उच्च न्यायालय एवं अधीनस्थ न्यायालय । High Court and Subordinate Courts in Hindi Language!

राज्य न्यायपालिका :

(i) राज्य की न्यायपालिका राज्यों के उच्च न्यायालय और उसके अधीनस्थ न्यायालयों से मिलकर गठित होती है ।

(ii) संविधान के अनुच्छेद 214 के अनुसार प्रत्येक राज्य के लिए एक उच्च न्यायालय का अधिकार क्षेत्र दो या दो से अधिक राज्यों या संघीय क्षेत्रों तक विस्तृत हो सकता है ।

(iii) संविधान के वे संशोधन द्वारा उत्तर-पूर्वी राज्यों का जो पुनर्गठन किया गया है और उत्तर-पूर्व क्षेत्रीय परिषद् की जो स्थापना की गयी उसके अन्तर्गत असम, नागालैण्ड, मणिपुर, त्रिपुरा, मेघालय, अरूणाचल प्रदेश और मिजोरम प्रदेश के लिए एक ही उच्च न्यायालय ‘गुवाहाटी उच्च न्यायालय’ की व्यवस्था की गयी है ।

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(iv) राज्यों में उच्च न्यायालयों की स्थापना या उसे सम्बन्धित व्यवस्था में परिवर्तन का अधिकार संसद को प्राप्त है । ।

(v) प्रत्येक उच्च न्यायालय में एक मुख्य न्यायाधीश व कुछ अन्य न्यायाधीश होंगे जिनकी संख्या निश्चित करने का अधिकार राष्ट्रपति को है ।

(vi) मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति भारत के राष्ट्रपति, भारत के मुख्य न्यायाधीश और उस राज्य के राज्यपाल के परामर्श से करेंगे तथा अन्य न्यायाधीशों की नियुक्ति से सम्बन्धित राज्य के मुख्य न्यायाधीश का परामर्श भी लेना होगा ।

(vii) भारत के मुख्य न्यायाधीश उच्च न्यायालय में न्यायाधीशों की नियुक्ति एवं स्थानान्तरण के सम्बन्ध में ‘सर्वोच्च न्यायालय के चार वरिष्ठतम न्यायाधीशों के समूह’ की राय के आधार पर राष्ट्रपति को परामर्श देंगे ।

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उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के पद के लिए निम्नलिखित योग्यताएं आवश्यक हैं :

(1) वह भारत का नागरिक हो ।

(2) वह कम-से-कम दस वर्ष तक भारत के किसी क्षेत्र में न्याय-सम्बन्धी पद पर कार्य कर चुका हो अथवा एक या अधिक उच्च न्यायालय का लगातार 10 वर्ष तक अधिवक्ता रह चुका हो ।

(i) संविधान के अनुच्छेद 221 के अनुसार उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को ऐसे वेतन दिये जायेंगे जो ससद विधि द्वारा निर्धारित करे ।

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(ii) वे वेतन और भत्ते राज्य की संचित निधि से दिये जाते हैं और न्यायाधीशों की नियुक्ति के बाद उनके वेतन तथा भत्तों में कोई अलाभकारी परिवर्तन नहीं किया जा सकता है, किन्तु अनुच्छेद 260 (4) (ख) के तहत वेतन भत्तों में कमी की जा सकती है ।

(iii) 1998 में, उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के वेतन में आवश्यक सुधार किया गया है । अब उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को 30 हजार रुपये प्रति माह तथा अन्य न्यायाधीश को 26 हजार रुपये प्रति माह वेतन प्राप्त होता है ।

(iv) इसके अतिरिक्त न्यायाधीशों को निवास स्थान मासिक भत्ता यात्रा भत्ता मनोरंजन भत्ता स्टॉफ कार सीमित मात्रा में पेट्रोल तथा कुछ आवश्यक सुविधाएं प्राप्त होती है ।

(v) न्यायाधीशों के लिए पेंशन व सेवानिवृत्ति वेतन ग्रेष्णुटी की व्यवस्था सर्वप्रथम 1976 में की गयी थी और 1998 में उनकी पेंशन सेवानिवृत्ति वेतन व अन्य सेवा शर्तों में आवश्यक सुधार किये गये ।

(vi) उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों का कार्यकाल 62 वर्ष की आयु तक निश्चित किया गया है, पर इससे पूर्व वह स्वयं त्याग-पत्र दे सकता है ।

(vii) राष्ट्रपति को यह भी अधिकार प्राप्त है कि वह उच्च न्यायालय के किसी न्यायाधीश का किसी अन्य उच्च न्यायालय में स्थानान्तरण कर सकता है ।

(viii) संविधान के अनुच्छेद 220 के अनुसार उच्च न्यायालय का कोई स्थायी न्यायाधीश सेवानिवृत्ति के बाद उसी उच्च न्यायालय में या किसी अधीनस्थ न्यायालय में वकालत नहीं कर सकता है ।

(ix) वह अन्य उच्च न्यायालयों या सर्वोच्च न्यायालय में वकालत कर सकता है ।

उच्च न्यायालय की शक्तियां तथा अधिकार क्षेत्र:

भारतीय संघ के प्रत्येक उच्च न्यायालय को दो प्रकार की शक्तियां प्राप्त हैं:

(1) न्याय-सम्बन्धी और (2) प्रशासन-सम्बन्धी ।

-इसके अतिरिक्त उच्च न्यायालय अभिलेख न्यायालय के रूप में भी कार्य करता है । उच्च न्यायालय के अधिकार क्षेत्र को और आगे दो भागों में बांटा जा सकता है: प्रारम्भिक अधिकार क्षेत्र तथा अपीलीय अधिकार क्षेत्र ।

प्रारम्भिक अधिकार क्षेत्र:

(i) मौलिक अधिकारों के रक्षण से सम्बन्धित विवाद प्रारम्भ में उच्च न्यायालय में ही प्रस्तुत किये जाते हैं; क्योंकि उनकी सुनवाई का अधिकार राज्य के अन्य किसी न्यायालय को प्राप्त नहीं है ।

(ii) मौलिक अधिकारों की रक्षा हेतु उच्च न्यायालय के द्वारा विभिन्न प्रकार के लेख जारी किये जा सकते हैं । ये लेख हैं-बन्दी प्रत्यक्षीकरण, परमादेश, प्रतिषेध अधिकार, पृच्छा और उत्प्रेषण ।

(iii) इसके अतिरिक्त प्रारम्भिक क्षेत्राधिकार के अन्तर्गत उच्च न्यायालय को वसीयत विवाह विच्छेद विधि कम्पनी कानून तथा उच्च न्यायालय का अवमान आदि से सम्बन्धित मुकदमे सुनने का अधिकार है ।

(iv) भारतीय संघ के उच्च न्यायालयों में कोलकता, मुम्बई और चैन्नई उच्च न्यायालयों को अन्य उच्च न्यायालयों की अपेक्षा अधिक अधिकार क्षेत्र प्राप्त हैं ।

(v) संविधान लाग होने से पूर्व इन तीनों महानगरों में प्रेसीडेंसी कोर्ट्स थे । इन तीन नगरों में प्रेसोडेंसी कोर्ट्स का दीवानी और फौजदारी अधिकार क्षेत्र इन महानगरों में स्थित उच्च न्यायालयों को दिया गया था लेकिन अब उच्च न्यायिक समिति की सिफारिश के आधार पर दीवानी विवादों की सुनवाई का अधिकार क्षेत्र धीरे-धीरे अधीनस्थ न्यायालयों को हस्तान्तरित किया जा रहा है ।

अपीलीय क्षेत्राधिकार:

(i) उच्च न्यायालय अपने अधीन न्यायालयों के निर्णयों की अपीलें सुनता है, जिसमें दीवानी फौजदारी और राजस्व सम्बन्धी सभी प्रकार के अभियोग सम्मिलित हैं ।

(ii) फौजदारी मुकदमों में संघ न्यायालय द्वारा दिये गये मृत्यु दण्ड के आदेश पर उच्च न्याचालय की पुष्टि आवश्यक है ।

(iii) इसके अतिरिक्त उच्च न्यायालय के ही एक न्यायाधीश के एक निर्णय के विरुद्ध उच्च नयायालय में पुन: अपील की जा सकती है ।

(iv) संविधान लागू होने के समय उच्च न्यायालय को राजस्व सम्बन्धी मुकदमों की अपील सुनने का अधिकार नहीं था परन्तु अब उच्च न्यायालय को राजस्व सम्बन्धी सभी प्रकार के मुकदमों की भी अपील सुनने का अधिकार है ।

(v) ये अपीलें ‘राजस्व मण्डल’ के निर्णयों के विरुद्ध होती है ।

(vi) मूल संविधान के अनुच्छेद 226 के द्वारा उच्च न्यायालयों को मौलिक अधिकारों को लागू करने तथा अन्य उद्देश्यों की पूर्ति के लिए लेख, आदेश तथा निदेश जारी करने का अधिकार प्रदान किया गया है ।

(vii) न्यायिक पुनर्विलोकन की शक्ति का आशय है-केन्द्रीय या राज्य के कानून की संविधान के विरुद्ध पाये जाने पर उन्हें अवैध घोषित करना ।  संविधान के द्वारा उच्च न्यायालयों को न्यायिक पुनर्विलोकन की यह शक्ति प्रदान की गया है और उच्च न्यायालयों को अधिकार है कि वह किसी भी ऐसे संवैधानिक संशोधन केन्द्रीय कानून या राज्य कानून को अवैधानिक घोषित कर दें, जो संविधान के प्रावधानों के विपरीत हो ।

(viii) उच्च न्यायालय अभिलेख न्यायालय भी है, जिसका तात्पर्य यह है कि इसकी कार्रवाई तथा निर्णय प्रकाशित किये जाते हैं और साक्षी रूप में अधीनस्थ न्यायालयों में मान्य होते हैं । इसके अतिरिक्त इसे अपने अपमान के लिए  दण्ड देने का भी अधिकार प्राप्त है ।

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