Read this article in Hindi to learn about the aims and benefits of rihand dam project in India.
रिहन्द बाँध परियोजना के लक्ष्य (Aims of Rihand Dam Project):
उत्तर प्रदेश की बहूद्देश्यीय परियोजनाओं में रिहन्द परियोजना सबसे बड़ी परियोजना है जो सन् 1966 में पूर्ण हो चुकी है । इस परियोजना के अन्तर्गत रिहन्द नदी पर उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर जिले में सोन नदी के संगम से लगभग 45 किमी. दक्षिण में पिपरी नामक गाँव के निकट जहाँ यह नदी ग्रेनाइट चट्टानों के क्षेत्र से एक अत्यन्त संकरी कंकरों से होकर गुजरती है, नदी के आर-पार एक बाँध बनाया गया है ।
सीमेंट, कंकरीट तथा लोहे से निर्मित यह बाँध 936 मीटर लम्बा तथा 91 मीटर ऊँचा है । नदी तल पर इसकी चौड़ाई लगभग 70 मीटर तथा ऊपर 7 मीटर है । इस बाँध से निर्मित जलाशय को गोविन्द बल्लभ पन्त सागर के नाम से पुकारा जाता है ।
जलाशय 466 वर्ग किमी. क्षेत्र में विस्तृत है तथा इसमें 106008 लाख धन मीटर जल एकत्र किया जा सकता है । इस प्रकार क्षेत्रफल के दृष्टिकोण से हिन्द का जलाशय भाखड़ा के जालशय की तुलना में काफी बड़ा है तथा महत्वपूर्ण विशेषता यह है कि इसके भी अन्दर विभिन्न भागों के निरीक्षण एवं सफाई हेतु 4 सुरंगें बनायी गयी हैं ।
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बाढ़ के जल की निकासी हेतु बाँध में 8.12 मीटर के आकार के 13 फाटकें बनायी गयी हैं जिनसे न्यूनतम 17,273 घन मीटर प्रति सेकण्ड तथा अधिकतम 23,815 घन मीटर प्रति सेकण्ड जल का प्रवाह अनुमानित है ।
रिहन्द योजना द्वारा केवल 5.7 लाख हेक्टेयर भूमि की सिंचाई की जाती है जबकि भाखड़ा परियोजना के लगभग 15 लाख हेक्टेयर भूमि की सिंचाई की जाती है । इसके अतिरिक्त विन्ध्याचल में स्थिर होने के कारण इस परियोजना द्वारा और अधिक क्षेत्र में सिंचाई करना सम्भव भी नहीं है ।
विद्युत-शक्ति गृह (Electric Power House):
मुख्य बाँध के निकट ही इसके दाहिने किनारे पर 3,00,000 किलोवाट विद्युत उत्पादन क्षमता वाला एक शक्ति-गृह बनाया गया है । इस शक्ति गृह में 6 विद्युत इकाइयाँ स्थापित की गयी हैं जिनमें से प्रत्येक की उत्पादन क्षमता 50,000 किलोवाट है ।
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यहाँ उत्पन्न होने वाली जल-विद्युत को उपभोग हेतु लगभग 5,000 किमी. लम्बी तार लाइनों द्वारा उत्तर में बहराइच, पश्चिम में कानपुर तथा पूरब में बलिया तक पहुँचाया जाता है । रिहन्द के विद्युत-गृह को मऊ तथा गोरखपुर के तापीय विद्युत-गृह से जोड़ दिया गया है जिनमें प्रत्येक की क्षमता 15,000 किलोवाट है ।
इसके अतिरिक्त इसे ओबरा के विद्युत गृह से जोड़ दिया गया है जहाँ 6 जल विद्युत उत्पादन इकाइयाँ 50 मेगावाट क्षमता प्रति इकाई स्थापित हैं । इसके साथ इसी ओबरा के 25,000 किलोवाट क्षमता वाले तापीय विद्युत-गृह से भी जोड़ दिया गया है ।
ओबरा बाँध (Obara Dam):
रिहन्द बाँध से लगभग 25 किमी. उत्तर में ओबरा नामक स्थान पर इस नदी पर एक दूसरा बाँध बनाया गया रिहन्द के जलाशय को संतुलित करने के कारण इसे संतुलन बाँध भी कहा जाता है ।
रिहन्द परियोजना के प्रमुख फायदे (Major Benefits of Rihand Project):
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उत्तर प्रदेश की इस प्रमुख बहुउद्देशीय योजना पर लगभग 46 करोड़ रुपया व्यय हुआ है ।
रिहन्द परियोजना के प्रमुख लाभ निम्नवत हैं:
1. रिहन्द बाँध के कारण सोन नदी की घाटी में जल में प्रवाह को नियन्त्रित किया जा सका जिसके फलस्वरूप मिट्टी के कटाव में कमी आयी है ।
2. इस परियोजना के अन्तर्गत निकाली गयी नहरों से सोन घाटी तथा गंगा घाटी के मध्य जल सम्पर्क स्थापित हो सका है तथा आन्तरिक जल मार्गों के विकास में सहायता मिली है ।
3. इस परियोजना के क्रियान्वयन से इस क्षेत्र में मछली-पालन तथा मनोरंजन एवं पर्यटन उद्योग को विशेष प्रोत्साहन मिला है । संक्षेप में यह कहा जा सकता है कि इस बहुधन्धी योजना के क्रियान्वित होने से पूर्वी उत्तर प्रदेश के फैजाबाद, गोंडा, बस्ती, मिर्जापुर, गोरखपुर, देवरिया, बलिया, गाजीपुर, वाराणसी, आजमगढ़, जौनपुर, सुल्तानपुर, इलाहाबाद, रायबरेली, प्रतापगढ़ तथा बहराइच जिलों में एवं इन जिलों के अलावा बिहार एवं मध्य प्रदेश राज्यों के निकटवर्ती क्षेत्रों में आर्थिक विकास की एक नवीन किरण प्रस्फुटिक हुई है ।
4. पूर्वी उत्तर प्रदेश तथा उसके निकटवर्ती क्षेत्र जहाँ यह परियोजना क्रियान्वित की गयी है, चूना पत्थर, लोहा, अभ्रक, बॉक्साइट, ताँबा, सीसा, सोडा आदि अनेक खनिज पदार्थों की दृष्टि से काफी धनी क्षेत्र हैं ।
रिहन्द परियोजना से सस्ती जल-विद्युत की उपलब्धि के कारण जहाँ एक ओर इन खनिजों को उचित ढंग से दोहन आरम्भ हुआ है, वहीं दूसरी ओर इस परियोजना ने इस क्षेत्र के औद्योगिक विकास में विशेष प्रोत्साहन दिया है ।
रेनुकूट का ‘हिन्दालको’ एल्यूमीनियम कारखाना तथा कानोडिया कैमिकल्स चुर्क के राजकीय सीमेंट कारखाने, मिर्जापुर का कास्टिक सोडा का कारखाना तथा प्लास्टिक, अभ्रक आदि अन्य उद्योग इस क्षेत्र में केन्द्रित रिहन्द की सस्ती जल-विद्युत की ही देन हैं ।
5. यहाँ से प्राप्त होने वाली विद्युत का उपयोग उत्तर, उत्तर-मध्य व पूर्वी रेलवे की रेलगाड़ियाँ चलाने में भी किया जा रहा है ।
6. इस परियोजना के अन्तर्गत स्थापित किये गये विद्युत-गृहों से कुल 50,000 मेगावाट विद्युत-शक्ति का उत्पादन होता है । जल-विद्युत की पर्याप्त मात्रा में उपलब्धि के कारण पूर्वी उत्तर प्रदेश के गोरखपुर, देवरिया, बलिया, गाजीपुर, वाराणसी, आजमगढ़, इलाहाबाद, फैजाबाद, गोंडा, बस्ती तथा प्रतापगढ़ आदि 16 जिलों में जहाँ सिंचाई की कोई उचित व्यवस्था नहीं है ।
लगभग 4,000 नलकूप लगाये गये हैं जिनसे लगभग 6 लाख हेक्टेयर भूमि की सिंचाई होती है । इसके अलावा इस परियोजना से बिहार, छत्तीसगढ़ एवं मध्य प्रदेश के कुछ भागों को इस परियोजना से सिंचाई की सुविधा प्रदान की जाती है ।