भारतीय संविधान के गठन पर टिप्पणियाँ | Notes on the Formation of Indian Constitution in Hindi Language!

संविधान सभा द्वारा करीब तीन वर्षों में निर्मित भारत का संविधान बीसवीं सदी की एक महत्त्वपूर्ण राजनीतिक घटना है । महान् संस्थापकों ने न जाने कितने राजनीतिक अवरोधों को पार कर इस कार्य का शुभारम्भ 9 दिसम्बर, 1946 को किया ।

‘हम भारत की जनता’ द्वारा निर्मित इस महान् अनुष्ठान की दो विशेषताएं उल्लेखनीय हैं । प्रथम यह अनेकता में एकता का प्रतीक है । यद्यपि हमारा देश अनेक जातियों, प्रजातियों भाषाओं धर्मों और संस्कृतियों का संग्रहालय रहा है इस ऐतिहासिक तथ्य के बावजूद इसमें विभिन्नता में एकता रही है या यहां राजनीतिक विभेदों के होते हुए ऐसे राजनीतिक विभेदों ने एकता को कभी क्षति नहीं पहुंचायी ।

द्वितीय, हमारी संविधान सभा एकमात्र मूल यन्त्र थी जो राष्ट्रीय आत्म-निर्णय के सिद्धान्तों के अन्तर्गत ब्रिटिश सरकार व भारतीय जनता दोनों को मान्य थी । यह इस सिद्धान्त पर आधारित था कि संविधान भारतीय विचारधारा के अनुकूल, भारतीयों के लिए भारतीयों द्वारा बनना चाहिए ।

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भारत की संविधान सभा जिसने गठित होने के बाद एक सर्वोच्च संस्था का स्वरूप ग्रहण कर लिया, मुख्यत: एक कांग्रेसी सभा थी । भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन में कांग्रेस के प्रमुख योगदान के सन्दर्भ में यह स्वाभाविक था कि जनप्रतिनिधियों के चयन में इस दल की निर्णायक भूमिका रहे ।

भारतीय जनता ही देश के राजनीतिक भाग्य की विधाता हो । सन् 1922 में, महात्मा गांधी ने इस मांग का समर्थन किया और कहा : ”स्वराज्य ब्रिटिश संसद का नि:शुल्क उपहार नहीं होगा यह भारत की पूर्ण आत्म-अभिव्यक्ति की घोषणा होगी ।

यह सच है कि यह संसद के कानून द्वारा ही अभिव्यक्त होगा किन्तु यह भारत की जनता की घोषित इच्छाओं की औपचारिक पुष्टि मात्र होगा जैसा कि दक्षिणी अफ्रीका के संघ के मामले में हुआ ।”  साइमन आयोग तथा गोलमेज सम्मलेनों की असफलता के बाद संविधान सभा की स्थापना की मांग ने एक निश्चित रूप धारण कर लिया ।

इसके बाद संविधान सभा द्वारा निर्मित संविधान की मांग कांग्रेस दल की अधिकृत नीति का एक अनिवार्य अंग बन गयी । 16 मई, 1946 का कैबिनेट मिशन योजना के सुझावों द्वारा संविधान सभा के निर्माण का मार्ग प्रशस्त हो गया, जिसके अनुसार:

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1. प्रत्येक प्रान्त तथा प्रत्येक भारतीय रियासतों के समूह के अपनी जनसंख्या (दस लाख पर एक) के अनुपात में स्थान होंगे । अस्तु प्रान्तों के 292 तथा रियासतों के 93 स्थान होंगे ।

2. प्रत्येक प्रान्त में स्थानों का वितरण मुस्लिम, सिख व सामान्य सम्प्रदायों में से उनकी जनसंख्या के अनुपात में होगा ।

3. प्रान्तीय विधानसभाओं में प्रत्येक केसदस्य अपने प्रतिनिधियों को आनुपातिक प्रतिनिधित्व व एकल संक्रमणीय मत पद्धति में चुनेंगे ।

4. भारतीय रियासतों के प्रतिनिधियों के चयन की पद्धति आपसी सहमति से निर्धारित की जायेगी ।

स्वतन्त्रता के बाद संविधान सभा में प्रान्तों, मुख्य आयुक्तों के प्रान्तों व रियासतों का प्रतिनिधित्व:

इस प्रकार संविधान सभा, जिसने अपने उद्देश्य प्रस्ताव के अनुसार, अपनी सारी सत्ता जनता से प्राप्त की, इसका गठन ‘भारतीयों द्वारा निर्मित संविधान’ को बनाने के लिए किया गया । हम इस बात पर गर्व कर सकते है कि यह संविधान हमने स्वयं निर्मित तथा लिपिबद्ध किया है और यह हमारी परिस्थितियों व आवश्यकताओं के लिए उपयुक्त भी है ।

जुलाई 1946 में, प्रान्तीय व्यवस्थापिका सभाओं के माध्यम से संविधान सभा का निर्वाचन सम्पन्न हुआ । प्रान्तीय विधानसभाओं के कुल 292 स्थानों में से कांग्रेस को 208 स्थान प्राप्त हुए । मुस्लिम लीग ने मुसलमानों के लिए निर्धारित संख्या से 7 कम स्थान पाये ।

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शेष 16 स्थानों का विभाजन इस प्रकार था: सिख 3, यूनियनिस्ट दल (पंजाब)-3 साम्यवादी दल-1, अनुसूचित जाति संघ (डॉ॰बी॰आर॰ अम्बेडकर)-1 और निर्दलीय को 8 स्थान मिले । इसके अलावा, देश के विभाजन के कारण मुस्लिम लीग के सदस्यों के चले जाने पर संविधान सभा में कांग्रेस दल का 82 प्रतिशत बहुमत हो गया ।

सभा में मनोनीत सदस्यों की संख्या 93 थी जो देशी रियासतों के प्रतिनिधि थे । प्रजातान्त्रिक ढंग से गठित संविधान सभा में केवल यही विसंगति थी । विभाजन के बाद मुस्लिम लीग अलग हो गयी तथा पंजाब बंगाल व असम में नयी जनगणना के अनुसार अन्य जातियों के प्रतिनिधित्व में कुछ मामूली परिवर्तन हो गया ।

संविधान-निर्माताओं के सम्मुख सबसे जटिल समस्या यह थी कि इतनी विकट परिस्थितियों में काम को कैसे सम्पन्न किया जाये ? अत: अनेक कमेटियां बनायी गयीं । इन समितियों में प्रारूप समिति (Drafting Committee) सबसे महत्त्वपूर्ण थी जिसके अध्यक्ष डॉ॰बी॰आर॰ अम्बेडकर थे । अन्य सदस्य थे :

1. एन॰ गोपालास्वामी आयंगर

2. अल्लादीकृष्णस्वामी अय्यर

3. कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी

4. मोहम्मद सादुल्ला

5. बी॰एल॰ मितर (जो थोड़े दिनों बाद हट गये व उनके स्थान पर एन॰ माधवराव को सदस्य बनाया गया)

6. डी॰पी॰ खेतान (1948 में उनकी मृत्यु हो जाने के कारण टी॰टी॰ कृष्णमाचार्य को सदस्य बनाया गया) ।

यह तथ्य और भी महत्त्वपूर्ण है कि संविधान सभा व प्रारूप समिति कार्य के केवल औपचारिक केन्द्र थे वास्तविक कार्यक्षेत्र तो वहां था जहां कांग्रेस के प्रमुख नेतागण जुड़ते व महत्त्वपूर्ण निर्णय लेते थे । कांग्रेस कार्यकारिणी समिति हमारे संविधान की वास्तविक शिल्पी बन गयी ।

उच्च कांग्रेसी नेताओं द्वारा लिये गये निर्णय ही प्रारूप समिति के निर्णय होते थे तथा कभी-कभी अति कठोरता की सीमा तक सचेतकों (Whips) के प्रयोग ने उन सभी सम्भावनाओं को समाप्त कर दिया जिनसे किसी ऐसे विवाद को रोका जा सकता था जिसे संविधान के किसी उपबन्ध के पारित होने में अवरोध की सम्भावना लगे ।

एक प्रमुख कांग्रेसी जन (महावीर त्यागी) ने अपनी आन्तरिक जानकारी के आधार पर सभा को चेतावनी भी दी ‘प्रारूप समिति’ के सदस्यों पर अत्यधिक दबाव न डाला जाये; क्योंकि उनके हाथ बंधे हुए हैं ।

लगभग तीन वर्षों के अथक परिश्रम के बाद यह संविधान तैयार हो गया । यदि कुछ रह गया तो वह भारतवासियों को इस आशा व दृढ़संकल्प के साथ सौंप दिया गया कि वे संविधान की संरचना के भीतर कार्य करके उसे पूरा कर लेंगे ।

अत: यदि सामाजिक व आर्थिक प्रजातन्त्र का सपना अपूर्ण रह गया तो यह संविधानजनकों की नहीं हमारी गलती होगी; क्योंकि संविधान-निर्माताओं ने अपने समय की विषम परिस्थितियों के बीच रहकर हमारी उत्कृष्ट सेवाएं की है ।

संविधान सभा के सभापति डॉ॰ राजेन्द्र प्रसाद ने संविधान के तृतीय वाचन के अवसर पर अन्तिम भाषण में बुद्धिमतापूर्ण ढंग से यह वक्तव्य दिया : ”संविधान में कुछ ऐसे उपबन्ध हैं, जिनमें इधर-उधर से कुछ कमियां दृष्टिगोचर हो सकती हैं । हमें यह स्वीकार करना होगा कि उपरोक्त कमियां देश की परिस्थितियों व जनसाधारण में निहित हैं ।”

कुछ महत्त्वपूर्ण वक्तव्य:

महात्मा गांधी: मैं यह मानने को स्वतन्त्र हूँ कि संविधान सभा संसदीय क्रिया की तार्किक उत्पाद है ।

जवाहरलाल नेहरू: भारत के लोगों को अपना संविधान बनाने की पूर्ण स्वतन्त्रता होनी चाहिए । यह संविधान सभा के माध्यम से ही हो सकता है, जिसका विशालतम आधार पर निर्वाचन किया जाये ।

जयप्रकाश नारायण: संविधान सभा के वकीलों का प्रभुत्व छाया रहा । जब तक इसके प्रावधानों का गहन रूप में संशोधन नहीं किया जाता यह देश में पूर्ण सामाजिक व राजनीतिक का यन्त्र नहीं हो सकता ।

प्रो॰के॰वी॰ राव: यद्यपि इस संविधान को कांग्रेस पार्टी ने बनाया इसमें ऐसा कोई प्रावधान नहीं है, जहां अन्य पार्टियों की उपेक्षा करके कांग्रेस का हित साधन हुआ हो ।

डॉ॰बी॰आर॰ अम्बेडकर: जिस सुगमता से संविधान सभा ने प्रारूप समिति द्वारा रचित प्रावधानों को पारित किया उसका श्रेय कांग्रेस पार्टी द्वारा स्थापित अनुशासन को दिया जाना चाहिए ।

प्रो॰ आइवर जेनिंग्स: भारतीय संविधान वकीलों का स्वर्ग है ।

महात्मा गांधी: संविधान सभा ही ऐसा संविधान बना सकती है, जो भारत के लिए स्वदेशी हो अर्थात् लोगों की इच्छा का प्रतिनिधितव करे ।

डॉ॰एस॰सी॰ कश्यप: यह कोई मामूली उपलब्धि नहीं थी कि तीन वर्षों से कम की अवधि में, विधान निर्माता ऐसा संविधान विकसित करने में सफल हुए, जिसे इस विशाल व घनी जनसंख्या वाले देश ने स्वीकार किया तथा जिसने धर्मों, नस्लों, भाषाओं व विविधता के सभी रूपों के बीच राष्ट्रीय एकता के धागों को संजोया व उन्हें मजबूत किया ।

ग्रेन्वाइल आस्टिन: 26 नवम्बर, 1949 को संविधान सभा के सदस्यों द्वारा इस संविधान के अंगीकरण के साथ भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतन्त्र हो गया । बल व इच्छा के इस कृत्य से सभा के सदस्यों ने यह कार्य शुरू किया जो कदाचित् 1787 में, फिलेडेल्फिया में हुए उपक्रम के समय से सबसे बड़ा राजनीतिक उपक्रम था ।

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