Read this article in Hindi to learn about the impact of globalisation in India.

अनेक विद्वानों द्वारा वैश्वीकरण के समर्थकों के दावों का परीक्षण किया गया । सटिग्लिट्‌स (Stiglitz) अर्थशास्त्र में नोबेल प्राइज विजेता (2001) तथा विश्व बैंक के भूतपूर्व मुख्य अर्थशास्त्री ने वैश्वीकरण की सशक्त समीक्षा की है । ILO द्वारा स्थापित ‘द वर्ल्ड कमिश्न ऑन द सोशल डाइमेन्शनस ऑफ ग्लोबलाइजेशन’ (WCSDG) ने कहा है, ”वैश्वीकरण का वर्तमान मार्ग अवश्य बदलना चाहिये । इसके लाभों में बहुत थोडों का भाग है, इसकी रचना में बहुत से लोगों की कोई आवाज नहीं और इसके मार्ग पर कोई प्रभाव नहीं ।”

”हम वैश्वीकरण को मानवीय कल्याण और स्वतन्त्रता का साधन बनाना चाहते हैं और हम चाहते हैं कि जहाँ लोग रहते हैं वहाँ के स्थानीय समुदायों के लिये यह प्रजातन्त्र और विकास लाये ।”

1. माल और सेवा क्षेत्र के निर्यात (Exports of Merchandise and Service Sector):

वैश्वीकरण का सर्वप्रथम लक्ष्य है वस्तुओं और सेवाओं के व्यापार को बढ़ाना । इस सम्बन्ध में विश्व आयोग (2007) वर्णन करता है, ”यह व्यापार विस्तार सभी देशों में एक समान नहीं होता, औद्योगिक देशों के साथ 12 विकासशील देशों का एक वर्ग बडे भाग के लिये उत्तरदायी होता है । इसके विपरीत विकासशील देशों की बडी संख्या महत्वपूर्ण विकास विस्तार का अनुभव नहीं करता । वास्तव में बहुत कम अल्पविकसित देशों का (LDCs) एक वर्ग जिसमें अधिकतर देश सब-साहारन अफ्रीका में है, ने व्यापार उदारीकरण के उपायों को अपनाने के बावजूद विश्व बाजार में अपने भाग में आनुपातिक अवनति का अनुभव किया ।”

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तथापि माल और सेवाओं के क्षेत्र में भारत का निष्पादन तुलनात्मक रूप में बेहतर था जो कि तालिका 15.1 में दर्शाया गया है ।

तालिका 15.1 इस बात की साक्षी है कि भारत द्वारा वस्तुओं और सेवाओं का निर्यात वर्ष 1990 में $22.58 बिलियन से बढ़ कर 2003 में $93.7 बिलियन तक पहुंच गया । यह औसत वार्षिक वृद्धि दर को 11.6 प्रतिशत दर्शाता है ।

फलतः विश्व के वस्तुओं और सेवाओं के निर्यात में भारत का भाग जो 1990 में 0.53 प्रतिशत था 2003 में 1.0 प्रतिशत हो गया परन्तु चीन के प्रकरण में, इस का भाग 1990 में 1.6 प्रतिशत से सुधर कर 2003 में 5.78 प्रतिशत हो गया तथा मैक्सिको का 1.16 प्रतिशत से 2.18 प्रतिशत । इस समय के दौरान भारत से वस्तुओं और सेवाओं का वार्षिक औसत निर्यात 11.6 प्रतिशत बढ़ा ।

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चीन का 11.6 प्रतिशत और मैक्सिको का 10.6 प्रतिशत । इसमें कोई सन्देह नहीं कि वैश्वीकरण के परिणामस्वरूप भारत को विश्व के वस्तुओं और सेवाओं के निर्यात में 1 प्रतिशत का सुधार हुआ है, परन्तु इसके आकार को ध्यान में रखते हुये लाभ दक्षिणी कोरिया, मैक्सिको और चीन से बहुत कम है ।

2. आयातों का निर्यातों से बेहतर निष्पादन (Better Performance of Imports than Exports):

उदारीकरण वैश्वीकरण की रणनीति के कारण, भारत विदेशी बाजारों का अधिक दक्षतापूर्वक अनुमान लगाने में सफल है । यह तथ्य तालिका 15.2 से स्पष्ट है । इस तालिका अनुसार 1991-92 में निर्यात जी.डी.पी. का प्रतिशत थे । आयात 2005-06 में जी.डी.पी. के 13.0 प्रतिशत और 2012-13 में जी.डी.पी. के 19.4 प्रतिशत थे ।

1990-91 में 8.8% GDP बढ्‌कर 2000-01 में 12.6% हो गई । उसके बाद यह 2012-13 में 31.8% तक निर्यात की तुलना में आयात बढ़ा । यह विश्लेषण इस तथ्य को दर्शाता है कि विदेशी हमारी में अधिक कुशलतापूर्वक भारतीय बाजार में घुसने में सफल हुये हैं ।

एक परिणाम के रूप में व्यापार का सन्तुलन 1990-1991 से 2000-01 के दौरान -3.0 प्रतिशत से -2.7 प्रतिशत के बीच रहा । यद्यपि । शुद्ध परोक्ष सन्तुलन के सम्बन्ध में यह 1990-91 में बाजार मूल्य पर GDP का -0.1 प्रतिशत था । वर्ष 2000-01 तक जी.डी.पी. के 2.1 प्रतिशत तक बढ़ गया ।

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यद्यपि, आने वाले वर्षों में स्थिति पुन: बिगड गई जब वर्ष 2005-06 में यह जी. डी.पी. के 5.2 प्रतिशत तक पहुँच गया तथा 2010-11 में जी.डी.पी. के 11.9 प्रतिशत तक । चालू खाते के प्रकरण में यह 2000-01 में 0.6 प्रतिशत था । वर्ष 2012-13 में यह -5.6 से रहा । बाहरी ऋण के सम्बन्ध में स्थिति में उतार-चढ़ाव पूरा समय बना रहा ।

यह 1990-91 जी.डी.पी. का 28.7 प्रतिशत था जो 2000-01 में जी.डी.पी. के 22.4 प्रतिशत तक गिर गया । यह पुन: 2005-06 में 17.2 प्रतिशत तक घट गया परन्तु 2012-13 में जी.डी.पी. के 28.5 प्रतिशत तक बढ़ गया ।

3. एफ.डी.आई. अन्तर्वाह और बहिर्वाह (FDI Inflows and Outflows):

भारत सरकार ने एफ. डी. आई. अन्तर्वाह को भारत में आकर्षित करने के लिये कदम उठाये हैं परन्तु कुछ भारतीय फर्में अन्य देशों में निवेश परियोजनाएं आरम्भ कर रही है । इसके परिणामस्वरूप एफ.डी.आई. का बाहिर्वाह हुआ है । इसलिये, शुद्ध एफ.डी.आई. अन्तर्वाह = एफ.डी.आई. अन्तर्वाह एफ.डी.आई. बाहिर्वाह ।

तालिका 15.5 भारत और चीन के 1992 से 2003 तक एफ.डी.आई. अन्तर्वाहों और बाहिर्वाहों की ‘वर्ल्ड इन्वैस्टमैन्ट रिपोर्ट 2004’ के अनुसार सूचना देती है । वर्ष 1992-97 के दौरान भारत से एफ.डी.आई. व बाहिर्वाह एफ.डी.आई. अन्तर्वाह का बहुत छोटा अंश थे । तथापि, वर्ष 2000 से एफ.डी.आई बाहिर्वाहों में वृद्धि हुई है ।

बाहिर्वाह वर्ष 2008-09 में FOI अन्तर्वाह $41.76 ओर बाहिर्वाहि $19.376 था । इसके पश्चात् पुनः एफ.डी.आई. बाहिर्वाहों की गति धीमी थी ।

चीन के सम्बन्ध में स्थिति बहुत भिन्न है । वर्ष 2001 के पश्चात् जब FDI बाहिर्वाह $ 6.88 बिलियन (FDI अन्तर्वाह का 14.7%) था, चीन ने बाहिर्वाह को भारत से सापेक्षतया नीचे स्तर पर रखा । विस्तृत FDI बाहिर्वाहों के परिणामस्वरूप, वर्ष 2000 के पश्चात् शुद्ध FDI अन्तर्वाहों में पर्याप्त कमी थी ।

यह शुद्ध FDI अन्तर्वाहों के कारण हुआ जिन्होंने भारतीय अर्थव्यवस्था के विदेश एवं उत्पादकता दर को बढ़ा दिया । FDI बाहिर्वाहों के कारण $ 10 बिलियन FDI अन्तर्वाह लक्ष्य और भी कठिन हो गया ।

तालिका वर्ष 2000-2014 अवधि के दौरान भारत में सैक्टर के क्रम में FDI इक्विटी अन्तर्वाह की तस्वीर को दिखाती है । सेवा क्षेत्र जैसे बैंकिंग, बीमा आदि मुख्य प्राथमिक क्षेत्र का लगभग $40.3 b, Construction ($ 23.766) और कम्प्यूटर सॉफ्टवेयर और हार्डवेयर ($16.49 b) है । अन्य क्षेत्र जो निवेश के लिए प्राथमिकता को रखते हैं वे Pharmaceuticals, Automobiles, Chemicals, Power, Metallurgy और Hotel और Tourism है ।

4. एफ.डी.आई. अन्तर्वाहों में भारत का भाग (India’s Share in FDI Inflows):

तालिका 15.5 FDI अन्तर्वाहों में भारत के भाग की स्थिति का वर्णन करती है । इस तालिका से देखा जा सकता है कि शीर्ष FDI आकर्षित करने वाले देश USA, UK, हांगकांग और फ्रांस है । चीन की 12वीं स्थिति है और भारत FDI अन्तर्वाह के सम्बन्ध में 35वीं संख्या पर है । भारत में कुल अन्तर्वाह विश्व विकास रिपोर्ट के अनुसार 2010 में 76299 मिलियन US $ था जिसमें कुल FDI पूरे विश्व के लिए 16360 बिलियन US $ था । यह कुल FDI का लगभग 1.6% था ।

FDI नियमों का हाल ही में हुआ उदारीकरण (Recent Liberalization of FDI Norms):

विदेशी प्रत्यक्ष निवेश विदेशी पोर्टफोलियो निवेशों को अधिमान देता है क्योंकि FDI का आधुनिक तकनीक और प्रबन्धकीय प्रणालियों को लाने का अनुमान है और यह निवेश प्रकृति में दीर्घ काल की होती है । सरकार की उदारीकृत FDI नियम है । जिसके परिणामस्वरूप केवल संवेदनशील क्षेत्र अब प्रतिबंधित क्षेत्र में गिरते हैं ।

FDI की अनुमति पूर्ण या आशिक रूप से शेष क्षेत्रों में दी जाती है । FDI शासन के उदारीकरण की सफल प्रगति के बावजूद, भारत का चौथा दर्जा है OECD द्वारा FDI प्रतिबंधित सूचक की पालना की जाती है । FDI देश के FDI नियमों के प्रतिबंधों को चार मुख्य प्रकार के प्रतिबन्धों की ओर देख कर मापती है जैसे विदेशी इक्विटी सीमाएँ निरीक्षण या मंजूरी क्रियावली, मुख्य कर्मचारी के रूप में विदेशियों के रोजगार पर प्रतिबन्ध और कार्यात्मक प्रतिबन्ध ।

1 का अंक एक बन्द अर्थव्यवस्था को दिखाता है और 0 खुलेपन को दिखाता है । 2012 में भारत के लिए गिरि FRI = 0.273 (यह 2006 में 0.450 और 2010 में 0.297 था) । OECD के 0.081 के विरूद्ध थी । चीन प्रमुख प्रतिबंधित देश है क्योंकि इसका 2012 में 0.407 के अंक के साथ पहला दर्जा है । जो दिखता है कि इसके भारत से ज्यादा प्रतिबन्ध हैं । वर्तमान राजस्व में भारत के लिए FDI अन्तर्वाह में आधुनिकीकरण पिछले साल के रू-ब-रू युक्तिसंगत FDI मानदण्डों के लिए अनिवार्य है ।

वर्तमान में, डिफैंस क्षेत्र 26% कैंप के अधीन FDI के लिए खुला है । इसे FIPB की मंजूरी होती है और यह औद्योगिक अधिनियम, 1951 के तहत और हथियार और गोला बारूद के उत्पादन में FDI पर दिशा-निर्देश और लाइसेंस के अधीन है । 26 कैंप के भीतर, FII भी प्रावधान के अधीन मंजूरी योग्य है जिसमें समग्र CAP का उल्लंघन नहीं किया जाता ।

भारत को तकनीक का स्थानांतरण निश्चित करने और डिफैंस उत्पादन क्षेत्र को उपयोग प्राप्त के लिए खोलने की जरूरत है । डिफैंस क्षेत्र के लिए मौजूदा FDI पॉलिसी ऑफसैट पॉलिसी को प्रदान करती है ।

ऑफसैट पॉलिसी की हाल ही में समीक्षा की गई है परन्तु इसके प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष लाभों का घरेलू डिफैंस उद्योग पर सादृश्य प्रभाव नहीं होता । इसका डिफैंस उत्पादन क्षेत्र में 26% की FDI सीमा में बढ़ौतरी के लिए मजबूत मामला है । डिफैंस वस्तुओं के उत्पादन की शुरूआत द्वारा अग्रिम देश वर्तमान में उत्पादन करते हैं ।

इसका उत्पादकता सुधार, निर्यात की मजबूती, रोजगार की जनरेशन और देश में आयातों की कमी का क्षेत्र होता है । इसमें सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों और बीमा में 26% की वृद्धि की समीक्षा करने की जरूरत होती हे । बीमा क्षेत्र में 49% तक कैंप को बढ़ा कर, आने वाले सालों में पर्याप्त वृद्धि का क्षेत्र होता है । प्रतियोगिता और अच्छी प्रणालियों को अपना कर क्षेत्र को मजबूत किया जा सकता है, प्रीमियम को घटाया और ग्रामीण भारत में सेवाओं को बढ़ाया जा सकता है ।

यह क्षेत्र बुनियादी ढांचे में दीर्घ-काल निवेश के मुख्य स्त्रोतों में से एक हो सकता है । इसी तरह, सार्वजनिक क्षेत्र बैंकों में FDI क्षेत्र से 26% तक बढ़ाया जा सकता है । आगे इसमें विदेशी निवेश को आकर्षित करने के लिए अन्य क्षेत्रों में कार्यात्मक प्रतिबंधों और शर्तों, मौजूदा मंजूर क्रियावलियों की समीक्षा करने की भी जरूरत होती है ।

FDI निवेश का प्रयोग, प्रतियोगी लाभ को उठाने में, ज्यादा विशेष सस्ते श्रम और कच्ची सामग्री को विकासशील देशों के लिए उत्पादन प्रक्रिया को स्थानांतरित करने के लिए किया जाता है । ILO रिपोर्ट (2004) बताती है कि बहुर्राष्ट्रीय कम्पनियां FDI के अन्तर्वाह के लिए अपनी आर्थिक शक्ति का प्रयोग करती हैं ।

इसके अतिरिक्त FDI अन्तर्वाह Pro-Globalisation Lobby द्वारा सलाह दिया विकास उन्मुख नहीं है । अन्तर्वाह के बड़े हिस्से का प्रयोग विकासशील देशों के तुलनीय लागत लाभ को नष्ट करने के लिए किया जाता है ।

उदाहरण के लिए, 65,000 बहुराष्ट्रीय कम्पनियां, लगभग 8,50,000 सहायक कम्पनियों के साथ वैश्विक उत्पादन प्रणालियों पर अपने अधिकार के मजबूत करती है । बहुराष्ट्रीय कम्पनियां समय पर डिलीवरी पर जोर देती हैं और विकासशील देशों में स्थापित उत्पादन प्रतिक्रियाओं से अपने लाभो को बढ़ाती हैं ।

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