मौलिक कर्तव्य एवं राज्य के नीति निर्देशक तत्त्व । Fundamental Duties and Elements of State Policy in Hindi Language!
1. प्रस्तावना ।
2. नागरिकों के मौलिक कर्तव्यों का निर्धारण ।
3. मौलिक कर्तव्यों की विशेषताएं या महत्त्व ।
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4. मौलिक कर्तव्य एव राज्य के नीति निर्देशक तत्त्व ।
5. मौलिक कर्तव्य एवं नीति निर्देशक तत्त्वों में अन्तर ।
6. उपसंहार ।
1. प्रस्तावना:
कर्तव्य अधिकारों से अधिक महत्त्वपूर्ण है । अधिकारों का सही उपयोग तभी सम्भव है, जब कर्तव्य की सही समझ हो । प्रारम्भ में संविधान सभा द्वारा भारत के संविधान मैं मौलिक कर्तव्यों का समावेश नहीं किया गया था, केवल मौलिक अधिकारों का ही समावेश किया गया था ।
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मौलिक अधिकारों के दुरूपयोग की आशंका से संविधान में मौलिक कर्तव्यों का पृथक् से उल्लेख किया जाना आवश्यक है, फलत: संविधान के 42वें संशोधन द्वारा मौलिक कर्तव्यों का समावेश कर दिया गया है । इसमें नागरिकों के 10 मौलिक कर्तव्यों का उल्लेख है । डॉ॰ बेनीप्रसाद के अनुसार: “यदि प्रत्येक व्यक्ति केवल अपने अधिकारों का ध्यान रखे तथा दूसरों के प्रति कर्तव्यों का पालन न करे, तो शीघ्र ही किसी के लिए अधिकार नहीं रहेंगे ।”
2. नागरिकों के मौलिक कर्तव्यों का निर्धारण:
संविधान के 42वें संशोधन के अनुसार नागरिकों के लिए 10 मौलिक कर्तव्यों का निर्धारण किया गया है ।
1. संविधान का पालन करें तथा उसके आदर्शो, राष्ट्रध्वज, राष्ट्रगान और संस्थाओं का आदर करें ।
2. स्वतन्त्रता के लिए हमारे राष्ट्रीय आन्दोलन को प्रेरित करने वाले उच्च आदर्शों को हृदय में संजोये रखें और उसके आदर्शों पर चलें ।
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3. भारत की सम्प्रभुता, एकता और अखण्डता की रक्षा करें और उसको बनाये रखें ।
4. देश की रक्षा करें और आवश्यकतानुसार राष्ट्र की सेवा करें ।
5. सभी लोगों में समरसता और समानता की भावना का निर्माण करें, जो भाषा या प्रदेश या वर्ग पर आधारित सभी भेदभाव से परे हो । ऐसी प्रथाओं का परित्याग करें, जो रित्रयों के सम्मान के विरुद्ध हों ।
6. हमारी समन्वित संस्कृति की गौरवशाली परम्परा का महत्त्व समझें और उसका परिरक्षण करें ।
7. प्राकृतिक पर्यावरण की, जिसके अन्तर्गत वन, झील, नदी और अन्य जीव भी हैं, उनकी रक्षा करें, उसका संवर्द्धन करें तथा प्राणिमात्र के प्रति दयाभाव रखें ।
8. वैज्ञानिक दृष्टिकोण, मानवतावाद और ज्ञानार्जन तथा सुधार की भावना का विकास करें ।
9. सार्वजनिक सम्पत्ति की रक्षा करें और हिंसा से दूर रहें ।
10. व्यक्तिगत तथा सामूहिक गतिविधियों के सभी क्षेत्रों में उत्कर्ष की ओर बढ़ने का सतत प्रयास करें, जिससे राष्ट्र निरन्तर बढ़ते हुए प्रयास और उपलथियों की नयी ऊंचाइयों को छू ले ।
3. मौलिक अधिकारों का महत्त्व:
अधिकार और कर्तव्यों का आपस में अत्यन्त घनिष्ठ सम्बन्ध रहा है । दोनों एक दूसरे के पूरक हैं । कर्तव्यों के बिना अधिकारों की मांग करना न्यायोचित नहीं है । हमारे संविधान में मौलिक कर्तव्यों का महत्त्व देश की एकता, सम्प्रभुता तथा अखण्डता की रक्षा देश की सुरक्षा, प्रगति, प्राकृतिक तथा सार्वजनिक सम्पत्ति की रक्षा में, लोकतन्त्र को सफल बनाने में, संस्कृति की रक्षा में, विश्वबन्दुत्व की भावना के विकास में तथा स्त्रियों के सम्मान की दृष्टि से विशेष महत्त्व है ।
4. नीति निर्देशक तत्त्व एवं मौलिक अधिकारों का महत्त्व:
नीति निर्देशक तत्त्वों एवं मौलिक अधिकारों का एक दूसरे से घनिष्ठ सम्बन्ध है । दोनों ही एक-दूसरे के पूरक हैं । यदि मौलिक अधिकार उत्तम जीवन का दर्शन हैं, तो नीति निर्देशक तत्त्व उनका व्यावहारिक रूप हैं ।
नीति निर्देशक तत्त्वों के अनुरूप ही सरकार को अपनी नीति बनानी चाहिए । ये सिद्धान्त केन्द्र सरकार तथा स्थानीय सरकार को दिये गये ऐसे निर्देश हैं, जिनका पालन कर वे भारत के लोगों को बेहतर जीवन और सुविधाएं दे सकें । राज्य के नीति निंर्देशक सिद्धान्तों में:
1. राज्य ऐसा प्रयास करेगा कि एक समान कार्य के लिए पुरुषों तथा महिलाओं को समान वेतन मिले ।
2. राज्य कार्य करने, शिक्षा प्राप्त करने तथा बेकारी, बीमारी, वृद्धावस्था और अपंगता की स्थिति में सार्वजनिक सहायता देने का प्रयत्न करेगा ।
3.14 वर्ष तक के बच्चों के लिए अनिवार्य तथा निशुल्क शिक्षा की व्यवस्था करेगा ।
4. वह इस बात का प्रयास करेगा कि समाज के भौतिक संसाधनों को इस प्रकार बांटा जाये कि इससे सभी के हितों की रक्षा हो सके ।
5. कारखानों में काम करने वाले श्रमिकों को कारखाने के प्रबन्ध में भागीदार बनाये जाने की व्यवस्था करेगा ।
6. लोगों के रहन-सहन के स्तर को ऊंचा उठाने तथा सार्वजनिक सुधार के लिए राज्य प्रयास करेगा ।
7. राज्य प्रदूषण मुक्त स्वस्थ जीवन जीने की सभी परिस्थितियों का निर्माण नागरिकों के लिए करेगा ।
8. अनुसूचित जातियों और जनजातियों के शिक्षा सम्बन्धी, आर्थिक हितों को विशेष दायित्व मानकर अत्यन्त सावधानीपूर्वक विकास की ओर अग्रसर करेगा ।
9. देश के वन्य जीवन की रक्षा करेगा ।
10. प्राचीन ऐतिहासिक इमारतों तथा सांस्कृतिक मूल्यों की स्थायी सम्पदा को सुरक्षित करेगा ।
11. कुटीर उद्योग-धन्धों को बढ़ावा देगा ।
12. पंचायती राज्य की स्थापना हेतु ग्राम पंचायतों को संगठित करेगा तथा पशुधन के संरक्षण हेतु आधुनिक, वैज्ञानिक उपाय करेगा ।
13. राज्य मदिरा तथा अन्य हानिकारक पदार्थो के प्रयोगों का निषेध करेगा ।
14. कृषि के विकास के लिए कारगर नीति अपनायेगा ।
15. भूखमरी और गरीबी, बेरोजगारी का अन्त करेगा ।
16. राज्य गाय, बछड़ों तथा अन्य दुधारू पशुओं के वध पर प्रतिबन्ध लगायेगा ।
17. राज्य अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति व सुरक्षा को बढ़ावा देकर विश्वशान्ति और मानवता की सुरक्षा के लिए प्रयत्नशील रहेगा ।
5. मौलिक अधिकारों तथा राज्य के नीति निर्देशक तत्त्वों में अन्तर:
यद्यपि राज्य के नीति निर्देशक तत्त्वों तथा मौलिक अधिकारों का लक्ष्य देश तथा देश के नागरिकों का हर सम्भव विकास करना है, तथापि इनमें घनिष्ठ सम्बन्ध होते हुए भी कुछ अन्तर है:
1. मौलिक अधिकारों के पालन हेतु न्यायालय द्वारा बाध्य किया जा सकता है, किन्तु नीति निर्देशक तत्त्वों के पालन में न्यायिक बाध्यता न होकर जनमत की शक्ति है ।
2. मौलिक अधिकारों की रक्षा हेतु कोई व्यक्ति न्यायालय की शरण ले सकता है, जबकि नीति निर्देशक तत्त्वों की रक्षा के लिए कोई व्यक्ति न्यायालय की शरण नहीं ले सकता ।
3. मौलिक अधिकार निषेधात्मक है, जबकि नीति निर्देशक तत्त्व सकारात्मक है । उसमें राज्य द्वारा यह निर्देश होता है कि उसे क्या करना चाहिए । जबकि मौलिक अधिकारों में राज्य को आदेशित किया जाता है कि उसे क्या नहीं करना चाहिए ।
4. मौलिक अधिकार राजनीतिक व सामाजिक स्वतन्त्रता पर बल देता है, जबकि नीति निर्देशक तत्त्व आर्थिक स्वतन्त्रता पर बल देता है ।
5. मौलिक अधिकार की व्यवस्था राज्य के नागरिकों के उपभोग के लिए है, जबकि नीति निर्देशक तत्त्वों की व्यवस्था राज्य के निर्देश के लिए है ।
6. मौलिक अधिकार का क्षेत्र सीमित है, नीति निर्देशक तत्त्वों का क्षेत्र विकृत व व्यापक है ।
7. मौलिक अधिकारों को राष्ट्रपति आपातकालीन व्यवस्था में प्रतिबन्धित कर सकता है । नीति निर्देशक तत्त्व आपातकालीन घोषण के बाद राज्य को सदा निर्देश देते रहते
6. उपसंहार:
इस तरह संविधान में मौलिक अधिकारों व कर्तव्यों का सम्बन्ध अटूट है । एक के बिना दूसरे का कोई महत्त्व नहीं है । दोनों का समन्वय हमारे भीतर नागरिक दायित्व की भावना को जागत करता है और इससे हम अपने राष्ट्रीय चरित्र को ऊंचा उठा सकते हैं ।
यदि अधिकार हमें स्वतन्त्रता के सही उपयोग की समझ देते हैं, तो कर्तव्य हमें राष्ट्र की एकता के लिए प्रेरित करते हैं । यद्यपि मौलिक कर्तव्यों का पालन न करने पर किसी को दण्डित नहीं किया जा सकता है, तथापि ये देशवासियों के लिए आदर्श हैं । हमारा यह आवश्यक कर्तव्य है कि राष्ट्र तथा समाजहित में हम इनका पालन निष्ठापूर्वक करें ।