Here is a list of countries that were held responsible for the first world war in Hindi language.

1914 ई॰ के अगस्त में यूरोपीय युद्ध के छिड़ते ही लगभग सभी युद्धरत देशों में युद्ध के दायित्व के सम्बन्ध में घोर विवाद शुरू हो गया । कोई पक्ष युद्ध की जिम्मेवारी अपने ऊपर लेना नहीं चाहता था । सभी दावा करते थे कि उन्होंने शान्ति बनाये रखने के लिए अधिकतम प्रयास किए हैं, लेकिन विरोधी राष्ट्रों की नीति के कारण युद्ध छिड़ गया ।

अपने पक्ष को युद्धापराध से कुशल रखने तथा शत्रु देश पर इसकी सारी जिम्मेवारी लादने के उद्देश्य से विविध युद्धरत देशों की सरकारों ने गुप्त कूटनीतिक प्रलेखों को इस तरह साज-सँवार कर प्रकाशित करना शुरू किया कि विश्व जनमत के समक्ष उनका अपना दोष ढक जाय ।

युद्ध के समाप्त होने पर युद्ध-दायित्व का निर्धारण एक बार फिर वाद-विवाद का मुद्दा बन गया । युद्ध का सारा दायित्व केन्द्रीय शक्तियों पर मढ़ दिया गया इसमें कहा गया था कि युद्ध के विस्फोट के लिए सारी जिम्मेवारी जर्मनी और उसके सहयोगी राष्टों की है । वर्साय सन्धि के इस एकपक्षीय निर्णय के बाद भी इस प्रश्न पर वाद-विवाद होता रहा-क्या एकमात्र जर्मनी ही युद्ध के लिए जिम्मेवार था ? क्या उसने सहयोगी राष्ट्रों से मिलकर दूसरे देशों पर युद्ध लादा था ? क्या जर्मनी के गुट के विपक्षी राष्ट्र एकदम दोषमुक्त थे या उनका भी कुछ दायित्व था ? इस वाद-विवाद के सन्दर्भ में जर्मनी ने कुछ राजकीय प्रलेखों का प्रकाशन किया और यह सिद्ध करने का प्रयास किया कि विश्वयुद्ध के प्रारम्भ होने के पूर्व के संकटपूर्ण दिनों में जर्मनी ने युद्ध नहीं होने देने के लिए वास्तविक प्रयत्न किये थे ।

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इसने इस धारणा को मिथ्या सिद्ध कर दिया कि जर्मनी ने जान-बूझकर युद्ध भड़काने की कोशिश की थी । इसी तरह अन्य देशों की सरकारों ने भी अपने राजकीय प्रलेखों का प्रकाशन किया । नवीन प्रलेखात्मक साक्ष्यों तथा महान् निष्पक्ष ऐतिहासिक ग्रन्थों के प्रकाश में आने से अब कोई भी निष्पक्ष व्यक्ति 1919 ई॰ के विजेताओं के इस फतवे को स्वीकार नहीं करेगा कि जर्मनी तथा उसके सहयोगी राज्य ही युद्ध के विस्फोट के लिए एकमात्र जिम्मेवार थे ।

इन साहित्यों के अध्ययन के उपरान्त इसी निष्कर्ष पर पहुँचा जा सकता हे कि युद्ध के लिए हर बड़े या छोटे देश की कुछ-न-कुछ जिम्मेदारी थी और एकमात्र जर्मनी को इसके लिए दोषी ठहराना सर्वथा अनुचित था ।

1. सर्बिया (Siberia):

सर्वप्रथम युद्ध के विस्फोट के लिए सर्बिया की सरकार के दायित्व को देखा जाय । राष्ट्रवाद की भावना से प्रेरित होकर सर्बिया सभी बिखरे हुए सर्ब लोगों को एक राज्य में संगठित करना चाहता था । इस कारण आस्ट्रिया से उसका टकराव अनिवार्य था । इस स्थिति में उसे रूस का पूरा समर्थन प्राप्त था । सेराजेवो का हत्याकाण्ड इसी सर्व-राष्ट्रवाद का परिणाम था ।

सर्बिया की सरकार के कई प्रमुख पदाधिकारियों को षड़यन्त्र की पूरी जानकारी थी । वे उन व्यक्तियों को भी जानते थे जो आस्ट्रियाई युवराज की हत्या करने के लिए सेराजेवो जा रहे थे । फिर भी, इन लोगों ने षड़यन्त्रकारियों को रोकने के लिए कोई प्रयत्न नहीं किया ।

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आस्ट्रिया को कोई चेतावनी या सूचना भी नहीं दी गयी । फिर, सर्बिया की सरकार ने युवराज के हत्यारों या उनके सहयोगी षड़यन्त्रकारियों को गिरफतार करके न्यायालय के सुपुर्द करने की कोई चेष्टा नहीं की । उनमें से एक को फरार हो जाने में सहायता भी दी गयी ।

हत्या के बाद जब आस्ट्रिया ने माँग की कि अभियुक्त की तलाश में आस्ट्रियाई अधिकारियों से सहयोग लिया जाय तो सर्बिया की सरकार इसके लिए राजी नहीं हुई इस तरह का रवैया अपनाकर सर्बिया ने युद्ध के विस्फोट के लिए तात्कालिक कारण प्रस्तुत कर दिया और इस आधार पर युद्ध के लिए उसका दायित्व हो जाता हे ।

2. आस्ट्रिया (Austria):

आस्ट्रिया के दायित्व पर विचार करते समय सर्बिया के विरुद्ध उसकी आक्रामक नीति, सर्बिया की आस्ट्रिया-विरोधी नीति और उससे आस्ट्रिया की नाराजगी तथा आस्ट्रिया की आन्तरिक दुर्बलता का विशेष महत्त्व है वृहतर सर्बिया की योजना एवं अखिल स्लाव आन्दोलनों से उसका अस्तित्व खतरे में पड़ गया था । यह आशा नहीं की जा सकती कि कोई भी राष्ट्र अपने पड़ोसियों के हाथों अपने विघटन की प्रतीक्षा हाथ-पर-हाथ धरे करता रहे ।

सर्ब उग्रवादियों के द्वारा जिस तरह आस्ट्रिया के भावी सम्राद की हत्या की गयी थी, उसको देखते हुए सर्बिया को दण्ड देना आवश्यक था । यदि ऐसा नहीं किया जाता तो आस्ट्रिया की प्रतिष्ठा पूर्णत: समाप्त हो जाती । अत: वर्शटोल्ड ने सर्बिया को कुचल देने का निश्चय किया तथा एक ऐसा अल्टिमेटम तैयार किया जिसको सर्बिया द्वारा अस्वीकृत होना ही था ।

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कोई मध्यस्थ बीच में नहीं आ सके, इस संभावना को टालने के लिए उसने शीघ्र ही युद्ध की घोषणा कर दी । उसको आशा थी कि जर्मनी रूस को रोके रहेगा और युद्ध स्थानीय ही होगा लेकिन, उसकी यह योजना सफल नहीं हो सकी । उसने सर्बिया पर हमला करके रूस को उत्तेजित किया और इस अंश में आस्ट्रिया युद्ध के विस्फोट के लिए दोषी हुआ ।

3. रूस (Russia):

आस्ट्रिया और सर्बिया में संघर्ष के लिए कुछ अंशों में रूस प्रत्यक्षत: जिम्मेदार था । वह आस्ट्रिया के विरुद्ध सर्बिया को हमेशा प्रोत्साहित करता था । सर्बिया भी आस्ट्रिया के साथ युद्ध होने पर रूस के समर्थन की आशा करता था । महाशक्तियों में रूस पहला देश था जिसने अपनी सेना की लामबन्दी की थी । एक तरफ तो वह राजनीतिक वार्ता चला रहा था और दूसरी तरफ गुप्त रूप से सैनिक तैयारियाँ भी कर रहा था । यह उसकी सबसे बड़ी जिम्मेवारी थी ।

इससे जर्मनी और आस्ट्रिया दोनों भयभीत हो गये । जिस समय जर्मनी आस्ट्रिया पर दबाव डालकर समस्या के शान्तिपूर्ण समाधान के लिए यत्न कर रहा था, ठीक उसी समय रूस ने लामबन्दी की घोषणा कर दी । रूस की यह घोषणा जर्मनी की आम लामबन्दी तथा युद्ध-घोषणा का कारण बन गयी ।

रूस के अधिकारी यह भली-भाँति जानते थे कि यदि रूस अपनी सेना की लामबन्दी कर देता है तो जर्मनी को केवल रूस की सामरिक योजनाओं पर ही नहीं, वरन् फ्रांस की योजनाओं पर भी ध्यान देना होगा । इस प्रकार, रूस ने जल्दबाजी में कदम उठाकर समस्या को कूटनीतिक क्षेत्र से सैनिक क्षेत्र में ले आने का अवसर प्रदान किया । यदि रूस इस तरह की कार्यवाही नहीं करता तो शायद बिना युद्ध के ही समस्या का समाधान हो जाता ।

4. जर्मनी (Germany):

यह नहीं कहा जा सकता है कि जर्मनी युद्ध के लिए आकांक्षी था । वस्तुत: जुलाई के तूफानी दिनों में युद्ध रोकने के लिए उसने ईमानदारी के साथ प्रयत्न किया था, यद्यपि यह प्रयत्न काफी विलम्ब से हुआ था । आस्ट्रिया उसका एक मित्रराज्य था, जिस पर वह पूरा भरोसा कर सकता था । फलत: वह आस्ट्रिया को छोड़ नहीं सकता था यदि वह ऐसा करता तो उसके लिए बड़ी कठिनाई पैदा हो जाती ।

वह एक ओर रूस और दूसरी ओर फ्रांस से घिरा हुआ था । सबसे दुर्भाग्यपूर्ण बात तो यह थी कि त्रिपक्षीय समझोता के सदस्य देश उस पर विल्कुल भरोसा नहीं करते थे । रूस, फ्रांस और ब्रिटेन में यह आम धारणा थी कि आस्ट्रिया सब कुछ जर्मनी से पूछकर करता है और उसकी सभी सलाहों को मान लेता है ।

लेकिन, ऐसी बात नहीं थी । जब बेथमान हॉलको समझ गया कि रूस सबिया का पक्ष लेकर कूदने को तैयार है, ब्रिटेन तटस्थ नहीं रह सकता और यूरोपीय युद्ध छिड़ने की संभावना है, तब उसने आस्ट्रिया को रोकने की चेष्टा की, किन्तु तबतक बहुत देर हो चुकी थी ।

इसी स्थिति में जर्मनी अपनी भौगोलिक स्थिति को नजरअन्दाज नहीं कर सकता था । उसके लिए आवश्यक था कि युद्ध छिड़ने पर जल्दी-जल्दी कार्यवाही करें । पहले फ्रांस की सेना को पूरी तरह पराजित कर दे और तब रूस की खबर ले । इसके लिए यह आवश्यक था कि वह बेल्जियम के रास्ते अपनी सेना फ्रांस भेज दे रूस की लामबन्दी के सन्दर्भ में चुपचाप बैठे रहना खतरे से खाली नहीं था । सामान्यत: सभी देशों के सैनिक अधिकारी लामबन्दी का अर्थ युद्ध की घोषणा समझते थे ।

इस स्थिति में रूसी लामबन्दी की खबर मिलते ही जर्मनी ने रूस और फ्रांस को अल्टिमेटम भी दिया फ्रांस से अपना रवैया स्पष्ट करने की माँग की गयी और रूस को चेतावनी दी गयी कि यदि वह अपनी सेना की लामबन्दी को रह नहीं करता तो जर्मनी भी आम लामबन्दी का आदेश देने पर विवश हो जायेगा । जब दोनों के उत्तर संतोषप्रद नहीं आये तो जर्मनी ने युद्ध की घोषणा कर दी इस प्रकार, जर्मनी आस्ट्रिया के साथ अपनी मित्रता और अपनी मूर्खता का शिकार बना ।

5. फ्रांस (France):

फ्रांस का दायित्व इस कारण बढ़ जाता हे कि उसने रूस को पूरा समर्थन दिया और किसी समय संयम बरतने की सलाह न दी अपनी रूस यात्रा के दरम्यान फ्रांस के राष्ट्रपति पोआन्कारे ने जार को आश्वासन दिया था कि सर्बिया को कुचल देने में आस्ट्रिया को रोकने में एक मित्रराज्य के रूप में फ्रांस हर हालत में उसका समर्थन करेगा । इससे रूस को कड़ा रुख अपनाने में प्रोत्साहन मिला । उसने रूस को सैनिक कार्यवाही शुरू करने से रोका नहीं, यद्यपि वह भली-भाँति जानता था कि ऐसा करने पर जर्मनी चुपचाप नहीं बैठेगा ।

6. ब्रिटेन (Britain):

ब्रिटेन के प्रधानमन्त्री सर एडवर्ड ग्रे ने शान्ति बनाये रखने के लिए अनेक कार्य किये, किन्तु वे सब विफल रहे । इसके लिए अंशत: जर्मनी का रवैया जिम्मेवार था । फिर भी, ब्रिटेन को दोषमुक्त नहीं किया जा सकता । सर एडवर्ड ग्रे के लिए निम्न दो में से एक काम करना आवश्यक था ।

संकट के प्रारम्भिक दिनों में ही उसे जर्मनी को स्पष्ट चेतावनी दे देनी चाहिए थी कि यूरोपीय युद्ध छिड़ने पर ब्रिटेन अपने मित्रराष्ट्रों (फ्रांस और रूस) का साथ देगा । ऐसा होने पर जर्मनी आस्ट्रिया पर पूरे जोर से दबाव डालता तथा रूस और आस्ट्रिया की वार्ता सफल होती; अथवा फ्रांस और रूस को स्पष्ट चेतावनी दे दी होती कि यदि वे युद्ध में उलझते हैं तो ब्रिटेन तटस्थ रहेगा । इस हालत में रूस लामबन्दी करने के निर्णय पर सौ बार सोचता ।

लेकिन, सर एडवर्ड ग्रे ने ऐसा कुछ नहीं किया । यह ठीक है कि उसके साथ कुछ राजनीतिक और वैधानिक विवशताएँ थीं । उसे अपने मन्त्रिमण्डल का पूरा समर्थन प्राप्त नहीं था । ब्रिटेन का जनमत भी बड़ा अनिश्चित था । उसकी यह धारणा भी बन गयी थी कि जर्मनी अपने मित्रराज्य आस्ट्रिया के एक गलत काम का समर्थन कर रहा है और बर्लिन में स्थिति पर असैनिक अधिकारियों का नहीं, वरन् प्रशा के सैनिकवादियों का नियन्त्रण हो गया हे ।

इस विश्लेषण के उपरान्त हम इस निष्कर्ष पर पहुँच सकते हैं कि किसी एक देश पर युद्ध का दायित्व थोपना उचित नहीं । प्रथम विश्वयुद्ध के लिए लगभग सभी देश जिम्मेवार थे । केवल जर्मनी को इसके लिए उत्तरदायी मानना गलत है ।

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