Read this article in Hindi to learn about the two main Chinese travellers of ancient India along with their views.
1. फाह्यन (Fa-Hien):
यह चीनी यात्री चन्द्रगुप्त के शासनकाल (399) में भारत आया था । वह बौद्ध धर्म का अनुयायी था । उसका उद्देश्य भारत में बौद्ध धर्म के अन्यों का अध्ययन व बौद्ध स्थलों का भ्रमण करना था । भारत में वह अपने मित्रों व सहयोगियों के साथ 15 से 16 वर्ष तक रहा तथा विभिन्न स्थानों पर घूमकर भारत की आर्थिक एवं सामाजिक दशाओं के बारे में जानकारी एकत्र की ।
वह उत्तर पश्चिम में स्थित पेशावर से लेकर पूर्व में पाटलिपुत्र तक गया और तक्षशिला, पुरुषपुर (पेशवर) मथुरा, कन्नौज, अयोध्या होता हुआ श्रावस्ती गया । यहां से वह कपिलवस्तु, कुशीगर, वैशाली होता हुक पाटलिपुत्र पहुंचा ।
उसने नगरों के लोगों की सामाजिक एवं आर्थिक दशा का अध्ययन किया । उसने उस समय के भारतीय सम्राट चन्द्रगुप्त द्वितीय का शासन व्यवस्था एवं न्यायप्रियता का उल्लेख किया है तथा व्यापारिक गतिविधियों पर प्रकाश डाला ।
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यहां पर व्यापार विकसित अवस्थ में था, यह व्यापार नदियों व सड़क मार्गों द्वारा किया जाता था । नदियां व्यापार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती थी । यहां के लोग आर्थिक दृष्टि से बड़े सम्पन्न थे । पाटलिपुत्र सबसे विकसित नगर था । पेशावर एक ऐतिहासिक नगर था । कनिष्क ने यहाँ 400 फुट ऊँचे स्तूप का निर्माण किया था । यह स्तूप 2500 फुट की परिधि में विस्तृत था, तथा पांच मंजिल का था । इसके चक्र तांबे व सोने के बने हुए थे ।
2. ह्वेन सांग (Hweunsang):
यह चीनी यात्री सम्राट हर्षवर्धन के शासनकाल में भारत आया था । वह मध्य एशिया के ताशकंद, समरकंद नगरों से होता हुआ भारत के गांधार प्रदेश में आय इस समय भारत में कन्नौज के राजा हर्षवर्धन क्य शासनकाल था । वह 630 में यहाँ आया था और लगभग दस वर्ष तक भारत में ठहरा । उसने अपने इस काल में कश्मीर, पंजाब, कपिलवस्तु, कुशीनगर, बनारस एवं बौद्ध गया की यात्रा की ।
उसने पाटलिपुत्र व कन्नौज का भी भ्रमण किया था । उसके अनुसार भारत एक समृद्धिशाली देश था । उसने भारत की आर्थिक, सामाजिक, धार्मिक एवं राजनीतिक दशाओं का सुंदर वर्णन प्रस्तुत किया । उसने बौद्ध धर्म वस्त्र उद्योग नगरों की दश शिक्षा केन्द्रों का विस्तृत अध्ययन किया । बौद्ध धर्म का भारत में काफी प्रचार था । लोग धार्मिक व आध्यत्मवादी थे ।
यहाँ पर बौद्ध विहारों की संख्या काफी थी । बौद्ध धर्म से सम्बन्धित विश्वविद्यालय स्थापित हो गए थे । इनमें नालन्दा (बिहार), वलमि (काठियावाड़) व विक्रमशिला (बिहार) प्रमुख थे । नालंदा विश्वविद्यालय गौतम बुद्ध को समर्पित था ।
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वहां पर चीन, कोरिया, तिब्बत, जापान, श्रीलंका देशों के विद्यार्थी अध्ययन हेतु आते थे । कुछ समय पश्चात विक्रमशिला विश्वविद्यालय भी वेद पुरण, दर्शनशास्त्र, ज्योतिष विज्ञान, धर्मशास्त्र और औषधि विज्ञान का प्रमुख अध्ययन केन्द्र बन गया था । यहां पर संस्कृत भाषा में ज्ञान दिया जाता था ।
इस चीनी यात्री के समय भारत का वस्त्र उद्योग विकसित अवस्था में था । यहां पर रेशम कपास, लिनेन व ऊन से सुन्दर वस्त्र बनाये जाते थे । कृषि कार्य भी उन्नत दशा में था । नगरों को योजनाबद्ध तरीके से बनाया जाता था । उनमें वास्तु शिल्प का पूरा ध्यान रखा जाता था ।
नगरों में लोगों के रहने की व्यवस्था जाति व व्यवसाय पर आधारित थी । धनी व व्यापारी वर्ग के लोग नगर के भीतर रहते थे, जबकि श्रमिक व दलित वर्ग के लोग नगर के बाहरी हिस्से में निवास करते थे ।
मकानों के बनाने में ईटों का प्रयोग किया जाता था । उनमें खिड़कियों व दरवाजों की दिशा का विशेष ध्यान रखा जाता था । भारत में मूर्ति उद्योग भी काफी विकसित था । मूर्तियाँ बनाने में सोना, चांदी व संगमरमर का प्रयोग किया जाता था । वह जब चीन वापस लौटा तो साथ में भगवान बुद्ध की मूर्तियाँ व अनेक उपयोगी पुस्तकें ले गया था ।