भारत की परिवहन प्रणाली: सड़क, रेल, वायु परिवहन | Transport System of India: Road, Rail, Air Transport in Hindi
सड़क परिवहन (Road Transport):
किसी भी देश के सामाजिक एवं आर्थिक विकास में सड़क परिवहन (Road Transport) की महत्वपूर्ण भूमिका होती है, क्योंकि कम एवं मध्यम दूरियों के लिए यह यातायात का सर्वाधिक सुगम व सस्ता साधन है । वर्तमान समय में देश में कुल यात्री यातायात का 87.4% व माल यातायात का 60% सड़क परिवहन (राजमार्गों) के द्वारा सम्पन्न होता है । भारत में प्रबंधन के आधार पर सड़कों को तीन वर्गों में रखा गया है ।
ये हैं:
1. राष्ट्रीय राजमार्ग (National Highways),
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2. राज्यों के राजमार्ग (State Highways) और
3. सीमावर्ती सड़कें (Border Roads) ।
इसके अलावा जिला सड़कें व ग्रामीण सड़कें भी हैं, जो लघु स्तरीय परिवहन का आधार है ।
1. राष्ट्रीय राजमार्ग (National Highway):
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राष्ट्रीय राजमार्गों के निर्माण, प्रबंधन एवं रख-रखाव की जिम्मेदारी भारत सरकार की है । यह कार्य परिवहन मंत्रालय राज्यों के लोक-निर्माण विभाग, भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण और सीमा सड़क संगठन के माध्यम से करता है या कराता है । इनका नियंत्रण परिवहन मंत्रालय के अधीन केन्द्रीय लोक निर्माण विभाग (C.P.W.D.) द्वारा किया जाता है ।
देश में कुल 235 राष्ट्रीय राजमार्ग हैं । ‘भारत’ 2015 के अनुसार, राष्ट्रीय राजमार्ग प्रणाली के अंतर्गत कुल 96,214 किमी. लम्बी सड़कें शामिल हैं । देश की सड़कों की कुल लम्बाई का यह मात्र 2% ही है किन्तु ये सम्पूर्ण देश के सड़क परिवहन का लगभग 40% यातायात सम्पन्न कराती है ।
इनकी कुल लम्बाई में एकल लेन 24%, दोहरी लेन 54% तथा 4, 6 या 8 लेन का 24% हिस्सा है । आमतौर पर एकल लेन वाले राजमार्गों की चौड़ाई 3.75 मी. तथा ज्यादा लेन वाले राजमार्गों की 3.5 मी. प्रति लेन होती है । देश में राष्ट्रीय राजमार्गों का राज्यवार वितरण बहुत विषम है । राष्ट्रीय राज्यमार्गों की सर्वाधिक लम्बाई वाले पाँच राज्य अधोलेखित हैं ।
2. राज्य राजमार्ग (State Highway):
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राज्यों की सड़कों का निर्माण, रख-रखाव आदि राज्य सरकारों व संघ शासित क्षेत्रों द्वारा सपन्न होता है । राज्य राजमार्गों के निर्माण एवं रख-रखाव का दायित्व राज्य लोक निर्माण विभाग का है । राज्य राजमार्ग सभी जिला मुख्यालयों को प्रदेश विशेष की राजधानी से जोड़ती हैं । सड़क सांख्यिकी : 2015 के अनुसार वर्ष 2014 में राज्य राजमार्गों की कुल लम्बाई 142.6 हजार किमी. है ।
जिला सड़कें (District Roads):
जिला सड़कों के निर्माण तथा रख-रखाव का दायित्व जिला परिषद् और लोक निर्माण विभाग पर है ।
ग्राम सड़कें (Village Roads):
इनमें ग्रामीण सड़कों का निर्माण एवं रख-रखाव ग्राम पंचायतों द्वारा किया जाता है । शत-प्रतिशत केन्द्र प्रायोजित योजना ‘प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना’ के अंतर्गत ग्रामीण इलाकों में सड़क संपर्क से वंचित गांवों को 500 या अधिक आबादी के सभी गांवों को बारहमासी सड़कों से जोड़ दिया गया है । पहाड़ी, रेगिस्तानी व जनजातीय क्षेत्रों में 250 या अधिक आबादी वाले गांवों को सड़कों से जोड़ने का लक्ष्य है ।
3. सीमावर्ती सड़कें (Border Roads):
सीमावर्ती सड़कों का निर्माण एवं प्रबंधन ‘सीमा सड़क विकास बोर्ड’ (Border Road Development Board) द्वारा किया जाता है । इसके अतिरिक्त ‘सीमा सड़क संगठन’ (Border Road Organisation) भी देश के सीमावर्ती क्षेत्रों में थल सेना की सहायता के लिए तीव्र गति से सड़कों एवं हवाई पट्टियों का निर्माण करने की भूमिका निभाती है । यह सिक्किम में ‘प्रोजेक्ट दन्तक’ चलाकर सड़कों की गुणवत्ता का उन्नयन कर रही है ।
अंतर्राष्ट्रीय राजमार्ग (International Highway):
एशिया एवं सुदूरपूर्व आर्थिक आयोग (ECAFE) के एक समझौते के तहत पड़ोसी देशों को जोड़ने वाले देश के कुछ राजमार्गों को अंतर्राष्ट्रीय राजमार्ग घोषित किया गया है । ये अंतर्राष्ट्रीय राजमार्ग दो प्रकार के होंगे । एक वह जो विभिन्न देशों की राजधानियों को मिलाएगा और मुख्य मार्ग होगा । दूसरा वह जो मुख्य मार्गों को नगरों एवं बन्दरगाहों से मिलाएगा ।
प्रथम राजमार्ग लगभग 63,500 किमी. लम्बा है । यह सिंगापुर से होचीमिन्ह सिटी, बैंकॉक और माण्डले होता हुआ बांग्लादेश, भारत व पाकिस्तान को जोड़ता हुआ तुर्की होकर एशियाई राजमार्ग को यूरोपीय अंतर्राष्ट्रीय राजमार्ग से जोड़ता है । भारत में इस मार्ग का भाग लगभग 2,860 किमी. है ।
यह पाकिस्तान की सीमा पर अमूतसर और दिल्ली-आगरा-कानपुर, कोलकाता-ढाका, आगरा-ग्वालियर-हैदराबाद-बेंगलुरु-धनुषकोटि एवं बरही से काठमांडू को जोड़ता है । दूसरा राजमार्ग फिरोजपुर के निकट भारत में आरम्भ होकर दिल्ली, मुरादाबाद, टनकपुर (नेपाल की सीमा) तक 900 किमी. लम्बा है । इसकी अन्य शाखाएँ आगरा, मुम्ब, दिल्ली, मुल्तान, कोलकाता, चेन्नई तथा गोलाघाट लीडो मार्ग है ।
रेल परिवहन (Rail Transport):
भारत में प्रथम रेलमार्ग 16 अप्रैल, 1853 को मुंबई और थाणे के बीच बनाया गया, जिसकी लम्बाई 34 किमी. थी । आज संपूर्ण देश में रेलमार्गों का काफी सघन जाल है । सं.रा.अमेरिका (2,24,792 किमी.), चीन (98,000 किमी.) और रूस (81,157 किमी.) के बाद भारतीय रेल का विश्व में चौथा सबसे बड़ा रेल नेटवर्क है ।
वर्तमान समय में भारतीय रेल व्यवस्था के अंतर्गत 7,500 रेलवे स्टेशन हैं तथा 65,000 किमी. लम्बा रेलमार्ग बिछा हुआ है । इनमें से 33% रेलमार्गों व 44% चालू रेल पटरियों का विद्युतीकरण किया जा चुका है । रेल लाइनों की अधिकतम लंबाई उत्तर प्रदेश में है ।
इसके बाद क्रमशः राजस्थान, महाराष्ट्र, गुजरात व आंध्र प्रदेश आते हैं । असम के बाद अरूणाचल प्रदेश व मेघालय पूर्वोत्तर के ऐसे दो राज्य हो गए हैं, जिनके लिए अब रेल सम्पर्क स्थापित हो गया है ।
दृष्टिहीन लोगों के सफर को आसान बनाने के लिए मैसूर रेलवे स्टेशन पर टेक्सटाइल मानचित्र, ब्रेल लिपि में रेलगाड़ियों का आगमन-प्रस्थान वर्णन इत्यादि आरंभ किया गया है । इस प्रकार ‘मैसूर’ देश का पहला दृष्टिहीन रेलवे स्टेशन बन गया है ।
साथ ही रेलवे अपनी दक्षता बढ़ाने के लिए भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) से मदद लेगा । इसरो ने इस हेतु गगन (जीपीएस एडेड जियो ऑगमेंटेड नेविगेशन) प्रणाली तैयार की है ।
रेल मंत्रालय विजन-2020 (Ministry of Railways Vision 2020):
रेल मंत्रालय विजन-2020 में, सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में रेलवे क्षेत्र के हिस्से को वर्तमान में 1% से बढ़ाकर 3% करने तथा अगले दस वर्षों में 10% वार्षिक रूप से इसके राजस्व को बढ़ाने की परिकल्पना की गई है ।
इस दस्तावेज के अन्य मुख्य उद्देश्य इस प्रकार हैं:
1. 25,000 किमी. नई लाईन बिछाना ।
2. यात्रियों और माल-भाड़ा लाइनों को पृथक कर 6,000 किमी. नेटवर्क को चार गुना करना ।
3. 14,000 किमी. रेल लाइन का विद्युतीकरण करना ।
4. गेज परिवर्तन को पूरा करना ।
5. यात्री रेलगाड़ियों के लिए 160-200 किमी. प्रतिघण्टा की रफ्तार का लक्ष्य हासिल करना ।
6. 2,000 किमी. की उच्च गति की रेल लाइनों का निर्माण करना ।
देश में अनेक प्रकार की रेल लाइनें विद्यमान हैं, जिसके कारण परिवहन सम्बंधी समस्या बढ़ जाती है । छोटी रेल लाइनों का परिवहन अधिक समय लेनेवाला एवं बहुत खर्चीला है ।
इस समस्या के निराकरण के लिए भारतीय रेलवे द्वारा ‘यूनीगेज प्रोजेक्ट’ अर्थात् एक समान रेलवे लाइन की परियोजना 1992 ई. में प्रारम्भ की गई है, जिसके अंतर्गत देश की सभी छोटी व मध्यम लाइनों को बड़ी लाइनों में परिवर्तित किया जाना है । ‘विवेक एक्सप्रेस’ देश की सबसे लम्बी दूरी तय करने वाली रेलगाड़ी है, जो डिब्रूगढ़ से कन्याकुमारी के बीच 4,286 किमी. की दूरी तय करती है ।
इससे पहले हिमसागर एक्सप्रेस जो जम्मूतवी से कन्याकुमारी के बीच सबसे लम्बी दूरी (3,726 किमी.) तय करती थी । पूर्वोत्तर रेलवे के मुख्यालय गोरखपुर का रेलवे प्लेटफॉर्म विश्व का सबसे लम्बा प्लेटफॉर्म (1.3 किमी.) बन गया है । इसके पूर्व खड़गपुर विश्व का सबसे लम्बा प्लेटफॉर्म था ।
वायु परिवहन (Air Transport):
भारत में वायु परिवहन का प्रारम्भ 1911 ई. में हुआ जब इलाहाबाद से नैनी के बीच विश्व की सर्वप्रथम ‘विमान डाक सेवा’ का परिवहन किया गया । देश के भीतरी भागों में विमान सेवाओं के संचालन के लिए स्थापित भारतीय विमानन निगम (Indian Airlines Corporation) का मुख्यालय नई दिल्ली है ।
यह देश के आन्तरिक भागों के अतिरिक्त समीपवर्ती देशों जैसे- नेपाल, बांग्लादेश, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, श्रीलंका, म्यांमार एवं मालदीव को भी अपनी सेवाएँ उपलब्ध कराता है । वर्तमान समय में ‘इंडियन एयरलाइंस’ के वायुमार्गों की लम्बाई लग भग 69 करोड़ किमी. है ।
1981 ई. में देश की घरेलू उड़ानों के लिए ‘वायुदूत’ (Vayudoot) नामक निगम की स्थापना की गई, जो दुर्गम क्षेत्रों अथवा उन क्षेत्रों को अपनी सेवाएँ उपलब्ध कराता है, जहाँ पर इंडियन एयरलाइंस की सुविधाएँ उपलब्ध नहीं हैं । अब इसका इंडियन एयरलाइंस में विलय कर दिया गया है । ‘एयर इंडिया’ विदेशों के लिए विमान सेवाएँ उपलब्ध कराता है ।
इंडियन एयरलाइंस व एयर इंडिया के विलय के बाद इन दोनों को संयुक्त रूप में ‘नेशनल एविएशन कंपनी ऑफ इंडिया लिमिटेड’ (NACIL) का नाम दिया गया । नवंबर, 2010 से इसका नाम बदलकर ‘एयर इंडिया लिमिटेड’ कर दिया गया है । इसका कॉरपोरेट ऑफिस मुंबई में है ।
‘एयर इंडिया’ घरेलू व अंतर्राष्ट्रीय उड़ानों के लिए ब्रांड नाम होगा । एयर इंडिया जुलाई, 2014 से विश्व की प्रमुख एयरलाइंस के गठबंधन स्टार एयरलाइंस का सदस्य बन गया है । वर्तमान समय में भारत का वायु अनुबंध लगभग 103 देशों के साथ है ।
भारत का ‘अंतर्राष्ट्रीय विमानपत्तन (हवाई अड्डा) प्राधिकरण’ देश के बड़े हवाई अड्डों का प्रबंधन करता है जबकि राष्ट्रीय विमानपत्तन प्राधिकरण 86 देशीय हवाई अड्डों और रक्षा हवाई अड्डों पर असैनिक उड़ान पट्टियों का प्रबंध करता है ।
उपरोक्त दोनों प्राधिकरणों का विलय कर ‘भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण’ (एएआई) का गठन 1995 ई. में किया गया । यह भारत में नागर विमानन की शीर्ष इकाई है । इसका प्रशिक्षण कॉलेज इलाहाबाद में है । ‘उड़ान प्रशिक्षण विद्यालय’ गोंडिया में अवस्थित है । ‘राष्ट्रीय विमानन प्रबंधन व अनुसंधान संस्थान’ नई दिल्ली में है ।
भारत के विभिन्न हवाई अड्डे (Airports of India):
अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे (International Airports):
भारत में अन्तर्राष्ट्रीय हवाई अड्डों की संख्या में वृद्धि हुई है । वर्तमान समय में छत्रपति शिवाजी हवाई अड्डा (दमदम हवाई अड्डा-कोलकाता), इंदिरा गाँधी अन्तर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा (दिल्ली), मीनाम्बकम (चेन्नई), राजीव गाँधी अन्तर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा (हैदराबाद), कोच्ची, तिरुअनन्तपुरम व कालीकट, बंगलुरु, कायंबटूर, नेदुम्बसरी, अहमदाबाद, नागपुर-पुणे, गुवाहाटी, अमृतसर, जयपुर, लखनऊ, श्रीनगर एवं वास्को-डि-गामा (गोवा) को अन्तर्राष्ट्रीय हवाई अड्डों का दर्जा प्राप्त है ।
केन्द्र सरकार ने बंगलुरु के पास देवनाहाली और बिहार स्थित गया में नया अन्तर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा बनाने की मंजूरी दे दी है । निजी क्षेत्र की सहभागिता से बंगलुरु व हैदराबाद में हवाई अड्डों का विस्तार व आधुनिकीकरण किया जा रहा है ।
प्रधान हवाई अड्डे (Major Airports):
छोटे-बड़े सभी प्रकार के वायुयानों को उतरने एवं उड़ान भरने की सुविधा प्रदान करते हैं । ये अगरतला (अहमदाबाद), राजासंसी (अमृतसर), अमौसी (लखनऊ), पटना, बेगमपेट (हैदराबाद), सेण्ट थॉमस (चेन्नई), सफदरगंज (दिल्ली), गुवाहाटी, जयपुर, तिरुचिरापल्ली, बढ़ापानी (शिलांग) है ।
मध्यम श्रेणी के हवाई अड्डे (Middle-Class Airports):
इसके अंतर्गत इलाहाबाद (बमरौली), औरंगाबाद, बागडोगरा (पश्चिम बंगाल), बाबतपुर (वाराणसी), बैलूरघाट, जूहू (मुम्बई), बड़ोदरा, बेलगाँव, भोपाल, भावनगर, भुज, कोयम्बटूर, भुवनेश्वर, गया, इन्दौर, बैरकपुर, केसौद (जूनागढ़), कांडला, खजुराहो, पोर्टब्लेयर, रायपुर, राजकोट, सिलचर, विजयवाड़ा, विशाखापट्टनम, जबलपुर, तिरुपति, डिब्रूगढ़, बाजपा (मंगलुरु), चकुलिया, पालीघाट (असोम), तेजपुर, कूचबिहार, चण्डीगढ़ बेहाला, गोरखपुर, मदुरै, रातानाडा (जोधपुर), फूलबाग (पन्तनगर), मोहनबाड़ी, लीलाबाड़ी (असोम), कमालचपुर, तुलीहल (इम्फाल), डबोक (उदयपुर), कैलाश शहर, राँची आदि हवाई अड्डे शामिल किए जाते हैं ।
छोटे हवाई अड्डे (Small Airports):
इस श्रेणी के अंतर्गत आने वाले हवई अड्डे- अकोल, बिलासपुर, कुडप्पा, डानाकोंडा (तमिलनाडु), हल्द्वानी, वारंगल, बेलूर, तंजावुर, पन्ना, रक्सौल, शोलापुर, रूपसी, माल्दा, पासीघाट, शैला (असोम), सहारनपुर, राजमहेन्द्री, ललितपुर, झांसी, सतना, जोगबनी, कोटा, कोल्हापुर, खण्डवा, चकेरी (कानपुर नगर), झारसगुडा (ओडिशा), पोरबन्दर, पन्तनगर, पालनपुर है ।
ग्रीन फील्ड एयरपोर्ट (Green Field Airports):
ग्रीन फील्ड एयरपोर्ट ऐसे हवाई अड्डों से हैं, जहाँ पर कार्बन उत्सर्जन को कम करने सम्बंधी विधियों का प्रयोग किया जा रहा है । भारत में हैदराबाद का ‘राजीव गांधी अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा’ एशिया का प्रथम ग्रीन फील्ड एयरपोर्ट है । जुलाई, 2012 में जोधपुर हवाई अड्डे को भी ग्रीन फील्ड एयरपोर्ट के रूप में विकसित करने की अनुमति भारतीय वायु सेना द्वारा प्रदान कर दी गई है ।
केन्द्र सरकार ने अब तक गोवा, नवी मुम्बई, सिंधु दुर्ग (महाराष्ट्र), बीजापुर, गुलबर्ग, हासन (कर्नाटक), शिमोगा, पल्लादि (राजस्थान), कुशीनगर (उत्तर प्रदेश), कन्नूर (केरल), पेकयांग (सिक्किम), दुर्गापुर (पश्चिम बंगाल), डाबरा (मध्य प्रदेश) व ईटानगर ( अरुणाचल) में एक-एक ग्रीन फील विमान तल के निर्माण की सिद्धान्ततः स्वीकृति दे दी है ।
गगन परियोजना (GAGAN Project):
13 जुलाई, 2015 को (जी.पी.एस. सहायता प्राप्त नेविगेशन संवर्द्धित नेविगेशन), औपचारिक रूप से प्रारंभ किया गया । अमेरिका के डब्ल्यूएएएस एवं यूरोप के ईजीएनओएस के बाद भारत एसवीएएस उपलब्धि को प्राप्त करने वाला तीसरा देश है । इस प्रणाली का उपयोग नागरिक उड्डयन की सूक्ष्म आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए जीपीएस की शुद्धता और समग्रता में वृद्धि हेतु किया जाता है ।
इसके साथ ही हवाई मार्गों की सीधी व्यवस्था होने के कारण हवाई मार्गों एवं ईंधन की खपत आदि में कमी आने की सम्भावना है । यह उपग्रह आस्ट्रेलिया से अफ्रीका तक के भौगोलिक क्षेत्र की सूचनाएँ प्रदान करेगा ।
पवनहंस हेलीकॉप्टर्स लिमिटेड (Pawan Hans Helicopters Ltd.):
1987 ई. से कार्यरत (1985 ई. में स्थापित) यह भारत की अग्रणी हेलिकॉप्टर कंपनी है, जो विश्वसनीय हेलीकॉप्टर संचालन के लिए जानी जाती है । इसकी स्थापना मूलतः तेल एवं प्राकृतिक गैस निगम (ONGC) को तेल सम्बंधी अन्वेषण में हेलिकॉप्टर्स सहायता उपलब्ध कराने के लिए की गई थी ।
इसका मुख्यालय दिल्ली के सफदरगंज एयरपोर्ट में है, जबकि कॉरपोरेट अफिस नोएडा में है । इसके 2 क्षेत्रीय कार्यालय मुंबई और नई दिल्ली में है । अपनी सेवाओं के लिए ISO 9001:2000 प्रमाण पत्र पाने वाली भारत की यह एकमात्र विमानन सेवा कंपनी है ।
जल परिवहन (Water Transport):
जल परिवहन (Water Transport) किसी भी देश को सबसे सस्ता यातायात प्रदान करता है । ईंधन की कम खपत, पर्यावरण अनुकूलता और प्रभावी लागत आदि स्वाभाविक फायदों को ध्यान में रखते हुए भारत सरकार रेल और सड़क परिवहन के मुकाबले इसे एक प्रभावी पूरक परिवहन के रूप में विकसित करने के प्रयास कर रही है ।
वर्तमान में देश में लगभग 14,500 किमी. लम्बा नौगम्य जलमार्ग है, जिसमें नदियाँ, नहरें, अप्रवाही जल जैसे झीलें आदि एवं सँकरी खाड़ियाँ शामिल हैं । देश की प्रमुख नदियों में 3,700 किमी. लम्बे मार्ग का ही उपयोग हो पा रहा है । 4,300 किमी. लम्बी नौगम्य नहरों में से मात्र 900 किमी. तक की दूरी ही नौकाओं द्वारा परिवहन के उपयुक्त है ।
बकिंघम नहर (640 किमी. लम्बी) भारत की सबसे लम्बी नौगम्य नहर है । भारत के अन्तर्देशीय जलमार्गों के विकास, रख-रखाव तथा नियमन कै लिए 1986 ई. में ‘भारतीय अन्तर्देशीय जलमार्ग प्राधिकरण’ (Internal Waterways Authority of India) की स्थापना की गई, जिसे अगले ही वर्ष एक निगम का दर्जा दे दिया गया ।
इसका मुख्यालय नोएडा में है, जबकि क्षेत्रीय कार्यालय पटना, कोलकाता, गुवाहाटी व कोच्ची में है । ‘राष्ट्रीय अंतर्देशीय नौ-वहन संस्थान’ पटना में है,। ‘केंद्रीय जल परिवहन निगम’ का मुख्यालय कोलकाता में अवस्थित है । ‘राष्ट्रीय जल क्रीड़ा संस्थान’ गोवा में है । वर्तमान समय में छः राष्ट्रीय जलमार्ग क्रियाशील हैं ।
ये हैं:
राष्ट्रीय जलमार्ग-1 (National Waterway 1):
27 अक्टूबर, 1986 को इसे राष्ट्रीय जलमार्ग घोषित किया गया । यह भारत का सबसे लम्बा जलमार्ग है । इलाहाबाद से हल्दिया के बीच तक का यह जलमार्ग गंगा-भागीरथी एवं हुगली नदी तंत्र के अंतर्गत है । इस जलमार्ग की लम्बाई 1,620 किमी. है । इसके अन्तर्गत हल्दिया से फरक्का (560 किमी.), फरक्का से पटना (460 किमी.) व पटना से इलाहाबाद (600 किमी.) के जलमार्ग शामिल किए गए हैं ।
यह जलमार्ग उत्तर प्रदेश, झारखण्ड (साहेबगंज) व पश्चिम बंगाल से होकर गुजरता है । यह जलमार्ग भारत के सर्वाधिक महत्वपूर्ण जलमार्गों में से एक है, जो यांत्रिक नौका द्वारा पटना तक एवं साधारण नौका द्वारा इलाहाबाद तक नौकायन के योग्य है ।
राष्ट्रीय जलमार्ग-2 (National Waterway 2):
1 सितम्बर, 1988 को इसे राष्ट्रीय जलमार्ग घोषित किया गया । यह जलमार्ग असोम में सादिया से धुबरी तक ब्रह्मपुत्र नदी में 891 किमी. की दूरी में विस्तृत है । जलमार्ग ब्रह्मपुत्र नदी के मुहाने से लेकर डिब्रूगढ़ तक स्टीमर चलाने के योग्य है ।
राष्ट्रीय जलमार्ग-3 (National Waterway 3):
1 फरवरी, 1993 में इसे राष्ट्रीय जलमार्ग घोषित किया गया । यह भारत का प्रथम राष्ट्रीय जलमार्ग है, जिसके सम्पूर्ण भाग में 24 घंटे नौकायन की सुविधा है । इस जलमार्ग की कुल लम्बाई 205 किमी. है । इसका विस्तार केरल के पश्चिमी तटीय क्षेत्र में है ।
इसके अंतर्गत पश्चिमी तट नहर (कोट्टापुरम से कोल्लम-168 किमी.), उद्योगमंडल नहर (कोच्चि से पाथमल सेतु-23 किमी.) व चम्पकारा नहर (कोच्चि से अंबलामुगल-14 किमी.) को शामिल किया गया है ।
राष्ट्रीय जलमार्ग-4 (National Waterway 4):
24 नवम्बर, 2008 को इसे राष्ट्रीय जलमार्ग घोषित किया गया । इसके अंतर्गत भद्राचलम से राजमुंदरी के बीच गोदावरी नदी के जलमार्ग (171 किमी.), वजीराबाद से विजयवाड़ा के बीच कृष्णा नदी जलमार्ग (157 किमी.) तथा काकीनाडा से पुदुच्चेरी के बीच नहर-जलमार्ग (767 किमी.) को शामिल किया गया ।
इस जलमार्ग की कुल लम्बाई 1,095 किमी. है । शोलिंगनालूर से कलपक्कम (दक्षिणी बकिंघम नहर) तक 37 किमी. (उपखण्ड) जलमार्ग की स्वीकृति 24 जनवरी, 2014 को प्रदान किया गया ।
राष्ट्रीय जलमार्ग-5 (National Waterway 5):
24 नवम्बर, 2008 को इसे राष्ट्रीय जलमार्ग घोषित किया गया । इसकी लम्बाई 623 किमी. है । इसके अंतर्गत तलचर से धमरा के बीच ब्राह्मणी नदी तंत्र के जलमार्ग, जियानखली से चरबतिया के बीच पूर्वी तट जलमार्ग, चरबतिया से धमरा के बीच मताई नदी जलमार्ग और मंगलगढ़ी से पारादीप के बीच महानदी के डेल्टाई नदियों के जलमार्ग को शामिल किया गया है ।
राष्ट्रीय जलमार्ग-6 (National Waterway 6):
14 अगस्त, 2013 को इसे राष्ट्रीय जलमार्ग घोषित किया गया । इस जलमार्ग की कुल लम्बाई 121 किमी. है । इसके अन्तर्गत असोम में बराक नदी के जलमार्ग को शामिल किया गया है । इसमें लखीमपुर से भांगा (करीमगंज) तथा भांगा से सिलचर का जलमार्ग आता है । देश के सभी राष्ट्रीय जलमार्गों का विकास हो जाने पर अनुमानतः 3.5 करोड़ टन माल का परिवहन जलमार्गों द्वारा किया जा सकेगा ।
कालादान मल्टी मॉडल पारगमन परिवहन परियोजना (Kaladan Multi-Model Transit Transport Project):
यह प्रोजेक्ट पूर्वी भारत के कोलकाता बंदरगाह को समुद्री पारगमन की सुविधा के माध्यम से म्यांमार के सितवे बंदरगाह से जोड़ेगा । साथ ही यह लेशियो के सितवे बंदरगाह को कालादान नदी में नौपरिवहन सुविधा द्वारा एवं भारत के मिजोरम को सड़क परिवहन से जोड़ेगा । इस परियोजना को 2014 में पूर्ण होना था परन्तु अब यह 2016 तक पूर्ण हो सकेगा ।
पत्तन (Ports):
अंडमान निकोबार द्वीप समूह सहित देश की मुख्य भूमि की 7,517 किमी. लम्बी तटरेखा पर 13 बड़े और 200 मध्यम व छोटे बंदरगाह स्थित है । बड़े बंदरगाहों का नियंत्रण केन्द्र सरकार द्वारा किया जाता है, जबकि छोटे व मंझोले बंदरगाह संविधान की समवर्ती सूची में शामिल हैं, जिनका प्रबंधन एवं प्रशासन सम्बंधित राज्य सरकारों द्वारा किया जाता है ।
हमारे देश में पूर्वी समुद्र तट पर स्थित बड़े बंदरगाह तूतीकोरि, चेन्न, एन्नौर, विशाखापत्तनम, पारादीप, कोलकाता (हल्दिया डॉकयार्ड सहित) हैं, जबकि पश्चिमी तट पर स्थित बंदरगाहों में कांडला, मुम्बई, न्हावा, शेवा, न्यू मंगलुरु, कोचीन तथा मार्मागाओ को शामिल किया जाता है ।
जून, 2010 से ‘पोर्ट ब्लयेर’ बंदरगाह को अंडमान और निकोबार द्वीप समूह के सभी बंदरगाहों के क्षेत्राधिकार के साथ प्रमुख बंदरगाह घोषित कर दिया गया है । इस प्रकार, यह देश का 13वाँ प्रमुख बंदरगाह बन गया है । ये बड़े पत्तन कुल यातायात के लगभग तीन-चौथाई भाग का संचालन करते हैं ।
सागरमाला परियोजना (Sagarmala Project):
इस परियोजना की घोषणा 15 अगस्त, 2003 को की गई थी । यह परियोजना देश के लिए सभी बंदरगाहों को आपस में जोड़ने से संबद्ध है । इसे सागरमाला इसीलिए कहा गया, क्योंकि इस परियोजना के अंतर्गत देश के सभी प्रमुख और गैर-प्रमुख बंदरगाहों को नई तकनीक से युक्त करना व समुद्री व्यापार को बढ़ावा देना शामिल है ।
यह समुद्र तटीय राज्यों के लिए एक महत्वाकांक्षी परियोजना है । इससे न केवल बंदरगाह के द्वारा भी विकास सुनिश्चित होगा बल्कि जिसमें बंदरगाह, विशेष आर्थिक (SEZ) व समुद्र तटक्षेत्र से रेल, सड़क, वायुमार्ग व जलमार्ग के द्वारा संपर्क शामिल होगा । इसके अलावा योजना के अंतर्गत 10 तटीय आर्थिक क्षेत्र (CEZ) भी विकसित किए जाएंगे, जो आर्थिक विकास के केंद्र में होंगे ।
पाइप लाइन नेटवर्क (Pipeline Network):
पाइप लाइनों द्वारा पेट्रोलियम, पेट्रोलियम उत्पादों एवं प्राकृतिक गैस के भारी मात्रा में लंबी दूरी तक पहुँचाने में आसानी होती है । भारत में पाइप लाइनों के माध्यम से ठोस खनिजों का (द्रव्य चूर्ण के रूप में) परिवहन भी किया जाता है । कुद्रेमुख से मंगलौर बंदरगाह तक पाइप लाइन द्वारा लौह-अयस्क पहुँचाया जा रहा है ।
हजीरा-विजयपुर-जगदीशपुर (HBJ) पाइप लाइन 1,750 किमी. लम्बी है तथा हजीरा (गुजरात) से प्रारंभ होकर विजयपुर (मध्य प्रदेश) जाती है और वहाँ से जगदीशपुर (उत्तर प्रदेश) में आकर खत्म हो जाती है । यह 6 उर्वरक संयंत्रों एवं 30 ऊर्जा संयंत्रों को प्राकृतिक गैस की आपूर्ति करता है ।
एक नई पाइप लाइन सलाया (गुजरात) से मथुरा तक बिछाई गई है, जो 1269 किमी. लम्बी है । यह कांडला पत्तन पर आयातित पेट्रोलियम को मथुरा की तेलशोधनशाला तक पहुँचाती है ।
बरौनी-हल्दिया पाइप लाइन द्वारा हल्दिया पत्तन पर आयातित पेट्रोलियम को तथा लकवा-रूद्रसागर-बरौनी पाइप लाइन द्वारा असम के तेल क्षेत्रों से पेट्रोलियम को बरौनी तेलशोधनशाला तक पहुँचाया जाता है ।
इसी प्रकार देश में कई और पाइप लाइनें बिछाई गई हैं, जिससे तेल क्षेत्रों एवं पत्तनों से पेट्रोलियम पदार्थों को विभिन्न तेलशोधन संयंत्रों व अन्य आवश्यक स्थानों पर आपूर्ति की जा रही है । ‘हिंदुस्तान पेट्रोलियम कॉरपोरेशन लिमिटेड’ ने पेट्रोलियम पदार्थों के परिवहन के लिए 1,054 किमी. लम्बे गुजरात के मुंद्रा से दिल्ली तक की पाइप लाइन 3 फरवरी, 2009 से शुरू हो गई ।
भारतीय तेल निगम द्वारा निर्मित पारादीप-हल्दिया पाइप लाइन से परिवहन भी 4 अप्रैल, 2009 को शुरू हो गया है । 330 किमी. लम्बी और 1,420 करोड़ रुपये की अनुमानित लागत से निर्मित इस पाइप लाइन के जरिए खनिज तेल के सम्प्रेषण हेतु कंपनी की पारादीप, हल्दिया व बरौनी रिफाइनरियों को जोड़ा गया है ।
a. ओमान से भारत तक 2,300 किमी. लम्बी गैस पाइप लाइनें बिछाने की भी एक योजना प्रस्तावित है, ताकि सभी दक्षिणी राज्यों को गैस की आपूर्ति की जा सके ।
b. भारत, बंग्लादेश व म्यांमार में त्रिपक्षीय समझौते में पाइप लाइनों के माध्यम से प्राकृतिक गैस की आपूर्ति का महत्वपूर्ण निर्णय जनवरी, 2005 में लिया है । यह पाइप लाइन म्यांमार के आराकान से मिजोरम, त्रिपुरा व बंग्लादेश होते हुए कोलकाता तक जाएगी । इस पाइप लाइन से पूर्वी और पूर्वोत्तर भारत में आर्थिक क्रांति की संभावना है ।
तुर्कमेनिस्तान-अफगानिस्तान-भारत (TAPI) पाइप लाइन परियोजना के भागीदार देशों के सहयोग से 2017-18 तक पूरी हो जाने की आशा है । इस गैस पाइप लाइन का निर्माण एशियाई विकास बैंक (ADB) की सहायता से किया जा रहा है ।
प्रस्तावित तापी गैस पाइप लाइन कुल 1680 किमी. की होगी जिससे तुर्कमेनिस्तान में 145 किमी. अफगानिस्तान में 735 किमी. तथा पाकिस्तान में भारत की सीमा तक 800 किमी. भाग का निर्माण किया जाएगा । भारत द्वारा सार्वजनिक उपक्रम गेल (GAIL) को इस पाइपलाइन से गैस के भारतीय हिस्से की प्राप्ति हेतु नामित किया गया है ।
जगदीशपुर-फूलपुर-हल्दिया (एनर्जी हाइवे) (Jagdishpur-Phulpur-Haldia Energy Highway):
पूर्वी भारत की ऊर्जा आवश्यकताओं को पूरा करने की दिशा में ‘एनर्जी हाइवे’ के रूप में जगदीशपुर-फूलपुर-हल्दिया प्राकृतिक गैस पाइप लाइन के निर्माण की घोषणा 25 अगस्त, 2014 को की गई है । सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी गेल (GAIL) 10,000 करोड़ रुपये के निवेश से 2,050 किमी. लम्बी इस परियोजना का निर्माण करेगी ।
पाइप लाइन के पहले चरण की क्षमता 16 MMSCMD होगी, जिसे दूसरे चरण में बढ़ा कर 32 MMSCMD किया जाएगा । इससे लाभान्वित होने वाले उर्वरक कारखानों में गोरखपुर, बरौनी, सिंदरी और मेटिक्स दुर्गापुर स्थित इकाईयाँ शामिल हैं ।
इनके अलावा बरौनी व हल्दिया स्थित रिफाइनरी, स्टील रिफाइनी, स्टील कारखानों, बिजली संयंत्रों एवं इस क्षेत्र में अन्य छोटे माध्यम और उद्योगों को प्राकृतिक गैस की आपूर्ति की जाएगी । इस एनर्जी हाइवे से पश्चिम बंगाल, बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश को पर्याप्त एवं पर्यावरण अनुकूल ईंधन प्राप्त होगा । यह परियोजना पूर्वी भारत को राष्ट्रीय गैस ग्रिड से जोड़ेगी ।
इस पाइप लाइन से 4 राज्यों के लाखों लोगों को लाभ होगा तथा इस क्षेत्र के 17 मुख्य शहरों में शहर गैस वितरण नेटवर्क लगाया जा सकेगा । इससे इन मुख्य शहरों में पाइप नेचुरल गैस (PNG) सीधे घरों तक पहुँचेगी तथा वाहनों को किफायती कंप्रेस्ट नेचुरल गैस (CNG) का लाभ मिल सकेगा । इसके अलावा पाइप लाइन से इस क्षेत्र के उर्वरक, बिजली और बड़े उद्यमों को फीड स्टॉक की आपूर्ति की जा सकेगी ।
दाभोल-बंगलुरु गैस पाइप लाइन (Dabhol-Bangalore Gas Pipeline):
भारतीय गैस प्राधिकरण लिमिटेड (गेल) की महाराष्ट्र में दाभोल से कर्नाटक में बंगलुरु तक की 1,000 किमी. लम्बी गैस पाइप लाइन का निर्माण संपन्न हो गया । दाभोल-बंगलुरु पाइप लाइन से दक्षिण भारत पहली बार राष्ट्रीय गैस ग्रिड से जुड़ गया है । वर्तमान में भारत विश्व का 7वाँ सबसे बड़ा ऊर्जा उत्पादक देश है । ऊर्जा खपत के मामले में भारत चौथा सबसे बड़ा देश है ।
भारत में कुल खपत में से मुख्य रूप से लगभग 41% खपत तेल और गैस की है और वर्ष 2020 तक भारत के विश्व का सबसे बड़ा ऊर्जा खपत करने वाला देश बन जाने की आशा है । देश का ऊर्जा क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने के उद्देश्य से भारत सरकार ने वर्ष 2003 तक देश की मौजूदा पाइप लाइन की लम्बाई 15,000 किमी. से बढ़ाकर 30,000 किमी. करने की योजना बनाई है ।