Read this article in Hindi to learn about the various types of social behaviour seen in an individual.

Type # 1. आक्रामकता:

2 से 5 वर्ष की अवस्था के बालक में आक्रामकता का व्यवहार पाया जाता है और यह व्यवहार लगभग 5 वर्ष की अवस्था तक चरम सीमा पर पहुँच जाता है । इसके पश्चात् धीरे-धीरे इस व्यवहार की तीव्रता व आवृत्ति दोनों कम होने लगती है ।

यह आक्रामक व्यवहार बच्चों में अनेक कारणों से उत्पन होता है:

(i) माता-पिता का तिरस्कारपूर्ण व्यवहार,

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(ii) बालक या बड़े बच्चों के आक्रामक व्यवहार से तादात्मीकरण,

(iii) अपनी उच्चता प्रदर्शित करने की इच्छा,

(iv) अधिक ध्यानाकर्षण की इच्छा,

(v) पारिवारिक तनाव के कारण,

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(vi) बालक की गलती के लिए उसे दण्डित करना,

(vii) उसकी इच्छाओं के पूर्ण होने में व्यवधान,

(viii) अपनी उच्चता प्रदर्शित करने की इच्छा ।

लगभग 5 वर्ष की आयु में उसका आक्रामकता सम्बन्धी व्यवहार प्रत्यक्ष की अपेक्षा अप्रत्यक्ष होता जाता है । इस प्रकार व्यवहार बालक उन्हीं के साथ करते हैं, जो परिचित होते हैं ।

Type # 2. झगड़ा:

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बच्चों में झगड़ा तब ही होता है, जब बच्चा दूसरे बच्चे की कोई चीज आदि छीनने का प्रयत्न करता है । बच्चे आपस में झगड़ते हैं, लेकिन इसका यह अर्थ बिस्कृल नहीं होता कि वह आपस में एक-दूसरे को पसन्द नहीं करते । इस प्रकार से झगड़ा होने में, नोचने, काटने, पीटने, गन्दे शब्द बोलने, धक्का देने आदि जैसे अनेक व्यवहार देखे जा सकते हैं । लड़के-लड़कियों की अपेक्षा अधिक लड़ते व झगड़ते हैं ।

Type # 3. चिढ़ान:

चिढ़ाना भी एक प्रकार का मौखिक आक्रमण होता है, जिसके द्वारा बालक दूसरे बालक को नाराज करता है, और उस बच्चे को केवल तथा उस बच्चे के लक्ष्य को केवल मौखिक आक्रमण से ही प्राप्त करना चाहता है ।

Type # 4. निषेधात्मक व्यवहार:

यह आज्ञा को न मानकर कार्य करने की प्रवृत्ति कहलाती है, निषेधात्मक व्यवहार की शुरु-भात 18 माह की आयु से होता है और जब बालक 5 वर्ष की अवस्था में पहुँचता है तब यह व्यवहार चरम पर होता है ।

3 वर्ष की अवस्था में बालक बड़ों की आज्ञा की अवेहलना करता है, न ही समझता है, बुलाने पर छिप जाने की कोशिश करता है । जिन बालको में इस तरह का व्यवहार अधिक होता है वे न किसी की सुनते हैं, न ही समझते हैं, चाहे उन्हें कितना भी समझाया जाये ।

Type # 5. सहयोग:

समान उद्देश्यों को पूरा करने के लिए सम्मिलित रूप से दो या अधिक बालकों के प्रयास को सहयोग कहा जाता है । 2-3 वर्ष की आयु वाले बालक झगड़ालू होते हैं, इस प्रकार उनमें सहयोग नहीं होता । तीसरे-चौथे वर्ष में बालक में सहयोग की भावना दिखाई देती है ।

सहयोग के प्रथम लक्षण बच्चों के सामूहिक खेल में दृष्टिगत होते हैं । यह देखा गया है, कि एक बच्चा दूसरों के साथ जितना अधिक रहता है, उसमें सहयोग की भावना उतनी ही जल्दी पनपती है ।

Type # 6. ईर्ष्या:

चार वर्ष की अवस्था में बच्चों में प्राय: ईर्ष्या के लक्षण उत्पन हो जाते हैं । तीन वर्ष के बच्चों में भी ईर्ष्या के लक्षण कभी कभार उत्पन्न हो जाते हैं । उसे 3 वर्ष की अवस्था के बच्चे अधिकतर अपने आपको दूसरों से बेहतर सिद्ध करते हैं या सिद्ध करने का प्रयास करते हैं कि उनके पास जो खिलौने या वस्तु हैं, वह किसी और के पास नहीं है ।

अधिकतर दो बच्चे के बीच तीसरा बच्चा होता है, तब ईर्ष्या में झगड़ा अवश्य ही हो जाता है । वह ईर्ष्या पढ़ने-लिखने वस्तुओं आदि के रखने आदि किसी से भी सम्बन्धित हो सकती है ।

Type # 7. आश्रितता:

अधिकतर यह देखने को मिलता है, कि बच्चा जिन वस्तुओं को नहीं कर पाता या वह जिन चीजों के लिए विश्वास करता है, कि वह इन्हें नहीं कर पायेगा उनके लिए वह दूसरों पर निर्भर हो जाता है । लगभग 3-5 वर्ष का बालक साथी समूह पर आश्रित होने लगता है ।

निर्भरता की आदत बालक घर से सीखता है, लेकिन वह कुछ ही दिनों में इसे अन्यत्र उपयोग करने लगता है, जब बालक में असुरक्षा की भावना होती है, तब उसमें अधिक निर्भरता की भावना उत्पन हो जाती है ।

Type # 8. सहानुभूति:

इसके अर्न्तगत एक बालक दूसरे बालक के साथ समान संवेगों को प्रदर्शित करता है । सहानुभूति बालक तब ही प्रदर्शित करना सीखता है, जब वह अपने को दूसरे की पोजीशन में होने की कल्पना करता है । लगभग 4 वर्ष की अवस्था के अन्त तक बालकों में सहानुभूति के लक्षण कभी-कभी देखने को मिल जाते हैं । कुछ बड़े बच्चे भाषा के माध्यम से सहानुभूति का प्रदर्शन करते हैं ।

Type # 9. उदारता:

छोटे बच्चे अधिकांश तथा आत्म-केन्द्रित होते हैं । इसलिए वह स्वार्थी भी हो जाता है । 4-6 वर्ष की आयु तक उनका स्वार्थीपन चरम सीमा पर पहुँच जाता है । इसके पश्चात् वह जानने लगता है, कि स्वार्थीपन से सामाजिक स्वीकृति नहीं मिलती । इस प्रकार वह परिस्थितियों के साथ ठीक प्रकार से समायोजन करना आरम्भ कर देता है तथा दूसरों के समान व्यवहारों को अपनाने लगता है ।

अधिक उदार बच्चे अधिकतर मध्य वर्गीय या अधिक बड़े परिवारों के होते हैं । कई बार बने उस समय भी उदारता सीख जाते हैं, जब उन्हें इन लक्षणों को अपनाने का पुरस्कार मिलता दिखाई देता है ।

Type # 10. सामाजिक अनुमोदन की इच्छा:

छोटा बच्चा भी यह जानता है, कि वह प्रशसा तथा ध्यान का केन्द्र है, बालक को जैसे-जैसे सामाजिक अनुमोदन मिलता है, वैसे-वैसे उसे प्रसन्नता तथा खुशी प्राप्त होती है । छोटा बच्चा इस तथ्य को समझकर भी अनजान व्यक्तियों से शर्माता है ।

लेकिन कुछ बड़ा बच्चा इन अनजान व्यक्तियों में अपने माता-पिता की अपेक्षा ज्यादा अनुमोदन प्राप्त करना चाहता है । जिस बच्चे में सामाजिक अनुमोदन की जितनी ही अधिक तीव्र इच्छा होती है, वह उतनी ही जल्दी समायोजन कर लेता है और जल्दी ही वह समाज की प्रत्याशाओं के अनुसार व्यवहार अपना लेता है ।

Type # 11. बालकों में मित्रता:

छोटे बच्चे दूसरे बच्चों तथा वयस्कों दोनों के प्रति मित्रवत् हुआ करते हैं । शुरुआत में बच्चा अपने भाई-बहनों से दोस्ती करता है । बाद में पड़ोस में रहने वाले तथा स्कूल में पढ़ने वाले बच्चे उसके मित्र बन जाते हैं ।

उनमें पारस्परिक मित्रता स्वभाव सामाजिकता सहानुभूति रुचियों में समानता सहयोग यौन समानता सच्चाई ईमानदारी प्रलोभन नैतिकता नेतृत्व व प्रभुत्व की भावना शारीरिक सुन्दरता आदि के कारण होती है । वैसे लड़कियों की मित्रता में लडुकों की अपेक्षा अधिक स्नेह होता है ।

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