भारतीय संविधान में राष्ट्रपति की स्थिति एवं महत्व । President’s Position in the Indian Constitution in Hindi Language!
1 प्रस्तावना ।
2. निर्वाचन प्रक्रिया ।
3. कार्यकाल: पद एवं शर्ते ।
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4. स्थिति एवं महत्त्व ।
5. कार्य एवं शक्तियां ।
6. उपसंहार ।
1. प्रस्तावना:
राष्ट्रपति भारत संघ का प्रधान होता है और उसी में कार्यपालिका की शक्ति निहित है । राष्ट्रपति देश की एकता का प्रतीक है । वह जनता की सर्वोपरि सत्ता का परिचायक है । वह राष्ट्र का प्रथम सम्मानित नागरिक है ।
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तीनों सेनाओं का सर्वोच्च सेनापति है । संकटकालीन तथा आपातकालीन स्थिति में शासन की सर्वोच्च शक्ति राष्ट्रपति के पास होती है । वित्त सम्बन्धी कार्य एवं शक्तियों की दृष्टि से उसका पद काफी महत्त्वपूर्ण है ।
2. निर्वाचन प्रक्रिया:
राष्ट्रपति संविधान का प्रधान है । वह किसी बहुमत दल का नेता न होकर सारे देश का प्रतिनिधि होता है, इसीलिए उसका निर्वाचन परोक्ष रूप से एक निर्वाचक मण्डल द्वारा होता है, जिसमें संसद की दोनों सभाओं के निर्वाचित सदस्य तथा राज्यों की विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्य शामिल होते हैं ।
निर्वाचक मण्डल के प्रत्येक सदस्य के मत का मूल्य समान नहीं होता है । उसके मत का मूल्य उस अनुपात से निश्चित होता है, जितनी संख्या का वह प्रतिनिधित्व करता है । चुनाव में संघ के विभिन्न राज्यों एवं संसद के प्रभाव में समता तथा मत मूल्यों के निर्धारण में निम्नलिखित दो सूत्रों का उपयोग किया जाता है: 1. विधानसभा के सदस्य के मतों की संख्या =राज्य की जनसंख्या विधानसभा के निर्वाचित सदस्यों की कुल संख्या 1,0002 संसद के प्रत्येक सदन के निर्वाचित सदस्य के मतों की संख्या =सभी राज्यों की विधानसभाओं में कुल सदस्यों को प्राप्त मतों की संख्या संसद के दोनों सदनों (संसद तथा राज्यसभा) के निर्वाचित सदस्य संख्या {3} कार्यकाल पद एवं शर्ते: 1. वह भारत का नागरिक हो । 2. उसकी आयु 35 वर्ष से कम न हो । 3. वह लोकसभा का सदस्य हो । 4. वह भारत सरकार या राज्य सरकार में किसी लाया के पद पर न हो ।
राष्ट्रपति का कार्यकाल 5 वर्ष निर्धारित है, लेकिन वह चाहे, तो इससे पहले भी त्यागपत्र दे सकता है । संसद राष्ट्रपति के विरुद्ध महाभियोग लगाकर उसे हटा सकती है । राष्ट्रपति को 15 दिन पहले इसकी लिखित सूचना दी जाकर, संसद के किसी भी सदन के एक चौथाई सदस्यों के हस्ताक्षर हो उस सदन में, जहां महाभियोग का प्रस्ताव पेश है: की कुल सदस्य संख्या के दो तिहाई सदस्यों द्वारा पारित किये जाने पर दूसरे सदन में लाया जायेगा, जो आरोपों की जांच करेगा ।
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जांच में राष्ट्रपति को अपना पक्ष रखने की छूट होगी । यदि दूसरे सदन द्वारा भी राष्ट्रपति पर लगाये गये आरोपों को सिद्ध करने वाला प्रस्ताव कुल दो तिहाई सदरच के बहुमत से पारित हो जाता है, तो राष्ट्रपति को उसी तिथि से पद त्याग करना पड़ेगा ।
राष्ट्रपति पद का प्रत्याशी 15,000 रुपये की जमानत राशि जमा करता है । उनके चुनाव से सम्बन्धित विवादों का निपटारा उच्चतम न्यायालय द्वारा होता है । कार्यकाल समाप्ति पश्चात् वह नये राष्ट्रपति चुने जाने तक कार्य करता रहता है । राष्ट्रपति को 50,000 रुपये मासिक वेतन तथा तीन लाख रुपये की पेंशन के साथ-साथ मुपत आवास एवं अन्य समस्त सुविधाएं मिलती हैं ।
4. स्थिति एवं महत्त्व:
कुछ विद्वान राष्ट्रपति को नाममात्र का शासक तथा इंग्लैण्ड के रानी-राजा की तरह शक्ति प्राप्त मानते है; क्योंकि वह मन्त्रिपरिषद की सलाह से कार्य करता है । कुछ राष्ट्रपति को संकटकालीन परिस्थिति में तानाशाह की दृष्टि से देखते हैं ।
भारतीय संविधान में राष्ट्रपति की स्थिति यह है कि वह संघ की कार्यपालिका का प्रधान है । प्रधानमन्त्री की नियुक्ति राष्ट्रपति करेगा, फिर प्रधानमन्त्री की सलाह से राष्ट्रपति अन्य मन्त्रियों की नियुक्ति करेगा । डॉ॰ भीमराव अम्बेडकर ने लिखा है कि:
“भारतीय संविधान में राष्ट्रपति को वही स्थिति प्राप्त है, जो ब्रिटिश संविधान में इंग्लैण्ड के राजा को है । वह राज्य का प्रधान है, कार्यपालिका का नहीं । भारत में संसदीय शासन व्यवस्था होने के कारण संसद और मन्त्रिपरिषद् के पास वास्तविक शक्ति है न कि राष्ट्रपति के पास । राष्ट्रपति देश का संवैधानिक प्रमुख है, पर वह शासन नहीं करता ।”
5. राष्ट्रपति की कार्य और शक्तियां:
राष्ट्रपति भारत संघ का सर्वोच्च अधिकारी है, अत: उसकी कार्य एवं शक्तियों को निम्नांकित भागों में बांटा जा सकता है:
शासन सम्बन्धी कार्य एवं शक्तियां: राष्ट्रपति भारत संघ का सर्वोच्च अधिकारी होने के नाते संघ का सारा शासन कार्य उसी के नाम से होता है । शासन के लिए उच्च अधिकारियों की नियुक्ति, विभिन्न आयोगों का निर्माण, राज्यपालों को शासन सम्बन्धी आदेश देना तथा उनके कार्यो पर नियन्त्रण रखना, केन्द्र के अधीन क्षेत्रों के लिए प्रबन्ध करना, शासन कार्य सुचारु रूप से चलाने के लिए नियम-निर्माण राष्ट्रपति के ही कार्य हैं ।
1) संघ की सम्पूर्ण सेना का सर्वोच्च अधिकारी होने के कारण वह अन्य राष्ट्र से सन्धि कर सकता है अथवा युद्ध की घोषणा कर सकता है ।
2) राष्ट्रपति प्रधानमन्त्री की सलाह से मन्त्रिपरिषद् की शासन एव कानून विषयक कार्रवाई की सूचना प्राप्त कर सकता है । वह प्रधानमन्त्री के मार्फत किसी मन्त्री के निर्णय को पुनर्विचार के लिए मन्त्रिपरिषद के सामने रखने की आइघ दे सकता है ।
3) राष्ट्रपति राज्यपाल, उपराज्यपाल व मुख्य आयुक्त, उच्चतम एवं उच्च न्यायालय के न्यायाधीश, संघ लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष, सदस्य, महान्यायवादी व महालेखापरीक्षक तथा अधिसूचित पिछड़ी जातियों व वर्गों की उन्नति के लिए विशेष अधिकारी की नियुक्ति करता है ।
4) राष्ट्रपति अन्तर्राष्ट्रीय परिषद् का संगठन एवं निर्वाचन आयोग, भाषा आयोग तथा आवश्यकता के अनुसार अन्य आयोगों की नियुक्ति करता है, जैसे-राष्ट्रपति ने 21.01.2004 को किसान आयोग की नियुक्ति की ।
5) राष्ट्रपति विदेशों में भारत के राजदूतों की नियुक्ति करता है तथा विदेशी राजदूतों को मान्यता प्रदान करता है ।
विधान सम्बन्धी कार्य और शक्तियां: राष्ट्रपति संसद का सदस्य नहीं है, न ही उसकी बैठकों में वह अपना मत ही दे सकता है, फिर भी वह उसका अभिन्न अंग है । इस रूप में संसद के संगठन एवं कार्य में राष्ट्रपति का हाथ है ।
संविधान ने राज्यसभा के लिए 12 तथा इंग्लोइण्डियन समुदाय से 2 नामजद सदस्यों की व्यवस्था की है, जिनको मनोनीत राष्ट्रपति ही करता है । दोनों सदनों के सदस्य राष्ट्रपति के सामने ही शपथ लेते हैं ।
राष्ट्रपति को
1. संसद का अधिवेशन बुलाने, सत्रावसान करने, विघटन की शक्ति है ।
2. आरम्भिक संभाषण दोनों सभाओं के समक्ष देता है ।
3. अभिभाषण कर, किसी भी सदन में सन्देश भेजने का अधिकार ।
4. सदन के सदस्यों को मनोनीत करने का अधिकार ।
5. संसद के समक्ष प्रतिवेदन रखने में वार्षिक वित्तीय और अनुपूरक विवरण, महालेखा-परीक्षक का प्रतिवेदन, वित्त आयोग की सिफारिश, संघ लोक सेवा आयोग का प्रतिवेदन ।
6. विधेयकों पर पूर्ण स्वीकृति की शक्ति, नये राज्य का निर्माण सम्बन्धी विधेयक, धन विधेयक, भारत की संचित निधि से व्यय करने सम्बन्धी विधेयक, कर विधेयक, धन के लिए मांगों से सम्बन्धित विधेयक ।
7. वीटो शक्ति (अ) जब राष्ट्रपति वीटो की अनुमति नहीं देता है, तो वीटो समाप्त हो जाता है । (ब) यदि राष्ट्रपति विधेयक को पुनर्विचार के लिए वापस भेज देता है, तो सामान्य बहुमत से विधेयक के पुन: पास किये जाने पर राष्ट्रपति अनुमति देने के लिए विवश है । जेबी-वीटो-राष्ट्रपति विधेयक को अपने पास पड़ा रहने दे सकता है ।
अध्यादेश निर्माण की शक्ति: जब दोनों में से किसी एक सदन का सत्रावसान हो गया हो, तो वह सत्र नहीं हो, तो राष्ट्रपति को मन्त्रिपरिषद् की सलाह से अध्यादेश बनाने की शक्ति है । जब संसद का अधिवेशन शुरा हो, तो अधिवेशन संसद के, साथ रखा जाना चाहिए । यदि संसद उसे अनुमोदित नहीं कर देती है, तो वह अधिवेशन की तारीख से छह सप्ताह की समाप्ति पर अपने आप निष्प्रभावी हो जायेगी ।
आपातकालीन शक्तियां: भारतीय संविधान में तीन प्रकार की आपातकालीन उद्घोषणाओं का प्रावधान किया गया है, जिनको भारत का राष्ट्रपति, मन्त्रिपरिषद् के परामर्श से लागू करता है:
1. अनुच्छेद 352 के तहत जब राष्ट्रपति को यह समाधान हो जाये, तो युद्ध, बाह्य आक्रमण या सशस्त्र विद्रोह की आशंका मात्र से वह अध्यादेश की घोषणा कर सकता है ।
2. अनुच्छेद 356 के तहत जब राष्ट्रपति को राज्यपाल के रिपोर्ट के आधार पर अथवा राज्यपाल की रिपोर्ट के आधार पर यह समाधान हो जाये कि संघ के किसी राज्य का शासन संविधान के उपबन्धों के आधार पर नहीं चलाया जा रहा है, तो राष्ट्रपति उस राज्य क्षेत्र को प्रशासन अपने हाथ में ले सकता है । राष्ट्रपति शासन की अवधि एक बार में छह माह से अधिक नहीं बढ़ाई जा सकती है ।
3. अनुच्छेद 360 के तहत यदि राष्ट्रपति पूरी तरह से आश्वस्त हो जाये कि देश के किसी राज्य में वित्तीय संकट आ गया है, तो वह वित्तीय आपातकाल की घोषणा कर सकता है ।
वित्तीय आपातकाल की अवधि दो माह न्यूनतम है, लेकिन अधिकतम समयावधि निश्चित नहीं है । यदि दो माह के भीतर संसद इसे अनुमोदित नहीं करती है, तो यह स्वत: ही रह हो जायेगी । इसे न्यायालय द्वारा चुनौती नहीं दी जा सकती है । देश में अभी तक ऐसी (वित्तीय आपातकाल) की स्थिति उत्पन्न नहीं हुई है ।
4. क्षमादान-अनुच्छेद 72 के अन्तर्गत राष्ट्रपति किसी अपराध के लिए दोषी ठहराये गये व्यक्ति की सजा को कम या माफ भी कर सकता है ।
6. उपसंहार:
अन्त में यह कहा जा सकता है कि कुछ विशेष परिस्थितियों को छोड़कर राष्ट्रपति नाममात्र का प्रधान है । उसका पद राष्ट्रीय गरिमा एवं राष्ट्रीय एकता का प्रतीक है । संसदीय शासन प्रणाली में यह आशा की जा सकती है कि राष्ट्रपति, मन्त्रिपरिषद् की सलाह के अनुसार ही शासन करेगा ।
डल भीमराव अम्बेडकर ने लिखा है कि: “भारतीय संविधान में राष्ट्रपति को वही अधिकार प्राप्त है, जो ब्रिटिश संविधान में इंग्लैण्ड के महाराजा को है । वह राज्य का प्रधान है, कार्यपालिका का नहीं । वह राष्ट्र का प्रतिनिधित्व करता है । राष्ट्र पर शासन नहीं करता, वह राष्ट्र का प्रतीक है । प्रशासन में उसका स्थान एक औपचारिक प्रधान मात्र का है ।”