Here is a short essay on ‘Independence’ for class 6, 7, 8, 9, 10, 11 and 12. Find paragraphs, long and short essays on ‘Independence Day’ especially written for school and college students in Hindi language.

द्‌वितीय विश्व युद्ध के कालखंड में भारत का स्वतंत्रता आंदोलन व्यापक बन गया था । भारत की स्वतंत्रता की माँग जोर पकड़ती जा रही थी । अंग्रेज शासकों को भी बोध हुआ कि इस माँग पर गंभीरता से विचार करना आवश्यक है । इस दृष्टि से अंग्रेज सरकार भारत को स्वतंत्रता प्रदान करने हेतु विभिन्न योजनाएं तैयार करने लगी ।

राष्ट्रीय कांग्रेस की निर्मिति धर्म निरपेक्ष सिद्धांत पर हुई थी । राष्ट्रीय आंदोलन में भी सभी जातियों और धर्मो के लोग सम्मिलित हुए थे । इस आंदोलन को दुर्बल बनाने हेतु अंग्रेजों ने ‘फूट डालो और राज्य करो’ इस नीति का अनुसरण किया था । ‘मुस्लिम लीग’ की स्थापना इसी नीति का परिणाम था ।

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फलस्वरूप हिंदू महासभा, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जैसे हिंदुत्ववादी संगठन स्थापित हुए । ई॰स॰ १९३० में विख्यात कवि डा॰ मुहम्मद इकबाल ने मुस्लिम राष्ट्र का विचार प्रकट किया । कालांतर में रहमत अली चौधरी ने पाकिस्तान की संकल्पना रखी ।

बैरिस्टर मुहम्मद अली जिन्ना ने द्‌विराष्ट्र सिद्धांत को प्रस्तुत करते हुए स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में पाकिस्तान की मांग की । डा॰ जिन्ना और मुस्लिम लीग ने यह प्रचार शुरू किया कि राष्ट्रीय कांग्रेस मात्र हिंदुओं का संगठन है । इस संगठन से मुस्लिमों को कोई भी लाभ प्राप्त नहीं होगा ।

Essay # 1. वेवेल योजना:

जून १९४५ में भारत के वाइसराय वेवेल ने एक योजना बनाई । इस योजना में केंद्रीय और प्रांतीय विधान मंडलों में मुस्लिम, दलित एवं अल्पसंख्यकों को उचित प्रतिनिधित्व दिया जाएगा तथा वाइसराय की कार्यकारिणी में हिंदू-मुस्लिम सदस्यों की संख्या समान होगी, जैसे प्रावधानों का अंतर्भाव था । इस योजना पर विचार विमर्श करने के लिए भारत के प्रमुख राजनीतिक दलों की बैठक शिमला में बुलाई गई थी ।

इस बैठक में एकमत नहीं हो सका । बैरिस्टर जिन्ना ने यह आग्रह रखा कि वाइसराय की कार्यकारिणी में मुस्लिम प्रतिनिधि के नाम सुझाने का अधिकार मुस्लिम लीग को ही होगा । इसके प्रति राष्ट्रीय कांग्रेस ने विरोध जताया । परिणामस्वरूप यह योजना सफल नहीं हो पाई ।

Essay # 2. त्रिमंत्री योजना:

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द्‌वितीय विश्व युद्ध समाप्त होने के पश्चात अंग्रेज शासकों ने भारत को स्वतंत्रता प्रदान करने के लिए अनुकूलता दर्शाई । इंग्लैंड के प्रधानमंत्री एटली ने संसद में भारत के विषय में सरकार की नीति को स्पष्ट किया । संविधान तैयार करने के भारतीय जनता के अधिकार को स्वीकार किया गया तथा यह भी कहा गया कि अल्पसंख्यकों का मुद्‌दा भारत की स्वतंत्रता में बाधा नहीं बनेगा । साथ ही प्रधानमंत्री ने यह भी घोषणा की कि भारतीयों के साथ बातचीत करने के लिए एक प्रतिनिधि मंडल भारत में जाएगा ।

मार्च १९४६ में अंग्रेज मंत्रियों का एष्क प्रतिनिधि मंडल भारत आ पहुँचा । इस प्रतिनिधि मंडल में तीन मंत्रियों – पैथिक लारेन्स, स्टैफर्ड क्रिप्स और ए॰ वी॰ अलेक्जांडर का समावेश था । उन्होंने भारत के विषय में इंग्लैंड की योजना को भारतीय नेताओं के सम्मुख रखा । इसे ‘त्रिमंत्री योजना’ कहते हैं ।

अंग्रेजी शासन के अधीनस्थ प्रांतों और रियासतों को मिलाकर भारतीय संघ राज्य की स्थापना की जाए भारतीय ही इस संघ राज्य का संविधान बनाएँ और संविधान बनने तक भारतीयों की अस्थायी सरकार वाइसराय के परामर्श से भारत का प्रशासन चलाए जैसे प्रावधानों का इस योजना में समावेश था ।

इस योजना के कुछ प्रावधान राष्ट्रीय कांग्रेस को मान्य नहीं थे तथा इस योजना में मुस्लिमों के लिए स्वतंत्र राज्य का प्रावधान नहीं था, इसलिए इस योजना से मुस्लिम लीग भी संतुष्ट नहीं थी । फलस्वरूप त्रिमंत्री योजना पूर्णता: मान्य नहीं हुई ।

Essay # 3. प्रत्यक्ष कृति दिन:

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त्रिमंत्री योजना के अनुसार संविधान सभा का गम करने हेतु चुनाव हुए । इस चुनाव में राष्ट्रीय कांग्रेस को भारी बहुमत प्राप्त हुआ । मुस्लिम लीग ने संविधान सभा में हिस्सा लेने से इनकार किया और भारत का विभाजन क्तने की जोरदार मांग की । साथ ही यह भी घोषणा की कि १६ अगस्त १९४६ का दिन पाकिस्तान निर्मित का प्रत्यक्ष कृति दिन है ।

मुस्लिम लीग के कार्यकर्ताओं ने हिंसा का मार्ग अपनाया । पूरे देश में हिंदू-मुस्लिमों के बीच दंगे भड़के । बंगाल प्रांत के नोआखाली क्षेत्र में भीषण हत्याएँ हुई । इस हिंसा को रोकने के लिए गांधीजी अपने प्राणों की परवाह न करते हुए वहाँ गए । वहाँ शांति स्थापित करने के लिए उन्होंने प्रयासों की पराकाष्ठा की ।

Essay # 4. अस्थायी सरकार की स्थापना:

ऐसी भीषण अराजकता की स्थिति में गवर्नर जनरल वेवेल ने भारतीय प्रतिनिधियों की अस्थायी सरकार का गठन किया । पंडित जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में मंत्रिमंडल ने प्रशासन की बागडोर संभाली । प्रारंभ में मुस्लिम लीग ने अस्थायी सरकार में सम्मिलित होने से इनकार किया परंतु आगे चलकर उन्होंने अपना निर्णय बदला और मुस्लिम लीग के सदस्य अस्थायी सरकार में सम्मिलित हुए । मुस्लिम लीग की अड़ियल नीति के फलस्वरूप अस्थायी सरकार अपना प्रशासन सुचारु रूप से नहीं चला पाई ।

ब्रिटेन के प्रधानमंत्री एटली ने इंग्लैंड की संसद में यह घोषणा की कि जून १९४८ के पूर्व इंग्लैंड भारत पर अपना अधिकार त्याग देगा । उन्होंने यह भी घोषित किया कि भारतीय शासन के सूत्र भारतीयों को शीघ्रता से सौंपने के लिए भारत के नए गवर्नर जनरल के रूप में माउंट बैटन की नियुक्ति की गई है ।

Essay # 5. माउंट बैटन योजना:

यह समझ लेने पर कि भारत का विभाजन होना अटल है, माउंट बैटन ने विभाजन का निर्णय लिया । इसके लिए उन्होंने भारत के प्रमुख नेताओं से विचारविमर्श किया । इसके पश्चात उन्होंने भारत का विभाजन कर भारत और पाकिस्तान इन दो स्वतंत्र देशों की निर्मिति की योजना बनाई । राष्ट्रीय कांग्रेस विभाजन की विरोधी थी ।

देश की एकता ही राष्ट्रीय कांग्रेस की विचारधारा की नींव थी परंतु मुस्लिम लीग ने पाकिस्तान की निर्मिति की हठवादिता की । अत: विभाजन के अलावा कोई अन्य विकल्प नहीं रह गया था । राष्ट्रीय कांग्रेस ने विवश होकर विभाजन के निर्णय को स्वीकार किया ।

Essay # 5. भारत का स्वतंत्रता कानून:

माउंट बैटन की बनाई हुई योजना के अनुसार भारत के स्वतंत्रता कानून को इंग्लैंड की संसद ने १८ जुलाई १९४७ को पारित किया । इस कानून में यह प्रावधान किया गया था कि भारत का विभाजन होगा और १५ अगस्त १९४७ को भारत और पाकिस्तान, ये दो स्वतंत्र राष्ट्र अस्तित्व में आएँगे ।

इसके बाद उनपर इंग्लैंड की संसद का कोई अधिकार नहीं रहेगा । रियासतदारों पर अंग्रेजों का सार्वभौमत्व समाप्त होगा । वे भारत अथवा पाकिस्तान में सम्मिलित हो सकते है अथवा वे स्वतंत्र रह सकते हैं ।

Essay # 6. स्वतंत्रता प्राप्ति:

भारत के स्वतंत्रता कानून के अनुसार भारत को स्वतंत्रता प्राप्त हुई । १४ अगस्त ११९७ की मध्यरात्रि को दिल्ली के संसद भवन में भारत की संविधान सभा की बैठक चल रही थी । बारह बजे के घंटे बजे और भारत की पराधीनता समाप्त हुई । भारत स्वतंत्र हुआ ।

अंग्रेजों का यूनियन जैक नीचे उतारा गया और उसके स्थान पर भारत का तिरंगा फहराया गया । शताब्दियों से चली आ रही पराधीनता की बेड़ियाँ टूट गई थीं । भारत में अंग्रेजी सत्ता दवारा अपने पैर जमाने के बाद जिन लाखों भारतीयों ने देश की स्वतंत्रता हेतु असीम त्याग किया, असंख्य बलिदानियों ने अपने प्राण बिछाए; स्वतंत्रता प्राप्ति उनके बलिदान का फल था ।

स्वतंत्र भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने अपने हृदयस्पर्शी भाषण द्‌वारा इस ऐतिहासिक क्षण के महत्व को रेखांकित किया । उन्होंने आह्वान किया ‘इस मंगलमय क्षण में हम शपथ लेंगे कि हम स्वयं को मात्र भारतीयों की ही नहीं अपितु मानवजाति की सेवा के प्रति समर्पित करेंगे ।’ लाखों भारतीयों ने स्वतंत्रता समारोह को बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया ।

स्वतंत्रता प्राप्ति का आनंद संपूर्ण आनंद नहीं था । देश का विभाजन और उस समय हुई भीषण हिंसा के कारण भारत की जनता दुखी थी । गांधीजी स्वतंत्रता समारोह में सम्मिलित नहीं हुए थे । उस समय वे बंगाल में शांति और जातिगत सद्‌भाव बनाए रखने का प्राणपण से प्रयास क्त रहे थे ।

भारत के स्वतंत्र होने के बाद छह महीनों के भीतर ३० जनवरी १९४८ को नथूराम गोड़से ने गांधीजी की जघन्य हत्या की । हिंदू-मुस्लिम एकता को बनाए रखने के लिए उन्होंने रात-दिन संघर्ष किया और उसका मूल्य उन्होंने अपने प्राण देकर चुकाया ।

Essay # 7. भारत गणतंत्र देश बना:

ई॰स॰ १९४६ में संविधान सभा ने भारत के संविधान बनाने का कार्य प्रारंभ किया । संविधान सभा में डा॰ राजेंद्रप्रसाद, पंडित जवाहरलाल नेहरू, डा॰ बाबासाहेब आंबेड़कर, सरदार वल्लभभाई पटेल, मौलाना अबुल कलाम आजाद, सरोजिनी नायड़ू, जे. बी. कृपलानी, राजकुमारी अमृत कौर, दुर्गाबाई देशमुख, हंसाबेन मेहता जैसे कई मान्यवर सदस्यों का समावेश था ।

संविधान का मसविदा बनाने के लिए डा॰ बाबासाहेब आंबेड़कर की अध्यक्षता में मसविदा समिति का गठन किया गया । २६ जनवरी १९५० को स्वतंत्र भारत के संविधान का कार्यान्वयन प्रारंभ हुआ । डा॰ बाबासाहेब आंबेडकर ‘भारतीय संविधान के शिल्पकार’ हैं । अंग्रेजी साम्राज्य के विरोध में लड़ते हुए भारतीयों ने स्वतंत्रता, समता, बंधुता और लोकतंत्र जैसे मूल्यों को सदैव सर्वोपरि माना । ये ही मूल्य हमारे संविधान की निर्मिति की नींव है ।

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