ग्रामीण गरीबी उन्मूलन कैसे करें? | Read this article in Hindi to learn about How to Eradicate Rural Poverty in India.
भारत एक विकासशील राष्ट्र है जहां प्राकृतिक संसाधनों के साथ-साथ मानवीय संसाधनों की भी बहुलता है । भारत का अधिकांश मानवीय संसाधन ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करता है । आज भी भारत की विश्व में पहचान इसके गांवों में बसने वाले लोगों से होती है ।
अतः यह निर्विवाद रूप से कहीं जा सकता है कि भारत का वास्तविक विकास तभी संभव है, जब इसके गावो का विकास हो, अर्थात विकास की पहली प्राथमिकता ग्रामीण विकास है । ग्रामीण जनों के विकास के लिये हमें उनकी आर्थिक-सामाजिक परिस्थिति उनकी संस्कृति मानसिकता आवश्यकता स्थानीय संसाधन, कौशल व तकनीकी की जानकारी होना जरूरी है ।
आबादी का दो तिहाई हिस्सा जो मुख्यतया गांवों में निवास करता है, अपनी मूलभूत आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए निरन्तर प्रयास कर रहा है, लेकिन गलत नियोजन नीति के कारण हो रहे आर्थिक विकास के साथ-साथ गरीब एवं अमीर आदमी के बीच का अन्तर कम होने के स्थान पर बढ़ता जा रहा है ।
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गरीबी और बेरोजगारी भारत जैसे देश के लिये अभी भी बहुत बड़े अभिशाप हैं । इन्हें दूर करने के तमाम संगठित और सुनियोजित प्रयासों के बावजूद हमारे देश की जनसंख्या का बहुत बड़ा भाग इन समस्याओं से अभी भी निजात नहीं पा सका है ।
दुखद स्थिति तो यह है कि हमारे देश की 25 प्रतिशत से भी अधिक आबादी अभी भी गरीबी रेखा से नीचे है । जिसे दो जून की रोटी भी नसीब नहीं होती गाव की स्थिति पर यदि बारीकी से विचार करें तो हम पाएंगे कि कुछ अभागे तो आज भी अपने सामान्य जीवन-यापन के लिये साहूकारों से कर्ज लेते है ।
जिस पर उन्हें 60 प्रतिशत से लेकर 120 प्रतिशत तक वार्षिक ब्याज चुकाना पड़ता है । ऐसी स्थिति में बेचारा ग्रीन गरीबी के बोझ से और भी पिसता जाता है तथा वह गरीबी के दुष्चक्र से छूटने के लिये लाख प्रयास करने के बावजूद उसके जाल में जकड़ता जाता है ।
प्रो अर्मत्य सेन ने लिखा है कि आज के विश्व में एक और कल्पनातीत समृद्धि है वहीं दूसरी ओर सम्पन्न और गरीब देशों में रहने वाले करोड़ों व्यक्ति अप्रत्यक्षत गुलामी का जीवन जी रहे हैं । गरीबी के कुचक्र में फसी आबादी आज भी देश के तेज विकास में उस तरह का हिस्सेदार नहीं बन सकी है जिसकी बेहद जरूरत है ।
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स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् भारत में विभिन्न कार्यक्रमों और योजनाओं के जरिये ऐसा न्यायसंगत समाज विकसित करने के प्रयास लगातार किये जा रहे हैं । जिसमें गरीब व्यक्ति के जीवन की कम से कम मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति अवश्य हो सके, गरीबी रेखा से ऊपर उठाने के उद्देश्य से चलाये जा रहे विभिन्न कार्यक्रमों के अपेक्षित परिणाम प्राप्त नहीं हो सके इसका मुख्य कारण गलत नियोजन नीति एवं औपचारिक वित्तीय संस्थाओं से ण उपलब्ध न होना रहा है ।
गरीबों के उत्थान के प्रयासों को गति प्रदान करने में सूक्ष्म वित्त का विचार एक नवीन एवं प्रयुक्त विचार के रूप में सामने आया है । सर्वप्रथम बांग्लादेश ने इस विचार को अपनाकर गरीबी उन्तुलन की दिशा में क्रांतिकारी प्रयास करके उसमें अपेक्षित सफलता प्राप्त की है ।
सूक्ष्म वित्त के प्रणेता और उसको दुनिया में लोकप्रिय बनाने वाले प्रो. युनूस और उनके ग्रामीण बैंक को वर्ष 2006 में विश्व शांति के लिये नोबल पुरस्कार मिला है । गरीबी उन्तुलन में सूक्ष्म वित्त की अहमियत को देखते हुए संयुक्त राष्ट्र सद्य ने 2005 को अन्तर्राष्ट्रीय लघु वित्त वर्ष के रूप में घोषित किया था । भारत में सूक्ष्म वित्त व्यवस्था के तहत स्वयं सहायता समूह मॉडल ग्रामीण क्षेत्र में जीवन यापन करने वाले निर्धनों के आर्थिक उत्थान एवं सशक्तिकरण के रूप में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है ।
भारत में ग्रामीण गरीबी का परिदृश्य:
गरीबी एक ऐसी स्थिति है, जिसे कोई भी स्वीकार करने के लिये तैयार नहीं होगा 1.3 बिलियन से भी अधिक लोक दुनिया में गरीबी का जीवन जी रहे हैं । और इनमें से अधिकांशत: ग्रामीणों क्षेत्रों में निवास करते हैं । गरीबी अथवा निर्धनता का अर्थ उस स्थिति से है जिसमें समाज का एक भाग अपने जीवन की बुनियादी आवश्यकताओं को सन्तुष्ट करने में असमर्थ रहता है ।
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देश में आर्थिक, उदारीकरण शुरू हुए लगभग 18 वर्ष बीत चुके हैं लेकिन करीब 24 करोड़ लोग अभी भी गरीबी रेखा के नीचे जीवन गुजारने के लिये मजबूर हैं । भले ही सरकारी आंकडों के मुताबिक गरीबी की दर में 4.3 फीसदी की गिरावट आयी है और यह 1999-2000 के 26.1 प्रतिशत के मुकाबले 2004-06 में 21.8 तथा 2008-07 में और भी कम हो गई है ।
योजना आयोग ने 2 मार्च, 2007 को गरीबी संबंधी अनुमान जारी किया इसके अनुसार 21.1 ग्रामीण इलाकों में एवं 19.3 प्रतिशत जनसंख्या अखिल भारत में गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन कर रही है । उपभोग आधारित आकड़ों के मुताबिक उड़ीसा सर्वाधिक गरीब राज्य है ।
जिसमें 46.4 फीसदी लोग गरीब हैं । किन्तु भारत में ग्रामीण गरीबी के सरकारी अनुमानों को सही नहीं कहा जा सकता, हाल ही में अर्जुन सेन गुप्ता द्वारा किये गये अध्ययन में गरीबी का परिदृश्य कुछ अलग ही नजर आता है । उनके अनुसार गरीबी में कमी के बजाय इसमें बेतहाशा वृद्धि हुई है ।
साहित्य अवलोकन:
राव, (2004) सूक्ष्म वित्त ने सदस्यों के सामाजिक-आर्थिक स्थिति को सुधारने में सहयोग किया है । Barua, Prasenjit Bujar, (2012) ग्रामीण गरीबी को कम करने, महिलाओं के सशक्तिकरण तथा आय, सर्जक गतिविधियों को बड़ाने में सूक्ष्म वित्त की भूमिका महत्वपूर्ण रही ।
सुरेन्दर, कुमारी, और सेहरावत, (2011) स्वसहायता समूहों का रोजगार उत्पन्न करने में सकारात्मक प्रभाव पड़ा । राजेन्द्रन के. (2012) ग्रामीण गरीबों को वित्तीय समावेशन के दायरे में लाने में सूक्ष्म वित्त ने क्रान्ति ला दी ।
सूक्ष्म वित्त की अवधारणा:
सूक्ष्म वित्त वित्तीय बाजार में एक बहुत ही नया और उभरता हुआ क्षेत्र है । औपचारिक वित्तीय क्षेत्र की तुलना में यह गरीबों को वित्तीय तथा सामाजिक दोनों ही स्वरूपों में सूक्ष्म वित्तीय सेवाएं प्रदान करता है । सूक्ष्म वित्त से तात्पर्य गरीबों के लिये ऋण और अन्य ऐसी वित्तीय सेवाओं की व्यवस्था से है जिनकी सहायता से वे अपनी गरीबी कम कर सके और अपने जीवन यापन के स्तर में सुधार ला सकें, दूसरे शब्दों में सूक्ष्म वित्त एक ऐसी प्रणाली है जो आमतौर पर निम्न आय वाले लोगों, विशेषकर निर्धन ओर आतानर्धन लोगों या कहें कि उन लोगों को जिनके पास संपत्ति के नाम पर कुछ नहीं हो तो, वित्तीय सेवा प्रदान करती है ।
भारतीय रिजर्व बैंक तथा नाबार्ड के अनुसार, सूक्ष्म वित्त, ग्रामीण अर्धशहरी, तथा शहरी इलाकों में स्थित गरीबों को दी जाने वाली, बचत, जमा ऋण, इत्यादि ऐसी वित्तीय सेवाओं से है जिसमें लेन-देन की राशि बहुत ही छोटी-छोटी रकम के रूप में हो ।
सूक्ष्म वित्त एवं गरीबी उन्मूलन:
सूक्ष्म वित्त की विशेषता यह है कि इसे समाज के सबसे निचले तबके के गरीबों के लिये ही बनाया गया है और इसका सबसे ज्यादा प्रसार दुनिया के गरीब से गरीब राष्ट्र तथा पिछड़े इलाकों में ही हो रहा है । दुनिया की सबसे बड़ी सूक्ष्म वित्त संस्थाएँ बांग्लादेश, भारत, इण्डोनेशिया, तथा थाईलैण्ड में कार्यरत हैं ।
बांग्लादेश के ग्रामीण बैंक आशा और ब्रेक जैसी संस्थाएँ 40 से 50 लाख लोगों को व्यष्टि ऋण दे रही है, जबकि इण्डोनेशिया का रक्यात बैंक अकेले 33 लाख लोगों को सूक्ष्म ण प्रदान कर रहा है । विश्व में आज 17 देशों में लगभग 41 सूक्ष्म वित्त कार्यक्रम संचालित किये जा रहे हे । भारत में शेयर स्पंदन, तथा सेवा जैसी, व्यष्टि वित्त सस्थाएँ 20 लाख से भी ज्यादा गरीबों को सूक्ष्म वित्त उपलब्ध करवा रही हे ।
गाँवों में साहूकारों की ब्याज दर प्रतिमाह 10 प्रतिशत से ज्यादा होती है । जबकि माइक्रो फायनास में ब्याज दर सामान्यत: 2 प्रतिशत से कम होती है भारत में गरीब लोगों और भी अधिक सार्थक और आसान बैंकिग सुविधा उपलब्ध कराने के विचार से 1991-92 में नाबार्ड द्वारा लघु वित्त के तहत स्वसहायता समूहों को बैंक के साथ जोड़कर एक शीर्ष परियोजना शुरू की गई थी जो, गरीबी उन्मूलन के क्षेत्र में विशाल वट वृक्ष का आकार ले चुकी है ।
31 मार्च, 2005 की स्थिति के अनुसार जिन स्वयं सहायता समूहों को बैंकों द्वारा वित्तीय सुविधा प्रदान की गई थी उनकी कुल संख्या बढ़कर 16.18, 456 हो गई थी । इस प्रकार 24.3 मिलियन से अधिक गरीब परिवारों को न्ल्यू वित्त व्यवस्था के अंतर्गत शामिल किया जा चुका था ।
सम्पूर्ण भारत में 58.67 प्रतिशत परिवारों को सूक्ष्म वित्त व्यवस्था के अन्तर्गत लाया जा चुका था । तालिका से स्पष्ट है कि सबसे अधिक दक्षिण भारत में सूक्ष्म वित्त की प्रगति हुई है । जबकि मध्य भारत में सबसे कम गरीब परिवारों को सूक्ष्म वित्त कार्यक्रम के अन्तर्गत लाया गया है ।
इस प्रकार भारत में सूक्ष्म वित्त की प्रगति में उल्लेखनीय वृद्धि रही है । प्रतिवर्ष स्वयं सहायता समूहों तथा उनको वितरित बैंक ण में धनात्मक वृद्धि रही जो इस बात का प्रमाण है कि सूक्ष्म वित्त कहीं ना कहीं गरीबों की आर्थिक एवं सामाजिक दशा सुधारने में अपनी महती भूमिका अदा कर रहा है ।
भारत में विभिन्न योजनाओं के माध्यम से सूक्ष्म वित्त का प्रसार हो रहा है । किन्तु अहम प्रश्न में यह है कि क्या गरीबी को पूर्णतः समाप्त किया जा सकता है । वर्ष 2008 में निरन्तर संस्था द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर 2700 समूहों के साथ किये गए अध्ययन से यह बात निकलकर सामने आई कि लगभग 30 प्रतिशत समूह की महिलाएँ समूहगत स्त्रोतों के अलावा अन्य स्त्रोतों से भी ऋण ले रही थी ।
जिन स्त्रोतों से ऋण लिया गया उनमें 80 प्रतिशत ऋण गाव के महाजन से लिया गया था । स्पष्ट है कि मात्र ऋण उपलब्ध करा देने से गरीबी जैसी समस्या से नहीं जूझा जा सकता है । वर्तमान परिदृश्य में देखें तो लघु वित्त एक आम शब्द बन गया है । जिसके जरिये गरीब परिवारों को खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में आमदनी के जरिये से जोड़ने का दावा किया जाता है । परन्तु हकीकत कुछ और ही बयां करती है ।
अधिकतर स्वसहायता समूहों में क्षमता निर्माण सबसे कमजोर पहलू हैं । निरन्तर द्वारा किये गये अध्ययन में यह भी पाया गया कि 2700 समूहों में सिर्फ 35 प्रतिशत समूहों को ही किसी भी प्रकार के प्रशिक्षण का अवसर मिला था उनमें भी रोजगार या आजीविका संबंधी प्रशिक्षण तो मात्र 21 प्रतिशत को ही मिला ।
सम्भव है कि इतने बड़े पैमाने पर सूक्ष्म वित्त का निर्धनों तक पहुंच बनाने के बाद भी गरीबी और गरीबों की स्थिति पर कोई स्पष्ट प्रभाव दिखाई नहीं देता । जाहिर है गरीबी से निपटने के लिये सूक्ष्म वित्त की पहुंच बढ़ाने के साथ-साथ इसके नजरिये को भी अधिक व्यापक और समेकित करने की आवश्यकता है ।
कठिनाईयाँ एवं चुनौतियाँ:
स्वयं सहायता समूह के माध्यम से सूक्ष्म वित्त की प्रगति काफी प्रभावशाली रही है ओर यह सभी के आकर्षण का बिन्दु बना हुआ है परन्तु असली चुनौती यह है कि इस गति को बनाये रखा जाए ।
सूक्ष्म वित्त के समक्ष आने वाली कुछ कठिनाईयाँ एवं चुनोतियों निम्न हैं:
(1) स्वयं सहायता समूहों की प्रगति काफी सराहनीय रही है । परंतु देखा जा रहा है कि इन समूहों का कारोबार सही नहीं चला है । जहाँ गैर सरकारी संगठनों द्वारा रच सहायता समूह बनाए हैं । वहाँ समूहों के गठन और बैंक लिकेज के बाद सरकारी संगठन अलग हो जाते हैं ।
(2) सूक्ष्म वित्त के समक्ष असली चुनौती विभिन्न राज्यों में स्वयं सहायत समूहों का असमान वितरण या असंतुलित विकास है देश में बैंकों के ऋण कार्यक्रमों के साथ सहयोजित किये गए कुल स्वयं सहायता समूहों में से लगभग 60 प्रतिशत समूह देश के दक्षिणी राज्यों में हैं । लेकिन जिन राज्यों में गरीबों का प्रतिशत अपेक्षाकृत अधिक है वहां स्वयं सहायता समूहों की संख्या बहुत कम है ।
(3) कई अध्ययनों से यह निष्कर्ष निकलता है कि जब व्यक्तियों ने अधिक से अधिक भूमि अर्जित कर ली है । तथा उनकी संपत्ति में वृद्धि हुई है । तब उनके द्वारा की जाने वाली चुनौती का स्तर गिर गया है ।
(4) सूक्ष्म वित्त व्यवस्था के अंतर्गत बार-बार ऋण लेने से व्यक्तिगत सशक्तिकरण पर बुरा प्रभाव पड़ा हे ।
(5) जब स्वयं सहायता समूहों का बहुत तेजी से विस्तार हो रहा है तो ऐसे परिवेश में उनकी गुणवत्ता कैसे सुनिश्चित की जाए । स्वयं सहायता समूह बैंक सम्पर्क कार्यक्रम के तेजी से विकास के कारण स्वयं सहायता समूहों की गुणवत्ता प्रभावित हुई है ।
(6) स्वर्ण जयन्ती ग्राम स्वरोजगार योजना के अन्तर्गत अनुदान एक ऐसा तत्व है जिसके चलते लोग सूमहों से जुड़ते हैं ।
(7) राज्य सरकारें गरीबों को सहायता प्रदान करने के मामले में स्वयं सहायता समूहों और सरकारी संगठनों के निर्माण और गठन के मामले में इतनी उतावली हो गई है कि उन्होंने यह भी ध्यान नहीं दिया है कि उन्हें गठित करने और संवर्धित करने के लिये उनके पास पर्याप्त श्रम शक्ति और कौशल उपलब्ध है या नहीं ।
(8) इन दिनों सूक्ष्म वित्त के क्षेत्र में वाणिज्यिक बैंकों के प्रवेश से जहाँ व्यष्टि ऋण ग्रहिताओं को बेहतर पेशेवर ग्राहक सेवा तथा सुलभ दर पर ऋण उपलब्ध होते रहे हैं वहीं दूसरी ओर इन वाणिज्य बैंकों की व्याजदर अभिमुखी व्यापारिक प्रतिस्पर्धा के कारण व्यष्टि वित्त सस्थाएँ धीरे-धीरे समाज के गरीब जरूरतमंद लोगों से दूर होती जा रही है ।
(9) अक्सर सूक्ष्म वित्त संस्थाओं के खिलाफ रिश्वतखोरी तथा समय पर ऋण न चुकाने पर उपभोक्ताओं से दुर्व्यवहार, अश्लील कथन, मारपीट, आदि किये जाने की शिकायतें आती हैं । इससे घबराकर गरीब व्यक्ति गाँव से पलायन करते रहे हैं । या आत्महत्या भी कर लेते है ।
(10) भारत में सूक्ष्म वित्त व्यवस्था के अंतर्गत व्याजदर 25 से 30 प्रतिशत वसूली जाती हे, जबकि बांग्लादेश में ग्रामीण बैंक 15 प्रतिशत ब्याज लेता है ।
सुझाव:
(i) गरीबों तक ऋण राशि पहुँचा देने से ही व्यष्टि वित्त संस्थाओं की जिम्मेदारी खत्म नहीं हो जाती उन्हें ण राशि का सही इस्तेमाल करना भी सिखाना होगा ताकि वे आत्मनिर्भर बनकर समय पर ण की वापसी भी कर सकें ।
(ii) देश में कुल स्वयं सहायता समूहों में से 90 प्रतिशत महिलाओं द्वारा संचालित है, उन महिलाओं को लिखा पढ़ी, हिसाब, किताब तथा कारोबार प्रबंधन का न्यूनमत ज्ञान दिलाने के लिये गैर सरकारी संस्थाओं को नियोजित किया जाना चाहिये ।
(iii) ऊंची ब्याज दरों को कम करने के लिये व्यष्टि वित्त संस्थाओं को अपने प्रशासनिक खर्चादि कम करने होंगे और यह सम्भव होगा सूक्ष्म वित्त वितरण के लिये आधुनिक, इलेक्ट्रानिक प्रणाली, जैसे प्लास्टिक कार्ड का प्रयोग होने लगे ।
(iv) जो गरीब व्यक्ति, किसान, क्लब या गैर सरकारी संस्था की सहायता से सूक्ष्म वित्त के जरिये उल्लेखनीय सफलता लाने में कामयाब हो रहे हैं उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर पुरस्कृत और सम्मानित कर अन्य व्यक्तियों व संभावनाओं को अभिप्रेरित किया जा सकता है ।
(v) स्वयं सहायता समूहों द्वारा सूक्ष्म वित्त को गति प्रदान करने के लिये और उन्हें बचत, ऋण ओर बीमा की सुविधाएँ मुहैया कराने के लिये लघु वित्त संस्थाओं को प्रोत्साहित करना अत्यन्त आवश्यक है ।
(vi) देश के हर जिले में 100 से 150 स्वयं सहायता समूहों को लेकर स्वयं सहायता फेडरेशन या संघो का गठन किया जाना चाहिये ताकि ण वितरण में आसानी होने के अलावा सदस्यों के लिये बड़ी मात्रा में उर्वरक आदि कृषिगत साधन सस्ते में खरीदा जा सके और कृषि उत्पादों का विपणन भी आसान हो सके ।
(vii) फिलहाल सूक्ष्म वित्त संस्थाएं सूक्ष्म ण के लिये जितना जोर दे रही हैं, सूक्ष्म जमा के ऊपर उतना नहीं हमें यह नहीं भूलना चाहिये कि जब तक गरीब व्यक्ति अपनी बचत राशि को कोई लाभ प्रद खाते में जमा नहीं कर पाता तब तक वह आत्मनिर्भर नहीं बन पाएगा ।
(viii) सूक्ष्म वित्त संस्थानों पर प्रभावी नियमन की आवश्यकता है जिससे गरीबों को शोषण से बचाया जा सके ।
निष्कर्ष:
यह कहा जा सकता है कि वर्तमान में सूक्ष्म वित्त वह हकीकत है । जिससे आँख नहीं चुराई जा सकती है । सूक्ष्म वित्त से जुड़ने वाले गरीबों के सामाजिक, आर्थिक, पक्ष पर जबरदस्त प्रभाव पड़ा है किन्तु सूक्ष्म वित्त कार्यक्रम की तमाम कोशिशों के बावजूद देश में आज गरीबी बनी हुई है, कृषक आत्महत्या कर रहे हैं और क्षेत्रीय असंतुलन बढ़ता जा रहा है अभी भी वृहद स्तर पर गरीबों को लाभ पहुंचाने में सूक्ष्म वित्त सफल नहीं हुआ है क्योंकि जरूरतमंद लोगों को फिलहाल मिलने वाली व्यष्टि ऋण राशि बहुत कम है जो गरीब व्यक्ति को गरीबी के चक्र से बाहर निकालने में असमर्थ है ।
इन सबके बावजूद भी बांग्लादेश के प्रोफेसर युनूस का कहना हे कि लघुवित से गरीबी दूर की जा सकती है । तथा वे 2030 तक गरीबी को एक म्यूजियम में कैद कर देंगे । भारत में भी कई अध्ययनों से यह निष्कर्ष निकला है कि सूक्ष्म वित्त व्यवस्था में अनेक खामियाँ होने के बावजूद भी गरीबी उन्तुलन, क्षमता निर्माण, तथा रोजगार सृजन ने सूक्ष्म वित्त ही एक मात्र विकल्प है ।
आर्थिक शर्तों को पूरा करने विशेषकर गरीबों को निर्धनता के जाल से बाहर निकालने में सूक्ष्म वित्त प्रभावी रूप से सफल रहा है । इस कार्यक्रम ने समूह विचारधारा तथा नवीनीकरण को बढ़ानें में सहयोग किया है । इसके कमजोर पक्ष को सुधारते हुए इसके माध्यम से गरीबी के दुबक को तोड़ा जा सकता है ।