गुप्त युग की तीन महत्वपूर्ण चित्रकारी | 3 Important Painting of Gupta Era. Read this article in Hindi to learn about the top three painting of Gupta period. The paintings are:- 1. अजन्ता के चित्र (Photographs of Ajanta) 2. विविध गुफाओं के चित्र (Pictures of Diverse Caves) 3. बाघ की चित्रकला (Tiger Painting).
Painting # 1. अजन्ता के चित्र (Photographs of Ajanta):
वासुदेवशरण अग्रवाल के शब्दों में गुप्तयुग में चित्रकला अपनी पूर्णता को प्राप्त हो चुकी थी । गुप्तकाल के पूर्व चित्रकला के उदाहरण बहुत कम मिलते हैं । प्रारम्भिक चित्र प्रागैतिहासिक युग की पर्वत गुफाओं की दीवारों पर प्राप्त होते हैं । कुछ गुहा-मन्दिरों की दीवारों पर भी चित्रकारियाँ मिलती हैं ।
गुप्तकाल तक आते-आते चित्रकारों ने अपनी कला को पर्याप्त रूप से विकसित कर लिया । इस युग की चित्रकला के इतिहास-प्रसिद्ध उदाहरण आधुनिक महाराष्ट्र प्रान्त के औरंगाबाद जिले में स्थित अजन्ता तथा मध्य प्रदेश के ग्वालियर के समीप स्थित बाद्य नामक पर्वत गुफाओं से प्राप्त होते हैं ।
इनमें भी अजन्ता की गुफाओं के चित्र समस्त विश्व में प्रसिद्ध है । औरंगाबाद जिले में जलगाँव नामक रेलवे स्टेशन से लगभग पैंतीस मील की दूरी पर फर्दापुर नामक एक ग्राम है । यहीं से चार मील दक्षिण-पश्चिम दिशा में अजन्ता स्थित है ।
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यहाँ चट्टान को काटकर उन्तीस गुफायें बनायी गयी थीं । इनमें चार चैत्यगृह तथा शेष विहार गुफायें थीं । 1819 ई. में मद्रास सेना के कुछ यूरोपीय सैनिकों ने इन गुफाओं की अचानक खोज की थी । 1824 ई. में जनरल सर जेम्स अलेग्जेन्डर ने रायल एशियाटिक सोसायटी की पत्रिका में प्रथम बार इनका विवरण प्रकाशित कर संसार को अजन्ता के दुर्लभ चित्रों की जानकारी दी ।
अजन्ता में पहले 29 गुफाओं में चित्र बने थे परन्तु अब केवल छ: गुफाओं (1-2, 9-10 तथा 16-17) के चित्र अवशिष्ट है । इनका समय अलग-अलग है । नवीं-दशवीं गुफाओं के चित्र प्रथम शताब्दी ईसा पूर्व के हैं । पहली-दूसरी गुफाओं के चित्र सातवीं शताब्दी ईस्वी के हैं तथा दसवीं गुफा के स्तम्भों पर अंकित चित्र एवं सोलहवीं-सत्रहवीं गुफाओं के भित्ति चित्र गुप्तकालीन हैं । गुप्तकालीन चित्र अत्युत्कृष्ट हैं ।
अजन्ता के चित्रों के तीन प्रमुख विषय हैं- अलंकरण चित्रण और वर्णन । विविध फूल-पत्तियों, वृक्षों तथा पशु-आकृतियों, से अलंकरण का काम लिया गया है । ये इतने अधिक प्रकार के हैं कि किसी भी एक की पुनरावृत्ति नहीं होने पाई है ।
किन्नर, नाग, गरुड़, यक्ष, गन्धर्व, अप्सरा आदि अलौकिक एवं पौराणिक आकृतियों का उपयोग स्थान भरने के लिये किया गया है । अनेक बुद्धों एवं बोधिसत्वों का चित्रण हुआ है । बुद्ध के भौतिक जीवन से संबंधित घटनाओं का सुन्दर ढंग से चित्रण हुआ है । पहली गुफा में पद्मपाणि अवलोकितेश्वर का दृश्य चित्रण कला के चरमोत्कर्ष का सूचक है । कहीं-कहीं लोकपालों एवं राजा-रानियों का भी चित्रण मिलता है ।
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जातक ग्रन्थों से ली गयी कथायें वर्णनात्मक दृश्यों के रूप में उत्कीर्ण हुई हैं । विशेषकर विश्वन्तर, षड्न्त, शिवि आदि जातकों से कथायें ग्रहण की गयी है । अजन्ता में फ्रेस्को तथा टेम्पेरा दोनों ही विधियों से चित्र बनाये गये हैं ।
प्रथम में गीले प्लास्टर पर चित्र बनाये जाते थे तथा चित्रकारी विशुद्ध रंगों द्वारा ही की जाती थी । द्वितीय विधि में सूखे प्लास्टर पर चित्र बनाये जाते थे तथा रंग के साथ अंडे की सफेदी एवं चुना मिलाया जाता था ।
शंखचूर्ण शिलाचूर्ण, सिता मिश्री, गोबर, सफेद मिट्टी, चोकर आदि को फेटकर गाढ़ा लेप तैयार किया जाता था । चित्र बनाने क पूर्व दीवार को भली-भाँति रगड़ कर साफ करते थे तथा फिर उसके ऊपर लेप चढ़ाया जाता था । चित्र का खाका बनाने के लिये लाल खड़िया का प्रयोग होता था ।
रंगों में लाल, पीला, नीला, काला तथा सफेद रंग प्रयोग में लाये जाते थे । उल्लेखनीय है कि अजन्ता के पूर्व कहीं भी चित्रण में नीले रंग का प्रयोग नहीं मिलता । लाल तथा पीले रंग का प्रयोग अधिक किया गया है । रंगों में चमक है जो अँधेरी रात में चाँद-तारे की भाँति चमकते हैं ।
Painting # 2. विविध गुफाओं के चित्र (Pictures of Diverse Caves):
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अजन्ता के गुफाचित्र बौद्ध धर्म से संबन्धित है । इनमें बुद्ध तथा बोधिसत्वों का चित्रण मिलता है । बुद्ध के जीवन की विविध घटनाओं तथा जातक कथाओं के दृश्यों का अंकन बहुतायत से किया गया है ।
इनका विवरण इस प्रकार है:
गुफा संख्या सोलह:
इसकी चित्रकारी 500 ई. के लगभग से प्रारम्भ होती है तथा सत्रहवीं गुफा के कुछ पूर्व की है । अजन्ता की 16वीं गुफा के चित्रों में ‘मरणासन्न राजकुमारी’ नामक चित्र सर्वाधिक सुन्दर एवं आकर्षक है । यह पति के विरह में मरती हुई राजकुमारी का चित्र है । उसके चारों ओर परिवारजन शोकाकुल अवस्था में खड़े हैं ।
एक सेविका उसे सहारा देकर ऊपर उठाये हुए हैं तथा दूसरी पंखा झल रही है । एक स्त्री अत्यन्त आतुर होकर राजकुमारी का हाथ अपने हाथ ये पकड़े हुए है । दूसरी ओर दो सेविकायें हाथ में कलश लिये खड़ी हैं । राजकुमारी का सिर गिर रहा है, आंखे बन्द हैं तथा शरीर का अंग-प्रत्यंग पीड़ा से कराह रहा है ।
समीप खड़े परिजनों के मुखमण्डल पर दु:ख का भाव अंकित है । विद्वानों ने इसकी पहचान बुद्ध के सौतेले भाई नन्द की पत्नी सुन्दरी से की है । ग्रिफिथ, बर्गेस तथा फार्ग्गुसन जैसे कलाविदों ने इस चित्र की मुक्तकण्ठ से प्रशंसा की है तथा बताया है कि- ‘करुणा, भाव एवं अपनी कथा को स्पष्ट ढंग से व्यक्त करने की दृष्टि से यह चित्रकला के इतिहास में अनतिक्रमणीय है ।’
सोलहवीं गुफा के एक दृश्य में बुद्ध के महाभिनिष्क्रमण का चित्रांकन है जिसमें वे अपनी पत्नी, पुत्र तथा परिचायिकाओं को छोड़कर जाते हुए दिखाये गये हैं । उनकी वैराग्य भावना दर्शनीय है । कुछ चित्र बुद्ध के जीवन से सम्बन्धित भी हैं जिनमें सुजाता का खीर अर्पण, माया का स्वप्न दर्शन आदि का अंकन कुशलतापूर्वक किया गया है ।
वायीं दीवार पर उन चार घटनाओं का अंकन है जिन्हें देखकर बुद्ध के मन में वैराग्य उत्पन्न हुआ था । बुद्ध के जन्म तथा उनके सात पग चलने की कथा को कमल के सात फूलों के प्रतीक के माध्यम से चित्रित किया गया है । बुद्ध की पाठशाला का भी एक दृश्यांकन है जिसमें क्रीड़ारत बालकों को दिखाया गया है । सभी चित्रांकन सुन्दर एवं भावपूर्ण हैं ।
ii. गुफा संख्या सत्रह:
सत्रहवीं गुफा के चित्र विविध प्रकार के हैं । इसे ‘चित्रशाला’ कहा गया है । ये अधिकतर बुद्ध के जन्म, जीवन, महाभिनिष्क्रमण तथा महापरिनिर्वाण की घटनाओं से सम्बन्धित हैं । समस्त चित्रों में ‘माता और शिशु’ नामक चित्र आकर्षक है जिसमें संभवतः बुद्ध की पत्नी अपने पुत्र को उन्हें समर्पित कर रही है ।
असीम श्रद्धा एवं भक्तिपूर्वक माता तथा पुत्र दोनों एकटक रूप से बुद्ध को देख रहे हैं । इस चित्र को देखने से सहानुभूति एवं करुणा टपकती है । हैवेल महोदय ने तो इस चित्र को जावा के बोरोबुदुर से प्राप्त बौद्ध कला की समकक्षता में रखना पसन्द किया है । बुद्ध के जीवन से सम्बन्ध रखने वाले चित्रों में उनके महाभिनिष्क्रमण का एक चित्र अत्यन्त सजीवता के साथ उत्कीर्ण किया गया है ।
इसमें युवक सिद्धार्थ के सिर पर मुकुट है तथा शरीर सुडौल है । आंखों से अहिंसा, शान्ति एवं वैराग्य टपक रहा है । मुखमुद्रा गम्भीर एवं सांसारिकता से उदासीन प्रतीत होती है । निवेदिता के शब्दों में- ‘यह चित्र शायद बुद्ध का महानतम कलात्मक प्रदर्शन है जिसे संसार ने कभी देखा है ।
ऐसी कल्पना कठिनता से गुण उत्पन्न हो सकती है ।’ एक अन्य चित्र में कोई सम्राट एक सुनहले हंस से बातें करता हुआ चित्रित किया गया है । निवेदिता के विचार में इस चित्र से बढ़कर विश्व में कोई दूसरा चित्र नहीं हो सकता । इसी गुफा में आकाश में विचरण करते हुए गन्धर्वराज को अप्सराओं तथा परिचारकों के साथ चित्रित किया गया है । यह चित्रण अत्यन्त मनोहारी है ।
अन्य चित्रों में काले मृग, हाथी एवं सिंह के शिकार के दृश्यों का अंकन अत्यधिक कुशलता के साथ किया गया है । अजन्ता की गुफाओं में जातक कथाओं से लिये गये दृश्यों का भी बहुविध अंकन प्राप्त होता है ।जातक कथायें सबसे अधिक सत्रहवीं गुफा में चित्रित की गयी हैं ।
महाकपि जातक, हंस जातक, हस्ति जातक, छन्दन्त जातक, महासुतसोम जातक, साम जातक, महिष जातक, शिवि जातक, रुरु जातक आदि का अंकन मिलता है । बुद्ध के जीवन से संबन्धित विविध घटनाओं के साथ-साथ उनके पूर्व जन्मों से संबन्ध रखने वाली कथाओं का भी पूर्ण चित्रण प्राप्त होता है । इस प्रकार का चित्रण एक स्थान पर अन्यत्र मिलना कठिन है ।
iii. नवी-दसवीं गुफाओं के चित्र:
जैसा कि ऊपर बताया जा चुका है कि नवीं-दसवीं गुफाओं में चित्र सबसे प्राचीन हैं और उनका समय लगभग प्रथम शताब्दी ईसा पूर्व निर्धारित किया जाता है । नवीं गुफा के चित्रों में एक विशेष प्रकार के शिरोवस्त्र या पगड़ी धारण किये हुए पुरुषों का चित्रण है ।
इनके गले में मोटी-मोटी मालायें हैं जिनमें धातु-खण्ड गुँथे हुए हैं । कानों में बड़े-बड़े कर्णफूल जैसे आभूषण, हाथों में मोटे कड़े, कमर में विशेष प्रकार के कमरबन्द (करधनी) है । इसी प्रकार के शिरोभाग तथा आभूषण भरहुत एवं सांची की मूर्तियों में दिखाई देते हैं । प्रवेश द्वार के पास एक शिलालेख है तथा इसी के पास एक राजकीय जुलूस का चित्र अति प्रसिद्ध है ।
इसमें राजा, रानी तथा बहुत से स्त्री-पुरुषों को सुसज्जित वेश-भूषा में चलते हुए दिखाया गया है । जुलूस एक तोरण द्वार से होकर स्तूप तक जाता है जहां राजा स्तूप की पूजा करता है । हाथी सूंढ़ उठाकर स्तूप को प्रणाम करते हुए दिखाये गये हैं । स्तूप-पूजा का यह दृश्य अत्यन्त मनोहर है । दसवीं गुफा में साम जातक एवं छदन्त जातक से ली गयी कथायें अंकित है ।
हाथियों को विविध प्रकार से क्रीड़ा करते हुए सुन्दरता से चित्रित किया गया है । आम, गूलर, बरगद जैसे वृक्षों का भी चित्रण है । छदन्त जातक की कथा को भी अत्यन्त कुशलतापूर्वक चित्रित किया गया है ।
गुफा के स्तम्भों पर बुद्ध की अनेक आकृतियां बनाई गयी हैं । इन पर गन्धार शैली का प्रभाव है । नवीं-दसवीं गुफाओं के चित्रण भारतीय चित्रकला के प्राचीनतम नमूने हैं ।
इसके बाद लगभग 300 वर्षों तक चित्रण का अभाव है । तारानाथ का विचार है कि गुप्तकाल में बिम्बसार नामक कलाकार के नेतृत्व में स्थापत्य तथा चित्रकला का पुनरुत्थान हुआ । इसे कला की ‘मध्य देशीय शैली’ कहा जाता है । इस चित्र का अलंकरण अत्यन्त विस्तृत है । यहां चित्रण विधान सामान्य स्तर का प्रतीत होता है । चित्रों की पृष्ठभूमि में वृक्षों का अंकन विशेष रूप से किया गया है ।
iv. पहली-दूसरी गुफाओं के चित्र:
पहली-दूसरी गुफाओं के चित्रों में सबसे सुन्दर चित्र फारस देश के राजदूत का है जो चालुक्य नरेश पुलकेशिन् द्वितीय के दरबार में आया था । इसमें संभवतः पुलकेशिन् दूत का स्वागत करते हुये दिखाया गया है ।
इसमें राजा दक्षिणी परम्परा के अनुरूप अधोवस्त्र पहने हैं तथा राजदूत को ईरानी टोपी, जामा तथा चुस्त पायजामा पहने हुये चित्रित किया गया है । राजदूत की दाढ़ी भी ईरानी ढंग की है ।
पहली गुफा में ही बोधिसत्व पद्मपाणि अवलोकितेश्वर का एक सुन्दर चित्र है जिन्हें दायें हाथ में नीलकमल लिये हुए कुछ टेढ़ी मुद्रा में खड़ा दिखाया गया है । बोधिसत्व की मुखमुद्रा विश्व करुणा से ओत-प्रोत एवं अध्यात्मिक विचारों में लीन है ।
आँखों में सुख-दुख का भाव समान रूप से जाग रहा है । तीन शिखरों वाले मौलि एवं गले में मोतियों की माला का प्रदर्शन चित्रकार ने अत्यन्त सूक्ष्मता एवं कुशलतापूर्वक किया है । आकृति चित्रण की दिशा में यह सर्वोच्च उपलब्धि है तथा हम इसे एशियाई चित्रण कला की पराकाष्ठा कह सकते हैं । इस चित्र के बगल में एक नारी की आकृति बनी है जिसे काली राजकुमारी कहा गया है ।
पहली गुफा की ही एक भित्ति पर 12 फुट ऊँचा तथा 8 फुट लम्बा बुद्ध का मार (कामदेव) विजय का चित्र मिलता है । बुद्ध तपस्या में लीन हैं जिन्हें कामदेव कई कन्याओं के साथ रिझाने का प्रयास कर रहा है । यह चित्र भी अत्यन्त आकर्षक है । इसी गुफा में एक मधुपायी दम्पति का चित्रण है जिसमें प्रेमी अपने हाथ से प्रेमिका को मधुपात्र देते हुए दिखाया गया है । इसी गुफा की बायीं और शिवि जातक की कथा चित्रित है जिसमें बोधिसत्व के अवतार राजा शिवि को दिखाया गया है ।
इसके बाद शारीरिक पीड़ा से दु:खी एक दुबली-पतली स्त्री का चित्रण अत्यन्त सजीव एवं भावनात्मक है । यहीं बनी भित्ति पर नागराज की सभा का भी चित्रण है जिसमें नर्तकियों का प्रदर्शन अत्यंत आकर्षक है ।
इसके अतिरिक्त पहली गुफा में शिवि जातक, शंखपाल जातक, चम्पेय जातक, महाजनक जातक, महाउम्मग्ग जातक आदि से लिये गये अनेक दृश्यों का चित्रण कुशलतापूर्वक किया गया है ।
शंखपाल जातक के चित्रण में कलाकारों को विशेष सफलता मिली है । मगधराज तथा नागराज के बीच वार्तालाप का चित्रांकन है । शंखपाल तथा उसकी महिषी का चित्रण बड़ा ही स्वाभाविक है । महाजनक जातक से लिये गये एक चित्र में राजा तथा महिषी एक सुसज्जित सिंहासन पर बैठे हैं तथा सामने राजनर्तकियां नृत्य में संलग्न हैं । एक अन्य चित्र में राजपुरुष सैनिकों के साथ प्रस्थान करता दिखाया गया है ।
उसके आगे सैनिक तलवार लिये हुए घोड़ों पर सवार होकर चल रहे हैं । इसी के पास एक आश्रम में ध्यानावस्थित शग्ना मुद्रा में बैठे हुए योगी का चित्र है । दूसरी गुफा की चित्रकारियों अत्यन्त आकर्षक एवं प्रभावोत्पादक हैं ।
बायीं ओर चित्रों की एक श्रृंखला है जिसमें सबसे पहले किसी राजप्रासाद का चित्रण है । संभवतः यह बुद्ध की माता मायादेवी का शयन कक्ष है । इसके आगे बोधिसत्व का चित्रण है जिनके सिंहासन के दोनों ओर मकर की आकृतियाँ हैं ।
उनके हाथ धर्मचक्रप्रवर्त्तन मुद्रा में हैं । एक अन्य दृश्य में शुद्धोधन तथा मायादेवी दिखाये गये हैं । साथ में परिचायिकायें भी चित्रित हैं । सामने दो ज्योतिषी तथा दाई ओर एक स्तम्भ के सहारे टिकी हुई एक सुसज्जित नारी का चित्रण है ।
इसके आगे सिद्धार्थ के जन्म की अलौकिक कथा चित्रित की गयी है । बायीं ओर विधुर पण्डित जातक की कथा चित्रित है जिसमें हाथी पर सवार विधुर पण्डित धीरे-धीरे आगे बढ़ते हुए जान पड़ते हैं । उनके अग्र तथा पार्श्व भाग में अश्वारोही दिखाये गये हैं । इसी गुफा में द्यूतक्रीड़ा का एक सुन्दर चित्रण है ।
अन्य चित्रों में झूला झूलती राजकुमारी, बोधिसत्व से उपदेश सुनती हुई काशिराज की राजमहिषियाँ, बोधिसत्व की पूजा में लीन एक साधक आदि के चित्र भी उल्लेखनीय है । दूसरी गुफा में हंस जातक, रूरू जातक तथा विधुर पण्डित जातक के अनेक दृश्य सफलतापूर्वक अंकित किये गये हैं । इस प्रकार समग्र रूप में अजन्ता की चित्रकला बड़ी प्रशंसनीय है ।
रेखाओं की निश्चितता एवं सूक्ष्मता, रंगों की चमक, प्रफुल्ल भाव तथा स्पन्दमान जीवन के साथ अभिव्यक्ति की प्रचुरता आदि ने मिलकर अजन्ता की चित्रकला को सदा के लिये सर्वश्रेष्ठ बना दिया है । निश्चय ही यह भारतीय चित्रकला के चरमोत्कर्ष को द्योतित करती है ।
Painting # 3. बाघ की चित्रकला (Tiger Painting):
मध्य प्रदेश के धार से 80 किलोमीटर तथा इन्दौर से उत्तर-पश्चिम 144 किलोमीटर दूर नर्मदा की सहायक बाघिनी नदी के बायें तट पर बाघ की पहाड़ी स्थित है । अजन्ता के समान यहाँ भी बौद्ध विहार बनवाये गये । स्मिथ का अनुमान है कि अजन्ता में गुहा निर्माण कार्य समाप्त होने के बाद बाघ में गुहायें उत्कीर्ण की गयीं । फर्गुसन तथा बर्गेस जैसे कलाविद् इनका काल 350-450 ई. अथवा 450-500 ई. निर्धारित करते हैं ।
बाघ पहाड़ी के निकटवर्ती क्षेत्र से प्राप्त कुछ ताम्रपत्रों पर ब्राह्मी लिपि में लेख अंकित है जिनका समय चौथी-पाँचवीं शती निर्धारित किया जाता है । संभव है इस क्षेत्र में शासन करने वाले गुप्तों के सामन्तों द्वारा इन गुफाओं का निर्माण करवाया गया हो ।
बाघ की गुफायें विन्धय पहाड़ियों को काटकर बनाई गयी हैं । सर्वप्रथम 1818 ईस्वी में इनका पता डेंजर फील्ड ने लगाया था । इन गुफाओं की संख्या नौ है जिनमें चौथी-पांचवी गुफाओं के भित्ति-चित्र सबसे अधिक सुरक्षित अवस्था में हैं ।
ये चित्र अजन्ता के चित्रों से इस अर्थ में भिन्न हैं कि इनका विषय धार्मिक न होकर लौकिक जीवन से सम्बन्धित है । बाघ की चौथी-पांचवीं गुफाओं को संयुक्त रूप से ‘रंग महल’ कहा जता है । इनका बरामदा परस्पर मिला हुआ है । इनके बरामदे तथा भीतरी दीवारों पर सर्वाधिक चित्र बनाये गये हैं ।
छ: दृश्य विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं । पहला दृश्य राजभवन के एक खुले मण्डप में बैठी हुई दो युवतियों का है जिनमें एक राजकुमारी तथा दूसरी उसकी सेविका लगती है । राजकुमारी का शरीर आभूषणों से युक्त है । वह अपना हाथ सेविका के कंधों पर रखकर उसकी बातें ध्यान से सुन रही है । छत्र पर कबूतरों के दो जोड़े चित्रित किये गये हैं ।
दूसरा दृश्य दो जोड़ों का है जो एक दूसरे के सम्मुख बैठकर शास्त्रार्थ में लीन प्रतीत होते हैं । बायीं ओर एक पुरुष-स्त्री है जिनके सिर पर मुकुट होने से उनका राजा-रानी होना सूचित होता है । दायीं ओर दूसरा जोड़ा सामान्य जन है । पृष्ठ भाग पर वनस्पतियों का अंकन है । तीसरा एक संगीत का दृश्य है । इसमें पुरुषों तथा स्त्रियों के दो अलग-अलग समूह हैं । पाँच या छ: पुरुषों का समूह स्त्रियों के संगीत का आनन्द उठा रहा है ।
स्त्री समूह के मध्य एक स्त्री वीणा बजाते हुए चित्रित है । एक के सिर पर मुकुट है जिससे वह नायिका लगती है । सभी अलंकृत वस्त्र एवं आभूषण धारण किये हुए हैं । चौथा दृश्य एक संगीतयुक्त नृत्य के अभिनय का है जिसमें स्त्रियों और पुरुषों को अलंकृत वेष-भूषा में वाजों के साथ स्वच्छन्दतापूर्वक नृत्य करते हुए दिखाया गया है । उनके हाथों में मृदंग, करताल, कांस्यताल आदि वाद्य यन्त्र हैं ।
बायीं ओर सात स्त्रियों के बीच विचित्र वेषभूषा वाली नर्तकी (अथवा नर्तक) है जो मोतियों की माला पहने है । तीन स्त्रियां डंडे बजा रही हैं, एक मृदंग तथा तीन मजीरा बजाते हुए दिखाई गयी हैं । दायें समूह में छ: स्त्रियों के घेरे में भी एक नर्तक अथवा नर्तकी है । दोनों समूहों की स्त्रियों-पुरुषों की वेषभूषा अत्यन्त मनोहर है । स्त्रियों के केश विन्यास आकर्षक है ।
इस चक्राकार नृत्य को भारतीय परम्परा में ‘हल्लीसक’ कहा गया है जिसकी उत्पत्ति भगवान कृष्ण की रासलीला से माना जाता है । भारतीय संगीत का यह रूप गुप्तकाल के आमोदपूर्ण नगर जीवन के सर्वथा उपयुक्त था ।
पाँचवें दृश्य में सामूहिक नृत्य को सम्राट तथा उसके घुड़सवार सैनिक देखते हुए प्रदर्शित किये गये हैं । ऐसा लगता है कि घोडों पर सवार सैनिक किसी शोभायात्रा में जा रहे हैं । अश्व आकृतियों को बड़ी सजीवता के साथ चित्रित किया गया है ।
सम्राट राजसी वेषभूषा में है तथा उसके सिर पर राजमुकुट (छत्र) है । छठा दृश्य हाथियों तथा घोड़ों पर सवार स्त्री-पुरुषों की यात्रा का है । हाथी पर एक महाकाय पुरुष तथा तीन स्त्रियां बैठी हुई हैं । बीच की स्त्री कंचुकी पहने है जबकि शेष के ऊपरी भाग नग्न हैं ।
वे कुण्डल, हार, कंगन जैसे आभूषण पहने हुए हैं । इनके पीछे एक दूसरा हाथी है । इस पर पहले जैसा ही महाकाय पुरुष एवं तीन स्त्रियां बैठी हुई हैं । केश विन्यास, वेशभूषा, हाथियों पर शोभायात्रा का प्रदर्शन आदि का अंकन बड़ी कुशलता एवं सजीवता से किया गया है ।
गुफा की छत पर मनुष्य, पशु, पक्षी, पुष्प, लता पत्र आदि का मनोहर चित्रण है । इस प्रकार अजन्ता के ही समान बाघ की चित्रकला भी प्रशंसनीय है । जहाँ तक चित्रण तकनीक का प्रश्न है, गुफा की दीवारों पर लेप नहीं लगाये जाते थे ।
चिकनी दीवार पर चूने की सफेदी की जाती थी तथा उसके सूखने पर चित्र बनाये जाते थे । रात में उनमें नमी की जाती थी तथा सुबह पानी में रंग घोलकर चित्र बनाये जाते थे । रंगों में लाल, पीला, सफेद, खाकी तथा काले रंग का प्रयोग किया गया है । इन चित्रों के अध्ययन से तत्कालीन मध्यभारत के सामान्य जन-जीवन का अन्दाजा लगाया जा सकता है ।
यहाँ के चित्रण में जो व्यापकता एवं विस्तार दिखाई देता है वह अजन्ता में भी नहीं मिलता । यहाँ के चित्र अजन्ता की भांति मात्र धार्मिक नहीं है अपितु मानवोचित भावों-शान्ति, करुणा, सान्त्वना आदि को अभिव्यक्त करने की दृष्टि से अद्वितीय हैं ।
मार्शल के शब्दों में ‘बाघ के चित्र जीवन की दैनिक घटनाओं से लिये गये हैं । परन्तु वे जीवन की सच्ची घटनाओं को ही चित्रित नहीं करते वरन् उन अव्यक्त भावों को स्पष्ट कर देते हैं जिनको प्रकट करना उच्च कला का लक्ष्य है ।’
अजन्ता तथा बाघ की चित्रकला मध्यदेशी कला शैली को सर्वोत्तम रूप में प्रकट करती है । इसके द्वारा स्थापित कला परम्परायें भारतीय सीमा का अतिक्रमण कर मध्य एशिया, चीन, कोरिया, जापान आदि देशों में पहुँची तथा बौद्ध जगत् में सर्वव्यापक हो गयी । इस प्रकार कला तथा स्थापत्य के क्षेत्र में गुप्त काल की उपलब्धियाँ वस्तुतः बेजोड़ हैं ।