भारत के पंद्रह मुख्य फसलों | 15 Main Crops of India in Hindi. List of agricultural crops of India: 1. Rice 2. Wheat 3. Barley 4. Jowar 5. Bajra 6. Maize 7. Oil Seeds 8. Pulses 9. Sugarcane 10. Tea 11. Coffee 12. Cotton 13. Jute 14. Rubber 15. Nicotine 16. Coconut.

1. चावल (Rice):

यह ग्रेमिनी कुल का एक उष्णकटिबंधीय फसल है एवं भारत की मानसूनी जलवायु में इसकी अच्छी कृषि की जाती है । चावल हमारे देश की सबसे प्रमुख खाद्यान्न फसल है ।

गर्म एवं आर्द्र जलवायु की उपयुक्तता के कारण इसे खरीफ की फसल के रूप में उगाया जाता है । देश में सकल बोई गई भूमि के 23% क्षेत्र में एवं खाद्यान्नों के अंतर्गत आने वाले कुल क्षेत्र में 47% भाग पर चावल की कृषि की जाती है ।

विश्व में चावल के अंतर्गत आने वाले सर्वाधिक क्षेत्र (28%) भारत में हैं, जबकि उत्पादन में इसका चीन के बाद दूसरा स्थान है । 2012 में चावल निर्यात में भारत का विश्व में प्रथम स्थान था । भारत में विश्व के कुल चावल उत्पादन का लगभग 21% चावल पैदा होता है ।

ADVERTISEMENTS:

कृष्णा-गोदावरी डेल्टा क्षेत्र को भारत के ‘चावल के कटोरे’ के नाम से भी जाना जाता है । चावल के लिए भौगोलिक दशाएँ चिकनी उपजाऊ मिट्‌टी, गर्म जलवायु, 75 सेमी. से 200 सेमी. तक वर्षा एवं प्रारंभ में तापमान 20C तथा बाद में 27C है । भारत में चावल की तीन फसलें- अमन (शीतकालीन), ओस (शरदकालीन) तथा बोरो (ग्रीष्मकालीन) पैदा की जाती है ।

देश में सबसे अधिक अमन का उत्पादन होता है, जो जून से अगस्त तक बोकर नवम्बर से जनवरी तक काट ली जाती है । यहाँ विभिन्न राज्यों में पैदा की जाने वाली चावल की कुछ विशेष किस्में इस प्रकार हैं- साम्बा, कुर्रुवई (तमिलनाडु), कामिनी, कालाजीरा, गोविंदभाग (पश्चिम बंगाल), जरीसाल (गुजरात), बासमती (उत्तर प्रदेश) ।

पश्चिमी बंगाल व तमिलनाडु में चावल की तीन फसलें उगाई जाती है- ओस (सितम्बर-अक्टूबर), अमन (जाड़ा) एवं बोरो (गर्मी) । कृषि निदेशालय द्वारा विकसित धान की प्रथम बौनी प्रजाति ‘जया’ थी । राष्ट्रीय चावल अनुसंधान केन्द्र कटक (ओडिशा) में है ।

वर्तमान समय में चावल की अधिक उपज देने वाली कई किस्में विकसित की गई हैं, ये हैं- IR-8, IR-20, साकेत, सरजू, महसूरी, गोविन्द, पूसा-2-21, पूसा-33, गौरी, श्वेता, चिंगम, धनु, RH-204, GR8, साबरमती, रत्ना, कावेरी, पद्‌मा, अन्नपूर्णा, तेलाहम्सा, हम्सा, बाला, PLA-1, किरन आदि । कीट रोधी किस्में-IET-144, बाला एवं N-22 हैं ।

ADVERTISEMENTS:

वैज्ञानिकों ने जीन परिवर्तन (आनुवांशिक परिवर्तन) करके विटामिन-A की कमी को दूर करने वाले चावल का विकास किया है, इस चावल का नाम ‘गोल्डन राइस’ रखा गया है । गोल्डन राइस को पैदा करने के लिए उसके पौधों पर जीनों का प्रत्यारोपण करना पड़ता है, जिससे पौधा बीटा-कैरोटीन युक्तपीले रंग का चावल उत्पादित करता है ।

देश में चावल का प्रति हेक्टेयर उत्पादन अभी भी विकसित देशों की तुलना में बहुत कम (मात्र 1741 किग्रा.) में है, जबकि जापान में 6240 किग्रा. प्रति हेक्टेयर चावल का उत्पादन किया जाता है । उत्पादन की दृष्टि से पश्चिम बंगाल (14.24%), पंजाब (13.45%), आंध्र प्रदेश (12.36%), का क्रमशः प्रथम, द्वितीय एवं तृतीय स्थान है ।

2. गेहूँ (Wheat):

यह ग्रेमिनी कुल का सदस्य है । विश्व में गेहूँ उत्पादन में चीन के बाद भारत का दूसरा स्थान आता है । क्षेत्रफल की दृष्टि से भारत का प्रथम स्थान है । चावल के बाद यह देश का दूसरा सबसे महत्वपूर्ण खाद्यान्न फसल है ।

देश की कुल कृषि योग्य भूमि के लगभग 10% एवं कुल बोए गए क्षेत्र के 13% भाग पर गेहूँ की कृषि की जाती है । चावल की अपेक्षा इसका प्रति हेक्टेयर उत्पादन (लगभग 2770 कि.ग्रा) अधिक है ।

ADVERTISEMENTS:

इसकी अधिकांश कृषि सिंचाई के सहारे की जाती है । भारत में विश्व का लगभग 12.5 प्रतिशत गेहूँ का उत्पादन होता है । आर्थिक समीक्षा 2011-12 के अनुसार देश में गेहूँ की औसत उपज 29.38 कुन्तल प्रति हेक्टेयर है । हरित-क्रान्ति का सबसे अधिक प्रभाव गेहूँ की कृषि पर ही पड़ा है । हरित क्रांति के पश्चात् गेहूँ में उच्च उत्पादकता एवं उत्पादन प्राप्त किया गया है ।

गेहूँ के लिए आवश्यक भौगोलिक दशाएँ उपजाऊ मिट्‌टी, 50 सेमी. से 75 सेमी. तक वर्षा, आरंभ में तापमान 10C से 15C तथा बाद में 20C से 25C है । गेहूँ में सामान्यतः प्रोटीन 8-15%, कार्बोहाइड्रेट 65-70%, वसा-1.5% तथा खनिज 2.0% पाया जाता है । गेहूँ में ग्लूटिन नामक प्रोटीन अधिक मात्रा में पाई जाती है ।

गेहूँ के सबसे प्रमुख उत्पादक राज्य उत्तर प्रदेश (देश के कुल उत्पादन का 30.29 मिलियन टन), पंजाब (17.21 मिलियन टन) तथा हरियाणा (12.68 मिलियन टन) हैं । मध्य प्रदेश, राजस्थान व बिहार अन्य प्रमुख उत्पादक राज्य हैं । उत्पादकता की दृष्टि से प्रथम स्थान पंजाब राज्य का है ।

आर्थिक समीक्षा 2013-14 में गेहूँ का कुल उत्पादन 94.88 मिलियन टन रहा । गेहूँ की प्रमुख किस्में-प्रताप, अर्जुन, जनक, कल्याण, सोना, गिरिजा, VL-829, HI-1500, NW-2036, MP-4010, HS-420 एवं 335 आदि । ICAR द्वारा ‘पूसा बेकर’ नामक गेहूँ की नई प्रजाति विकसित की है । बिस्कुट के लिए विकसित यह किस्म यूरोपीय देशों द्वारा निर्धारित मानक के अनुरूप है ।

3. जौ (Barley):

जौ भी देश की एक महत्वपूर्ण खाद्यान्न फसल है । इसकी गणना मोटे अनाजों में की जाती है । यह सामान्यतया शुष्क एवं बलुई मिट्‌टी में बोया जाता है तथा इसकी शीत एवं नमी सहन करने की क्षमता भी अधिक होती है । जौ के लिए कम उपजाऊ मिट्‌टी, 70 सेमी. से 100 सेमी. तक वर्षा, 15C से 18C नक तापमान आदि भौगोलिक दशाएँ होनी चाहिए ।

जौ का सबसे प्रमुख उत्पादक राज्य उत्तर प्रदेश है । राजस्थान, मध्य प्रदेश, हरियाणा एवं हिमाचल प्रदेश अन्य उत्पादक राज्य हैं । जौ की किस्में-हिमानी, ज्योति, कैलाश, C-164, K-24, RDB-1 आदि हैं ।

4. ज्वार (Jowar):

ज्वार भी एक मोटा अनाज है, जिसकी कृषि सामान्य वर्षा वाले क्षेत्रों में बिना सिंचाई के की जाती है । इसके लिए उपजाऊ जलोढ़ अथवा चिकनी मिट्‌टी काफी उपयुक्त होती है । इसकी वृद्धि के लिए तापमान 25C से 30C के बीच होनी चाहिए । ज्वार की फसल भारत के अधिकांश राज्यों में खरीफ की फसल है ।

देश में ज्वार का तीन-चौथाई से अधिक क्षेत्र मात्र तीन राज्यों महाराष्ट्र, कर्नाटक और मध्य प्रदेश में विस्तृत है । देश का लगभग 80% ज्वार का उत्पादन भी इन्हीं तीनों राज्यों में होता है ।

2013 में ज्वार का सकल क्षेत्र 6.3 मिलियन हेक्टेयर था । इसका सबसे बड़ा उत्पादक राज्य महाराष्ट्र है । इसके बाद कर्नाटक एवं मध्य प्रदेश का स्थान आता है । प्रमुख किस्में CSV-1, CSV-7, CHS-1, CHS-8 आदि हैं ।

5. बाजरा (Bajra):

बाजरा की गणना भी मोटे अनाजों में की जाती है और यह वास्तव में, ज्वार से भी शुष्क परिस्थितियों में पैदा किया जाता है । बाजरा के लिए आवश्यक भौगोलिक दशाएँ बलुई मिट्‌टी, 50 सेमी. से 70 सेमी. तक वर्षा, तथा तापमान 25C से 30C के बीच होनी चाहिए ।

2013-14 में बाजरा का सकल क्षेत्र 8.7 मिलियन हेक्टेयर था । राजस्थान, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, गुजरात तथा हरियाणा में बाजरे की खेती बड़े पैमानें पर की जाती है । प्रमुख किस्में- बाबापुरी, मोती, HB-3, HB-4, T-55, C01 आदि हैं ।

6. मक्का (Maize):

मक्के की उत्पति पाईकार्न से हुई है । यह एक उभयलिंगी पौधा है । हमारे देश के अपेक्षाकृत शुष्क भागों में मक्का का उपयोग प्रमुख खाद्यान्न के रूप में किया जाता है । मक्का के लिए आवश्यक भौगोलिक दशाएँ गर्मी का लंबा मौसम, खुला आकाश तथा अच्छी वर्षा, 25C से 30C तापमान, 50 सेमी. से 80 सेमी. तक वर्षा, नाइट्रोजन युक्त गहरी दोमट मिट्‌टी हैं ।

अन्य धान्य फसलों की अपेक्षा इसमें स्टार्च की मात्रा सबसे अधिक पाई जाती है । 2013-14 में मक्का का सकल क्षेत्र 8.7 मिलियन हेक्टेयर था । देश में सर्वाधिक मक्के का उत्पादन कर्नाटक में होता है ।

इसके बाद आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान, बिहार एवं उत्तर प्रदेश का स्थान आता है । मक्के के उत्पादन में भारत का विश्व में 7वाँ स्थान है । मक्का की किस्में- गंगा 1, गंगा 101, विजय, जवाहर, विक्रम, रतन, किसान, सोना एवं रणजीत आदि हैं ।

7. तिलहन (Oil Seeds):

हमारे देश में तिलहनी फसलों की कृषि प्रायः अनुपजाऊ मिट्‌टी एवं वर्षा की कमी वाले क्षेत्रों में ही की जा रही है । रबी एवं खरीफ दोनों फसल समयों में तिलहनों की कृषि की जाती है । सरसों रबी की प्रमुख फसल है जबकि मूँगफली की कृषि खरीफ के समय की जाती है ।

तिलहनों के उत्पादन में मध्य प्रदेश अग्रणी है । सरसों, मूँगफली, सूर्यमुखी, सोयाबीन व नारियल तेल के उत्पादन में क्रमशः राजस्थान, गुजरात, कर्नाटक, मध्य प्रदेश एवं केरल भारत में प्रथम स्थान रखते हैं ।

8. दालें (Pulses):

शाकाहारी भोजन पसंद करने वाली जनसंख्या की प्रोटीन प्राप्ति का सबसे प्रमुख साधन दालें हैं । हमारे देश में रबी, खरीफ एवं जायद नीनों फसलों के अंतर्गत दाल की कृषि की जाती है । फलीदार पौधा होने के कारण दालें मिट्टी में नाइट्रोजनी तत्वों की आपूर्ति करती हैं एवं उसकी उर्वरता बढ़ाती हैं ।

इसी कारण इसे अन्य फसलों के साथ उपजाया जाता है । हमारे देश में दलहनी फसलों की कृषि प्रायः अनुपजाऊ मिट्‌टी एवं वर्षा की कमी वाले क्षेत्रों में ही की जाती है । दालों के उत्पादन व उपभोग दोनों में भारत विश्व में प्रथम स्थान रखता है ।

9. गन्ना (Sugarcane):

गन्ना का जन्म स्थान भारत है । यह ग्रेमिनी कुल का पौधा है । गन्ना उत्पादन में भारत का ब्राजील के बाद द्वितीय स्थान है, जबकि खपत और कृष्य क्षेत्र के मामले में भारत का विश्व में प्रथम स्थान है । यहाँ विश्व का लगभग 40% गन्ना पैदा किया जाता है । गन्ने की फसल तैयार होने में लगभग एक वर्ष का समय लग जाता है ।

उष्णकटिबंधीय तथा उपोष्णकटिबंधीय फसल होने के कारण इसके लिए 20C से 27C का औसत वार्षिक तापमान तथा 100 से 200 सेमी. की औसत वार्षिक वर्षा उपयुक्त होती है । गन्ना की फसल तैयार होते समय वर्षा का अभाव काफी लाभदायक होता है क्योंकि इससे शर्करा की मात्रा में वृद्धि होती है ।

भारत में लगभग 92 प्रतिशत गन्ना क्षेत्र सिंचित है । 2013-14 में गन्ना का सकल क्षेत्र 5.1 मिलियन हेक्टेयर था । उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश तथा कर्नाटक देश के प्रमुख गन्ना उत्पादक राज्य हैं । उत्तर प्रदेश अकेले ही देश के लगभग 45% गन्ने का उत्पादन करता है ।

10. चाय (Tea):

वर्तमान समय में यह भारत की प्रमुख पेय फसल है । इसकी भौगोलिक दशाएँ 150 -250 सेमी. वार्षिक वर्षा, 24C से 30C का उच्च तापमान, हरी एवं गंधक वाली मिट्‌टी आदि हैं ।

यह एक श्रम प्रधान कृषि है एवं इसमें पत्तियों की चुनाई के लिए सस्ते श्रम की आवश्यकता होती है । जल-प्रिय पौधा होने के बावजूद इसकी जड़ों में पानी नहीं लगना चाहिए । इसी कारण इसकी खेती पहाड़ी ढालों पर की जाती है ।

ठण्डी हवा व पाला चाय की कृषि के लिए हानिकारक है । देश में चाय उत्पादन में असोम का प्रथम स्थान है । यहाँ ब्रह्मपुत्र नदी की घाटी व सुरमा नदी की घाटी में चाय की उन्नत कृषि की जाती है । असोम से देश के कुल चाय उत्पादन का 50% भाग प्राप्त होता है । दक्षिण भारत में तमिलनाडु सर्वाधिक चाय उत्पादन करने वाला राज्य है ।

केरल, कर्नाटक तथा महाराष्ट्र के पर्वतीय ढालों पर भी चाय की कृषि की जाती है । भारत विश्व में काली चाय का सबसे बड़ा उत्पादक और उपभोक्ता देश है । भारत चाय के विश्व उत्पादन का 27% उत्पादित करता है तथा चाय के विश्व व्यापार में इसका हिस्सा 9 प्रतिशत है ।

विश्व में चाय उत्पादन में भारत का चीन के बाद दूसरा स्थान है । 22 जनवरी, 2013 को ‘अन्तर्राष्ट्रीय चाय उत्पादक मंच’ का गठन किया गया है । इसमें भारत के अलावा केन्या, श्रीलंका, इंडोनेशिया, खाण्डा, मलावी, ईरान तथा चीन शामिल हैं । इसका मुख्यालय कोलम्बो में है ।

11. कहवा (Coffee):

विश्व के कुल कहवा उत्पादन का मात्र 4% उत्पादन भारत में किया जाता है किन्तु इसका स्वाद उत्तम होने के कारण इसकी माँग विदेशों में अधिक रहती है । इसकी भौगोलिक दशाएँ 15C से 18C औसत वार्षिक तापमान तथा 150 से 250 सेमी. की औसत वार्षिक वर्षा है ।

ढलवाँ पर्वतीय धरातल एवं दोमट अथवा लावा निर्मित मिट्‌टी इसके लिए उपयुक्त होती है । हमारे देश में दो प्रकार के कहवा की कृषि की जाती है- अरेबिका कॉफी व रोबस्टा कॉफी ।

अरेबिका कहवा देश के कहवा के अंतर्गत आने वाले कुल क्षेत्रफल के 60% भाग पर कर्नाटक, केरल तथा तमिलनाडु राज्यों में बोया जाता है जबकि शेष भूमि पर रोबस्टा कहवा की कृषि की जाती है । कहवा की खेती दक्षिण भारत के पर्वतीय ढालों तक ही सीमित है । कर्नाटक (68%), केरल (21%) तथा तमिलनाडु सर्वाधिक कहवा उत्पादन करने वाले राज्य हैं ।

12. कपास (Cotton):

यह मालवेसी कुल का पौधा है । संसार में मुख्यतः इसकी दो प्रजातियाँ पायी जाती हैं । प्रथम देशी कपास (Old World Cotton) अर्थात् गासिपियम अरबोरियम एवं गाहरबेरियम है । दूसरा अमेरिकन कपास (New World Cotton) अर्थात् गाहिरसुटम एवं बारबेडेन्स नाम से जानते हैं । प्रायद्वीपीय पठारी भाग की लावा निर्मित काली मिट्‌टी के क्षेत्र में कपास का सर्वाधिक उत्पादन किया जाता है ।

गुजरात (34.09%), महाराष्ट्र (20.45%), आंध्र प्रदेश (20.45%) तथा पंजाब मिलकर देश के कुल उत्पादन के 60% से भी अधिक कपास का उत्पादन करते हैं । हरियाणा, कर्नाटक आदि कपास के अन्य महत्वपूर्ण उत्पादक राज्य हैं । महाराष्ट्र में कपास को श्वेत स्वर्ण (White Gold) के नाम से भी जाना जाता है ।

इसके लिए 20C से 30C का उच्च तापमान, 200 दिन की पाला व ओला रहित अवधि, स्वच्छ आकाश, तेज व चमकदार धूप 50 से 100 सेमी. वार्षिक वर्षा की आवश्यकता होती है । भारी काली दोमट मिट्‌टी एवं लाल व काली मिट्‌टी इसके लिए सर्वाधिक उपयुक्त है ।

सस्ता श्रम भी कपास की कृषि हेतु एक प्रमुख आवश्यकता है । कपास क्षेत्रफल की दृष्टि से भारत का विश्व में प्रथम स्थान है । उत्पादन की दृष्टि से भारत का विश्व में दूसरा स्थान है । 2013-14 में कपास का सकल क्षेत्र 12.2 मिलियन हेक्टेयर था ।

13. जूट (Jute):

यह एक रेशेदार फसल है जिससे बोरे, रस्सियाँ, कालीन, कपड़े आदि बनाए जाते हैं । जूट की उत्तम कृषि के लिए 25C से 35C का उच्च तापमान, 100 से 200 सेमी. या अधिक औसत वार्षिक वर्षा, दोमट एवं नदियों की कछारी मिट्‌टी तथा सस्ते श्रम की आवश्यकता होती है । जूट की फसल तैयार होने में 10 से 11 माह लगता है । भारत में जूट की औसत उपज 2,000 से 2,100 किलोग्राम है ।

औसत उपज पश्चिम बंगाल में सबसे अधिक और बिहार में सबसे कम है । जूट के बुवाई क्षेत्र लगभग 90% क्षेत्र पश्चिम बंगाल, बिहार, असोम तथा मेघालय में ही है ।

ओडिशा, उत्तर प्रदेश और त्रिपुरा के तराई वाले भागों में भी इसकी खेती की जाती है । केवल पश्चिम बंगाल देश की कुल जूट उपज का लगभग 80% उत्पादन करता है । बिहार, असोम, आंध्र प्रदेश, ओडिशा आदि अन्य प्रमुख जूट उत्पादक राज्य हैं ।

14. रबड़ (Rubber):

रबड़ का जन्म स्थान ब्राजील है । यह उष्ण कटिबंधीय पौधा है । रबड़ वृक्ष के दुध (लेटैक्स) से रबड़ प्राप्त होता है । 1902 ई. में केरल में पेरियार नदी के किनारे इनके वक्ष लगाए गए ।

इसकी उत्तम कृषि के लिए 25C से 32C का उच्च तापमान, अत्यधिक वर्षा, लाल, लैटेराइट, चिकनी एवं दोमट मिट्‌टी तथा अधिक मानव श्रम की आवश्यकता होती है । दक्षिण भारत में इसकी सबसे उपयुक्त दशाएँ मिलती हैं ।

भारत में विश्व के उत्पादन का लगभग 1.7% प्राकृतिक रबड़ प्राप्त किया जाता है । रबड़ के प्रति हेक्टेयर उपज की दृष्टि से भारत विश्व के अग्रणी देशों में है । इसके प्रमुख उत्पादक राज्य केरल, तमिलनाडु तथा कर्नाटक हैं । अंडमान निकोबार द्वीप समूह में भी कुछ रबड़ पैदा किया जाता है । 2013-14 में भारत प्राकृतिक रबड़ का सबसे बड़ा उत्पादक तथा दूसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता देश था ।

15. तम्बाकू (Nicotine):

यह एक शीतोष्ण कटिंबधीय पौधा है । इसके लिए औसतन 15C से 38C का तापमान, 50 सेमी. वार्षिक वर्षा, बलुई दोमट मिट्‌टी की आवश्यकता होती है । तम्बाकू की पत्तियों को सुखाने की प्रकिया को रचाई कहते हैं, जिससे पत्तियों में वांछित रंग, गंध तथा लचक आदि गुणों का विकास होता है ।

प्रथम तीन शीर्ष उत्पादक राज्य आंध्र प्रदेश, गुजरात, कर्नाटक 3 शीर्ष उत्पादक राज्य हैं । भारत विश्व का चौथा सबसे बड़ा तम्बाकू निर्यातक तथा चीन के बाद दूसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता राष्ट्र है । भारत में विश्व के कुल तम्बाकू का 8% तम्बाकू उत्पादन होता है ।

16. नारियल (Coconut):

नारियल एक उष्ण कटिबंधीन जलवायु का पौधा है । इसे 20C से 25C का तापामन, 150 सेमी. से अधिक की वर्षा, पाला और सूखा रहित तटीय जलवायु, बलुई दोमट से हल्की रेगड़ मिट्टियों की जरूरत होती है । इसे विभिन्न प्रकार की मिट्टियों में और पहाड़ी ढालों के सहारे 800-100 मी. की ऊँचाई तक भी उगाया जा सकता है ।

इससे प्राप्त गरी से तेल, साबुन बनाने का कच्चा माल तथा वनस्पति घी आदि प्राप्त होता है । भारत, इण्डोनेशिया और फिलीपींस के बाद विश्व में नारिलय का तीसरा बड़ा उत्पादक देश है । देश के तीन दक्षिणी राज्यों-केरल, तमिलनाडु एवं कर्नाटक में नारिलय का 83.2 प्रतिशत क्षेत्र पाया जाता है ।

Home››India››Crops››