भारत के शीर्ष आठ उद्योग | Top 8 Industries of India. Read this article in Hindi to learn about the top eight industries of India. The industries are: 1. Cottage Industry 2. Aluminium Industry 3. Railway Equipment 4. Ship Building Industry 5. Aircraft Manufacturing 6. Automobile Industry 7. Pharmaceutical Industry 8. Electronic and Computer Industry.
1. कुटीर उद्योग (Cottage Industry):
यह भारत का परंपरागत उद्योग है । सामान्यतः इसमें 5 लाख से कम की राशि लगती है एवं 10 से कम श्रमिक लगे होते हैं । सामुदायिक विकास कार्यक्रम, गरीबी निवारण कार्यक्रम एवं समेकित ग्रामीण विकास कार्यक्रम (I.R.D.P.) से यह सम्बद्ध है । 60 लाख से भी अधिक लोग इन उद्योगों से रोजगार प्राप्त करते हैं ।
यह उद्योग प. मध्यवर्ती भारत अर्थात् गुजरात, पंजाब व हरियाणा, राजस्थान में विशेष रूप से विकसित है ।
गुजरात में दुग्ध आधारित उद्योग, हैण्डलूम व पॉवरलूम उद्योग, तिलहन उद्योग, खाद्य प्रसंस्करण; राजस्थान में पत्थरों की कटाई, कशीदाकारी, हस्तशिल्प उद्योग तथा उत्तर प्रदेश में हैण्डलूम व पॉवरलूम, दुग्ध उत्पादन (मुख्यतः पश्चिमी उत्तर प्रदेश) गुड़ व खांडसारी (मुख्यतः तराई प्रदेश) उद्योग का विकास हुआ है ।
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महानगरों के बाह्य प्रदेश में खाद्य-प्रसंस्करण, डेयरी उद्योग तथा हैण्डलूम व पॉवरलूम उद्योग विकसित हुए है । उत्तर पूर्वी भारत व हिमालय प्रदेश में इस उद्योग का सीमित विकास हुआ, जिसका मूल कारण यहाँ संरचनात्मक सुविधाओं के अभाव का होना है ।
महानगरों व पश्चिमोत्तर भारत के राज्यों में बाजार पूंजी निवेश एवं संरचनात्मक सुविधाओं की उपलब्धता इन उद्योगों के विकास हेतु उत्तरदायी कारक रहे हैं ।
a. बहरामपुर (कोलकाता) में रेशम संबंधी अनुसंधान के लिए ‘केन्द्रीय रेशम उद्योग अनुसंधान संस्थान’ की स्थापना की गई है । भारत में मलबरी, तसर, दूंगा तथा एरी रेशम की प्रमुख किस्मों का उत्पादन होता है ।
b. उत्तर प्रदेश देश के 50% से अधिक गुड़ व खांडसारी का उत्पादन करता है ।
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कुटीर उद्योगों के विकास के लिए केन्द्र सरकार द्वारा स्थापित प्रमुख संस्था निम्न हैं:
i. कुटीर उद्योग बोर्ड – 1948
ii. केन्द्रीय सिल्क बोर्ड – 1949
iii. अखिल भारतीय हथकरघा बोर्ड – 1950
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iv. अखिल भारतीय हस्तकला बोर्ड – 1953
v. अखिल भारतीय खादी एवं ग्रामोद्योग बोर्ड – 1954
vi. लघु उद्योग बोर्ड – 1954
vii. केन्द्रीय विक्रय संगठन – 1958 (मुख्यालय-चेन्नई)
2. एल्युमिनियम उद्योग (Aluminium Industry):
यह भी एक भारह्रासी उद्योग है । सामान्यतः 1 टन एल्युमिनियम के उत्पादन के लिए 5 टन बॉक्साइट, 0.5 टन चूना पत्थर, 0.3 टन कॉस्टिक सोडा एवं 20-24 हजार किलोवाट विद्युत की आवश्यकता है । इस प्रकार इस उद्योग के स्थानीकरण पर बॉक्साइट व विद्युत का प्रभाव सर्वप्रमुख है ।
भारत का पहला एल्यूमिनियम कारखाना 1937 ई. में पश्चिम बंगाल के जे.के. नगर (आसनसोल) में स्थापित किया गया था जो कि मुख्य रूप से कोयला क्षेत्र था । 1938 ई. में बॉक्साइट के खनन क्षेत्र में झारखंड के मुरी नामक स्थान पर दूसरा उद्योग स्थापित किया गया ।
एल्युमिनियम का तीसरा कारखाना हिन्दुस्तान एल्युमिनियम कार्पोरेशन (हिण्डाल्को) उत्तर प्रदेश के रेनूकूट नामक स्थान पर लगाया गया । चौथा कारखाना तमिलनाडु के मैटूर नामक स्थान पर ‘मद्रास एल्युमिनियम कम्पनी’ द्वारा खोला गया था ।
27 नवम्बर, 1965 को सार्वजनिक क्षेत्र से पहले एल्युमिनियम उत्पाद उपक्रम के रूप में भारत एल्युमिनियम कंपनी लिमिटेड (बाल्को) को निगमित किया गया । 7 जनवरी, 1981 को नेशनल एल्युमिनियम कंपनी लिमिटेड (नाल्को) को एल्युमिना व एल्युमिनियम के उत्पादन के उद्देश्य से निगमित किया गया ।
वर्तमान समय में भारत की प्रमुख एल्युमिनियम कंपनी व उनकी शाखाएँ निम्न हैं (Currently, India’s Leading Aluminum Company and Their Branches):
i. भारत हैवी इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड (BHEL – Bharat Heavy Electricals Limited):
देश में ऊर्जा उपकरणों का निर्माण करने वाली सार्वजनिक क्षेत्र की इस संस्था की इकाइयाँ-हरिद्वार, भोपाल, त्रिची, हैदराबाद, रानीपेट, बंगलुरु एवं जगदीशपुर में हैं । इसके अतिरिक्त रूपनारायणपुर (कोलकाता) में हिन्दुस्तान केबल्स फैक्ट्री, कोलकाता में नेशनल इंस्ट्रुमेंट्स फैक्ट्री तथा बंगलुरु व नैनी में भारतीय टेलीफोन उद्योग के कारखाने हैं ।
ii. इंजीनियरिंग उद्योग (Engineering Industry):
इसके सामान्यतः दो उप-विभाग हैं- भारी मशीन का इंजीनियरिंग उद्योग और हल्की मशीनों का इंजीनियरिंग उद्योग ।
भारी मशीनों का निर्माण करनेवाली प्रमुख इकाइयाँ निम्न हैं:
i. भारी इंजीनियरिंग निगम लि., राँची (1958 ई.)
ii. खनन एवं संबद्ध मशीनरी निगम लि., दुर्गापुर (1965 ई.)
iii. भारत हैवी प्लेट्स एंड वैसेल्स लि. विशाखापत्तनम (1966 ई.)
iv. त्रिवेणी स्ट्रक्चरल्स लि., नैनी (इलाहाबाद)
v. तुंगभद्रा स्टील प्रोडक्ट्स लि. (कर्नाटक तथा आंध्र प्रदेश का संयुक्त उपक्रम)
vi. नेशनल इंस्ट्रुमेंट्स लि., जादवपुर (कोलकाता)
vii. हिन्दुस्तान मशीन टूल्स लि. (H.M.T.) बंगलौर- इसकी स्थापना स्विट्जरलैंड की कम्पनी के सहयोग से 1963 ई. में की गई । इसके अधीन 5 कारखाने कार्यरत हैं जो कि बंगलुरू, पिंजौर (हरियाणा), कालामसेरी (केरल), श्रीनगर और हैदराबाद में स्थित हैं ।
3. रेलवे उपकरण (Railway Equipment):
भारतीय रेलवे अपने उपकरणों आदि के निर्माण में पूरी तरह आत्मनिर्भर है । रेलवे उपकरण से संबंधित पहली कम्पनी झारखंड के सिंहभूम जिले में ‘पेनिसुलर लोकोमोटिव कम्पनी’ 1921 ई. में स्थापित की गई थी । बाद में इसका नाम ‘टाटा इंजीनियरिंग एंड लोकोमोटिव कम्पनी’ (टेल्को) रखा गया ।
चितरंजन लोकोमोटिव वर्क्स में विद्युत चालित इंजन, महुआडीह (वाराणसी) के ‘डीजल लोकोमोटिव वर्क्स’ में डीजल इंजन तथा टेल्को में मीटर गेज के इंजन बनाए जाते हैं ।
तमिलनाडु में मद्रास के पास पेराम्बूर में सवारी गाड़ी के डिब्बे बनाए जाते हैं । भारत अर्थ मूवर्स लि. (बंगलोर) जेस्सप एंड कंपनी लिमिटेड (कोलकाता) तथा रेलवे कोच फैक्ट्री, कपूरथला (पंजाब) आदि कंपनियाँ भी रेल के डिब्बे बनाती है ।
रायबरेली (उत्तर प्रदेश) व कंचरापाड़ा (पश्चिम बंगाल) में रेलवे कोच फैक्ट्री की नई उत्पादन इकाई लगायी गई है । केरल के पालाकाड में भी रेल कोच फैक्ट्री लगाई जा रही है । बिहार के मढ़ौरा (सारण) में डीजल इंजन व मधेपुरा में विद्युत इंजन कारखाना लगाया जा रहा है ।
छपरा में रेल व्हील फैक्ट्री स्थापित की जा रही है । पश्चिम बंगाल के दनकुनी में विद्युत व डीजल इंजनों के अवयव बनाने वाली दो फैक्ट्रियाँ लगाई जा रही है । आईआईटी रुड़की में देश के पहले रेलवे इंजन थामसन को संरक्षित किया गया है ।
4. जलयान निर्माण उद्योग (Ship Building Industry):
भारत में जलयान निर्माण के 27 उद्योग है, इनमें से 8 सार्वजनिक क्षेत्र तथा 19 निजी क्षेत्र के है । भारत में जलयान का पहला कारखाना 1941 ई. में विशाखापत्तनम में स्थापित किया गया था, जिसे 1952 ई. में सरकार ने अधिग्रहित करके उसका नाम ‘हिन्दुस्तान शिपयार्ड’ रखा । ‘गार्डेनरीच शिपबिल्डर्स एंड इंजीनियरिंग लिमिटेड’ कोलकाता में है ।
इसके अलावा गोवा, मुम्बई तथा कोच्चि भारत के प्रमुख जलयान निर्माण केन्द्र हैं । ये सभी सार्वजनिक क्षेत्र में हैं । जापानी सहायता से विकसित कोचीन का पोत निर्माण प्रांगन (शिपयार्ड) देश का नवीनतम तथा सबसे बड़ा पोत प्रतान है । यहाँ 40 हजार टन विस्थापन क्षमता वाला देश का अपना पहला विमानवाहक युद्धपोत ‘कील लेइंग’ बनाया गया है ।
मंझगाँव पोत प्रांगन (मुम्बई) में भारतीय नौसेना के लिए युद्ध पोतों का निर्माण होता है । राष्ट्रीय समुद्रीय विकास कार्यक्रम के तहत दो अंतर्राष्ट्रीय आकार के शिपयार्डों के निर्माण का निर्णय लिया गया है । इसके अंतगर्त पूर्वी तट हेतु ‘एन्नौर पोर्ट लिमिटेड’ एवं पश्चिमी तट हेतु ‘मुंबई पोर्ट ट्रस्ट’ को नोडल एजेंसी बनाया गया है ।
5. वायुयान निर्माण (Aircraft Manufacturing):
देश में वायुयान निर्माण का पहला कारखाना 1940 ई. में बंगलोर में ‘हिन्दुस्तान एयरक्राफ्ट कम्पनी’ के नाम से स्थापित किया गया जो आज ‘हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लि. (H.A.L.)’ के नाम से जाना जाता है । रक्षा उपकरणों में आत्मनिर्भरता की दृष्टि से बंगलोर, कोरापुट, नासिक, हैदराबाद, कोरबा, बैरकपुर, कानपुर तथा लखनऊ में वायुयान उद्योग की स्थापना की गई ।
6. मोटरगाड़ी उद्योग (Automobile Industry):
वर्तमान में देश में सभी प्रकार के छोटे-बड़े वाहनों का निर्माण होता है । यह एक एसेम्बलिंग उद्योग है, अतः कच्चे माल के क्षेत्र में इसकी अवस्थिति अनिवार्य नहीं है । मांग अधिक होने के कारण सामान्यतः महानगरीय क्षेत्रों में इसका सर्वाधिक विकास मिलता है ।
उदारीकरण के पश्चात् दक्षिण कोरियाई, जापानी, फ्रांसीसी, ब्रिटिश व अमेरिकी कम्पनियों द्वारा भारत में इस उद्योग के विकास हेतु अभिरुचि दिखाई गई है । हुंडई और देबू जैसे कम्पनियों ने भारत में भी अपनी औद्योगिक इकाई प्रारंभ की । वस्तुतः मोटर-उद्योग निर्माण व एकत्रीकरण दोनों तरीकों का मिश्रण है ।
विश्व के किसी एक मोटर कारखानें में सभी कलपुर्जे नहीं बनाए जाते, अतः भारत को भी मोटरगाड़ियों के सभी कल-पुर्जो को बनाने की आवश्यकता नहीं है । आयात द्वारा भी कुछ आवश्यकताओं की पूर्ति की जा सकती है । उदारीकरण के बाद इस उद्योग में अभूतपूर्व विकास की प्रवृत्ति रही है ।
इस उद्योग से संबंधित प्रमुख इकाइयाँ हैं:
i. हिन्दुस्तान मोटर्स (कोलकाता),
ii. प्रीमियर ऑटोमोबाइल्स लिमिटेड (मुम्बई),
iii. अशोक लीलैंड (चेन्नई),
iv. टाटा मोटर्स (जमशेदपुर),
v. महिन्द्रा एण्ड महिन्द्रा लिमिटेड (पुणे),
vi. मारुति उद्योग लिमिटेड (गुड़गाँव) तथा
vii. सनराइज इंडस्ट्रीज (बंगलुरु) ।
दोपहिया वाहनों के निर्माण में भारत का विश्व में दूसरा स्थान, व्यवसायिक वाहन के निर्माण में पांचवाँ तथा कार निर्माण में एशिया में प्रथम स्थान है ।
7. फार्मास्युटिकल उद्योग (Pharmaceutical Industry):
यह एक हल्का उद्योग है । इसी कारण कच्चे माल या बाजार के स्थान पर कोल्ड स्टोरेज, एयरकंडीशनर, परिवहन व अन्य संरचनात्मक सुविधाओं की इस उद्योग की अवस्थिति में अधिक महत्वपूर्ण भूमिका है । ये सुविधाएँ महानगरीय क्षेत्रों में बेहतर ढंग से उपलब्ध हैं ।
इसके अलावा इनके उत्पादों की मांग भी यहाँ अधिक है, इसीलिए यहाँ इनका बेहतर विकास हुआ है । सन् 1970 के बाद पूंजी तकनीकी व बेहतर प्रबंधन की उपलब्धता के कारण इस उद्योग का त्वरित विकास हुआ है । वर्तमान समय में भारत अपने रासायनिक फॉर्मुलेशन की शत प्रतिशत व बल्क ड्रग की 70 प्रतिशत आवश्यकताओं की पूर्ति करने में सक्षम बन गया है ।
भारत पेनिसिलिन व स्ट्रेप्टोमाइसिन जैसी दवाओं की अंतर्राष्ट्रीय बाजार में आपूर्ति कर रहा है । दक्षिण एशिया, पश्चिम एशिया व अफ्रीका इसके प्रमुख बाजार हैं । सन् 1954 में ‘हिंदुस्तान एंटीबायोटिक्स लिमिटेड’ की स्थापना की गई, जिसके प्रमुख केन्द्र बंगलुरु, नागपुर व पिंपरी (पुणे) में हैं । सन् 1960 में ‘इंडियन ड्रग एंड फॉर्मास्युटिकल लिमिटेड’ (IDPL) की स्थापना की गई ।
ऋषिकेश, हैदराबाद, चेन्नई, गुड़गांव व मुजफ्फरपुर में इसकी प्रमुख इकाइयाँ हैं । उदारीकरण के बाद इस उद्योग में निजी कंपनियों की भागीदारी बढ़ी है । ‘रैनबैक्सी’ भारत की पहली बहुराष्ट्रीय फॉर्मास्युटिकल (औषधि) कंपनी है ।
यह शोध व अन्य विकास कार्य भी करती है । परंपरागत औषधि उद्योग के अंतर्गत डाबर, वैद्यनाथ, ऊंझा, हमदर्द, हिमालया जैसी कंपनियां निरंतर नए उत्पादों के दिशा में प्रयासरत हैं ।
8. इलेक्ट्रॉनिक व कम्प्यूटर उद्योग (Electronic and Computer Industry):
भारत ने इन उद्योगों के विकास की दिशा में आश्चर्यजनक प्रगति की है । हार्डवेयर की तुलना में सॉफ्टवेयर उद्योग का विकास और भी अधिक तीव्र गति से हुआ है तथा इनमें औसत वार्षिक वृद्धि दर लगभग 35% रही है ।
भारत के निर्यात में सॉफ्टवेयर उद्योग का एक बड़ा योगदान रहा है एवं इनके उत्पादों में हमारी अंतर्राष्ट्रीय ख्याति है । इसी कारण भारत सरकार मानव संसाधन के विकास पर विशेष बल दे रही है । अत्यधिक प्रतिस्पर्धी निजी क्षेत्र संबंधी उद्योग होने के कारण इनके विकास हेतु प्रगतिशील नीति की आवश्यकता है ।
‘सूचना एवं प्रौद्योगिकी नीति 2011’ में 2020 ई. तक वैश्विक IT शक्ति के रूप में भारत की स्थिति को सुदृढ़ करना तथा 1 करोड़ कुशल श्रम बल का विकास करने का लक्ष्य रखा गया है । सूचना प्रौद्योगिक एवं संबद्ध सेवाओं का कुल निर्यात 60 अरब डॉलर की है, जो इसके महत्व को दर्शाता है । वर्तमान समय में लगभग 25 लाख कुशल कर्मचारी इस उद्योग में कार्यरत हैं ।