शीर्ष आठ बहुउद्देशीय नदी घाटी परियोजनाओं | Top 8 Multipurpose River Valley Projects in Hindi.
1. किशाऊ परियोजना (Kishau Project):
टौंस नदी पर बनने वाली 660 मेगावाट की किशाऊ बहुउद्देशीय जलविद्युत परियोजना के निर्माण में आ रही समस्या दूर हो गई है । 10,000 करोड़ की लागत से बनने वाली इस परियोजना में 90% व्यय केन्द्र सरकार द्वारा किया जाएगा ।
किसाऊ बाँध के निचले हिस्से की जलवायु परियोजनाओं में 50% हिस्सेदारी को हिमाचल प्रदेश द्वारा माँग की गई, जिसे केंद्र सरकार ने अस्वीकार कर दिया ।
1 महीने के भीतर उत्तराखण्ड व हिमाचल प्रदेश के संयुक्त उपक्रम (ज्वाइंट वेंचर) बनाने का निर्णय लिया गया है । इसका मुख्यालय देहरादून में होगा । राष्ट्रीय परियोजना होने के कारण केंद्र सरकार को इस प्रोजेक्ट पर 90% व्यय वहन करना चाहिए । उत्तराखण्ड व हिमाचल को अब इस बहुउद्देशीय परियोजना में 10% व्यय करना पड़ेगा ।
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660 मेगावाट की इस परियोजना में उत्तराखण्ड व हिमाचल का 50-50% हिस्सेदारी है । वर्तमान में राज्य सरकार किसाऊ बाँध के निचले हिस्से (डाउन स्ट्रीम) की परियोजनाओं छिबरो, खोदरी, कुल्हाल आदि में से 25% हिमाचल प्रदेश को देती है । यह दक्षिण भारत की बहुउद्देशीय घाटी परियोजना है ।
2. केन-बेतवा लिंक परियोजना (Ken-Betwa Link Project):
इसका शुभारंभ 25 अगस्त 2005 को प्रायद्वीपीय नदी विकास योजना के अंतर्गत किया गया है । ‘अमृत क्रांति’ के नाम से शुरू की गई यह योजना देश के प्रमुख नदियों को जोड़ने की दिशा में एक सफल पहल है । यह अन्य राज्यों को अपने जल विवाद निपटारे हेतु प्रेरित करेगी ।
उत्तर प्रदेश व मध्य प्रदेश की इस संयुक्त परियोजना में केन व बेतवा नदियों को जोड़ा जाएगा जिससे दोनों राज्यों के पानी की कमी वाले कई क्षेत्रों को पेय जल व सिंचाई के लिए पर्याप्त जल उपलब्ध हो सकेगा ।
4,263 करोड़ लागत की इस परियोजना से 8.81 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में सिंचाई होगी व 72 मेगावाट विद्युत उत्पादन होगा । दोनों नदियों को जोड़ने के लिए 73 मीटर ऊँचा दौधन बाँध व 231 किलोमीटर लंबा नहर तैयार किया जाएगा । लिंक नहर बेतवा नदी पर बने बरवा सागर जलाशय में मिलाई जाएगी ।
3. सरदार सरोवर परियोजना (Sardar Sarovar Project):
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सरदार सरोवर परियोजना मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र और गुजरात व राजस्थान की संयुक्त परियोजना है, जो नर्मदा व उसकी सहायक नदियों पर बनाई जा रही है । इस परियोजना में कुल 30 बड़े, 135 मध्यम व 3,000 लघु बाँध बनाए जा रहे हैं ।
30 बड़े बाँधों में से 6 बहुउद्देशीय, 5 जलविद्युत व 19 सिंचाई परियोजनाएँ हैं । इन मुख्य बाँधों में 10 नर्मदा नदी पर व 20 उसकी सहायक नदियों पर बनाए जा रहे हैं ।
नर्मदा नदी के कुल अपवाह क्षेत्र का 86% मध्य प्रदेश में, 12% महाराष्ट्र में और 2% गुजरात में है । नर्मदा और उसकी सहायक नदियों का कुल अपवाह क्षेत्र, सतलज, रावी व व्यास नदियों के कुल अपवाह से अधिक है । पूर्ण होने के पश्चात् यह परियोजना भारत का सबसे बड़ा कमान क्षेत्र विकसित करेगी ।
4. टिहरी परियोजना (Tehri Project):
उत्तराखंड में भागीरथी व भिलांगना नदी के संगम पर यह विश्व का सबसे ऊँचा चट्टान आपूरित बाँध होगा । इस परियोजना से प्रथम चरण में 1000 मेगावाट तथा द्वितीय चरण में 1,400 मेगावाट अर्थात् कुल 2400 मेगावाट बिजली का उत्पादन संभव हो सकेगा । इससे विशाल जनसंख्या को जल आपूर्ति संभव होगी ।
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इससे 2.7 लाख हेक्टेयर कृषि भूमि की सिंचाई संभव होगी । इस प्रकार यहाँ सूखे के प्रभाव को कम किया जा सकेगा । बाढ़ नियंत्रण के साथ इस परियोजना से मत्स्य पालन एवं नहरी परिवहन भी हो सकेगा । क्षेत्र में आधारभूत संरचना का विकास कर रोजगार भी बढ़ाया जा सकेगा एवं इसके अलावा इससे यहाँ पर विकास कार्यों में प्रगति आएगी ।
5. कृष्णा नदी जल बँटवारा (Krishna River Water Sharing):
आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और महाराष्ट्र के मध्य कई दशकों से चले आ रहे कृष्णा नदी जल विवाद पर द्वितीय न्यायाधिकरण द्वारा 30 दिसम्बर, 2010 को निर्णय सुनाया गया । कुल उपलब्ध जल में से आंध्र प्रदेश को 1001 टीएमसी तथा कर्नाटक को 911 टीएमसी जल प्राप्त होगा जबकि महाराष्ट्र को 666 टीएमसी जल की आपूर्ति की जाएगी ।
न्यायाधिकरण ने कर्नाटक को अल्माटी बाँध की ऊँचाई 519 मीटर से बढ़ाकर 524 मीटर करने तथा तद्नुसार 303 टीएमसी जल के संचयन की अनुमति भी प्रदान की है । इस निर्णय के विरुद्ध अपील किसी सम्बंधित राज्य द्वारा मात्र इसी न्यायाधिकरण में तीन माह के भीतर ही की जा सकेगी ।
इस न्यायाधिकरण के पास सर्वोच्च न्यायालय की शक्तियों एवं प्राधिकार है । न्यायाधिकरण के निर्देशानुसार भारत सरकार तीन माह के बाद कृष्णा जल क्रियान्वयन बोर्ड (Krishna Water Implementation Board) की गठन करेगी । न्यायाधिकरण के निर्णय की पुरक्षित मई, 2050 के बाद ही की जा सकेगी ।
6. देवसारी बाँध परियोजना (Devsari Dam Project):
उत्तराखंड की पिंडर घाटी में गढ़वाल के चमोली जिले में पिंडर नदी पर प्रस्तावित 6 बिजली परियोजनाएँ हैं, जिनका स्थानीय लोग विरोध कर रहे हैं । इनमें सबसे बड़ी देवसारी बाँध परियोजना 300 मेगावॉट की है । लोगों के कड़े विरोध के कारण दो बार इसकी जन सुनवाई रद्द करनी पड़ी है ।
वर्ष 2010 हुई वर्षा से इन गाँवों के अलावा पूरी पिंडर घाटी में तीव्र भूस्खलन हुआ था, अतः लोगों को इस परियोजना के बनने से भूस्खलन बढ़ने की आशंका है । भूकंप की दृष्टि से जोन 4 और 5 में होने के बावजूद भूगर्भीय सर्वेक्षण को पत्र लिखकर सर्वेक्षण करने का आग्रह किया ।
7. मुल्ला पेरियार बाँध विवाद (Mullaperiyar Dam Dispute):
यह बाँध केरल के इडुक्की जिले में पेरियार नदी पर बना है । इसके जल का उपयोग तमिलनाडु के किसान अपने खेतों की सिंचाई के लिए करते हैं । इस बाँध पर केरल व तमिलनाडु के बीच मतभेद सामने आया है । केरल की चिन्ता बाँध की सुरक्षा के सम्बंध में है ।
प्राचीन बाँध होने के कारण इसके टूटने की आशंका के कारण केरल नया बाँध बनाने के पक्ष में है, अन्यथा केरल के निचले भाग में रहने वाले 25 लाख लोगों का जीवन संकट में पड़ सकता है, जबकि तमिलनाडु के अनुसार नया बाँध बनाने से इसके 25 लाख किसानों के हित प्रभावित होगें ।
54 मीटर ऊँचे और 366 मीटर लम्बे इस बाँध को 1895 ई. में बनाया गया था । इसके जलाशय की क्षमता 44 करोड़ घन मीटर से भी अधिक है । मुल्लापेरियार बाँध केरल में है, जबकि इसके जल का उपयोग तमिलनाडु करता है ।
8. फरक्का बैराज परियोजना (Farakka Barrage Project):
पश्चिम बंगाल में गंगा नदी पर बने फरक्का बाँध का निर्माण कार्य 1961 में शुरू हुआ था जो 1975 में पूरा हो गया था । इस बाँध ने 21 अप्रैल, 1975 से काम करना शुरू कर दिया था । हिंदुस्तान कंस्ट्रशन कंपनी द्वारा निर्मित इस बाँध में 123 गेट हैं । गंगा पर बैराज बनाकर इसके जल को भागीरथी की ओर प्रवाहित करने का विचार सर्वप्रथम आर्थर कॉटन ने 1853 में दिया था ।
गंगा की धारा पर 17 किमी. तक ऊपरी हिस्से पर बने बैराज को फरक्का नाम दिया गया । इस बाँध से फरक्का सुपर थर्मल पावर स्टेशन को भी जल की आपूर्ति होती है व 60 नहरों के द्वारा राज्य के विभिन्न क्षेत्रों में सिंचाई के लिए जल आपूर्ति होती है ।
इस बाँध का निर्माण हुगली नदी पर स्थित कोलकाता बंदरगाह को गाद (सिल्ट) मुक्त करने के लिए किया गया था जो 1950-60 के दशक में एक बड़ी समस्या थी ।