Here is a paragraph on language which is a part of cognitive development in humans.
विचार एवं भाषा में बहुत गहन सम्बन्ध है, विचार उच्च संज्ञानात्मक मानसिक प्रक्रिया है, जो प्रत्यक्षण स्मृति कल्पना तर्क आदि पर निर्भर करती है । मनोवैज्ञानिकों के कथनानुसार भाषा एवं विचार में ‘कारण-प्रभाव सम्बन्ध’ (Cause-Effect Relationship) होता है, अर्थात् भाषा के माध्यम से हमारे विचारों की अभिव्यक्ति होती है, या यूँ कह सकते हैं, कि भाषा विचार का निर्धारण करती है, एवं विचार भाषा का निर्धारण करते हैं ।
इस वस्तुस्थिति को निम्नवत् समझा जा सकता है:
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भाषा के द्वारा विचार का निर्धारण (Valuation of Thoughts by Language) भाषा की समृद्धि से अभिप्राय विचारों के समृद्धिकरण से है, जो कि नवीन विचारों की प्रक्रिया में निहित होती है । होर्फ (Whorf) ने इस बात को ‘भाषाई नियतिवाद’ (Linguistic Determinism) के नाम से अभिव्यक्त किया ।
उदाहरणस्वरूप – यदि एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति के प्रति आदरसूचक व सम्मानजनक शब्दों की अभिव्यक्ति दे तो नि:सन्देह दूसरे व्यक्ति के मन में पहले व्यक्ति के प्रति सहृदयता की भावना अथवा विचारों की उत्पत्ति होगी ।
अत: यहाँ पर भाषा की अभिव्यक्ति समृद्धि के रूप में होती है, जो कि विचार उत्पन करने की सामर्थ्य रखती है, एवं अपने माध्यम से अधिकसे अधिक सूक्ष्म भावनाओं एवं अनुभवों की अभिव्यक्ति करती है ।
विचार के द्वारा भाषा का निर्धारण (Valuation of Language by Thoughts):
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विचारों को दूसरों तक पहुँचाने की प्रक्रिया संप्रेषण के माध्यम से गुजरती है । अत: विचार शब्दों के चयन (Selection of Words) वाक्यों के संगठन एवं शैली का निर्धारण करते हैं । उदाहरण के लिए हम किसी प्रकार के कौशल अथवा व्यवहार का अधिगम करने के उपरान्त सम्बन्धित विचार मन में विकसित करते हैं, और तत्पश्चात् उस वैचारिक श्रृंखला को भाषा के माध्यम से व्यक्त करते हैं ।
इसे दूसरे शब्दों में कह सकते हैं, कि अशाब्दिक रूप से सीखी गयी बात विचारों से गुजरती हुई भाषा का रूप ले लेती है । इस प्रकार विचार के द्वारा भाषा का विकास होता है ।
इस प्रकार हम देखते हैं, कि भाषा एवं विचार दोनों एक-दूसरे से अन्तर्सम्बन्ध रखते हैं, अर्थात् इनकी प्रकृति एक-दूसरे के कारण तथा प्रभाव है । ब्योगोत्सकी (Vyogotsky) ने अपने अध्ययन के आधार पर निष्कर्ष निकाला कि दो वर्ष की आयु के पूर्व बच्चे अपने विचारों एवं अनुभवों को किया के द्वारा अभिव्यक्त करते हैं ।
दो वर्ष की आयु के उपरान्त जब वे भाषा का उपयोग करने लगते हैं, तब उनके भाव एवं विचारों की उत्पत्ति होने लगती है, यानि कि वस्तु का सज्ञान एवं भाषा की उत्पत्ति दोनों एक साथ नहीं होती ।
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भाषा का आधारभूत स्वरूप (Basic Nature of Language):
भाषा के उपयोग के द्वारा हम दूसरी जातियों के प्राणियों से पृथक् हो जाते हैं । इस योग्यता में हम चिन्हों के अनेक सेटों, उन्हें एक-दूसरे से मिलाने के नियमों और सूचनाओं को अन्य व्यक्तियों तक पहुँचाने का क्रियाओं का उपयोग करते हैं । भाषा का संज्ञानों से घनिष्ठ सम्बन्ध होता है । क्या प्रतीकों का कोई एक सेट भाषा कहलायेगा? इसके लिए इसे अनेक अतिरिक्त कसौटियों पर खरा उतरना होता है ।
ये कसौटियाँ निम्नलिखित हैं:
(i) सूचना का सप्रे क्षण चिन्हों के द्वारा होना चाहिए । अर्थात् सब्दों और वाक्यों के अर्थ अवश्य होने चाहिए ।
(ii) एक भाषा में स्वर तथा शब्द सीमित होते हैं । फिर भी इनमें बहुत-से वाक्यों का पुन: निर्माण करना सम्भव होता है ।
(iii) शब्दों व स्वरों को मिलाने से जो संयुकिायाँ उपलब्ध होती हैं, उनमें इनका उपयोग किया जाता है । इन वाक्यों को दूसरे स्थानों अथवा समय के बारे में सूचनाओं के लेन-देन में उपयोग किया जा सकता है । जब इन तीनों कसौटियों को पूर्ण करते हैं, तभी संचार की प्रणाली को भाषा की संज्ञा दी जाती है, अथवा नहीं ।
वाणी बनाम भाषा (Speech Vs. Language):
साधारण रूप से वाणी तथा भाषा को एक-दूसरे के स्थान पर प्रयोग किया जाता है, किन्तु ये दोनों अलग पद हैं । भाषा एक विस्तृत संज्ञा है, जिसमें सचार के उन सभी माध्यमों को एकत्रित किया जाता है, जिनमें उग्न्य व्यक्तियों तक अर्थ पहुँचाने के लिए विचारों उगैर भावों को चिन्हो के रूप में प्रयोग किया जाता है ।
इसके अन्तर्गत लिखना, बोलना, चिन्ह-भाषा, इशारे, चेहरे की उाभिजपक्तियाँ कला आदि को शामिल करते हैं । इसके अलावा वाणी भाषा का एक ऐसा रूप है, जिसमें अन्य व्यक्तियों तक अर्थ पहुंचाने के लिए स्वरों अथवा शब्दों का उपयोग किया जाता है ।