Read this article in Hindi to learn about planning from independence to the establishment of planning commission.
15 अगस्त 1947 के उषा-काल से भारत ब्रिटिश साम्राज्य के शासन की गुलामी से स्वतन्त्र हो गया । विदाई के तोहफे के रूप में साम्राज्य ने महान भारत को भारत और पाकिस्तान दो प्रभुसत्ता सम्पन्न राज्यों में विभाजित कर दिया । देश के विभाजन के बहुत गम्भीर परिणाम हुए ।
राजकोषीय आयोग के अनुसार भारत अविभाजित देश की 82 प्रतिशत जनसंख्या और 84 प्रतिशत कृषि क्षेत्र के साथ अलग हुआ जबकि शेष 18 प्रतिशत् जनसंख्या और 16 प्रतिशत कृषि क्षेत्र पाकिस्तान के पास रहा । संयुक्त भारत में 70 मिलियन एकड़ सिंचाई वाली भूमि में से 48 मिलियन एकड़ भारत में रही तथा 22 मिलियन एकड़ पाकिस्तान के हिस्से आई ।
फलतः कुल बुआई वाले क्षेत्र का 45.2 प्रतिशत क्षेत्र जिसे सिचाई सेवाएं उपलब्ध थीं पाकिस्तान के पास रहा तथा केवल 18.8 प्रतिशत भारत के पास रहा । अतः 82 प्रतिशत जनसंख्या के सूचक ने क्रमशः 68 प्रतिशत और 65 प्रतिशत चावल और गेहूँ का उत्पादन किया । दूसरी और, पाकिस्तान के पास लगभग एक मिलियन टन अन्न उत्पादों का अतिरेक स्टाक रहा ।
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संविधान का निर्माण 26 नवम्बर, 1949 को हुआ और इसे पहले गणतन्त्र दिवस 26 जनवरी, 1950 को लागू किया गया । संविधान में कुछ ‘राज्यनीति के निदेशात्मक नियम’ थे, जो यद्यपि न्यायालय द्वारा लागू किये जाने योग्य नहीं थे, परन्तु देश के प्रशासन के लिये मौलिक माने जाते थे ।
कांग्रेस पार्टी की कार्यकारी समिति ने देश की नियोजित अर्थव्यवस्था और एक योजना आयोग की नियुक्ति के लिये एक व्यापक प्रस्ताव पारित किया । इस प्रस्ताव में कहा गया है कि ”एक व्यापक योजना की आवश्यकता अब भारत में एक अप्रतिरोध्य अनिवार्यता बन गई है, इसका कारण है द्वितीय विश्व युद्ध के फलस्वरूप विनाश और देश के विभाजन के आर्थिक और राजनीतिक परिणाम जोकि देश की स्वतन्त्रता की प्राप्ति के फलस्वरूप प्राप्त हुये हैं तथा भारत और विश्व में धीरे-धीरे बिगड़ती आर्थिक स्थिति ।”
अतः 15 मार्च 1950 को राष्ट्रीय आयोग की स्थापना की गई । इसे मौलिक अधिकारों की प्रस्तावना और संविधान की राज्यनीति के निदेशात्मक नियमों अनुसार आर्थिक एवं सामाजिक विकास का कार्य सौंपा गया । संक्षेप में प्रस्ताव ने नीचे दिये गये नियमों का समर्थन किया ।
राज्य विशेषतया निम्नलिखित की प्राप्ति हेतु अपनी नीति को निर्देशित करेगा:
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(क) कि नागरिकों, पुरुषों और स्त्रियों को समान रूप में निर्वाह के साधन पर्याप्त रूप में मिलें ।
(ख) कि समाज के सामग्रिक साधनों के स्वामित्व और नियन्त्रण का इस प्रकार आबंटन होगा कि सबका भला हो ।
(ग) कि आर्थिक प्रणाली के संचालन के परिणामस्वरूप धन और उत्पादन के साधनों का केन्द्रीकरण सर्वसाधारण के अहित में न हो ।
निदेशात्मक सिद्धांतों को ध्यान में रखते हुये योजना आयोग को निम्नलिखित कार्य सौपे गये:
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(i) देश की सामग्री, पूँजी और मानवीय साधनों का अनुमान लगाना जिसमें तकनीकी स्टाफ सम्मिलित है तथा उन साधनों के संवर्धन की सम्भावनाओं की जांच करना जो राष्ट्र की उन्नति के लिटे, कम पाये जाते हैं ।
(ii) ऐसी योजना का निर्माण करना जिससे देश के साधनों का अति प्रभावी एवं संतुलित उपयोग हो ।
(iii) प्राथमिकताएं निर्धारित करना, वह सोपान परिभाषित करना जिनके अनुसार योजना का कार्यान्वयन किया जाना चाहिये और प्रत्येक सोपान को भली-भान्ति पूरा करने के लिये साधनों के आबंटन के सुझाव देना ।
(iv) आर्थिक विकास के मार्ग में बाधा बनने वाले कारकों की ओर संकेत करना तथा वर्तमान सामाजिक राजनीतिक स्थिति को ध्यान में रखते हुये उन स्थितियों का निर्धारण करना जिनकी योजना के सफल कार्यान्वयन के लिये स्थापना की जानी चाहिये ।
(v) ऐसी मशीनरी का स्वरूप निर्धारित करना जो योजना के प्रत्येक सोपान में सभी पहलुओं के कार्यान्वयन के लिये आवश्यक हो ।
(vi) समय-समय पर योजना के प्रत्येक सोपान के निष्पादन में प्राप्त सफलता का मूल्यांकन करना और नीति एवं उपायों के समायोजन के सुझाव देना जोकि मूल्यांकन अनुसार आवश्यक हैं ।
(vii) ऐसी आन्तरिम अथवा सहायक सिफारिशें करना जो या तो इसे सौंपे गये कर्तव्यों को पूरा करने के लिये उचित प्रतीत हो अथवा विद्यमान आर्थिक स्थितियों को ध्यान में रखते हुये वर्तमान नीतियों, उपायों तथा विकासात्मक कार्यक्रमों अथवा ऐसी विशेष समस्याओं के लिये उचित हों जो इसे केन्द्र अथवा प्रान्तीय सरकार द्वारा परामर्श के लिये प्रस्तुत की गई हों ।
प्रशासनिक संगठन (Administrative Organisation):
स्पष्टतया, योजना आयोग एक बहु-सदस्यीय संस्था है जिसमें पांच पूर्णकालिक तथा कुछ अंशकालिक सदस्य होते हैं जो प्रायः कैबिनिट के महत्वपूर्ण मन्त्री होते हैं । पूर्ण-कालिक सदस्य प्रसिद्ध सार्वजनिक व्यक्ति, प्रशासक अथवा तकनीकी विशेषज्ञ और मन्त्रिमण्डल के अवैतनिक सांख्यिकीय परामर्शदाता होते हैं, जो मन्त्री पद के होते हैं ।
इन सदस्यों की नियुक्ति उनकी प्रतिष्ठा और योग्यता के आधार पर होती है न कि राजनीतिक विचारों के आधार पर । उनसे आशा की जाती है कि वह कार्य के समन्वय में पर्याप्त सहायता करेंगे तथा इसे राष्ट्रीय स्थिति तथा सम्मान देंगे और विरोधी दलों द्वारा भी सिफारिशें स्वीकारने में सहायक होंगे ।
भारत का प्रधानमन्त्री आयोग का अध्यक्ष होता है । अध्यक्ष के रूप में देश में आयोजन से सम्बन्धित सभी मुख्य समस्याओं पर वह निर्देश देता है । परन्तु आयोग के दैनिक कार्यों की देख-रेख उपाध्यक्ष द्वारा की जाती है जो प्रायः पूर्णकालिक सदस्य होता है । इसके अतिरिक्त वित्तमन्त्री आयोग का पदेन (Ex-Office) सदस्य होता है । भारत सरकार के अन्य मन्त्री व्यक्तिगत रूप में उनके विभागीय कारणों से आयोग के सदस्य नियुक्त किये जाते हैं ।
भारत के संविधान में योजना आयोग की कोई व्यवस्था नहीं थी । सन् 1951-56 के दौरान केवल तीन मन्त्री ही आयोग के सदस्य थे । बाद में इसके सदस्यों की संख्या पांच तक बढ़ायी गई । सितम्बर, 1967 में प्रशासनिक सुधार आयोग की सिफारिशों पर योजना आयोग का पुनर्निर्माण किया गया ।
इस समय प्रधानमन्त्री आयोग के अध्यक्ष है, उप-अध्यक्ष पूर्णकालिक सदस्य है जो एक अर्थशास्त्री है और दो अन्य पूर्णकालिक सदस्य हैं । इसके अतिरिक्त दो केन्द्रीय मन्त्रि मण्डल के सदस्य केन्द्रीय वित्त मन्त्री तथा केन्द्रीय रक्षा मन्त्री भी सदस्य का विकास होते हैं । योजना राज्य मन्त्री एक अन्य सदस्य होता है ।
आयोग का एक सचिव भी होता है । एक अतिरिक्त सचिव भी होता है जो आयोग के बीच प्रशासन और समन्वय का प्रभारी होता है । इसके अतिरिक्त उप-सचिवों और संघीय सचिवों की श्रेणी में कुछ अन्य वरिष्ठ अधिकारी होते हैं जो देश के विभिन्न प्रान्तों में विभिन्न कार्यक्रमों की देख-रेख करते हैं ।
योजना आयोग का भारत सरकार से सीधा सम्बन्ध होता है । इस सम्बन्ध में एक प्रथा स्थापित हो चुकी है कि जब कभी योजना आयोग एक या दो मन्त्रियों से सीधे सम्बन्धित किसी मामले पर विचार करता है, मन्त्रियों द्वारा प्रस्तुत किसी भी महत्वपूर्ण आर्थिक सुझाव पर सबसे पहले योजना आयोग में विचार किया जाता है । उसके पश्चात इसे मन्त्रिमण्डल में पेश किया जाता है ।
परन्तु एक प्रथा है कि वह सदस्य जो मन्त्रिमण्डल के सदस्य नहीं होते, उन्हें भी मन्त्री और उसकी उपसमिति की बैठक में आमन्त्रित किया जाता है जब कभी उनके क्षेत्र से सम्बन्धित कोई प्रस्ताव विचारार्थ लिया जाता है ।
तथापि, सरकारी तौर पर, भारत सरकार तथा आयोग के बीच सम्बन्ध मुख्यता मन्त्रिमण्डल के सचिव द्वारा स्थापित किया जाता है जो अपने पद के कारण आयोग का भी सचिव होता है । इसके अतिरिक्त, वित्त मन्त्रालय का मुख्य आर्थिक परामर्शदाता आयोग का भी आर्थिक परामर्शदाता होता है । परन्तु हाल ही में इन दो पदों को अलग कर दिया गया है तथा परिणामस्वरूप आयोग के पास अब पूर्ण-कालिक आर्थिक परामर्शदाता है ।
योजना आयोग एक सामूहिक संस्था के रूप में कार्य करता है तथा इसका उत्तरदायित्व भी सामूहिक होता है, परन्तु सुविधा के लिये, प्रत्येक सदस्य को किसी भाग अथवा वर्ग का दायित्व सौंपा होता है । पूर्ण-कालिक सदस्य के अधीन अनेक भाग होते है और प्रत्येक भाग को अनेक गतिविधियां सौंपी जाती हैं ।
प्रत्येक भाग का एक परामर्शदाता तथा उसके नियन्त्रण में विभिन्न गतिविधियों के लिये अनेक प्रभारी परामार्शदाता होते हैं । उदाहरणतया, उप-अध्यक्ष, योजना समन्वय, योजना मूल्यांकन, प्रशासन सेवाओं आदि का अधीक्षक होता है । अन्य पूर्णकालिक सदस्य आगे लिखे चार वर्गों में एक-एक के प्रभारी होते हैं उद्योग, श्रम, यातायात और ऊर्जा वर्गों, कृषि और ग्रामीण विकास वर्ग, संदर्श आयोजन वर्गों तथा शिक्षा, श्रम, वैज्ञानिक शोध, रोजगार और समाज सेवा वर्ग आदि ।