भारतीय संविधान में प्रधानमंत्री का पद एवं स्थिति । Prime Minister’s Position in the Indian Constitution in Hindi Language!
1. प्रस्तावना ।
2. नियुक्ति
3. कार्यकाल पद एवं शर्तें
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4. स्थिति पद एवं महत्त्व ।
5. कार्य एवं शक्तियां ।
6. उपसंहार ।
1. प्रस्तावना:
प्रधानमन्त्री मन्त्रिपरिषद की आधारशिला है । राष्ट्रपति उसी के परामर्श ने अन्य मन्त्रियों की नियुक्ति करता है । प्रधानमन्त्री की नीति मन्त्रिपरिषद की नीति होती है । मन्त्रिपरिषद् की बैठकों में प्रधानमन्त्री ही सभापति का आसन ग्रहण करता है और मन्त्रिपरिषद के प्रधान की हैसियत से वह सब मन्त्रियों के शासन विभागों की देख-रेख करता है तथा उनके बीच सहयोग स्थापित करता है । प्रधानमन्त्री राष्ट्रपति और मन्त्रिपरिषद के बीच एक महत्त्वपूर्ण कड़ी है ।
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राष्ट्रपति को संविधान द्वारा जो शक्तियां सौंपी गयी हैं, उनका प्रयोग वास्तव में प्रधानमन्त्री के परामर्श से ही होता है । उसी के द्वारा राष्ट्रपति को मन्त्रिपरिषद के शासन व विधान-विषयक कार्यों की जानकारी होती है । उसी के द्वारा राष्ट्रपति मन्त्रिपरिषद् को सन्देश भेजते हैं । प्रधानमन्त्री की सम्पूर्ण शासन पर सत्ता है । प्रधानमन्त्री की सम्पूर्ण शासन कार्य के लिए संयुक्त रूप से लोकसभा के लिए उत्तरदायी है ।
2. नियुक्ति:
मन्त्रिपरिषद में एक प्रधानमन्त्री होता है और उसके कई मन्त्री होते हैं । प्रधानमन्त्री राष्ट्रपति द्वारा शपथ ग्रहण करता है और राष्ट्रपति अन्य मन्त्रियों की नियुक्ति प्रधानमन्त्री की सलाह से करता है । प्रधानमन्त्री बहुमत दल का नेता होता है । राष्ट्रपति अन्य मन्त्रियों की नियुक्ति में प्रधानमन्त्री का परामर्श मानने को बाध्य है । प्रधानमन्त्री संसद के दोनों सदनों को उचित प्रतिनिधित्व देता है ।
3. कार्यकाल पद एवं शर्ते:
संवैधानिक रूप से राष्ट्रपति प्रधानमन्त्री को बहुमत दल का नेता होने के नाते शपथ दिलवाता है । निर्वाचित सदस्यों का कार्यकाल 5 वर्षो का होता है । अगले चुनाव तक प्रधानमन्त्री अपने राद पर बना रह सकता है । वह मन्त्रिपरिषद में कार्यो का विभाजन करता है । उसे अविश्वास प्रस्ताव पारित करके हटाया जा सकता है ।
4. स्थिति पद एवं महत्त्व:
प्रधानमन्त्री देश की वास्तविक कार्यपालिका का प्रमुख होता है । वह लोकसभा के बहुमत दल का नेता होता है । देश का सर्वोच्च नेता एवं लोकसेवक होता है । जब तक उसके नेतृत्व को चुनौती न दी जाये तब तक उसका स्थान सुरक्षित रहता है ।
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वह मन्त्रिपरिषद् का निर्माण व नेतृत्व करता है । देश के शासन का नेतृत्व एवं संचालन भी करता है । वह देश के प्रतिनिधि के रूप में विदेशों से सम्पर्क स्थापित कर प्रतिष्ठा को बढ़ाता है । जनता के लिए कार्य करता है ।
प्रधानमन्त्री की अनुमति के बिना मन्त्रिपरिषद का कोई भी सदस्य राष्ट्रपति से भेंट नहीं कर सकता । देश में आपातकाल एवं प्रदेशों में राष्ट्रपति शासन उसी के परामर्श से होता है । वह मन्त्रिपरिषदों की बैठकों की अध्यक्षता करता है ।
मन्त्रियों के मध्य विवादों का निराकरण प्रधानमन्त्री ही करता है । संसद में वह शासनपक्ष की ओर से प्रमुख प्रवक्ता होता है । सरकार की नीतियों के निर्धारण में एवं विदेश नीति के संचालन में संसद एवं उसके बाहर घोषणा करने में उसकी ही भूमिका प्रमुख होती है । वह मन्त्रिपरिषद् रूपी भवन की आधार शिला है ।
प्रधानमन्त्री एके-सूर्य की तरह है, जिसके चारों तरफ मन्त्रिपरिषद् रूपी ग्रह चक्कर लगाते है । प्रधानमन्त्री देश का मुकुट है, बादशाह है । वह मन्त्रिपरिषद की सलाह से देश का सम्पूर्ण शासन संचालित करता है । यदि प्रधानमन्त्री अपने पद से इस्सीफा दे दे, तो सम्पूर्ण मन्त्रिपरिषद् स्वत: ही भंग हो जाती है । प्रधानमन्त्री का पद अनेक उत्तरदायित्वों से भरा होता है । संसदीय कार्यपालिका में वह अनिवार्य घटक है ।
5. कार्य एवं शक्तियां:
शासन प्रबन्ध की सुविधा के लिए प्रत्येक मन्त्री के जिम्मे एक से अधिक विभाग होते हैं । इन विभागों का बंटवारा प्रधानमन्त्री ही करता है । जो विभाग जिस मन्त्री को सौंपे जाते हैं, वह शासन प्रबन्ध की सामान्य नीति को ध्यान में रखकर प्रधानमन्त्री की सलाह से उसका क्रियान्वयन करता है । शासन-सम्बन्धी नीतियों की मन्त्रिमण्डलीय बैठक का सभापतित्व प्रधानमन्त्री ही करता है । वह लोकसभा को भंग कर सकता है, राष्ट्रपति और मन्त्रिमण्डल के बीच समन्वय स्थापित करता है ।
6. उपसंहार:
इस तरह स्पष्ट है कि लोकतन्त्रात्मक देश भारत में प्रधानमन्त्री की शक्तियां असीमित हैं । वह संविधान की दृष्टि से सर्वाधिक शक्तिशाली अधिकारी है । वह बहुमत दल का नेता होता है । वह मन्त्रिपरिषद का गठन करता है । मन्त्रिपरिषद् में उसका सर्वाधिक महत्त्व है । वास्तव में प्रधानमन्त्री का पद सर्वोच्च एवं प्रतिष्ठा का पद है ।