भारत के शीर्ष छह उद्योग? Read this article in Hindi to learn about the top six industries of India. The industries are: 1. Cement Industry 2. Chemical Fertilizer Industry 3. Paper Industry 4. Cotton Textile Industry 5. Jute Industry 6. Sugar Industry.
1. सीमेंट उद्योग (Cement Industry):
यह देश के सर्वाधिक उन्नत उद्योगों में से है । देश में आधुनिक ढंग से सीमेंट बनाने का कारखाना वर्ष 1904 में चेन्नई में लगाया गया था । आवास निर्माण एवं देश के ढाँचागत क्षेत्र में इसकी महती भूमिका है । यह उद्योग मूलतः अधात्विक खनिजों पर आधारित है । चूना-पत्थर और कोयला इसके प्रमुख कच्चे माल हैं । यह एक भारह्रासी उद्योग है ।
एक टन सीमेंट उत्पादन के लिए 2.02 टन कच्चे माल की जरूरत होती है । जिसमें 1.6 टन चूना पत्थर है । इस प्रकार इस उद्योग की स्थानीकरण पर चूने-पत्थर का प्रभाव सबसे अधिक है ।
वर्तमान समय में समुद्री कवच, स्लज, स्लैग भी वैकल्पिक कच्चे माल के रूप में उभरे हैं । (समुद्री कवच के प्रभाव से द्वारिका (गुजरात), तिरुवनंतपुरम (केरल), चेन्नई (तमिलनाडु) में सीमेन्ट उद्योग स्थापित हुए हैं ।
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‘स्लज’ रासायनिक उर्वरक उद्योग के अवशिष्ट पदार्थ हैं जिसमें चूने का अंश होने के कारण इसके आधार पर सिंदरी (झारखंड), व तलचर (ओडिशा) में इस उद्योग का विकास हुआ है । ‘स्लैग’ लौह-इस्पात उद्योग के अवशिष्ट हैं । इनके आधार पर दुर्गापुर, चांडिल, भलाई, राउरकेला, भद्रावती जैसे केन्द्रों में यह उद्योग वेकसित हुआ है ।
सीमेंट उद्योग के सर्वाधिक कारखाने आंध्र प्रदेश में है । उसके बाद क्रमशः राजस्थान, गुजरात, तमिलनाडु, मध्य प्रदेश का स्थान आता है । वर्तमान समय में भारत सीमेंट उत्पादन में चीन के बाद विश्व में दूसरा स्थान रखता है तथा विश्वस्तरीय गुणवत्ता का सीमेंट उत्पादित करता है ।
2. रासायनिक उर्वरक उद्योग (Chemical Fertilizer Industry):
हरित क्रांति को प्रभावी बनाने में इस उद्योग का महत्त्वपूर्ण स्थान रहा है । भारत में इस उद्योग के विभिन्न कच्चे माल उपलब्ध है । परिणामस्वरूप आज वह इस उद्योग में विश्व का तीसरा सबसे बड़ा उत्पादक व उपभोक्ता है । भारत में मुख्यतः दो प्रकार के उर्वरक उत्पन्न किए जाते हैं ।
नाइट्रोजन आधारित उर्वरक व फास्फोरस आधारित उर्वरक । पोटाश आधारित उर्वरक का उत्पादन कच्चे माल की कमी के कारण अत्यधिक सीमित हैं । नाइट्रोजनी उर्वरक सुपर फास्फेट संयत्र का पहला कारखाना तमिलनाडु में ‘रानीपेट’ में 1906 ई. में लगाया गया था ।
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स्वतंत्रता के पश्चात् 1961 ई. में भारतीय उर्वरक निगम (फर्टिलाइजर कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया) के गठन के साथ ही इस उद्योग के विकास और विकेन्द्रीकरण की प्रवृत्ति प्रारंभ हुई । कच्चे माल की उपलब्धता के साथ-साथ भारतीय जलोढ़ मिट्टियों में नाइट्रोजन की कमी भी भारत में नाइट्रोजन आधारित उद्योग के विकास का मुख्य कारण रही है ।
नाइट्रोजन आधारित उर्वरक उद्योग में मुख्यतः पाँच प्रकार के कच्चे माल का उपयोग होता है:
i. नाप्था (Naptha):
यह पेट्रोलियम का उपोत्पाद है अतः देश के सभी तेल शोधनकेन्द्रों पर इस उद्योग का विकास हुआ है ।
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ii. कोयला (Coal):
इस पर आधारित प्रमुख कारखाने तलचर, कोरबा, सिंदरी, भिलाई व दुर्गापुर में है ।
iii. प्राकृतिक गैस (Natural Gas):
पाइप लाइन परिवहन के विकास के साथ ही प्राकृतिक गैस आधारित नाइट्रोजनी उर्वरक उद्योग भी स्थापित हुए हैं । HBJ पाइप लाइन के आधार पर छः कारखाने बीजापुर, सवाईमाधोपुर, अनोला, जगदीशपुर, डबराला व शाहजहाँपुर विकसित हुए हैं । आँवला कारखाना सहकारिता के अंतर्गत विकसित हुआ है ।
iv. सल्फ्यूरिक अम्ल (Sulphuric Acid):
सल्फ्यूरिक अम्ल पर आधारित कारखाने कोच्चि, खेतड़ी व अलवर में विकसित हुए हैं ।
v. इलेक्ट्रोलिटिक हाइड्रोजन (Electrolytic Hydrogen):
इसकी प्राप्ति जलविद्युत केन्द्रों से होती है । नांगल व हीराकुंड में इसी के आधार पर उर्वरक उद्योग का विकास हुआ है । फास्फोरस आधारित उद्योग की कमी का मुख्य कारण रॉकफॉस्फेट की भारत में अपर्याप्त उपलब्धता है । वर्तमान समय में इस उद्योग के लिए नौरू एवं मोरक्को से कच्चे माल का आयात किया जा रहा है ।
पारादीप में सार्वजनिक क्षेत्र का सबसे बड़ा फॉस्फेटी उर्वरक कारखाना है । विशाखापत्तनम, उद्योगमण्डल, चेन्नई, उदयपुर, रामागुण्डम व कोच्चि में भी इन उद्योगों का विकास हुआ है ।
3. कागज उद्योग (Paper Industry):
यह एक भारह्रासी उद्योग है । 1 टन कागज उत्पादन के लिए लगभग 22 टन कच्चे माल की जरूरत होती है । अतः इस उद्योग का स्थानीयकरण कच्चे माल के क्षेत्रों में ही हुआ है ।
कच्चे माल की 70% आवश्यकताओं की पूर्ति बाँस से, 15% सवाई घास से, 7% गन्ने की खोई से, 5% मुलायम लकड़ी से एवं 3% चावल, गेहूँ व मक्के की पुआल, रद्दी कागज, रद्दी कपड़े, यूकेलिप्टस व पोपनार के पौधे आदि से होती है ।
कागज का प्रथम आधुनिक कारखाना 1832 ई. में सीरामपुर में स्थापित किया गया था । इस समय कागज उत्पादन में सर्वाधिक योगदान आंध्र प्रदेश का है । वर्तमान समय में कागज उद्योग के सबसे अधिक कारखाने पश्चिम बंगाल में हैं, जहाँ टीटागढ़, नैहाटी, हावड़ा, बाँसबेरिया आदि प्रमुख केन्द्र है ।
आंध्र प्रदेश में कागज नगर, तिरूपति व राजामुन्द्री, महाराष्ट्र में मुम्बई व कल्याण, कर्नाटक में मैसूर व भद्रावती, मध्य प्रदेश में भोपाल, इंदौर और शहडोल, बिहार में डालमियानगर, हरियाणा में यमुनानगर आदि प्रमुख कागज उद्योग केन्द्र हैं । पुदुच्चेरी में हैंडीक्राफ्ट क्षेत्र में इस उद्योग का विकास हुआ हैं ।
अखबारी कागज बनाने के लिए नेपानगर (मध्य प्रदेश) का कारखाना विख्यात है । मैसूर (कर्नाटक), बेलपुर (केरल), बेलारपुर व सांगली (महाराष्ट्र) एवं दीमापुर (नागालैंड) में भी अखबारी कागज के उत्पादन केन्द्र हैं । कागज उद्योग की दृष्टि से भारत विश्व का सबसे तेज विकास वाला देश बन गया है ।
4. सूती वस्त्र उद्योग (Cotton Textile Industry):
यह भारत का सबसे बड़ा उद्योग है एवं रेलवे के बाद सबसे अधिक रोजगार यही उद्योग उपलब्ध कराता है । औद्योगिक उत्पादन, रोजगार के अवसर पैदा करने और विदेशी मुद्रा अर्जित करने में यह महती भूमिका निभा रहा है । इसमें 12 लाख श्रमिक संगठित क्षेत्रों में लगे हैं, जो भारत के औद्योगिक श्रमिकों का 18% है ।
इसके अलावा लगभग 67 लाख श्रमिक हैंडलूम व पावरलूम उद्योगों में भी लगे हैं । कपास, धागा व वस्त्र उत्पादन में यह साढ़े तीन करोड़ लोगों को प्रत्यक्ष रोजगार प्रदान करता है । औद्योगिक उत्पादन में इसका योगदान 14% है । देश के सकल घरेलू उत्पाद (जी.डी.पी.) में यह उद्योग 4% एवं विदेशी आय (निर्यात) में 13.5% योगदान देता है ।
चूँकि यह भारह्रासी उद्योग नहीं है, अतः यह देश के उन उद्योगों में से है, जिसका सर्वाधिक विकेन्द्रीकरण हुआ है । इस उद्योग की स्थापना का पहला प्रयास 1818 ई. में फोर्ट ग्लोस्टर में किया गया जो कि असफल रहा था । इसका पहला सफल प्रयास 1856 ई. में काबस जी डाबर नानाभाई द्वारा मुम्बई में हुआ ।
कपास उत्पादक क्षेत्र में होने एवं उपयुक्त आर्द्र जलवायु के कारण 19वीं सदी के अन्त तक मुम्बई ‘भारत का मानचेस्टर’ व ‘भारत की कपास नगरी’ (Cottonpolis of India) कहा जाने लगा । इस समय मुम्बई स्वेज नहर के निर्माण के पूर्व दुनिया का सबसे बड़ा सूती वस्त्र उद्योग केन्द्र बन गया ।
20वीं सदी के प्रारंभ से ही इस उद्योग में विकेन्द्रीकरण की प्रक्रिया प्रारंभ हुई जो स्वतंत्रता के पश्चात और भी स्पष्ट रूप से उभरा । वर्तमान समय में मुम्बई, अहमदाबाद, कोयंबटूर, कानपुर, कोलकाता, बंगलुरु, जयपुर, अमृतसर आदि इस उद्योग के महत्वपूर्ण केन्द्र हैं । अहमदाबाद को ‘पूर्व का बोस्टन’ कहा जाता है । यहाँ लंकाशायर की भांति ही मिश्रित वस्त्र तैयार किए जाते हैं ।
कानपुर को ‘उत्तर भारत का मानचेस्टर’ कहा जाता है । कोयंबटूर में भारत का सबसे अधिक सूती वस्त्र उद्योग केन्द्र हैं । आज पावरलूम, हैंडलूम व खादी क्षेत्र मिलकर ही अधिकतर सूती वस्त्र उत्पादन कर रहे हैं । मिल क्षेत्र की भूमिका में निरन्तर कमी आई है ।
पावरलूम, हथकरघा और हस्तशिल्प क्षेत्रों का विकास सार्वजनिक-निजी आधार पर करने के लिए 2009-10 में भीलवाड़ा, मिर्जापुर-भदोही, श्रीनगर, विरुद्धनगर और मुर्शिदाबाद में पांच नए मेगा क्लस्टर्स का विकास शुरू हुआ । इस उद्योग के विकास व आधुनिकीकरण के लिए ‘राष्ट्रीय वस्त्र निगम’ (National Textile Corporation) का गठन किया गया है ।
27 अक्टूबर, 2011 को केन्द्र सरकार के द्वारा ‘एकीकृत टेक्सटाइल पार्क योजना’ (SITP-Scheme for Integrated Textile Parks) के तहत् सार्वजनिक-निजी भागीदारी किए के आधार पर 21 नए टेक्सटाइल पार्कों की स्थापना सम्बंधी परियोजनाओं को स्वीकृति दे दी गई है । भारत का पहला टेक्सटाइल पार्क जयपुर के नजदीक ‘बगरू’ में आरम्भ हुआ ।
वर्तमान समय में 40 टेक्सटाइल पार्क परियोजना को स्वीकृति दी गई है । इसमें निम्न महत्वपूर्ण है । पोचमपल्ली, व्रैंडिम्स (आंध्र प्रदेश), इकोटेक्सटाइल पार्क और मुद्रा सेज पार्क (गुजरात), पल्लापम हाइटेक वीविंग पार्क (तमिलनाडु), इस्लामपुर टेक्सटाइल पार्क (महाराष्ट्र), डोडबलापुर (कर्नाटक), ट्रोनिका सिटी (उत्तर प्रदेश) शामिल है । इनमें 24 से उत्पादन शुरू हो चुका है ।
5. जूट उद्योग (Jute Industry):
यह कच्चा माल आधारित उद्योग है । उष्ण व आर्द्र वातावरण एवं डेल्टाई जलोढ़ मृदा (मिट्टी) के कारण जूट के रेशों का मुख्य उत्पादन पश्चिम बंगाल के हुगली नदी घाटी के क्षेत्र में होता है । इससे पश्चिम बंगाल के लगभग 64 लाख परिवार प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े हुए है । इसीलिए इसे गोल्डेन फाइबर ऑफ बंगाल (Golden Fibre of Bengal) भी कहते हैं ।
जूट का पहला कारखाना पश्चिम बंगाल में 1855 ई. में रिसरा नामक स्थान पर हुआ । यह देश के विभाजन से सर्वाधिक प्रभावित होने वाला उद्योग था क्योंकि विभाजन के बाद अधिकतर उद्योग केन्द्र भारत में रहे जबकि जूट उत्पादन क्षेत्र पूर्वी पाकिस्तान (बांग्लादेश) में चले गए ।
वर्तमान समय में हुगली औद्योगिक पेटी के बांसबेरिया से बिडलापुर तक के क्षेत्र में भारत के अधिकतर जूट कारखाने केन्द्रीकृत है । इस उद्योग का सीमित विकेन्द्रीकरण हुआ है । उत्तर प्रदेश के गोरखपुर व कानपुर, आंध्र प्रदेश के गोदावरी क्षेत्र व विशाखापत्तनम्, असोम में गुवाहाटी, नागालैंड में दीमापुर एवं त्रिपुरा में अगरतला में भी यह उद्योग मिलता है ।
इस उद्योग के विकास के लिए ‘जूट कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया’ का गठन किया गया है जिस पर इस उद्योग के आधुनिकीकरण का दायित्व है । जूट की वस्तुओं के निर्यात में भारत का विश्व में दूसरा स्थान है । इसे बंग्लादेश से प्रतिस्पर्धा करना पड़ता है । अब देश में जूट विनिर्माण के निर्यात के वस्तुओं की मात्रा लगातार घट रही है क्योंकि कागज, प्लास्टिक वस्तुओं की माँग बढ़ रही है ।
6. चीनी उद्योग (Sugar Industry):
भारत विश्व में चीनी का सबसे बड़ा उपभोक्ता तथा ब्राजील के बाद दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक देश है । भारह्रासी उद्योग होने के कारण इसका मुख्य सकेन्द्रण कच्चे माल के क्षेत्र में है । यह उद्योग सबसे पहले बेतिया (बिहार) में 1840 ई. में लगाया गया था परंतु इसका वास्तविक विकास 1931 ई. से प्रारंभ हुआ ।
इस समय सरकार द्वारा पहली बार इस उद्योग को संरक्षण दिया गया। 1960 ई. तक उत्तर प्रदेश व बिहार मुख्य चीनी उत्पादक राज्य थे किंतु उसके बाद दक्षिणी भारत में अनुकूल जलवायु व काली मृदा का क्षेत्र होने तथा नमी संरक्षण की क्षमता एवं ट्यूबवेल सिंचाई का विकास होने के कारण इस उद्योग में विकेन्द्रीकरण की प्रवृत्ति उभरी ।
दक्षिण भारत में गन्ने की उत्पादकता व प्रति टन रस उपलब्धता अधिक होने के कारण अब यह उत्पादन के दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण प्रदेश बन गया है । वर्तमान समय में महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडु, गुजरात चीनी उत्पादन के क्रमशः अग्रणी राज्य है ।
1980 ई. की औद्योगिक नीति में चीनी व उससे सम्बंधित उद्योगों के लिए औद्योगिक संकुल की नीति पर बल दिया गया है । साथ ही इस उद्योग को संरक्षण देने के लिए यह प्रावधान किया गया है कि किसी चीनी उद्योग क्षेत्र के चारों ओर 25 किमी. की त्रिज्या (Radius) के अंतर्गत कोई गुड़ उद्योग नहीं लगाया जा सकता ।