भारत में आर्थिक नियोजन । “Economic Planning in India” in Hindi Language!

1. प्रस्तावना ।

2. भारत में आर्थिक नियोजन ।

3. नियोजन का संगठन ।

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4. कार्य एवं महत्त्व ।

5. राष्ट्रीय विकास परिषद ।

6. पंचवर्षीय योजनाएं एक दृष्टि में ।

7. उपसंहार ।

1. प्रस्तावना:

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यह सर्वमान्य तथ्य है कि नियोजन के बिना किसी भी राष्ट्र के सामाजिक, आर्थिक लक्ष्य की पूर्ति सम्भव नहीं है । इस लक्ष्य की पूर्ति विकासशील राष्ट्रों के लिए सामाजिक, आर्थिक विकास के क्रमबद्ध कार्यक्रम, अर्थात नियोजन द्वारा हो सकती है ।

इस निश्चित प्रक्रिया में राष्ट्र के मानवीय एवं भौतिक संसाधनों का कार्यक्रम विवेकपूर्ण एवं उचित निर्देशन के द्वारा होता है । निश्चित समय में उपलब्ध मानवीय, भौतिक, मानसिक, आर्थिक संसाधनों की विवेकपूर्ण नियोजित तकनीक नियोजन है ।

2. भारत में आर्थिक नियोजन:

1. एक अप्रैल सन 1951 से भारत पंचवर्षीय योजनाओं के पथ पर अग्रसर हुआ । 2. स्वतन्त्रता के बाद देश में आर्थिक असमानता, निर्धनता, बेरोजगारी की समस्याओं का समाधान कर आर्थिक समानता, आर्थिक सुरक्षा और स्थायित्व की व्यवस्था करने जैसे विभिन्न उद्देश्यों को नियोजित व्यवस्था ने अपनाया । आर्थिक विकास के लिए जो पंचवर्षीय योजनाएं बनाई गयीं, वह न तो पूर्णत: समाजवादी थीं और न ही पूंजीवादी ।

3. कार्य एवं महत्त्व:

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1. स्वीकृत कार्यक्रमों तथा पारेयोजनाओं के विषय में प्राथमिकता निश्चित करना ।

2. आर्थिक विकास के मार्ग में आने वाली बाधाओं का पता लगाना तथा देश की सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए योजनाओं की सफलता हेतु उचित एवं  स्वस्था वातावरण तैयार करना ।

3. योजनाओं के सफल क्रियान्वयन हेतु उपयुक्त तन्त्र के स्वरूप को निश्चित करना ।

4. समय-समय पर योजनाओं की प्रगति का मूल्यांकन करना । नीति तथा उपायों में आवश्यक समन्वय की अनुशंसा करना ।

5. तत्कालीन आर्थिक स्थिति, प्रचलित नीतियों, उपायों तथा विकास कार्यक्रमों के विचार-विमर्श हेतु उनके कर्तव्य पालन को उत्तम रूप देने के लिए सिफारिश कर केन्द्रीय एवं राज्य सरकारों के सुझावों की जांच करना ।

आर्थिक नियोजन आज के युग की अचूक ओषधि है, जिसके बिना सामाजिक और आर्थिक लक्ष्यों की पूर्ति नहीं हो सकती है । भारत जैसे विकासशील राष्ट्र के लिए इसका विशेष महत्त्व है ।

योजनाओं के निर्माण से देश की आर्थिक प्रगति का सुनिश्चित तथा प्रभावी विकास सम्भव है । लोकतान्त्रिक देश भारत के सर्वागीण विकास में आर्थिक नियोजन एक महत्त्वपूर्ण कड़ी है ।

4. राष्ट्रीय विकास परिषद्:

यह एक गैर संवैधानिक निकाय है, जिसका गठन आर्थिक नियोजन हेतु राज्य एवं योजना आयोग के बिना सहयोग का वातावरण बनाने के लिए सरकार ने 6 अगस्त, 1942 को किया । प्रधानमन्त्री ही इसका अध्यक्ष तथा योजना आयोग का सचिव होता था । राज्यों के मुख्यमन्त्री भी इसके सदस्य होते थे, किन्तु 1967 के बाद मन्त्रिपरिषद् के सभी सदस्य एवं केन्द्रशासित प्रदेशों के प्रशासक तथा योजना आयोग के सभी निकाय के सदस्य इसमें शामिल होते हैं ।

कार्य:

राष्ट्रीय योजना का कार्य योजना का समय-समय पर मूल्यांकन करना/राष्ट्रीय विकास को प्रभावित करने वाली सामाजिक, आर्थिक नीतियों की समीक्षा/राष्ट्रीय नियोजन हेतु सुझाव देना/जन सहयोग देना/प्रशासनिक दक्षता को सुधारना/राष्ट्रीय विकास के संसाधनों का निर्माण/योजना आयोग द्वारा तैयार की गयी योजनाओं का अध्ययन करना तथा विचार-विमर्श के बाद उसे अन्तिम रूप प्रदान करना/योजना का प्रारूप तैयार करना ।

6. पंचवर्षीय योजनाएं एक दृष्टि में:

प्रथम योजना 1951-56, इसमें कृषि एवं सिंचाई पर विशेष बल दिया गया । द्वितीय योजना 1956-61, इसमें आधारभूत एवं भारी उद्योगों पर बल दिया गया । तृतीय योजना 1961-66, इसमें खाद्यान्नों में आत्मनिर्भरता को प्राप्त करना महत्त्वपूर्ण लक्ष्य था ।

वार्षिक योजनाएं 1966-89 तक । चतुर्थ योजना 1969-74, स्थिरता के साथ विकास । पांचवीं योजना 1974-79 निर्धनता उन्मूलन एवं आत्मनिर्भरता । छठी तथा सातवीं योजना 1985-90 समृद्धि आधुनिकीकरण, सामाजिक न्याय एवं वार्षिक योजना 1990-92 थी । आठवीं योजना में मानव संसाधनों का विकास, जिसमें रोजगार, शिक्षा एवं जनस्वास्थ्य पर विशेष ध्यान रखा गया ।

नौवीं योजना 1997-2002, इसमें आठवीं योजनाओं की उपलब्धियों को आगे बढ़ाना, कृषि में निवेश को प्रोत्साहन, निर्धनों के जीवन स्तर में सुधार, बुनियादी सुविधाओं का विकास, क्षेत्रीय असमानताओं में कमी, वित्तीय घाटे को नियन्त्रित करना, सामाजिक विसंगतियों को दूर कर उनको अधिक कारगर बनाना । दसवीं पंचवर्षीय योजना 2002-2007, इसमें सबके लिए प्राथमिक एवं निःशुल्क अनिवार्य शिक्षा सुलभ कराना, जनसंख्या वृद्धि पर नियन्त्रण, वन भूमि बढ़ाना, गांव में स्वच्छ पेयजल की आपूर्ति पर बल दिया गया ।

7. उपसंहार:

भारत की पंचवर्षीय योजनाओं के सम्बन्ध में यह बात सत्य है कि इन योजनाओं को निर्धारित लक्ष्यों में तथा समय में पूरा न किया जा सका है, किन्तु इसमें सन्देह नहीं है कि नियोजन भारत के आर्थिक विकास के लिए वरदान ही सिद्ध हुआ है; क्योंकि इसका लक्ष्य तथा उद्देश्य भारत में राष्ट्रीय आय की वृद्धि करना ही नहीं है, अपितु यथासम्भव आय की असमानताओं को कम करना तथा आर्थिक विकास की प्रक्रिया में तीव्रता लाकर आर्थिक एवं सामाजिक तनाव को दूर करना है ।

आर्थिक नियोजन निर्धारित अवधि में राष्ट्रीय हितों एवं लक्ष्यों की पूर्ति का सफल एवं प्रभावी माध्यम है । यह योजनाओं का ऐसा दिशा-निर्देश है, जिसमें मानवीय तथा भौतिक संसाधनों का समुचित उपयोग किया जाता है ।

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