तोष देती है और उसके नकारात्मक संवेगों की तीव्रता को कम करती है ।
8. परिस्थिति का वास्तविक आकलन (Real Review of Situation):
गलत प्रत्यक्षण चिन्ता तथा निराशा का कारण होता है । अतएव नकारात्मक संवेग पैदा करने वाली स्थिति या घटना का उचित आकलन तटस्थ भाव से करना चाहिए । इसके द्वारा दुश्चिंता, भय इत्यादि संवेगों में कमी आती है तथा व्यक्ति में वस्तुनिष्ठ भाव का विकास होता है ।
9. आत्म-निरीक्षण (Self-Introspection):
मनुष्य को अपनी पूर्व उपलब्धियों एवं अच्छे निष्पादनों का पुर्नरीक्षण कर उससे सन्तोष और खुशी का अनुभव करना चाहिए । सकारात्मक भाव से किसी उपलब्धियों को भविष्य में भी प्राप्त करने हेतु प्रेरित होना चाहिए । बारम्बार इस प्रकार का आत्मनिरीक्षण करने से व्यक्ति खुद अपना आदर्श बनता है तथा उसके नकारात्मक भाव तथा संवेगों में कमी आती है ।
10. तद्नुभूति विकसित करना (Developing Empathy):
तदनुभूति का अभिप्राय है, दूसरों के दु:ख कष्ट तथा भावनाओं को समझने का प्रयास करना । इससे अपनापन तथा सौहार्द्र विकसित होता है । किसी अन्य व्यक्ति की मन स्थिति को समझकर व्यवहार करना और उनकी मदद करना आनन्ददायक होता है । ये कुछ मनोवैज्ञानिक तथा व्यावहारिक उपाय हैं, जिनके द्वारा नकारात्मक संवेगों का समुचित प्रबन्धन सम्भव है ।