Read this article in Hindi to learn about the pre and early stages of adulthood observed in humans.
प्रथम संक्रमण पूर्व वयस्क काल एवं प्रारम्भिक वयस्कावस्था के मध्य होता है, तथा स्वतन्त्रता रूपी जीवन ग्रहण करना चाहता है । प्रथम संक्रमण काल के पश्चात् प्रारम्भिक वयस्कावस्था में व्यक्ति प्रवेश करता है । इसमें जीवन संरचना के दो मुख्य घटक दिखाई पड़ते है- स्वप्न व मेंटर ।
स्वप्न का सम्बन्ध भविष्य की उपलब्धियों से एवं उम्मीदों से होता है । बडी उम्र एवं अधिक अनुभव वाले ऐसे व्यक्ति ‘मेंटर’ श्रेणी में आते हैं, जो अपनों से छोटों का मार्गदर्शन करते हैं । इसके बाद तीस साल की उस में स्वय के द्वारा चयनित क्षणों का बार-बार परीक्षण करते हैं । इस अवस्था में वे अपने निर्णय को उत्तम मानते हैं, अथवा कुछ परिवर्तन करते हैं ।
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प्रारम्भिक वयस्क अवस्था के उपरान्त 40 से 45 के मध्य की Midlife होती है । यह उम्र नैतिक उत्तरदायित्वों का बोध कराती है, तथा इसमें व्यक्ति पूर्ण हुए स्वप्नों का आकलन करते हैं । अपने चयनों की सफलता के विषय में सोचते हैं, तथा भूतकाल में अपने अस्तित्व की सार्थकता का मूल्याकन करते हैं ।
जीवन प्रत्याशाएँ एवं घटनाएं एक संस्कृति से दूसरी संस्कृति में परिवर्तित मिलती हैं । इसलिए वयस्क विकास को सामाजिक व ऐतिहासिक कारकों की पृष्ठभूमि में देखना चाहिए । इस सन्दर्भ में Broufenbrenner’s Ecological System Theory इस उपागम का प्रतिनिधित्व करती है ।
इस सिद्धान्त को मानव विकास के सन्दर्भ में समझना आवश्यक होगा:
(i) मेशो सिस्टम:
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यह उन प्रतिवेशों के मध्य सम्बन्धों की ओर संकेत करता है, जिनमें व्यक्ति हिस्सा लेते हैं । जैसे – स्कूल की घटनाएँ तथा घर पर घटनाएं परस्पर प्रभावित कर सकती हैं ।
(ii) माइक्रो सिस्टम:
ऐसे प्रतिवेश जिनमें विकासशील व्यक्ति अन्य व्यक्तियों तथा वस्तुओं से सीधे अन्तर्क्रिया करता है । घर, कार्य, स्कूल, पडोस आदि ऐसे प्रतिवेशों का निर्माण करते हैं ।
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(iii) मैक्रो सिस्टम:
इसमें ऐसे सांस्कृतिक मूल्यों, विश्वासों एवं कानूनों की गणना की जाती है, जो सभी आन्तरिक प्रणालियों को प्रभावित करते हैं । ये सभी व्यक्ति के जीवन तथा विकास को महत्वपूर्ण तरीके से प्रभावित करते हैं ।
(iv) एम्सो सिस्टम:
इसमें ऐसे प्रतिवेश आते हैं, जिनको व्यक्ति सीधे महसूस नहीं कर पाता लेकिन जो इसको प्रभावित करता है । यथा-स्कूल बोर्ड की मीटिंग, बच्चे का स्कूल जीवन साथी का स्थान आदि ।
Bronfen Brenner (1989) ने स्पष्ट किया है, कि व्यक्तियों की वातावरण के साथ अन्तर्क्रिया को नजरअन्दाज करते हुए उसके जीवनकाल के दौरान उसमें परिवर्तनों को जानने का प्रयत्न बेकार हो जाता है । समय के अनुसार वातावरण परिवर्तित होता रहता है ।
प्रौढ़ावस्था में शारीरिक परिवर्तन (Physical Changes in Adulthood):
प्रौढ़ावस्था के अन्तर्गत अनेक परिवर्तन के कारण सामने आते हैं ।
इस सन्दर्भ में हम प्रारम्भिक एवं मध्य प्रौढ़ावस्था की चर्चा करेंगे:
(i) प्रारम्भिक प्रौढ़ावस्था (Early Adulthood):
प्रौढ़ावस्था के प्रारम्भिक काल में माँसपेशीय शक्ति, संवेदी तिक्ष्णता, हृदय कार्य पहले बढ़ते हैं, तत्पश्चात् घटने लगते हैं । कुछ लोगों का वजन कम हो जाता है । कुछ लोगों के बाल गिरने लगते हैं ।
प्रारम्भिक अवस्था के शारीरिक परिवर्तन पहले मन्द गति से फिर शीघ्र गति से दिखाई देते हैं, आँखों की देखने की क्षमता में धीरे-धीरे हास होता है । इस प्रकार प्रारम्भिक प्रौढ़ावस्था मे उम्र बढ़ने का नकारात्मक प्रभाव जीवन के आरम्भिक काल में देखा जा सकता है ।
(ii) मध्य जीवन (Middle Life):
इस अवस्था में व्यक्ति के प्रमुख अंगों की शक्ति का हार होने लगता है । इस अवस्था में व्यक्ति की उम्र 40 वर्ष के आस-पास रखा है । व्यक्ति की कार्यरत पेशियों में O2 की मात्रा कम पहुँचती है । हृदय की शक्ति में कमी आ जाती है । धमनियों की क्षमता पूर्ववत् नहीं रहती ।
(iii) प्रौढ़ावस्था का तृतीय काल (Third Stage of Adulthood):
इस अवस्था में शारीरिक परिवर्तन बड़ी तेजी के साथ होते हैं । पुरुषों की काम शक्ति में कमी व क्षीणता बडे नाटकीय तरीके से होती है । महिलाओं में Menopause शुरू हो जाती है, अर्थात् उसका मासिक धर्म बन्द हो जाता है । इसके बाद उसमें Osteoporosis घटित हो सकती है ।
इसमें बचाव हेतु कई महिलाएँ Hormone Replacement Therapy से फायदा उठाती हैं । पुरुषों में काम हॉर्मोन का स्राव तथा Prostrate Gland की कार्यवाही कम हो जाती है । कुछ लोगों में Prostrate Gland बढ़ता है, जिससे यौन व्यवहार तथा पेशाव निकास प्रभावित होता है । अनेक व्यक्तियों में काम अन्तर्नोद में कमी आती है ।
उपर्यक्त अवस्था प्रौढ़ावस्था के रूप में स्पष्ट की गई व्यक्ति के जीवन की अन्तिम अवस्था जिसे वृद्धावस्था कहा जाता है । अत्यन्त संवेदनशीलता वाली अवस्था होती है । इसमें अनेक रोग एवं बीमारियाँ फैलने लगती हैं ।
इस अवस्था की चर्चा निम्नवत् की जा सकती है:
वृद्धावस्था (Old Age):
जीवन के अन्तिम वर्षो में प्राथमिक वृद्धावस्था तथा गौण वृद्धावस्था दिखायी देती है । प्राथमिक वृद्धावस्था का सम्बन्ध ऐसे परिवर्तन से है, जो मात्र उम्र बढ़ने के साथ दिखती है । इसके विपरीत गौण वृद्धावस्था का सम्बन्ध बीमारी आदि कारक के कारण शरीर में आये परिवर्तन से होता है ।
लगभग 60 वर्ष की उम्र में व्यक्ति की संवेदी योग्यताओं में महत्वपूर्ण परिवर्तन घटते हैं । लगभग 70 वर्ष की उम्र के बाद व्यक्तियों की दृष्टि ती लता में अचानक गिरावट आ जाती है, तथा इसमें अन्धकार अनुकूलन और गति प्रत्यक्षीकरण की योग्यताओं में गिरावट आ जाती है ।
ऐसे ही श्रवण संवेदनशीलता में कमी आती है । लगभग 75 साल की आयु में स्वाद तथा गफ्टा की योग्यता का हास दिखने लगता है । बुढ़ापे में व्यक्ति का R.T. बढ़ जाता है । अच्छी जीवन शैली इन परिवर्तनों की शुरुआत को विलम्बित कर सकती है ।
लगभग सन् 1980 तक यह माना जाता था कि वृद्धि प्रारम्भिक वयस्क काल तक बढ़ती है, इसके बाद लगभग 40 वर्ष की आयु तक स्थिर रहती है । 40 वर्ष बाद इसमें कमी आने लगती है । यह निष्कर्ष प्रधानत: Cross Sectional Research पर आधारित था ।
ऐसा उपागम अनेक परिसीमाओं से ग्रस्त होता है । कुछ मनोवैज्ञानिकों ने लम्बवत् उपागम का इस्तेमाल किया व पाया कि बुद्धि का निर्माण करने वाली कुछ योग्यताएँ व्यक्ति में जीवनभर बढ़ती जाती हैं, तथा शेष लगभग 60 वर्ष के बाद कुछ गिरावट प्रदर्शित करती है ।
बुद्धि परीक्षणों पर निष्पादन में गिरावट R.T. में वृद्धि की वजह से हो सकती है, तथा इस प्रकार यह निष्कर्ष निकाला है, कि आयु बढ़ने पर बुद्धि में गिरावट आती है ।
Finkle ने यमज बच्चों में अध्ययन करके यह पाया कि वयस्क लोगों में बुद्धि स्थिर बनी रहती है, लेकिन लगभग 60 वर्ष के बाद इसमें मामूली सी गिरावट आती है । कुछ अन्य मनोवैज्ञानिकों ने बताया कि 60 वर्ष के बाद मामूली सी गिरावट आ जाती । औपचारिक शिक्षा का अभाव उत्तरदायी होते हे ।
सामाजिक व संवेगात्मक परिवर्तन (Social and Emotional Changes):
प्रत्येक व्यक्ति सामाजिक नेटवर्क का हिस्सा होना चाहता है । इसमें दोस्त, पड़ोसी, रिश्तेदार आदि आते हैं । व्यक्ति प्रारम्भिक वयस्क काल में अनेक व्यक्तियों से अंतर्क्रिया करता है । अनेक व्यक्तियों को दोस्त बनाता है, लेकिन जैसे-जैसे मध्य वयस्क काल में प्रवेश करता है ।
वह अपने सामाजिक नेटवर्क का दायरा कम कर लेता है । लगभग 50 वर्ष की आयु में व्यक्ति के पास 10 व्यक्ति उसके अपने रह जाते हैं, तथा व्यक्ति उन्हीं के साथ जीवनभर का सम्बन्ध कायम रखता है । व्यक्ति समय की कमी महसूस करता है । व्यक्ति सीमित साथियों को चुन लेता है ।
व्यक्ति बढ़ती आयु आने वाली सेवानिवृत्ति शारीरिक कमजोरी जैसे कारकों की वजह से दूसरे व्यक्तियों के साथ कम अन्तर्क्रिया करने लगते है ।
कुछ मनोवैज्ञानिकों ने एजिंग व संवेगात्मक अनुभवों के मध्य सम्बन्ध का पता लगाया । बड़ी उम्र वाले वयस्क भी छोटी आयु वाले वयस्कों की भांति धनी व तीव्र संवेगात्मक अनुभव करते हैं ।
आयु बढ़ोतरी के साथ-साथ स्मृाद्द के कुछ पहलुओं में गिरावट हेतु जैविक परिवर्तनों को दोषी माना जाता है । जब हम उम्र में बढ़ते हैं, तो हमारे दिमाग का वजन 70 वर्ष तक 5 प्रतिशत, 80 वर्ष तक 10 प्रतिशत तथा 90 वर्ष तक 20 प्रतिशत घट जाता है ।
मस्तिष्क में अन्य क्षेत्रों की तुलना में Frontal Lobe में न्यूरॉन क्षति ज्यादा होती ? हाल ही में हुए शोधों से जानकारी मिलती है कि आयु के बढ़ने से मस्तिष्क में कितनी क्षति होती है ? इसका पता लगाया गया है, Gurelal ने अपने अध्ययनों में पाया कि पुरुषों की तुलना में महिलाओं के मस्तिष्क में नकारात्मक परिवर्तन कम होते हैं । इसके लिए मादा काम हॉर्मोन को उत्तरदायी माना जा सकता है ।
मानसिक व्यायाम द्वारा उम्र बढ़ने से स्मृति में आने वाले नकारात्मक परिवर्तनों को विलम्बित किया जा सकता है, जो व्यक्ति अपने जीवन में चिन्तन, तर्कणा आदि का लगातार इस्तेमाल करते रहते हैं, वे स्मृति में गिरावट को कुछ सीमा तक रोक सकते है ।