सिरीकल्चर पर अनुच्छेद | Paragraph on Sericulture in Hindi!
रेशम कीट पालन उद्योग बहुत पुराना है । आर्यन ने रेशम के कीड़ों का पता कश्मीर की घाटी में लगाया था । कीट पालन की चर्चा ऋग्वेद, रामायण और महाभारत में भी मिलती है । भारत अकेला देश है जिसमें रेशम की सभी किस्में तैयार की जाती हैं । उदाहरण में शहतूत टसर, ओक-असर, ट्रापिकल टसर, ईरि-टसर तथा मूगा-टसर आदि ।
बम्बेशी मोरी (Bambaya-Mori) नाम के शहतूत की पत्तियों पर पनपने वाले कीड़ों द्वारा उत्पादित रेशम सबसे उत्तम किस्म का रेशम माना जाता है । शहतूत के पेडों पर पाले जाने वाले कीड़ों से उत्पन्न किये जाने वाले रेशम का लगभग 98 प्रतिशत पाँच राज्यों में पैदा किया जाता है ।
इन पाँच राज्यों का आरोही क्रम में स्थान निम्न प्रकार हैं:
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(i) कर्नाटक,
(ii) आन्ध्रप्रदेश,
(iii) प. बंगाल,
(iv) तमिलनाडु, तथा
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(v) जम्मू-कश्मीर ।
थोड़ी बहुत मात्रा में रेशम का उत्पादन असम, अरुणाचल प्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ़, हिमाचल प्रदेश, झारखण्ड, केरल, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, मणिपुर, ओडिशा, पंजाब, उत्तराखण्ड तथा उत्तर प्रदेश में भी उत्पादित किया जाता है । मूंगा रेशम का अधिकतर उत्पादन ब्रह्मपुत्र की घाटी में किया जाता है ।
भारत ने रेशम के उत्पादन में महत्वपूर्ण प्रगति की है । सिल्क बोर्ड की स्थापना से पहले भारत में रेशम का उत्पादन लगभग 1154 मीट्रिक टन प्रतिवर्ष था, जो 2007-08 में बढ्कर 18320 मीट्रिक टन हो गया ।
रेशम के कुल उत्पादन का 65 प्रतिशत हैण्डलूम द्वारा कपड़ा बनाने के काम में आता है । शेष का उपयोग पॉवरलूम में होता है । हैण्डलूम रेशम उद्योग के मुख्य केन्द्र वराणसी (यू.पी.), कांचीपुरम (तमिलनाडु) तथा धर्मावरम (आन्ध्रप्रदेश) में है । रेशम के कपड़े की मुख्य किस्मों में चर्खा रेशम, शिफोन, शिनोन, क्रेप, ओरंजा, साटिन तथा मुर्शिदाबादी सिल्क उल्लेखनीय हैं ।