Read this article in Hindi to learn about:- 1. टिहरी बाँध परियोजना की प्रमुख विशेषताएँ (Main Features of Tehri Dam Project) 2. टिहरी बाँध परियोजना के फायदे एवं नुकसान (Advantages and Disadvantages of Tehri Dam Project) 3. पर्यावरण संबंधी समस्याएँ (Environmental Problems).

टिहरी बाँध परियोजना की प्रमुख विशेषताएँ (Main Features of Tehri Dam Project):

इसका बाँध अत्यन्त विशाल होगा । नदी तल पर चौड़ाई 1125 मीटर व लम्बई 70 मीटर होती । बाँध का शीर्ष 20 मीटर चौड़ा व 575 मीटर लम्बा होगा । इस बाँध के किनारे मिट्टी-पत्थर से निर्मित होंगे । इस बाँध के ऊपरी पार्श्वों का ढाल 1:5 व निचले पार्श्वों का ढाल 1:2 होगा ।

इस बाँध के जलाशय में 7511 वर्ग किमी. जल संग्रहण क्षेत्र का जल एकत्रित होगा । इसमें जल का स्तर अधिकतम 835 मीटर और न्यूनतम 740 मीटर होगा । जलाशय को क्षेत्रफल 42 वर्ग किमी. होगा । इसकी लम्बाई भागीरथी नदी पर 44 किमी. और भिलंगना नदी पर 25 किमी. होगी ।

इस जलाशय के अतिरिक्त पानी की निकासी के लिए एक खुली नहर मुख्य बाँध स्थल की दायीं पहाड़ी पर बनायी गयी है । इसके द्वारा अतिरिक्त पानी की निकासी के लिये एक खुली नहर मुख्य नहर मुख्य बाँध स्थल की दायीं पहाड़ी पर बनायी गयी है ।

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इसके द्वारा अतिरिक्त जल को चार टेटेर गेट द्वारा निकाला जा सकेगा । इस बाँध के निर्माण में भागीरथी नदी के जल की दिशा में परिवर्तन भी किया गया है । इस दिशा परिवर्तन के लिए 11 मीटर व्यास एवं घोड़े के नाल आकार की सुरंगें, दो भागीरथी के दाएँ और दो बाएं तट पर बनायी गयी हैं ।

यह चारों सुरंगें अपना जल भागीरथी में विसर्जित करती हैं । इस दिशा परिवर्तन के लिये दो काफर बाँध बनाये गये हैं । टिहरी बाँध परियोजना का प्रमुख उद्देश्य है-जल विद्युत का उत्पादन । प्रथम चरण में भूमिगत विद्युत गृह बनाये जायेंगे, इस विद्युत केन्द्र की लम्बाई 135 मीटर, चौड़ाई 22.5 मीटर व ऊँचाई 50 मीटर होगी ।

यहाँ पर चार मशीनें लगेंगी । प्रत्येक की क्षमता 250 मेगावाट होगी । इन मशीनों को 8.5 मीटर व्यास की दो सुरंगों द्वारा जल मिलेगा । प्रथम चरण के विद्युत केन्द्र एवं जल वहन प्रणाली की तरह ही द्वितीय चरण का विद्युत केन्द्र होगा ।

दोनों विद्युत केन्द्र एवं जल वहन प्रणाली की तरह ही द्वितीय चरण का विद्युत केन्द्र होगा । दोनों विद्युत केन्द्र एक 50 मीटर गैलरी द्वारा जुड़ेंगे और कुल मिलाकर 2400 मेगावाट विद्युत का उत्पादन करेंगे ।

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यह ऐसी परियोजना है जिसका प्रकृति तथा जनजीवन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है । इस बाँध टिहरी नगर और 23 गाँव पूर्णरूप से एवं 72 गाँव आंशिक रूप से डूब रहे हैं । इससे लगभग एक लाख जनसंख्या विस्थापित हुई है । यह बाँध भूकम्प प्रभावित क्षेत्र में स्थित है ।

यदि कभी भूकम्प का प्रभाव पड़ता है, तो टिहरी बाँध के टूटने से 22 मिनट के अन्दर ऋषिकेश, हरिद्वार और अन्य समीवर्ती नगर 260 मीटर गहरे पानी में डूब जायेंगे, पश्चिमी उत्तर प्रदेश के नगरों में 12 घण्टों के भीतर 15 मीटर की ऊँचाई तक जल भर जायेगा ।

टिहरी बाँध परियोजना के फायदे एवं नुकसान (Advantages and Disadvantages of Tehri Dam Project):

अपने बहुमुखी उपयोग के कारण नदी-घाटी परियोजना एवं बड़े बाँधों का विकासीय गतिविधियों में बहुत योगदान रहा है । भारत को सबसे अधिक नदी-घाटी परियोजनाएँ होने का विशेष स्थान प्राप्त है । बाँधों की संख्या राष्ट्रीय प्रगति का सूचक माना जाता है ।

इन स्थानों पर रहने वाले जन-जातीय लोगों को इन योजनाओं से काम मिलने एवं जीवन सुधार की बहुत आशाएँ रही हैं । इन बाँधों से असीम आर्थिक समृद्धि एवं विकास की सम्भावनाएँ जुटी हैं ।

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ऐसे बाँध बाढ़ों एवं भुखमरी से छुटकारा दिला सकते हैं, बिजली पैदा कर सकते हैं तथा नौकायन एवं मछली उद्योग को बढ़ावा दे सकते हैं । स्वतन्त्रता के पश्चात् भारत में अनेक नदियों पर बाँध बनाये गये, जैसे- भाखड़ा-नांगल, हीराकुण्द, दामोदर, तुंगभद्रा, कोसी, रिहन्द, चम्बल, मयूराक्षी, बेतवा, भद्रावती, कृष्णा आदि ।

प्रत्येक बाँध का पर्यावरण पर प्रभाव पड़ता है । हाल ही में टिहरी बाँध परियोजना एवं नर्मदा नदी घाटी के सरदार सरोवर एवं नर्मदा सागर बाँध चर्चा में हैं । बाँधों को लेकर प्रशासन व पर्यावरणविद् दोनों में मतभेद रहते हैं । प्रशासन जहाँ इनसे होने वाले लाभ को लेकर उत्साहित होता है वहीं पर्यावरणविद् पर्यावरण पर पड़ने वाले दूरगामी प्रभावों को देखते हुए विरोध करते हैं ।

बाँधों के निर्माण से होने वाले कुछ विशेष लाभ निम्नलिखित हैं:

1. पेयजल के लिए ।

2. बाँध पर्यटक स्थल होते हैं ।

3. विद्युत उत्पादन हेतु ।

4. रोजगार के अवसर उपलब्ध होते हैं ।

5. जल का समुचित उपयोग करने के लिए ।

6. सिंचाई के लिए जल उपलब्ध कराने के लिए ।

7. बाँधों से वितरणी नहरें निकालकर गाँव-गाँव तक पानी पहुँचाया जा सकता है ।

टिहरी बाँध परियोजना के पर्यावरण संबंधी समस्याएँ (Environmental Problems of Tehri Dam Project):

बड़े बाँधा के पर्यावरणीय प्रभाव भी कम नहीं हैं जिनके कारण ये हमेशा वाद-विवाद का विषय रहे हैं । यह प्रभाव नदी के ऊपरी भाग तथा निचले भाग, दोनों स्थानों पर हो सकते हैं ।

i. नदी के ऊपरी क्षेत्रों पर प्रभाव (Impact on the Upper Areas of the River):

नदी के ऊपरी क्षेत्रों में बाँधों द्वारा पड़ने वाला प्रभाव निम्नलिखित है:

1. जन जातीय लोगों का विस्थापन ।

2. जलाशयों में गाद एवं तलछट भरना ।

3. वनों, प्राणियों एवं वनस्पति का नष्ट होना ।

4. गैर-वनीय भूमि की हानि ।

5. मछली-संग्रह में बदलाव तथा अंडे देने के स्थान का बदलाव ।

6. रोगवाहकों की उत्पत्ति तथा रोगवाहकों द्वारा मलेरिया जैसे रोगों का फैलना ।

7. जलाशयों के निकट पानी का सड़ना तथा भूमि का जलाक्रान्त होना ।

8. जलाशयों के एक ही स्थान पर अत्यधिक भार के कारण भूकम्पीय सम्भावनाएँ ।

ii. नदी के निचले भागों में प्रभाव (Influence in the Lower Part of the River):

नदी के नीचे के भागों पर बाँधों द्वारा पड़ने वाला प्रभाव निम्नलिखित है:

1. जलवायु बदलाव ।

2. अकस्मात् बढ़ें आना ।

3. नदियों के मुखों से खारे पानी का भीतर आ जाना ।

4. पोषक तत्व जलाशयों में एकत्रित हो जाते हैं ।

5. सिंचाई के कारण भूमि का जलाक्रान्त एवं खारा होना ।

6. रोग वाहकों द्वारा बीमारियों (जैसे मलेरिया) का फैलना ।

7. जल-बहाव का कम होना तथा नदियों में मिट्टी भरना ।

प्राय: बड़े बाँधों को निर्मित करने का उद्देश्य होता है विस्तृत भू-भाग को लाभ पहुँचाना परन्तु इसके दुष्परिणामों को देखते हुए अब छोटे बाँधों के निर्माण पर अधिक ध्यान दिया जा रहा है ।

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