भारत में लोक सेवा आयोग पर निबंध | Essay on Public Service Commission in India in Hindi Language!
लोकसेवा आयोग:
(i) संविधान के अनुच्छेद 315 (1) में कहा गया है: ”समस्त भारत के लिए पृथकृ-पृथक् लोकसेवा आयोग होंगे ।” इस प्रकार भारतीय संविधान के द्वारा दो प्रकार के लोकसेवा आयोग की व्यवस्था की गयी है: 1. संघ लोकसेवा आयोग और 2. राज्य लोकसेवा आयोग । इनके अतिरिक्त दो या दो से अधिक राज्यों के लिए संयुक्त लोकसेवा आयोग भी स्थापित किया जा सकता है ।
(ii) संघ लोकसेवा आयोग के सदस्यों की नियुक्ति उसके सदस्यों की संख्या और सेवा-शर्तों का निर्धारण राष्ट्रपति करता है ।
(iii) वर्तमान समय में संघीय लोकसेवा आयोग में एक अध्यक्ष और 10 अन्य सदस्य हैं ।
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(iv) लोकसेवा आयोग के सदस्यों में से कम-से-कम आधे सदस्य ऐसे होंगे जो अपनी नियुक्ति की तारीख पर भारत सरकार या किसी राज्य सरकार के अधीन कम-से-कम 10 वर्ष तक पद धारण कर चुके हों ।
(v) सदस्यों के कार्यकाल के सम्बन्ध में व्यवस्था है कि सेघ लोकसेवा आयोग का सदस्य अपने पद ग्रहण की तिथि से 6 वर्ष की अवधि या 65 वर्ष की आयु तक जो भी इसमें से पहले हो अपने पद पर बना
रहेगा ।
(vi) संविधान के अनुच्छेद 317 में लोकसेवा आयोग के सदस्यों को पदक्षत करने की रीति का उल्लेख किया गया है । इसके अनुसार निम्न परिस्थितियों में राष्ट्रपति किसी सदस्य को पदक्षत कर सकता है:
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(1) यदि वह दिवालिया हो,
(2) यदि वह अपने कार्यकाल में अपने पद से भिन्न कोई वैतनिक पद स्वीकार कर ले
(3) यदि वह व्यक्ति राष्ट्रपति के विचार से मानसिक तथा शारीरिक अवस्था के कारण अपने पद पर कार्य करने में अक्षम हो जाये ।
(i) इसके अतिरिक्त कोई सदस्य केवल कदाचार के आरोप पर राष्ट्रपति द्वारा अपने पद से हटाया जा सकता है ।
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(ii) इस सम्बन्ध में राष्ट्रपति उच्चतम न्यायालय से परामर्श करता है और उच्चतम न्यायालय अभियोग की जांच करके उस सम्बन्ध में अपना मत देता है, जिसके आधार पर राष्ट्रपति के द्वारा निर्णय किया जाता है ।
(iii) संघ लोकसेवा आयोग के अध्यक्ष एवं सदस्यों का वेतन तथा उनकी सेवा-शर्तें राष्ट्रपति द्वारा निश्चित की जाती हैं ।
(iv) नियुक्ति के बाद उनकी सेवा-शर्तों में उनके हित के विरुद्ध कोई परिवर्तन नहीं किया जा सकता है ।
(v) राष्ट्रपति को यह अधिकार है कि वह आयोग के अन्य कर्मचारियों तथा उनकी सेवा-शर्तों को निर्धारित करे ।
राज्य लोकसेवा आयोग:
(i) संविधान के अनुच्छेद 315 के अनुसार इस अनुच्छेद के उपबन्धों के अधीन रहते प्रत्येक राज्य का एक लोकसेवा आयोग होगा ।
(ii) किसी राज्य के लोकसेवा आयोग के सदस्यों की नियुक्ति सदस्यों की संख्या तथा उनकी सेवा-शर्त का निर्धारण राज्यपाल करता है ।
(iii) राज्य लोकसेवा आयोग में भी कम-से-कम आधे सदस्य ऐसे होने आवश्यक हैं, जो कम-से-कम 10 वर्ष तक किसी राज्य सरकार के अधीन किसी पद पर कार्य कर चुके हों । आयोग के सदस्यों की नियुक्ति 6 वर्ष के लिए होती है, परन्तु यदि कोई सदस्य 6 वर्ष पूर्व ही 62 वर्ष की आयु का हो जाता है, तो उसे अपने पद से सेवानिवृत्त होना होता है । कोई भी सदस्य 6 वर्ष के कार्यकाल अथवा 62 वर्ष की आयु के पूर्व स्वयं भी राज्यपाल को अपना त्याग-पत्र दे सकता है ।
(iv) संविधान द्वारा राज्य लोकसेवा आयोग का अध्यक्ष एवं सदस्य बनने के सम्बन्ध में कुछ प्रतिबनध भी लगाये गये हैं, जो इस प्रकार हैं:
(1) कोई भी व्यक्ति एक बार सदस्यता की अवधि समाप्त हो जाने पर दोबारा उसी राज्य के लोकसेवा आयोग का सदस्य नहीं बन सकता ।
(2) राज्य लोकसेवा आयोग का कोई सदस्य अवधि समाप्त होने पर उसी आयोग का सभापति अथवा अन्य किसी राज्य के लोकसेवा आयोग का सदस्य या सभापति बन सकता है ।
(3) किसी राज्य लोकसेवा आयोग का सभापति (चेयरमैन) अवधि की समाप्ति पर संघ लोकसेवा आयोग का सदस्य या सभापति बन सकता है ।
(4) राज्य लोकसेवा आयोग का सदस्य या सभापति संघ अथवा किसी राज्य सरकार के अधीन अथवा उससे बाहर कोई भी नौकरी नहीं कर सकता ।
(i) राज्य लोकसेवा आयोग के सदस्यों को राज्यपाल द्वारा निर्धारित वेतन व भत्ते मिलते हैं ।
(ii) आयोग के सदस्यों व अन्य कर्मचारियों के वेतन और भत्ते आदि राज्य की संचित निधि से दिये जाते हैं और उनके लिए विधानमण्डल की स्वीकृति की आवश्यकता नहीं होती ।
(iii) राज्य लोकसेवा आयोग के सदस्यों के वेतन, भत्ते, अवकाश पेंशन तथा सेवा की शर्तों में उनके कार्यकाल में कोई अलाभकारी परिवर्तन नहीं किया जा सकता है ।
संयुक्त लोकसेवा आयोग:
(i) संघ लोकसेवा आयोग और राज्य लोकसेवा आयोग के अतिरिक्त संविधान में एक संयुक्त लोकसेवा आयोग की व्यवस्था की गयी है ।
(ii) यदि दो या दो से अधिक राज्यों के विधानमण्डल प्रस्ताव पारित करके यह निश्चय करें कि उनका केवल एक ही लोकसेवा आयोग होना चाहिए, तो ऐसी स्थिति में राज्यों की आवश्यकता की पूर्ति के लिए संसद ‘संयुक्त लोकसेवा आयोग’ की स्थापना कर देती है ।
(iii) संयुक्त लोकसेवा आयोग के सभापति तथा सदस्यों की नियुक्ति उनकी पदक्षति वेतन भत्ते व सेवा-शर्तों का निर्धारण राष्ट्रपति उसी प्रकार करते हैं, जिस प्रकार उनके द्वारा यह कार्य संघीय लोकसेवा आयोग के सम्बन्ध में किया जाता है ।
(iv) भारतीय संविधान के अनुच्छेद 308 से 323 के अन्तर्गत संघीय और राज्यों की सेवाओं का उल्लेख किया गया है ।
(v) सल्लनत काल में (1206-1526) सुलतान को प्रशासनिक कार्यों में सहायता देने के लिए 6 ‘मजल्लिस-ए-आम’, ‘मजलिस-ए खलवत’ नाम की समिति (मन्त्रिपरिषद्) होती थी ।
चुनाव आयोग:
(i) चुनाव आयोग और मुख्य चुनाव आयुक्त से सम्बन्धित व्यवस्था भारत के संविधान के अनुच्छेद 324 में की गयी है ।
(ii) चुनाव आयोग में एक मुख्य चुनाव आयुक्त तथा उतनी संख्या में चुनाव आयुक्त होंगे जितने की राष्ट्रपति समय-समय पर नियुक्ति करे ।
(iii) मुख्य चुनाव आयुक्त तथा अन्य चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति संसद द्वारा निर्मित विधि के अधीन रहते हुए राष्ट्रपति द्वारा की जाती है ।
(iv) राष्ट्रपति चुनाव आयोग से परामर्श के आधार पर आयोग की सहायता के लिए ऐसे प्रादेशिक आयुक्तों की नियुक्ति कर सकता है, जैसा कि वह आवश्यक समझे ।
(v) चुनाव आयुक्तों और प्रादेशिक आयुक्तों का कार्याकल और सेवा-शर्तें राष्ट्रपति नियम द्वारा निर्धारित करेगा ।
(vi) जब चुनाव आयोग में एक से अधिक सदस्य होंगे तो मुख्य चुनाव आयुक्त आयोग के अध्यक्ष के रूप में कार्य करेगा ।
(vii) मुख्य चुनाव आयुक्त का कार्यकाल 6 वर्ष या 65 वर्ष की आयु जो भी पहले हो तक होगा ।
(viii) अन्य चुनाव आयुक्तों का कार्यकाल 6 वर्ष या 62 वर्ष की आयु जो भी पहले हो तक होगा ।
(ix) 1 अक्टूबर, 1993 से मुख्य चुनाव आयुक्त तथा अन्य चुनाव आयुक्तों को उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के बराबर वेतन तथा भत्ते प्राप्त होंगे ।
(x) इन चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति के बाद से उनके कार्यकाल वेतन तथा अन्य सेवा-शर्तों में उनके हितों के विरुद्ध कोई परिवर्तन नहीं किया जा सकेगा ।
(xi) मुख्य चुनाव आयुक्त को केवल उसी प्रकार पदच्युत किया जा सकता है, जिस प्रकार उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश को पदच्युत किया जा सकता है ।
(xii) महाभियोग के लिए प्रक्रिया यह है कि ससद के दोनों सदनों को अलग-अलग अपने कुल सदस्यों की संख्या के बहुमत तथा उपस्थित और मतदान में भाग लेने वाले सदस्यों के दो-तिहाई बहुमत से प्रस्ताव पारित करना होगा । उसके बाद राष्ट्रपति मुख्य चुनाव आयुक्त की पदच्युति का आदेश जारी करेंगे ।
भारतीय राजव्यवस्था के कुछ महत्त्वपूर्ण तथ्य:
दल-बदल अधिनियम, 1985:
(i) वाई॰वी॰ चौहान समिति की सिफारिशें लागू तो नहीं हो सकीं परन्तु इसे ही दल-बदली के खिलाफ प्रथम प्रयास माना जाता है ।
(ii) 28 अगस्त, 1978 को जनता पार्टी की सरकार ने लोकसभा में इस आशय का विधेयक प्रस्तुत किया परन्तु जनता पार्टी के ही बहुत सारे सांसदों के विरोध के कारण इसे वापस ले लिया गया ।
(iii) कांग्रेस पार्टी की सरकार ने तत्कालीन प्रधानमन्त्री राजीव गांधी की पहल पर 24 जनवरी, 1985 को दल-बदल पर अंकुश लगाने के लिए वौ संविधान संशोधन विधेयक प्रस्तुत किया ।
(iv) 30 जनवरी, 1985 को इस विधेयक को संसद की एवं 15 फरवरी, 1985 को राष्ट्रपति की स्वीकृति प्राप्त हुई ।
(v) राष्ट्रपति की स्वीकृति मिलने के पश्चात् दल-बदल निरोधक कानून (Anti-defection Law) के रूप में संविधान के 52वें संशोधन विधेयक को एक नयी अनुसूची-10वीं अनुसूची का सृजन करके संविधान में जोड़ा गया ।
नयी अनुसूची:
10वीं अनुसूची में उपबन्धित व्यवस्था के अन्तर्गत निम्न परिस्थितियों में संसद अथवा राज्य विधानमण्डल के सदस्यों की सदस्यता समाप्त हो सकती है :
(1) यदि कोई सदस्य जिस दल के टिकट से जीतता है, उससे इस्तीफा दे देता है ।
(2) यदि कोई सदस्य सदन में पार्टी ह्विप (सचेत कर देने) का उल्लंघन करते हुए वोट देता है ।
(3) यदि कोई सदस्य वोटिंग के समय अपने दल की पूर्वानुमति के बिना ही अनुपस्थित रहता है ।
(4) यदि कोई निर्दलीय सदस्य 6 महीने बाद किसी राजनीतिक दल में शामिल हो जाता है (यानी 6 महीने के अन्दर यदि वह किसी राजनीतिक दल में शामिल होता है, तो उसकी सदन की सदस्यता रहेगी) ।
(5) यदि कोई मनोनीत सदस्य सदस्यता ग्रहण करने के 6 महीने बाद किसी राजनीतिक दल की सदस्यता ग्रहाग कर ले ।
राजभाषा:
(i) संविधान के अनुच्छेद 343 के अनुसार संघ की राजभाषा हिन्दी और लिपि देवनागरी होगी ।
(ii) भारतीय संघ के राजकोषीय प्रयोजनों के लिए प्रयोग होने वाले अंकों का रूप भारतीय अंकों का अन्तर्राष्ट्रीय रूप होगा ।
(iii) संविधान के आरम्भ में 15 वर्ष तक अंग्रेजी भाषा का प्रयोग संघ के सरकारी कार्यों में यथापूर्व जारी रहेगा परन्तु उक्त अवधि के भीतर ही राष्ट्रपति आदेश द्वारा संघ के राजकीय कार्यों में से किसी के लिए अंग्रेजी भाषा के प्रयोग तथा भारतीय अंकों के अन्तर्राष्ट्रीय रूप के साथ-साथ देवनागरी रूप के प्रयोग को प्राधिकृत कर सकेगा ।
(iv)15 वर्षों के बाद भी संसद किन्हीं विशिष्ट प्रयोजनों के लिए अंग्रेजी का प्रयोग जारी रखने की अनुमति दे सकती है ।
(v) संसद ने राजभाषा अधिनियम, 1963 पारित किया, जिसके अनुसार सैंघ के सरकारी कार्यों में अंग्रेजी भाषा का प्रयोग अनिश्चित काल तक जारी रहेगा ।
(vi) वर्तमान में वीं अनुसूची में 22 भाषाएं सम्मिलित हैं ।
(vii) भाषाई अल्पसंख्यक से तात्पर्य भाषा से है न कि धर्म से ।
राजभाषा के आयोग:
(i) भारतीय संविधान के अनुच्छेद 344 में राष्ट्रपति को राजभाषा से सम्बन्धित कुछ विषयों के सम्बन्ध में सलाह देने के लिए एक आयोग की नियुक्ति का प्रावधान है ।
(ii) राजभाषा आयोग की नियुक्ति संविधान के प्रारम्भ होने से 5 वर्ष के भीतर की जायेगी ।
(iii) उसके बाद प्रत्येक 10 वर्ष की समाप्ति के बाद राजभाषा आयोग की नियुक्ति की जायेगी ।
(iv) इस आयोग का गठन एक अध्यक्ष तथा वीं अनुसूची में निर्दिष्ट विभिन्न भाषाओं का प्रतिनिधित्व करने वाले सदस्यों को मिलाकर किया जायेगा जिनकी नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जायेगी ।
(v) आयोग अपनी सिफारिशें राष्ट्रपति के समक्ष प्रस्तुत करने में भारत की औद्योगिक सांस्कृतिक वैज्ञानिक उन्नत्ति तथा लोकसेवाओं के सम्बन्ध में अहिन्दी भाषी क्षेत्र के लोगों के न्यायोचित दावों एवं हितों का समुचित ध्यान रखेगा ।
(vi) राष्ट्रपति ने इस अधिकार का प्रयोग करते हुए 1955 में, श्री बी॰जी॰ खेर की अध्यक्षता में प्रथम राजभाषा आयोग का गठन किया ।
(vii) इस आयोग ने 1956 में अपना प्रतिवेदन दिया ।
(viii) राजभाषा आयोग की सिफारिश पर विचार करने के लिए एक संयुक्त संसदीय समिति का गठन किया जाता है, इसमें लोकसभा के 20 तथा राज्यसभा के 10 सदस्यों को शामिल किया जाता है ।
(ix) संसदीय समिति राजभाषा आयोग द्वारा दी गयी सिफारिश का पुनर्निरीक्षण करती है । समिति ऐसे प्रतिवेदन पर विचार करने के पश्चात् राष्ट्रपति को अपना प्रतिवेदन देगी और राष्ट्रपति ऐसी सिफारिश को क्रियान्वित कराने के लिए, जो वह उचित समझे निदेश दे सकेगा ।
(x) राजभाषा आयोग ने शब्दावली के विकास के लिए दो स्थायी आयोगों की नियुक्ति की सिफारिश की थी ।
(xi) इन स्थायी आयोगों की स्थापना 1961 में की गयी और समय-समय पर इसका पुनर्गठन हुआ ।
(xii) 1976 में राजभाषा आयोग को समाप्त कर दिया गया और दूसरा आयोग अर्थात् वैज्ञानिक और तकनीकी शब्दावली आयोग अब भी मानव संसाधन विकास मन्त्रालय के अधीन कार्य कर रहा है ।
भाषाएं:
अनुच्छेद 344 (1), 351 आठवीं अनुसूची:
मूल संविधान में:
असमिया, बंगला, गुजराती, हिन्दी, कन्नड़, कशमीरी, मलयालम, मराठी, उड़िया, पंजाबी, संस्कृत, तमिल, तेलगू व उर्दू ।
21 वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1967 द्वारा: सिन्धी ।
71 वें संविधान संशोधन अधिनियम 1991 द्वारा: नेपाली, कोंकणी, मणिपुरी ।
92वें संविधान संशोधन अधिनियम 2003 द्वारा: डोंगरी, मैथिली, बोडो, सन्थाली ।