वयस्क वोटिंग अधिकारों पर निबंध | Essay on Adult Voting Rights in Hindi Language!

1. प्रस्तावना ।

2. वयस्क मताधिकार प्रणाली की अवधारणा ।

3. वयस्क मताधिकार प्रणाली के गुण ।

ADVERTISEMENTS:

4. वयस्क मताधिकार प्रणाली के दोष ।

5. मताधिकार की विभिन्न प्रणालियां ।

6.उपसंहार ।

1. प्रस्तावना:

लोकतन्त्रात्मक शासन प्रणाली का मूलाधार है: मताधिकार, अर्थात् मतदाता । इस शासन प्रणाली के लिए जब जनता निश्चित समय के लिए अपने प्रतिनिधियों को निर्वाचित करती है, तो यह अधिकार ही मताधिकार कहलाता है ।

ADVERTISEMENTS:

लोकतन्त्रात्मक शासन प्रणाली का एक अभिन्न अंग है: मताधिकार, जिसके द्वारा जनता सरकार पर अपना नियन्त्रण रखते हुए, विभिन्न अधिकारों को सुरक्षित रखती है । जिन व्यक्तियों को यह अधिकार प्राप्त होता है, उन्हें निर्वाचक मतदाता या वोटर कहते हैं ।

2. वयस्क मताधिकार प्रणाली की अवधारणा:

जब राज्य के समस्त वयस्क नागरिकों को जाति, धर्म, सम्प्रदाय, वर्ग, वंश, शिक्षा, सम्पत्ति या लिंग आदि के भेदभाव के बिना उसकी वयस्कता के आधार पर मताधिकार प्राप्त हो तो उसे सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार कहते हैं ।

वयस्क होने का अर्थ है: एक निर्धारित आयु पूरी कर लेना । वयस्क होने की आयु अलग-अलग देशों में भिन्न-भिन्न है । उदाहरणार्थ, इंग्लैण्ड और संयुक्त राज्य अमेरिका में वयस्क होने, अर्थात मताधिकार प्राप्ति की आयु 18 वर्ष तथा हालैण्ड, डेनमार्क और जापान में 25 वर्ष, नार्वे में 23 वर्ष निर्धारित है ।

1988 से पूर्व तक भारत में मताधिकार प्राप्ति की न्यूनतम आयु 21 वर्ष थी, परन्तु में । वें संविधान संशोधन द्वारा यह 21 वर्ष से घटाकर वर्ष कर दी गयी है । दूसरे शब्दों में भारत में 18 वर्ष की आयु पूरी कर लेने वाले प्रत्येक स्त्री-पुरुषों को मताधिकार प्राप्त है ।

ADVERTISEMENTS:

वयस्क या सार्वभौमिक मताधिकार का तात्पर्य यह नहीं है कि प्रत्येक वयस्क स्त्री-पुरुष को मताधिकार प्रदान कर देना चाहिए, भले ही उसकी मानसिक स्थिति और उसका आचरण कैसा भी हो । साधारणतया सभी राज्यों में पागल, अपराधी, दिवौलिये और विदेशी नागरिक मताधिकार से भी वंचित रखे जाते है ।

3. वयस्क मताधिकार प्रणाली के गुण:

वयस्क मताधिकार के पक्ष में या गुणों के सम्बन्ध में यह कहा जाता है कि वयस्क मताधिकार:

1. वयस्क मताधिकार लोकतन्त्र की आधारशिला है ।

2. वयस्क मताधिकार सम्पूर्ण जनता का वास्तविक प्रतिनिधित्व करता है ।

3. वयस्क मताधिकार द्वारा प्रत्येक व्यक्ति को देश के राजनीतिक जीवन में भाग लेने का अवसर प्रदान करता है । इस तरह से राजनीतिक चेतना उत्पन्न करने का यह उत्तम साधन है ।

4. सार्वभौमिक मताधिकार मतदाता में स्वाभिमान की भावना उत्पन्न करता है । निर्वाचन के समय उच्च-से-उच्च वर्ग का व्यक्ति भी मतदाता के पास जाता है, तो उसमें स्वाभिमान की भावना जागत होती है ।

5. मताधिकार के द्वारा जनता में सार्वजनिक विषयों के प्रति रुचि उत्पन्न करके, राष्ट्रीय शक्ति एवं एकता की भावना में वृद्धि होती है ।

6. नागरिक अधिकारों की रक्षा के लिए सभी वयस्क नागरिकों को मताधिकार प्राप्त होना चाहिए ।

7. सार्वभौमिक मताधिकार से अल्पसंख्यकों के हितों की रक्षा होती है; क्योंकि इससे अल्पसंख्यकों को विधानमण्डलों में अपने प्रतिनिधियों को भेजने का अवसर प्राप्त होता है, जिसके आधार पर वे अपने हितों की रक्षा करते हैं ।

8. वयस्क मताधिकार द्वारा केवल अल्पसंख्यकों के ही हितों की रक्षा नहीं होती, अपितु सार्वजनिक हितों की भी रक्षा होती है ।

9. स्वतन्त्रता एवं समानता लोकतन्त्र का आधार है । विभिन्न प्रकार की समानताओं में राजनीतिक समानता का प्रमुख स्थान है । इसको कार्य रूप में परिणत करने के लिए आवश्यक है कि सभी वयस्क नागरिकों को बिना किसी भेदभाव के मताधिकार प्राप्त हो ।

10. वयस्क मताधिकार शासन की निरंकुशता पर रोक लगाता है ।

4. वयस्क मताधिकार के दोष:

वयस्क मताधिकार के दोषों में प्रमुख रूप से जो बातें देखने में मिलती है, उनमें प्रमुख हैं: 1. अयोग्य व्यक्तियों के हाथों में शासन जाने की सम्भावना वयस्क मताधिकार में होती है; क्योंकि जनता अशिक्षित और मूर्ख होती है । कौन-सा प्रतिनिधि योग्य है, कौन-सा अयोग्य है, यह अज्ञानी तथा अशिक्षित नहीं जान पाते है ।

2. वयस्क मताधिकार द्वारा जहां प्रगतिशील विचारों का विरोध होता है, वहीं भ्रष्टाचार को बढ़ावा भी मिलता है; क्योंकि मतदाताओं को आसानी से खरीदा जा सकता है ।

5. मतदान की विभिन्न प्रणालियां:

हमारी लोकतान्त्रिक व्यवस्था में मुख्य रूप से तीन मतदान प्रणालियां प्रचलित हैं:

1. प्रत्यक्ष मतदान निर्वाचन प्रणाली ।

2. अप्रत्यक्ष मतदान प्रणाली ।

3. गुप्त मतदान प्रणाली ।

1. प्रत्यक्ष निर्वाचन प्रणाली:  इस मतदाता प्रणाली में मतदाता अपने प्रतिनिधियों का प्रत्यक्ष रूप से निर्वाचन करते हैं । मतदाताओं को अपना मत देने के लिए निर्धारित मतदान केन्द्र पर जाना पड़ता है । वहां वे मतपत्र या इलेक्ट्रॉनिक मशीन द्वारा अपने पसन्दीदा उम्मीदवार को मत देकर निर्वाचित करते हैं । भारत में ग्राम पंचायत, नगरपालिका, नगर निगम, लोकसभा, विधानसभा के सदस्यों का चुनाव इसी आधार पर होता है ।

प्रत्यक्ष निर्वाचन प्रणाली के गुणों में महत्त्वपूर्ण हैं-नागरिकों को अपने अधिकारों और कर्तव्यों का ज्ञान, नागरिकों में राजनीतिक अभिरुचि एवं चेतना का विकास, प्रतिनिधियों और जनता में सीधा सम्पर्क, भ्रष्टाचार की सम्भावना में कमी, लोकतन्त्रीय शासन प्रणाली । इस प्रणाली के प्रमुख दोष हैं-अयोग्य प्रतिनिधियों के निर्वाचित होने की सम्भावना, राजनीतिक वातावरण का दूषित होना, अत्यधिक खर्चीली प्रणाली, योग्य, सत्यनिष्ठ एवं बुद्धिमान व्यक्ति चुनाव से दूर रहते हैं ।

2. अप्रत्यक्ष मतदान प्रणाली:  इस प्रणाली में मतदाता पहले एक निर्वाचक मण्डल के सदस्यों का निर्वाचन करते हैं, बाद में निर्वाचक मण्डल के सदस्य प्रतिनिधियों का निर्वाचन करते हैं । इस प्रकार का निर्वाचन अप्रत्यक्ष मतदान प्रणाली कहलाता है ।

इस निर्वाचन प्रणाली का मुख्य गुण यह है कि इसके द्वारा योग्य प्रतिनिधियों का निर्वाचन सम्भव है । इसमें भ्रष्टाचार की सम्भावना की कमी, कम खर्चीली प्रणाली, स्वस्थ राजनीतिक वातावरण है । इस प्रणाली के प्रमुख दोष इसका अलोकतान्त्रिक होना, राजनीतिक जागरूकता का अभाव, भ्रष्टाचार की सम्भावना माने गये हैं ।

3. गुप्त मतदान प्रणाली:  गुप्त मतदान प्रणाली वह प्रणाली है, जिसमें मतदाता मतदान केन्द्र में जाता है । उसे एक मतपत्र दिया जाता है या फिर इलेक्ट्रॉनिक मशीन का उपयोग किया जाता है । मतपत्र पर निशान लगाकर या बटन दबाकर मतदाता अपने पसन्द के उम्मीदवार का चयन करता है ।

साधारणत: विभिन्न निर्वाचन क्षेत्रों में प्रतिनिधियों के निर्वाचन हेतु निम्नलिखित प्रणालियां प्रयोग में लायी जाती हैं । इसमें प्रमुख रूप से क्षेत्रीय या प्रादेशिक प्रतिनिधित्व प्रणाली है, जिसमें निर्वाचन क्षेत्रों को जिलों अथवा भौगोलिक पट्टी के आधार पर बांट दिया जाता है ।

इस निर्वाचन क्षेत्र के अन्तर्गत एक सदस्यीय निर्वाचन क्षेत्र में एक ही प्रतिनिधि का चुनाव करना होता है । इसे भौगोलिक प्रतिनिधित्व प्रणाली भी कहा जाता है । यह प्रणाली सरल. मितव्ययी, योग्य प्रतिनिधियों के निर्वाचन, मतदाताओं और प्रतिनिधि से प्रत्यक्ष सम्पर्क की दृष्टि से तथा स्थानीय हितों की दृष्टि से उचित है । इसका दोष यह है कि यह सीमित है, अल्पमत पर प्रतिनिधित्व होने के कारण राष्ट्रीय हितों की उपेक्षा की सम्भावना हो जाती है ।

बहुसदस्यीय निर्वाचन क्षेत्र:

जिस निर्वाचन क्षेत्र से एक साथ एक से अधिक प्रत्याशी निर्वाचित होते है, उसे बहुसदस्यीय निर्वाचन क्षेत्र कहा जाता है । इस व्यवस्था में सम्पूर्ण देश को निर्वाचित किये जाने वाले प्रतिनिधियों की संख्या के अनुसार निर्वाचन क्षेत्रों को आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के आधार पर बांट दिया जाता है ।

प्रत्याशी को निर्वाचित होने के लिए निरपेक्ष या पूर्ण बहुमत की आवश्यकता न होकर केवल निर्वाचन कोटा की ही आवश्यकता होती है । मतदाता अपनी वरीयता के क्रम में प्रत्याशियों के पक्ष में मतदान करते हैं और मतों का हस्तान्तरण भी होता है ।

फ्रांस, स्विट्‌जरलैण्ड, बेलियम और आस्ट्रेलिया आदि देशों में भी यह प्रणाली प्रयोग में लाई जाती है । इसमें राजनीतिक दलों को प्राप्त होने वाले मतों के अनुपात में स्थान प्राप्त हो जाता है । बहुसदस्यीय निर्वाचन क्षेत्रों के गुणों में पसन्दीगी का क्षेत्र व्यापक, अल्पसंख्यकों को उचित प्रतिनिधित्व, राष्ट्रीय हित प्रमुख है, तो इसके दोष में इसे जटिल, खर्चीली प्रणाली, उत्तरदायित्व का अभाव आदि के कारण गिनाये जाते हैं ।

साधारण बहुमत एवं आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली-इस प्रणाली से सम्बन्धित एक समस्या इस तथ्य से जुड़ी है कि किसी प्रत्याशी को किस आधार पर निर्वाचित घोषित किया जाये । इसके लिए साधारण बहुमत प्रतिनिधित्व प्रणाली तथा दूसरी आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली अपनायी जाती है । इस प्रणाली की विवेचना में सर्वप्रथम है:

साधारण बहुमत प्रतिनिधित्व प्रणाली-इस निर्वाचन प्रणाली में उस प्रत्याशी को निर्वाचित घोषित किया जाता है, जिसने अन्य प्रत्याशियों की अपेक्षा सर्वाधिक मत प्राप्त किये हैं । इस पद्धति में प्रत्याशी के लिए मतदाताओं द्वारा मतदान में डाले गये कुल मतों का पूर्ण बहुमत या पचास प्रतिशत मत प्राप्त किया जाना आवश्यक नहीं होता ।

सामान्यत: इस प्रणाली का प्रयोग प्रथम निर्वाचन में एकसदस्यीय निर्वाचन क्षेत्रों में किया जाता है । आज अधिकांश देशों में व्यवस्थापिका के निम्न सदन के लिए इस प्रणाली का प्रयोग किया जाता है; क्योंकि व्यवस्थापिका का निम्न सदन ही जनता का प्रतिनिधित्व करता है ।

अत: जनता प्रत्यक्ष रूप से एक निर्धारित समय के लिए अपने प्रतिनिधियों का निर्वाचन करती है । भारत, ब्रिटेन, अमेरिका, कनाडा, जापान और आस्ट्रेलिया आदि ऐसे देश हैं, जहां व्यवस्थापिका के निम्न सदन के लिए इस प्रणाली का प्रयोग किया जाता है । इसमें 25 से 30 प्रतिशत प्राप्त करने वाला प्रत्याशी निर्वाचित हो जाता है ।

आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली:

वर्तमान लोकतान्त्रिक शासन व्यवस्था में देश की विभिन्न जातियों, वर्गो एवं समुदाय को प्रतिनिधित्व प्रदान करने की सर्वाधिक जटिल समस्या है, परन्तु लोकतन्त्रीय शासन व्यवस्था में बहुसंख्यक प्रतिनिधित्व प्रणालियां ही प्रचलन में हैं ।

इसमें अल्पसंख्यकों का उचित प्रतिनिधित्व नहीं हो पाता । अत: राष्ट्रीय या स्थानीय संस्थाओं के निर्वाचन में प्रत्येक जाति, वर्ग, समुदाय को उनके मतदाताओं की संख्या के अनुपात में प्रतिनिधित्व प्रदान करने के उद्देश्य से अंग्रेज दार्शनिक टॉमस हेयर द्वारा आनुपातिक प्रतिनिधि प्रणाली का प्रतिपादन किया गया ।

यह प्रणाली मतों के अनुपात में प्रतिनिधित्व करने वाली सर्वाधिक लोकप्रिय प्रणाली है । इस प्रणाली में कम-से-कम तीन प्रतिनिधियों का निर्वाचन होना चाहिए ।

एकल संक्रमणीय मत प्रणाली:

इस प्रणाली के अन्तर्गत सम्यूर्ण देश को बहुसदस्यीय निर्वाचन क्षेत्रों में विभाजित कर दिया जाता है । प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र में तीन या अधिक प्रतिनिधि निर्वाचित होते हैं । प्रत्येक मतदाता केवल एक ही मत देता है । यदि 12 प्रत्याशियों में से 5 प्रत्याशी चुने जाते हैं, तो मतदाता 12 प्रत्याशियों में से किन्हीं 5 के सामने 1,2,3,4,5 संख्या लिखकर अपनी पसन्द जाहिर करेगा ।

मतदान समाप्त होने के बाद सबसे पहले यह ज्ञात किया जाता है कि निर्वाचन क्षेत्रों में कुल मिलाकर कितने मत डाले गये हैं । यह संख्या ज्ञात हो जाने पर निर्वाचक अंक निकाला जाता है । निर्वाचक अंक मतों की वह निश्चित संख्या है, जो प्रत्याशियों को सफल घोषित किये जाने के लिए आवश्यक होती है ।

निर्वाचक अंक ज्ञात करने के लिए दो विधियां प्रयोग में लायी जाती हैं । पहली विधि के अनुसार डाले गये कुल मतों की संख्या में से निर्वाचित किये जाने वाले सदस्यों की संख्या को भाग दिया जाता है और जो भागफल आता है, उसे ही निर्वाचन अंक मान लिया जाता है, अर्थात डाले गये कुल मतों की संख्या निर्वाचित होने वाले प्रतिनिधियों की संख्या=निर्वाचन अंक ।

उदाहरण के लिए, किसी निर्वाचन क्षेत्र में 10,000 मत पड़े हैं और उससे 4 प्रतिशत प्रतिनिधि चुने जाते हैं, तो 10,000 में 4 का / (भाग) देने पर 2,500 भागफल आयेगा, यही निर्वाचन अंक है, जिसकी प्राप्ति के बिना कोई भी प्रत्याशी निर्वाचित नहीं होगा ।

दूसरी विधि में डाले गये कुल मतों की संख्या में निर्वाचित किये जाने वाले सदस्यों की संख्या में 1 जोड़कर उससे भाग दिया जाता है तथा भागफल में एक जोड़ दिया जाता है । यही संख्या निर्वाचक अंक कहलाती है ।

डाले गये कुल मतों की संख्या + 1 निर्वाचक अंक निर्वाचित होने वाले प्रतिनिधियों की संख्या + 1 उदाहरणार्थ, यदि किसी निर्वाचन क्षेत्र में कुल मिलाकर 1,000000 मत डाले गये हैं और निर्वाचित होने वाले प्रतिनिधियों की संख्या 9 है, तो 1,000000 में (9+1)=10 का भाग देने पर भागफल 10,000 आयेगा ।

उसमें 1 अंक जोड़ देने पर 10,001 होगा । जिन प्रत्याशियों को निर्वाचन अंक के बराबर या उससे अधिक पहली पसन्द के मत मिल जाते हैं, तो उसे निर्वाचित घोषित कर दिया जाता है । यदि पहली पसन्द के प्रत्याशियों की पूर्ति नहीं हो पाती है, तो फिर तीसरे, चौथे, पांचवें में स्थानान्तरित कर दिया जाता है ।

इसके बाद कुछ स्थान रिक्त रह जाते हैं, तो कम अंक प्राप्त प्रत्याशियों को प्रतिशतानुसार मौका दिया जाता है । इस प्रकार इस सार्थक पद्धति को हेयर प्रणाली भी कहा जाता है ।

सूची प्रणाली:

इस प्रणाली में प्रत्याशियों को दलों के अनुसार एक सूची में रख दिया जाता है, जिसमें दलों की संख्या निर्वाचन क्षेत्र से चुने गये प्रतिनिधियों से अलग नहीं होती है । मतदाता अपना मत प्रत्याशी को नहीं, दल को देता है । उदाहरणार्थ, यदि किसी निर्वाचन क्षेत्र में 10,000 मत पड़े हैं, तो उसका निर्वाचन अंक (10,000/5)+1=2001 हुआ, अर्थात् यहां कांग्रेस, भाजपा, समाजवादी, साम्यवादी 4 दल हैं ।

कांग्रेस को 4800/2,000=2, भाजपा 2,500+2,001=1 स्थान, समाजवादी को 2,100-2,001=1 साम्यवादी को कोई स्थान नहीं मिलेगा, तो कांग्रेस प्रथम । शेष क्रमानुसार होंगे । इस प्रणाली में सभी वर्गो को प्रतिनिधित्व मिलता है ।

कोई मत व्यर्थ नहीं जाते । थोड़े-से मतों से जीतना आसान है । इस प्रकार यह प्रणाली कुछ दोषों, जैसे: जटिलता, उत्तरदायित्व का अभाव, खर्चीली प्रणाली, उपचुनाव व राष्ट्रीय एकता के विरुद्ध आदि के आधार पर दोषयुक्त मानी जाती है । कुछ इस पर सरकार की अस्थिरता का आरोप भी लगाते हैं ।

सामुदायिक प्रतिनिधित्व प्रणाली: इस प्रणाली के अन्तर्गत प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र की जनता अपने सम्प्रदाय के आधार पर प्रतिनिधियों का निर्वाचन करती है । स्वतन्त्रता के पूर्व तक यह प्रणाली भारत में अंग्रेजों द्वारा लागू की गयी थी । स्वतन्त्रता के बाद इसे काफी दोषपूर्ण मानकर हटा दिया गया ।

6. उपसंहार:

उपर्युक्त सभी वयस्क मताधिकार प्रणालियों का सम्पूर्ण अध्ययन करने पर यह ज्ञात होता है कि वयस्क मताधिकार प्रणाली लोकतन्त्रीय व्यवस्था का उचित एवं पूर्ण प्रतिनिधित्व करती है । जनसंख्या व क्षेत्रफल की विशालता एवं व्यापकता की दृष्टि से यह प्रणाली अत्यन्त उपयुक्त है ।

भारत जैसे विशाल लोकतान्त्रिक देश के लिए यह प्रणाली निःसन्देह महत्त्वपूर्ण एवं प्रभावी है । हमारे देश में राष्ट्रपति एवं प्रधानमन्त्री के लिए मतदान की भिन्न-भिन्न प्रणालियां हैं । हमारा लोकतन्त्र वास्तव में तभी सफल होगा, जब जनता शिक्षित होगी । निष्पक्ष तथा निर्भय मताधिकार का प्रयोग ही उत्तरदायी सरकार के लिए सार्थक होगा और हमारा लोकतन्त्र एक आदर्श होगा ।

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