भारत के जनसांख्यिकी पर निबंध | Read this article in Hindi to learn about the demographic properties of India. The demographic properties are: 1. Age Structure 2. Working Structure or Working Participation 3. Sex Ratio 4. Literacy.
Demographic Property # 1. आयु संरचना (Age Structure):
भारत जनांकिकी संक्रमण के तीसरी अवस्था के पूर्वार्द्ध में है । यद्यपि जन्म दर में गिरावट की प्रवृत्ति आ गई है, परंतु जैविक रूप से पुनरुत्पादक वर्ग (संतानोत्पत्ति समूह) का आकार बड़ा होने के कारण कुल जनसंख्या वृद्धि में अभी भी विस्फोटक प्रवृत्ति है ।
सामान्य रूप से विभिन्न आयु वर्गों की अपनी विशेषताएँ व समस्याएँ हैं । जहाँ बाल व वृद्ध आयुवर्ग की निर्भर जनसंख्या के अंतर्गत आती है । वहीं युवा व प्रौढ़ आयुवर्ग अर्थव्यवस्था के विकास में अपना योगदान देते हैं ।
बाल आयु-वर्ग (0-14 वर्ष) में 32% जनसंख्या है । पुनः इन्हें तीन वर्गों में बांटा जा सकता है । 0-4 आयु-वर्ग में 9%, 5-9 आयु-वर्ग में 11%, 10-14 आयु-वर्ग में 12% जनसंख्या है । जैसे-जैसे जन्मदर में गिरावट आएगी, वैसे-वैसे 0-4 आयु-वर्ग में और कमी आएगी जिसका परिणाम 0-14 आयु-वर्ग के अन्य उप-वर्गों पर भी पड़ेगा ।
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यह आयु-वर्ग एक निर्भर जनसंख्या है । यद्यपि सामाजिक-आर्थिक कारणों से इस वर्ग की तीन से चार प्रतिशत जनसंख्या कार्यशील है जो बाल मजदूरी के रूप में दिखाई पड़ती है ।
युवा व प्रौढ़ जनसंख्या लगभग 60% है । इनमें युवा आयुवर्ग (15-39) में 42% जनसंख्या तथा प्रौढ़ आयुवर्ग (40-64) में 18% जनसंख्या आती है । इनमें 15-39 आयु वर्ग के लोग अधिक क्रियाशील है । कार्यशील जनसंख्या का लगभग 58% आपूर्ति इसी वर्ग से होती है । इनमें भी 15-19 आयु-वर्ग के लोग निर्भर जनसंख्या के अंतर्गत रखे जा सकते हैं, क्योंकि इनकी उत्पादकता काफी कम है ।
15-39 आयु वर्ग जैविक रूप से पुनरुत्पादक वर्ग है । चूँकि इस वर्ग में एक बड़ी जनसंख्या है, इसीलिए अभी भी जनसंख्या वृद्धि के विस्फोटक बने रहने की आशंका है । यह वर्ग बेरोजगारी, अल्प रोजगार तथा उच्च निर्भरता अनुपात की समस्या से ग्रस्त है ।
प्रौढ़ आयु-वर्ग के अंतर्गत 40-64 आयु-वर्ग के लोग आते हैं । कार्यशील जनसंख्या का लगभग 32% की आपूर्ति इसी वर्ग से होती है । यह वर्ग अपने अनुभव एवं ज्ञान का लाभ युवा-वर्ग को प्रदान करता है । यद्यपि वर्तमान समय में जीवन प्रत्याशा बढ़ रही है, परंतु युवा-वर्ग की तुलना में प्रौढ़ वर्ग में आधी से भी कम जनसंख्या का मिलना न्यून जीवन-प्रत्याशा के पूर्व प्रभाव को दर्शाता है ।
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वृद्ध आयु-वर्ग (64+) के अंतर्गत 8% जनसंख्या आती है । इसका कारण भारत में जीवन-प्रत्याशा का निम्न होना रहा है । यद्यपि अब इसमें तेजी से सुधार हो रहा है । यह भी एक निर्भर जनसंख्या है, परंतु आर्थिक बाध्यताओं के कारण से 7% कार्यशील जनसंख्या की आपूर्ति इस वर्ग से हो रही है ।
Demographic Property # 2. कार्यिक-संरचना व कार्यिक-सहभागिता (Working Structure or Working Participation):
भारत में अभी भी लगभग 60% जनसंख्या प्राथमिक कार्यों में लगे हुए हैं । इसके अंतर्गत कृषि, श्रम, वानिकी, आखेट, खाद्य संग्रहण, मत्स्यन व पशुपालन कार्यों में लगी जनसंख्या को शामिल किया जाता है ।
लघुस्तरीय खनन को भी इसी के अंतर्गत रखा जाता है । द्वितीयक कार्यों में मशीनीकृत खनन व विभिन्न विनिर्माण उद्योग शामिल किए जाते हैं । इसमें लगभग 18% जनसंख्या कार्यरत है ।
वाणिज्य-व्यापार, बैंकिंग, बीमा, परिवहन, भंडारण, संचार व अन्य सेवाएं तृतीयक कार्यों के अंतर्गत आते हैं । इसमें लगभग 22% जनसंख्या कार्यरत है । सामाजिक-आर्थिक विकास के साथ-साथ द्वितीय व तृतीयक वर्ग में कार्यरत लोगों के प्रतिशत में वृद्धि की प्रवृत्ति है ।
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भारत की मुख्य कार्यिक जनसंख्या उपरोक्त में से किन्हीं एक में से नियमित रूप में रोजगार प्राप्त करते हैं । इसके अलावा सीमांत कार्यिक जनसंख्या भी है जो अधिकतम 183 दिनों तक कार्य करती हैं । इनकी कार्यिक उत्पादकता अपेक्षाकृत कम है । इस वर्ग में कार्य करने वाले लोगों में दो-तिहाई महिलाएँ हैं ।
भारत में अकार्यिक जनसंख्या के अंतर्गत निर्भर जनसंख्या को शामिल किया जा सकता है । भारत में बेरोजगारी, क्षमता के अनुसार रोजगार न मिलना (अल्प-रोजगार), काम के अनुसार वेतन न मिलना (न्यून-मजदूरी), निम्न कार्मिक-सहभागिता, बाल-श्रम जैसी समस्याएं कार्यिक-संरचना को प्रभावित कर रही है ।
भारत के विकसित राज्यों में द्वितीयक व तृतीयक कार्यों की प्रधानता है, जबकि अल्प विकसित व विकासशील राज्यों या प्रदेशों में प्राथमिक कार्यों की प्रधानता है ।
इस संदर्भ में नोबल पुरस्कार विजेता प्रसिद्ध अर्थशास्त्री कोलिन क्लार्क के ‘आर्थिक सेक्टर सिद्धांत’ का उल्लेख किया जा सकता है, जिसमें उन्होंने कहा था कि ‘जहाँ प्राथमिक कार्यों की अधिकता होती है वहां आर्थिक पिछड़ापन मिलता है, जबकि द्वितीयक व तृतीयक कार्यों की प्रधानता वाले क्षेत्रों में आर्थिक समृद्धि होती है ।’
भारत में जहाँ एक ओर प्राथमिक कार्यों का जीडीपी योगदान में घट रहा है वहीं द्वितीयक व तृतीयक क्षेत्रकों के योगदान में निरंतर वृद्धि की प्रवृत्ति है । कार्यशील जनसंख्या में महिलाओं की कार्यिक सहभागिता अभी भी पुरुषों की तुलना में आधी से भी कम है जिसे अपर्याप्त कहा जा सकता है । हाल के वर्षों में द्वितीयक व तृतीयक कार्यों में महिलाओं की कार्यिक सहभागिता में वृद्धि की प्रवृत्ति देखी गई है ।
Demographic Property # 3. लिंगानुपात (Sex Ratio):
इसका तात्पर्य किसी जनसंख्या के सभी आयु वर्गों में स्त्रियों व पुरुषों के अनुपात से है । किसी प्रदेश के सामाजिक-आर्थिक दशाओं को समझने व प्रादेशिक विश्लेषण के लिए यह एक महत्वपूर्ण सूचकांक है ।
किसी प्रदेश में इनके अध्ययन के द्वारा वहां की जनसंख्या वृद्धि दर, विवाह दर, व्यवसायिक संरचना जैसे जनांकिकी कारकों की जानकारी मिलती है । लिंगानुपात में परिवर्तन से विभिन्न आयु स्तरों पर पुरुषों व स्त्रियों के जन्मदर व मृत्युदर में परिवर्तन एवं प्रवास का ज्ञान होता है ।
सामान्य रूप से लिंगानुपात को प्रति हजार पुरुषों में स्त्रियों की संख्या से ज्ञात किया जाता है । भारत में 1901 ई. में लिंगानुपात 972/1000 था, जो 1951 ई. में 945/1000 हो गया । 2011 ई. में यह 943/1000 है अर्थात् सामान्य रूप से लिंगानुपात में घटने की प्रवृत्ति है ।
यद्यपि 2001 के लिंगानुपात 933/1000 की तुलना में 2011 में थोड़ी वृद्धि हुई है, परंतु इसी अवधि में 0-6 आयु वर्ग में लिंगानुपात 927 से घटकर 919 हो गई है, जो भविष्य में लिंगानुपात में और अधिक असंतुलन उत्पन्न कर सकता है ।
भारत में न्यून लिंगानुपात के कई कारण है । यहां जन्म के समय लिंगानुपात न्यून रहता है । प्राकृतिक रूप से जन्म के समय पुरुष-शिशुओं की संख्या स्त्री-शिशुओं की तुलना में थोड़ा अधिक (106:100) होता है । शीघ्र विवाह को भी पुरुष शिशुओं की अधिक संख्या के लिए उत्तरदायी माना जा सकता है ।
सामाजिक-आर्थिक कारणों से विभिन्न आयु स्तरों पर स्त्रियों में ऊँची मृत्यु दर का पाया जाना भी लिंगानुपात में असंतुलन का कारक है । शैशवकाल एवं प्रसूति के समय स्त्रियों की उपेक्षा के कारण यह समस्या और भी बढ़ जाती है । उपरोक्त कारकों के अलावा प्रवास भी लिंगानुपात के असंतुलन के लिए उत्तरदायी है । चूँकि प्रवास करने वाले लोगों में पुरुष जनसंख्या की अधिकता रहती है ।
इसी कारण उत्प्रवास के क्षेत्र में लिंगानुपात अधिक व आप्रवास के क्षेत्र में लिंगानुपात कम हो जाता है । भारत से अन्य देशो में होने वाले अंतर्राष्ट्रीय प्रवास की तुलना में भारत में नेपाल, श्रीलंका, बांग्लादेश, म्यांमार आदि से आने वाले प्रवासियों की संख्या अधिक है । पुरुष प्रधान प्रवास होने के कारण लिंगानुपात में असंतुलन का यह भी एक गौण कारक है ।
भारत में उच्च मानव विकास सूचकांक (HDI) वाले राज्यों में सामान्य रूप से लिंगानुपात अपेक्षाकृत संतुलित अवस्था में है । इसका अपवाद वे नगरीय क्षेत्र हैं जो आप्रवास के क्षेत्र हैं । जिन राज्यों व प्रदेशों में सामाजिक-सांस्कृतिक प्रतिमान पिछड़े हुए हैं, महिला सशक्तिकरण का अभाव है वहां लिंगानुपात में अधिक असंतुलन देखा जा सकता है ।
पुरुष प्रधान लिंगानुपात से विभिन्न सामाजिक समस्याएं भी जुड़ी हुई है । शिशु मृत्युदर व मातृत्व मृत्युदर में भारी कमी लाकर भारत में लिंगानुपात के असंतुलन को कम किया जा सकता है । यही कारण है कि भारत की नई जनसंख्या नीति में इसके लिए विभिन्न लक्ष्य निर्धारित किए गए हैं ।
Demographic Property # 4. साक्षरता (Literacy):
साक्षर व्यक्ति उसे कहते हैं जो किसी भाषा में पढ़ने के साथ-साथ लिखने में भी सक्षम हो एवं जिनकी उम्र 7 वर्ष या अधिक हो । वस्तुतः साक्षर व्यक्ति को जागरूक व शिक्षित बनाना अपेक्षाकृत सरल होता है ।
इससे उनकी कार्यिक दक्षता में वृद्धि होती है तथा उनका संसाधनात्मक महत्व बढ़ता है । भारत मध्यम साक्षरता वाले राष्ट्रों में आता है । यहां औसत साक्षरता दर 2011 की जनगणना के अनुसार 74.04% है ।
इसमें पुरुष साक्षरता दर 82.14% व महिला साक्षरता दर 65.46% है । प्रौढ़ शिक्षा के माध्यम से देश में 7 करोड़ लोगों को साक्षर बनाया गया है, जिसमें 6 करोड़ महिलाएँ हैं । स्पष्ट है कि अभी भी लगभग एक-चौथाई जनसंख्या निरक्षर है । इससे उनकी कार्यिक क्षमता में गिरावट आ जाती है । महिला सशक्तिकरण का अभाव निम्न महिला साक्षरता दर के लिए उत्तरदायी कारक है ।
सामान्य तौर पर केरल मिजोरम व लक्षद्वीप में साक्षरता दर 90% से अधिक है जबकि बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश, जम्मू-कश्मीर व अरूणाचल प्रदेश में यह 70% से भी कम है । शेष राज्य 70 से 90% साक्षरता रखते हैं । विभिन्न साक्षरता अभियान के कारण पिछले कुछ दशकों में महिला साक्षरता में अपेक्षाकृत अधिक वृद्धि की प्रवृत्ति है ।
2001-11 के दशक में पुरुष साक्षरता वृद्धि दर में 6% की दशकीय वृद्धि की तुलना में महिलाओं की साक्षरता दर 12% की दशकीय वृद्धि दर्ज की गई है । इस प्रकार पुरुषों के मुकाबले महिलाओं की साक्षरता दर में तेजी से वृद्धि हुई है ।
छत्तीसगढ़, राजस्थान व मध्य प्रदेश में इसमें उल्लेखनीय सफलता प्राप्त की है । केंद्र व राज्य के संयुक्त वित्तीय भागीदारी (65:35) से भारत में सर्व-शिक्षा अभियान चल रहा है ।
विभिन्न स्वयंसेवी संस्थाओं व प्रचार-प्रसार के माध्यमों के द्वारा इसमें जन-भागीदारी बढ़ाने के हर संभव प्रयास किए जा रहे हैं । ग्रामीण पृष्ठ-भूमि में चरवाहा विद्यालय तथा मध्याह्न पोषाहार स्कीम (Mid day Meal Scheme) भी साक्षरता बढ़ाने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम रहे हैं । देश में 2015 तक 80% साक्षरता का लक्ष रखा गया है ।