Read this article in Hindi to learn about the observation method that is used to study human behaviour.
अवलोकन प्रविधि क्या है ? (What is Observation Method?):
अवलोकन प्रत्येक वैज्ञानिक अध्ययन की एक अत्यन्त महत्वपूर्ण एवं प्राचीन पद्धति है, क्योंकि इस पद्धति का प्रयोग केवल सामाजिक विज्ञानों में ही नहीं वरन् प्राकृतिक विज्ञानों में भी सदैव होता रहा है ।
वास्तविकता यह है, कि इस पद्धति का प्रयोग सामाजिक विज्ञानों में प्राकृतिक विज्ञानों से भी अधिक है, क्योंकि सामाजिक घटनाओं का अध्ययन अवलोकन के बिना नहीं किया जा सकता है । इस विधि से जो तथ्य या सूचनाएँ संकलित की जाती हैं । वे अधिक यथार्थ एवं विश्वसनीय होती हैं ।
अर्थ:
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साधारण तौर पर अवलोकन का अभिप्राय देखना है, किन्तु प्रत्येक देखने को अवलोकन नहीं कहा जा सकता वरन् जब किसी विशिष्ट उद्देश्य को लेकर किन्हीं घटनाओं का निरीक्षण या जाँच-पड़ताल की जाती है, तो उसे ही अवलोकन कहते हैं ।
परिभाषा:
मोजर के शब्दों में, ”अवलोकन में कानों तथा वाणी की अपेक्षा नेत्रों के प्रयोग की स्वतन्त्रता रहती है ।”
पी.वी.यंग के अनुसार, ”अवलोकन का आशय है, आँखों के माध्यम से जान-बूझकर किया जाने वाला अध्ययन ।”
अवलोकन की विशेषताएँ (Characteristics of Observation):
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अवलोकन की प्रमुख निम्नलिखित विशेषताओं का उल्लेख किया जा सकता है:
(1) प्रत्यक्ष अध्ययन:
अवलोकन की सर्वप्रथम विशेषता यह है, कि इसमें अवलोकनकर्त्ता प्रत्यक्ष रूप में अध्ययन कार्य सम्पदा करता है ।
(2) प्रत्यक्ष निरीक्षण:
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अवलोकनकर्त्ता स्वयं अध्ययन क्षेत्र में जाकर स्वयं प्रत्यक्ष निरीक्षण के द्वारा विषय के सम्बन्ध में सूचनाओं का संकलन करता है ।
(3) उद्देश्यपूर्णता:
अवलोकन की एक और विशेषता यह है, कि अवलोकन सदैव उद्देश्यपूर्ण होता है । अवलोकनकर्त्ता अपने किसी उद्देश्य को पूर्ण करने के लिए अवलोकन का कार्य करता है ।
(4) सूक्ष्म अध्ययन:
अवलोकन की एक विशेषता यह भी है, कि इसमें अवलोकनकर्त्ता बहुत ही सूक्ष्म रूप में तथ्यों का अवलोकन करके अध्ययन पूर्ण करता है ।
(5) कार्य-कारण सम्बन्ध:
अवलोकनकर्त्ता कार्य कारण सम्बन्धों के आधार पर तथ्यों या सूचनाओं का संकलन करता है ।
(6) समूहका अध्ययन:
अवलोकन की एक विशेषता यह भी है, कि इसमें सामूहिक व्यवहार का अध्ययन सम्भव होता है ।
(a) अनियन्त्रित अवलोकन:
इसमें व्यवहार करने वाले समूह या समूह का निर्माण करने वाली इकाइयों (मनुष्यों) पर अवलोकनकर्त्ता का कोई नियन्त्रण नहीं होता है । अवलोकनकर्ता मानव व्यवहार या सामाजिक घटना को उसके स्वाभाविक रूप में जैसे भी वह घटित हो रही है, देखता रहता है ।
सामाजिक विज्ञानों के क्षेत्र में अधिकतर ज्ञान इसी प्रविधि के द्वारा एकत्र किया जाता है, क्योंकि सामाजिक विज्ञानों के अध्ययन विषय (अर्थात् मानव व्यवहार, सामाजिक सम्बन्ध, सामाजिक घटनाएँ आदि) को मनचाहे ढंग से नियन्त्रित नहीं किया जा सकता ।
अनियन्त्रित अवलोकन निम्न प्रकार का होता है:
(i) सहभागी अवलोकन:
”इसमें अवलोकनकर्त्ता उस समूह का जिसका वह अवलोकन करना चाहता है, अभिज्ञा अंग बन जाता है । उसके हृदय की धड़कन समूह के अन्य सदस्यों के हृदयों की धड़कन से मिल जाती है ।”
इसमें सर्वेक्षणकर्त्ता समूह के एक सदस्य के रूप में स्वीकार कर लिया जाता है । समूह के अन्य सदस्यों के साथ वह पूरी तरह घुल-मिल जाता है । इस प्रकार रहते हुए वह व्यवहारों सम्बन्धों घटनाओं और तथ्यों की उनके स्वाभाविक रूप में देखता रहता है ।
(ii) असहभागी अवलोकन:
इसमें अवलोकनकर्त्ता न तो समूह का सदस्य बनता है, और न उसके सामूहिक जीवन में किसी रूप में हिस्सा लेता है । वह तो तटस्थ दर्शक की तरह अवलोकन करता हुआ आवश्यक तथ्य (आँकड़े) एकत्र करता है । व्यावहारिक दृष्टि से देखा जाये तो विशुद्ध असहभागी अवलोकन के उदाहरण बहुत कम दिखाई देते हैं ।
(iii) अर्द्ध-सहभागी अवलोकन:
व्यावहारिक दृष्टि से पूर्ण-सहभागी या पूर्ण-असहभागी अवलोकन सम्भव नहीं है । अत: अच्छे-सहभागी अवलोकन प्रविधि का महत्व बढ़ जाता है । इसमें अवलोकनकर्त्ता समूह का अभिन्न सदस्य नहीं बनता है, और न हर समय समूह में रहता है, बल्कि समय-समय पर समूह के सदस्यों के साथ उठता-बैठता है; जैसे-विवाह, पूजा, त्योहार, दाह-संस्कार आदि अवसरों पर समूह में शामिल हो जाना ।
(b) नियन्त्रित अवलोकन:
नियन्त्रित अवलोकन जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है, इसमें सम्पूर्ण अवलोकन कार्य एक निश्चित योजना अथवा कार्यक्रम के अनुसार चलता रहता है । इसीलिए इसे नियोजित अवलोकन संरचित अवलोकन तथा व्यवस्थित अवलोकन आदि नामों से भी सम्बोधित किया जाता है ।
नियन्त्रित अवलोकन में अवलोकन की एक पूर्व योजना बना ली जाती है, और फिर सम्पूर्ण अवलोकन कार्य उस योजना के अनुसार चलता रहता है ।
नियन्त्रित अवलोकन निम्न दो प्रकार का होता है:
(i) अवलोकनकर्त्ता पर नियन्त्रण:
इसमें अवलोकनकर्त्ता पर अनेक बन्धन लगा दिये जाते हैं । वह अवलोकन सम्बन्धी कुछ पूर्व-निर्धारित नियमों का पालन करते हुए यन्त्र की भांति अध्ययन विषय का अवलोकन करता रहता है । नियमों द्वारा उसकी स्वतन्त्रता को सीमित कर दिया जाता है ।
(ii) अध्ययन विषय पर नियन्त्रण:
इसमें अध्ययन विषय (अध्ययन सामग्री) को इच्छानुसार नियन्त्रित करके अवलोकन किया जाता है । चूंकि अध्ययन विषय को नियन्त्रित करना कठिन है, अत: सामाजिक विज्ञानों के क्षेत्र में इस प्रविधि का महत्व सीमित है । हाँ, प्राकृतिक विज्ञानों में अध्ययन विषय (मेंढक, वनस्पति, ध्वनि, रसायन आदि) को प्रयोगशाला में नियन्त्रित करके इच्छानुसार अवलोकन किया जा सकता है ।
(c) सामूहिक अवलोकन:
इसमें श्रम-विभाजन के आधार पर एक ही अध्ययन विषय का एक से अधिक बार अवलोकनकर्त्ता निरीक्षण करते हैं । इस प्रकार एकत्रित सामग्री का कोई अन्य केन्द्रीय व्यक्ति विश्लेषण करता है । यह प्रविधि ‘इण्टर डिसिप्लिनरी एप्रोच’ का ही एक रूप है । इस प्रविधि में अवलोकन के लिए विशेषज्ञों की सेवाएँ प्राप्त की जा सकती हैं ।
अवलोकन के गुण (Merits of Observation Method):
अवलोकन के प्रमुख निम्नलिखित गुणों या लाभों को प्रस्तुत किया जा सकता है:
(1) सरलता:
अवलोकन पद्धति एक अत्यन्त सरल पद्धति है जिसका प्रयोग कोई भी अध्ययनकर्त्ता प्रयोग कर सकता है ।
(2) विश्वसनीयता:
अवलोकन के द्वारा अध्ययन करके जो नियम या बनाये जाते है, वे अधिक विश्वसनीय होते हैं, क्योंकि इस पद्धति में अवलोकनकर्त्ता वास्तविक सूचनाओं के आधार पर निष्कर्ष निकालता ।
(3) सत्यापनशीलता:
अवलोकन पद्धति के द्वारा जो निष्कर्ष निकाले जाते है, उनका सत्यापन भी सरलता पूर्वक किया जा सकता है, क्योंकि वे वास्तविक निर्भरयोग्य तथ्यों पर आधारित हैं ।
(4) गहनता:
इस के द्वारा अध्ययन करके जो सामान्य निष्कर्ष निकाले जाते है, वे प्रत्यक्ष निरीक्षण पर आधारित है ।
(5) प्राकल्पना का साधन:
अवलोकन का एक गुण यह भी है, कि यह प्राकल्पना के निर्माण में भी सहायक सिद्ध होती है ।
अवलोकन के दोष (Demerits of Observation Method):
अवलोकन पद्धति के निम्नलिखित दोष हैं:
(1) सीमित:
अवलोकन पद्धति का सर्वप्रथम दोष यह है कि इस पद्धति का उपयोग सभी क्षेत्रों में नहीं किया जा सकता । केवल कुछ सीमित में ही इसका उपयोग सम्भव है ।
(2) पक्षपात:
इस पद्धति का एक दोष यह भी है, कि अवलोकनकर्त्ता निष्पक्ष नहीं रह पाता है । वह अध्ययन ‘पक्षपात का समावेश कर लेता है ।
(3) ज्ञानेन्द्रियों का दोषपूर्ण प्रयोग:
अवलोकन में अध्ययनकर्त्ता अपनी ज्ञानेन्द्रियों विशेष रूप से नेत्र का प्रयोग करता है । वह ठीक प्रकार से अवलोकन या निरीक्षण नहीं कर पाता ।
(4) आकस्मिक घटनाओं का अध्ययन नहीं:
अवलोकन पद्धति का एक दोष यह भी है, कि इस पद्धति के द्वारा आकस्मिक या अचानक घटित होने वाली घटनाओं का अध्ययन सम्भव नहीं है ।
(5) अनुपयुक्त:
अवलोकन पद्धति का प्रयोग अनेक क्षेत्रों में सम्भव नहीं है । जेसे इस पद्धति के द्वारा पारिवारिक जीवन का अध्ययन नहीं किया जा सकता ।
(6) दोषपूर्ण निष्कर्ष:
जैसा कि स्पष्ट कि इस पद्धति की अपनी कुछ सीमाएँ हैं । इस पद्धति के द्वारा अध्ययन करके जो सामान्य निष्कर्ष निकाले जाते हैं वे दोषपूर्ण हैं ।