Read this article in Hindi to learn about:- 1. भारतीय दुग्ध उद्योग का परिचय (Introduction to Indian Dairy Industry) 2. भारतीय दुग्ध उद्योग की विशेषता (Features of Indian Dairy Industry) 3. प्रकृति (Nature) 4. योगदान (Contribution) and Other Details.

Contents:

  1. भारतीय दुग्ध उद्योग का परिचय (Introduction to Indian Dairy Industry)
  2. भारतीय दुग्ध उद्योग की विशेषता (Features of Indian Dairy Industry)
  3. भारतीय दुग्ध उद्योग की प्रकृति (Nature of Indian Dairy Industry)
  4. भारत के विकास में पशुधन एवं दुग्ध उद्योग का योगदान (Contribution of Animal Husbandry and Dairying in Overall Development of India)
  5. भारत में दुग्ध उपभोग पद्धति (Milk Utilization Pattern in India)
  6. देश में उत्पादित दुग्ध पदार्थ (Branded Dairy Products of India)
  7. भारत की प्रमुख डेरी कम्पनियां (Key Domestic Dairy Companies of India)


1. भारतीय दुग्ध उद्योग का परिचय (Introduction to Indian Dairy Industry):

भारत में आज भी कृषि एक मुख्य व्यवसाय है । यहाँ की लगभग 72.22% जनसंख्या गाँवों में रहती है तथा लगभग 56% जनसंख्या अभी भी खेतों पर निर्भर करती है तथा खेती एवं पशुपालन को मुख्य व्यवसाय के रूप में अपनाये हुए है । अतः कृषि एवं पशु पालन राष्ट्रीय आय का एक प्रमुख स्रोत बना हुआ है ।

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यद्यपि कृषि का G.D.P. (Gross Domestic Product) भाग लगातार घट रहा है । इसका मुख्य कारण देश में बढता औद्योगिकीकरण एवं बढती जनसंख्या के कारण खेती योग्य भूमि के क्षेत्रफल में गिरावट है । यदि परिस्थितियां ऐसी ही बनी रही तो जल्दी ही देश का कृषि प्रधान स्वरूप बदल कर औद्योगिक हो जायेगा कृषि तथा कृषि पर आधारित उद्योगों पर निर्भर जनसंख्या में भी लगातार कमी आ रही है ।

देश के सकल घरेलू उत्पाद (G.D.P.) में पशुधन एवं मत्स्य का योगदान 2001-02 में 7.35% रहा है ।


2. भारतीय दुग्ध उद्योग की विशेषता (Features of Indian Dairy Industry):

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भारत में दुग्ध उद्योग की प्रमुख विशेषता पशुओं की अधिक संख्या तथा उनकी कम उत्पादकता है । भारत में विश्व के कुल गौ पशुओं का 16% भाग तथा भैंस पशुओं का 57% भाग पाला जा रहा है जबकि दुग्ध उत्पादन में भारत का विश्व के कुल दुग्ध उत्पादन में 14.2% योगदान है ।

देश के कुल कृषकों में से 60-70% दुग्ध उद्योग से महत्वपूर्ण आय प्राप्त कर रहे है । देश के विभिन्न भागों में बिखरे रूप में लगभग 7 मिलियन दुग्ध उत्पादक है जिनमें भूमिहीन, सीमान्त तथा लघु कृषक देश के कुल डेरी पशुओं का 60% पशु पाल रहे हैं ।

कृषक की कुल आय में दुग्ध उद्योग का देश के पूर्वी क्षेत्रों में 40%, पश्चिमी क्षेत्रों में 34%, उत्तरी क्षेत्रों में 32% तथा दक्षिणी क्षेत्रों में 21% योगदान है ।

प्राचीन काल में पशुओं को कृषि कार्य एवं दुग्ध उत्पादन के लिए पाला जाता था परन्तु आज स्वरूप बदल गया है । खेती का मशीनीकरण हो चुका है तथा अब, पशु पालन को डेरी उद्योग के रूप में अपनाया जा रहा है । मनुष्य के भोजन में सन्तुलन बनाने की दृष्टि से दुग्ध का दुग्ध पदार्थों का आज भी विशिष्ट महत्व है ।

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भोजन में दूध का महत्व तथा गौ नर पशुओं का कृषि कार्यों में उपयोग के कारण ही हमारे यहाँ गाय की पूजा की परम्परा प्राचीन काल से चली आ रही है । आज के बदलते स्वरूप तथा परिप्रेक्ष्य में इस परम्परा का नुक्सान नजर आ रहा है । देश में कम उत्पादकता वाले पशुओं की संख्या में उत्तरोत्तर वृद्धि हो रही है ।

गौ नर पशु कृषि कार्यों में उपयोग न होने के कारण भूखे-प्यासे सड़कों पर घूमते देखे जा सकते है जिनके प्रति धार्मिक आस्था आज भी पूर्ववत्त जुड़ी हुई है । देश में डेरी पशुओं की अधिक संख्या के कारण उचित पोषण व्यवस्था नहीं हो पा रही है । फलस्वरूप उनकी उत्पादकता घटी है तथा ये पशु आर्थिक नहीं रह गये है ।

भारतीय गाय की उत्पादकता (उत्पादन प्रतिवर्ष कि.ग्रा. मे) मात्र 917 कि.ग्रा. है तथा विश्व में यह उत्पादकता की दृष्टि से 35वें स्थान पर है । भारत में भैंस प्रमुख दुग्ध उत्पादक पशु है तथा विश्व की लगभग 57% भैंस दुग्ध उत्पादन हेतु भारत में पाली जा रही है ।

भारत में भैंस की दुग्ध उत्पादकता 1,000 कि.ग्रा. है । भारतीय दुग्ध उत्पादन में गाय, भैंस एवं बकरी पशुओं का योगदान क्रमशः 41%, 54.5%, एवं 4.50% प्रतिशत है ।

भारत में पशु धन (Live Stock in India):

भारत में विस्तृत पशु धन संसाधन उपलब्ध है जिनमें मुख्य रूप से डेरी पशु क्षेत्रों की सामाजिक-आर्थिक दशा उत्थान में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे है । गाय तथा भैंस पशुओं की संख्या की दृष्टि से भारत प्रथम स्थान पर है जबकि बकरी पालन में द्वितीय, भेड पालन में तृतीय तथा मुर्गी पालन में संख्या के आधार पर छठे स्थान पर स्थित है । देश में विश्व की कुल भैंस संख्या का 57% पाला जा रहा है ।

देश में कुल डेरी पशु संख्या का 4.25% संकर गाय, 35% देशी गाय, 20.80% भैंस, 25.56% बकरी तथा 13.72% भेड पशु है ।


3. भारतीय दुग्ध उद्योग की प्रकृति (Nature of Indian Dairy Industry):

भारतीय दुग्ध उद्योग गांव आधारित दुग्ध उद्योग है । एक रिपोर्ट के अनुसार यहां पर गांवों में प्रति 100 की आबादी पर 172 पशु तथा शहर में प्रति 100 की आबादी पर 25 पशु पाले जाते है ।

यहाँ दुग्ध उत्पादन वर्ष भर समान नहीं रहता है यह मुख्यतया निम्नलिखित दो कारकों पर निर्भर करता है:

1. मौसम (Season):

भारतीय कृषि एवं पशु पालन उत्पादन पर मानसून एक प्रभावी कारक है । उत्पादन मानसून में हुई वर्षा पर निर्भर करता है । हालांकि दूध का उत्पादन तो पूरे वर्ष होता है परन्तु फिर भी पशुओं का उत्पादन व प्रजनन हरे चारे की उपलब्धता तथा प्राप्यता से प्रभावित होता है । हरा चारा वर्षा ऋतु के बाद पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध होता है ।

सामान्यतया भैंस सितम्बर से नवम्बर माह तक गाभिन होकर अगस्त से अकबर मास तक ब्याती है । अतः दूध का अधिकतम उत्पादन अकबर से फरवरी या मार्च तक रहता है । गर्मी के मौसम में अप्रैल से जुलाई तक हरा चारा कम मिलने तथा भैंस पशुओं के ब्यान्त का अन्तिम भाग होने के कारण दुग्ध उत्पादन काफी कम हो जाता है ।

दुग्ध उत्पादन की दृष्टि से सर्दी के मौसम को, जब दूध अधिक पैदा होता है, Flush Season तथा गर्मी के मौसम को, जब दूध कम उत्पादित होता है, Lean Season कहा जाता है ।

2. क्षेत्र (Region):

यहाँ पशुओं को दाने के रूप में कृषि उपजात (Agriculture By-Products) खिलाये जाते हैं, अतः दूध का उत्पादन कृषि उत्पादन के By-Product उत्पादन क्षेत्र से भी प्रभावित होता है । श्वेत क्रान्ति योजना काल में देश के कुल दुग्ध उत्पादन का लगभग 90% भाग 12 राज्यों में उत्पादित हुआ ।

ये राज्य दुग्ध उत्पादन की दृष्टि से घटते कम में 2003-04 में उत्पादित दूध की मात्रा के अनुसार निम्नलिखित प्रकार से हैं:

1. उत्तर प्रदेश (15.9 मि.टन)

2. पंजाब (8.3 मि.टन)

3. राजस्थान (8.0 मि.टन)

4. आन्ध प्रदेश (6.9 मि.टन)

5. गुजरात (6.4 मि.टन)

6. महाराष्ट्र (6.3 मि.टन)

7. मध्य प्रदेश (5.4 मि.टन)

8. हरियाणा (5.2 मि.टन)

9. तमिलनाडु (4.6 मि.टन)

10. कर्नाटक (3.9 मि.टन)

11. पश्चिमी बंगाल (मि.टन)

12. बिहार (3.2 मि.टन)

इन राज्यों में दुग्ध उत्पादन वितरण भी समान नहीं है बल्कि इनके 140 जिला क्षेत्रों में कुल दुग्ध उत्पादन का लगभग 82% दूध उत्पादित किया जा रहा था जबकि भारत लगभग 450 जिला क्षेत्रों में विभक्त है । अतः स्पष्ट है कि दूध का उत्पादन पूरे देश में समान रूप से नहीं हो रहा है तथा उन क्षेत्रों में अधिक है जहां कृषि उत्पादन अच्छा होता है ।


4. भारत के विकास में पशुधन एवं दुग्ध उद्योग का योगदान (Contribution of Animal Husbandry and Dairying in Overall Development of India):

भारत के विकास में पशुधन एवं दुग्ध उद्योग प्रमुख रूप से 4 रूपों में योगदान दे रहा है:

1. स्वरोजगार के साधन के रूप में (Mean of Self-Employment):

पशु पालन एवं दुग्ध उद्योग बडे पैमाने पर देश में रोजगार के साधन उपलब्ध करा रहा है । नेशनल सैम्पल सर्वे आर्गेनाइजेशन (Natioanl Sample Survey Organization) द्वारा 1999-2000 के निष्कर्ष के अनुसार लगभग 11 मिलियन जनता पशुपालन व्यवसाय को मुख्य व्यवसाय के रूप में अपनाये हुए है तथा लगभग 8 मिलियन जनता सहायक व्यवसाय (Subsidiary Status) स्तर पर इस व्यवसाय को कर रहे हैं । औसत के आधार पर कुल कार्यरत जनसंख्या (Working Population) के लगभग 5% भाग को इस व्यवसाय से प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप में लाभ है ।

2. दुग्ध उत्पादों का मूल्य (Value of Dairy Products):

केन्द्रीय सांख्यिकीय संगठन (Central Statistical Organization) द्वारा 2001-02 के लिए किये गये एक आकलन के अनुसार पशु धन एवं मत्स्य उत्पादों का मूल्य (Rs. 179,546 Crores), कुल कृषि एवं सम्बन्धित उत्पादों के मूल्य (Rs. 635,395 Crores) का लगभग 28.3 प्रतिशत रहा है । वर्ष 2001-02 में कुल सकल घरेलू उत्पाद (Gross Domestic Product) में पशु पालन एवं मत्स्य का योगदान 7.35 प्रतिशत रहा है । पिछले पाँच वर्षों में दुग्ध पदार्थों के निर्यात में गुणात्मक वृद्धि हुई है ।

3. कृषि उत्पादों में दूध का स्थान (Place of Milk in Agriculture Products):

पशुधन, मुर्गी तथा अन्य सम्बन्धित पदार्थों के निर्यात से वर्ष 2002-03 में रु. 4226.00 करोड की आय हुई है । इसी वर्ष चमडे से हुई आय लगभग रु. 2470 करोड रही । कुल राष्ट्रीय उपज (Gross National Product) में दुग्ध एवं दुग्ध उत्पादों का योगदान 5% से अधिक है ।

4. कृषकों की आय में डेरी का योगदान (Contribution of Dairying in Income of Farmers):

कृषकों की डेरी से प्राप्त आय में क्षेत्रीय भिन्नता है । देश के पूर्वी भागों में किसान को डेरी से 40% आय मिलती है जबकि यह योगदान उत्तरी भागों में 32%, दक्षिणी भागों में 21% एवं पश्चिमी भागों में 34% ।

5. दुग्ध उत्पादन एवं विपणन (Milk Production and Marketing):

पिछली पंच- वर्षीय योजनाओं में सरकार ने दुग्ध उत्पादन वृद्धि एवं उसके विपणन के लिए बहुत प्रयास किये है जिनके परिणामस्वरूप 1999 के दुग्ध उत्पादन में भारत ने संसार में प्रथम स्थान प्राप्त कर लिया है तथा वर्ष 2004 का अनुमानित दुग्ध उत्पादन 91 मिलियन टन रहा है ।

भारत में दुग्ध उत्पादन वृद्धि दर (4% वार्षिक), जनसंख्या वृद्धि दर (2% वार्षिक) से अधिक है अतः प्रति व्यक्ति दुग्ध उपलब्धता भी लगातार बढ रही है । जो 2004-05 में 232 ग्राम तक पहुंच चुकी है ।

भारत में विश्व के कुल गौ पशुओं का 16% तथा भैंस पशुओं का 57% भाग पाला जा रहा है परन्तु उत्पादकता कम होने के कारण विश्व के कुल दुग्ध उत्पादन में देश का योगदान मात्र 14.2% है । देश में अधिकांशतः दुग्ध उत्पादन भूमिविहीन, सीमान्त तथा लघु किसानों द्वारा किया जा रहा है ।

जिनके पास देश की कुल पशु संख्या का लगभग 66% भाग पल रहा है । कुल दुग्ध उत्पादन का लगभग 33% भाग दुग्ध उत्पादकों द्वारा स्वयं उपभोग कर लिया जाता है जबकि लगभग 50% भाग असंगठित क्षेत्रों के व्यापारी (दूधिया) तथा मात्र 17% भाग संगठित क्षेत्र की डेरियों द्वारा खरीदा जाता है ।

दूध,उत्पादक से उपभोक्ता तक विभिन्न माध्यमों से पहुँचता है । माध्यमों की संख्या में वृद्धि होने पर उपभोक्ता के द्वारा देय मूल्य में वृद्धि तथा उपभोक्ता मूल्य में उत्पादक का हिस्सा घट जाता है ।

उपरोक्त विपणन श्रृंखलाओं में प्रयोगात्मक रूप में सम्भव विपणन श्रृंखला- प्रथम (उत्पादक-प्रसंस्कारक-उपभोक्ता) जिसमें उत्पादक अपना दूध सीधा प्रसंस्कारक को विक्रय करता है, उपभोक्ता मूल्य में अधिकतम हिस्सा (86.23%) उत्पादक को प्राप्त होता है । परन्तु परिस्थितिवश इस श्रृंखला में मात्र लगभग 20% दूध ही प्रवाहित हो रहा है । शेष सभी श्रृंखलाओं में बिचौलिए अधिकतम लाभ अर्जित कर रहे है ।

विभिन्न उत्पादों के निर्माण में कच्चे पदार्थ का भाग अग्रलिखित रूप में तालिका 3.9 दिया गया है ।


5. भारत में दुग्ध उपभोग पद्धति (Milk Utilization Pattern in India):

भारत के लगभग 3,00,000 गाँवों के 70 मिलियन कृषकों द्वारा थोडी-थोडी मात्रा में दुग्ध उत्पादन किया जाता है । भारतीय दुग्ध उत्पादन लगभग 55% भैंस से, 41% गाय से तथा 4% बकरी से प्राप्त होता है ।

यह दूध देश में प्रमुखतः तीन प्रयोगकर्ता समूह द्वारा प्राप्त किया जाता है:

1. उत्पादक स्वयं पीने तथा दही, मक्खन-घी आदि बनाने में प्रयोग करते है ।

2. असंगठित क्षेत्र में दूध को उपभोक्ताओं में कच्चा वितरित करते हैं ।

3. संगठित क्षेत्र में पास्तुरीकृत रूप में वितरित करते है ।

उपरोक्त प्रथम दो समूहों द्वारा 82% तथा तीसरे समूह द्वारा 18% दूध का उपयोग किया जाता है । कुल उत्पादन का लगभग 50% पीने में तथा 45% परम्परागत उत्पादन निर्माण में प्रयोग होता है । 1943 के आंकडों में पाकिस्तान, बांग्लादेश सम्मिलित हैं ।

भारत में दुग्ध उद्योग की संरचना (Dairy Infrastructure in India):

डरी प्रसंस्करण उद्योग में 1991 से प्रारम्भ सरलीकरण (Liberalization) के परिणामस्वरूप देश में दुग्ध एवं दुग्ध उत्पाद निर्माण क्षमताओं में काफी महत्वपूर्ण वृद्धि हुई है । लगभग 16-17 प्रतिशत दूध संगठित क्षेत्रों में प्रसंस्करण के लिए प्राप्त किया जा रहा है ।

परम्पारागत दुग्ध उद्योग के असंगठित क्षेत्र में लगभग 50% दूध से परम्पारागत विधि द्वारा मिठाइयाँ, दही, खोआ, छैना, पनीर तथा घी का निर्माण किया जा रहा है । संगठित क्षेत्र के उद्योगों में प्रसंस्कृत दूध, दुग्ध चूर्ण, चीज, आईसक्रीम, मक्खन तथा घी उत्पादन किया जा रहा है ।


6. देश में उत्पादित दुग्ध पदार्थ (Branded Dairy Products of India):

यह स्पष्ट समझ लेना चाहिए कि दुग्ध पदार्थ क्या होता है इसका सीधा या उत्तर है कि दूध को ऐसे रूप में परिवर्तित करना जिससे वह स्वाद ग्रन्थियों को सन्तुष्ट करते हुए, अपेक्षाकृत अधिक पोषकता, सुरक्षापूर्वक प्रदान करे । Change of milk in such a form that satisfy our taste buds with better nutrition & safety ।

इस के ऊपर आने वाला खर्चा भी इतना हो कि उपभोक्ता उसे वहन कर सके । इस तथ्य को दृष्टिगत रखते हुए विश्व में प्राचीन काल से दूध का प्रयोग विभिन्न रूपों में दुग्ध पदार्थों के रूप में किया जा रहा है ।

वर्तमान में देश में निर्मित विभिन्न दुग्ध पदार्थों को 4 वर्गों में विभक्त किया जा रहा:

1. Cultured Milk Products:

दूध में जामन मिलाकर तैयार किये जाने वाले दुग्ध पदार्थों के इस वर्ग में प्रमुख दुग्ध पदार्थ दही (Curd/Dahi), Srikand, Cheese, Lassi एवं Butter Milk आदि है । ये Probiotic वर्ग के दुग्ध पदार्थ हैं ।

2. Condensed/Head Desiccated Milk Products:

दूध को वाष्पन द्वारा गाढा करके तैयार पदार्थों में Rabri, Khoa, Kheer, Ethnic Sweets, Evaporated Milk, Milk Powder, Infant Foods तथा Malted Foods प्रमुख हैं ।

3. Fat Rich Dairy Products:

दुग्ध वसा के सान्द्रण से बने पदार्थों में क्रीम, मक्खन तथा घी प्रमुख हैं । इन पदार्थों में S.N.F. तथा नमी की मात्रा दूध की अपेक्षा कम होती है ।

4. Acid Precipitated Milk Products:

अम्ल द्वारा दूध के स्कन्दन से निर्मित पदार्थों के इस वर्ग में पनीर, चीज तथा छैना सम्मिलित किये जाते है ।

5. Frozen Milk Products:

दूध व दुग्ध पदार्थों के हिमीकरण उपरान्त बने पदार्थों में कुल्फी, आईसक्रीम तथा मलाई का बर्फ प्रमुख है । इन्हें Value Added Milk Product के वर्ग में रखा जाता है ।

उपरोक्त दुग्ध पदार्थों को औद्योगिक स्तर पर दो प्रमुख वर्गों में विभिक्त किया जाता है:

A. Traditional Milk Products:

इस वर्ग में वे दुग्ध पदार्थ सम्मिलित है जिनका उद्‌भव प्राचीन अविभाजित भारत में हुआ जैसे मक्खन, घी, खोआ, छैना, पनीर, दही तथा कुल्फी । इनमें घी, खोआ एवं छैना का प्रयोग देशी मिठाइयों के निर्माण में किया जाता है ।

B. Value Added Milk Products:

इस वर्ग में वे दुग्ध पदार्थ सम्मिलित हैं जिनके निर्माण में महंगी उच्च तकनीक का प्रयोग होता है या दूध के साथ अन्य महंगे पदार्थ मिलाकर दुग्ध उत्पाद बनाये जाते है । इस वर्ग के प्रमुख पदार्थ Packaged Fresh Dairy Products, Milk Powder, Cheese, Infant Foods, Malted Foods, UHT Milk, Various Graded Milk, Condensed Milk, Table Butter तथा Sterilized Flavoured Milk है ।  


7. भारत की प्रमुख डेरी कम्पनियां (Key Domestic Dairy Companies of India):

भारत में सहकारी या व्यक्तिक क्षेत्र की राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय महत्व की दुग्ध व्यापार में संलग्न प्रमुख कम्पनियां तालिका 3.15 में दी गयी है ।

1. Punjab State Cooperative Milk Producers Federation Ltd. (MILK FED)—VERKA

2. Haryana Dairy Development Cooperative Federation Ltd. (Chan­digarh)-VITA

3. Himachal Pradesh State Co-Operative Milk Producer’s Federation Ltd. (Shimla) — (Liquid Milk, Paneer, Butter, Ghee, Dahi)

4. Rajasthan Cooperative Dairy Federation Ltd. (Jaipur)—SARAS (Flavoured Milk, Ice Cream, Misti Dahi, Paneer, Ghee)

5. M.P. State Cooperative Dairy Federation Ltd. (Bhopal) — (Liquid Milk, Milk Powder, Butter, Ghee)—SANCHI, SHAKTI, SNEHA

6. Orissa State Cooperative Milk Producer’s Federation Ltd.— OMFED (T.M., D.T.M., F.C.M., Ghee, Sweetened Flavoured Milk, Sweet Curd, Table Butter, Plain Curd, Butter Milk)

7. Karnataka Milk Federation (KMF) — NANDINI (Liquid Milk, Milk Powder, Ice Cream, Ghee, Butter)

8. Pradeshik Cooperative Dairy Federation (PCDF-UP)-PARAG

इनके अतिरिक्त कुछ प्रमुख व्यक्तिगत कम्पनियों ने अपने ब्रांड भी निकाले हुए हैं जैसे- Heritage, Milk Food, Nova, Mohan तथा Vadilal आदि ।


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