Here is a list of top ten water projects of India in Hindi language.
1. दामोदर घाटी परियोजना (Damodar Valley Project):
दामोदर घाटी परियोजना भारत का बहूद्देश्यीय नदी घाटी परियोजना है । निगम 7 जुलाई, 1948 को स्वतंत्र भारत की प्रथम बहूद्देशीय नदी घाटी परियोजना के रूप में, अस्तित्व में आया ।
भारत के जनमानस की धरोहर, डीवीसी, का उद्भव, उच्छृंखल तथा अनियमित दामोदर नदी को नियंत्रित करने के लिए शताब्दी से अधिक तक किये गये प्रयासों के संचयन के रूप में हुआ था । यह नदी बिहार (अब झारखंड) तथा पश्चिम बंगाल के राज्यों को आवृत्त करते हुए 25,000 वर्ग किमी. के क्षेत्र में फैली हुई है ।
दामोदर घाटी में बाढ़ आने की वजह से उसे निरंतर विध्वंस का सामना करना पड़ा जिसमें से इसके विध्वंसकारी प्रमुख प्रलय को प्रथम बार 1730 में रिकार्ड किया । इसके पश्चात् नियमित अंतराल पर विध्वंसक बाढ़ आयी परंतु 1943 की बाढ़ ने अपनी प्रचंड तबाही की छाप हमारे स्मृति पटल पर छोड़ दिया ।
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इसके परिणामस्वरूप बंगाल के राज्यपाल ने बर्द्धमान के महाराज की अध्यक्षता तथा भौतिक विज्ञानी डॉ मेघनाद साहा को सदस्य बतौर जाँच बोर्ड का गठन किया । अपने रिपोर्ट में, बोर्ड ने संयुक्त राष्ट्र अमेरिका के टेनिसी घाटी प्राधिकरण (टीवीए) के अनुरूप एक प्राधिकरण के गठन का सुझाव दिया ।
तत्पश्चात् भारत सरकार ने श्री डब्ल्यू.एल. वुर्दुइन, टीवीए के वरिष्ठ अभियंता को घाटी की समेकित विकास हेतु अपनी अनुशंसा प्रस्तुत करने हेतु नियुक्त किया । तदनुसार, अगस्त 1944 में श्री वुर्दुइन ने दामोदर नदी के एकीकृत विकास पर प्रारम्भिक ज्ञापन प्रस्तुत किया ।
श्री वुर्दुइन के प्रारम्भिक ज्ञापन ने दामोदर घाटी में बाढ़-नियंत्रण, सिंचाई, विद्युत उत्पादन तथा नौचालन हेतु अभिक्लपित एक बहूद्देशीय विकास योजना का सुझाव दिया । भारत सरकार द्वारा नियुक्त चार परामर्शकों ने इसकी जाँच की ।
उन्होंने भी वुर्दुइन की योजना के प्रमुख तकनीकी विशिष्टताओं का अनुमोदन किया तथा तिलैया से शुरू कर मैथन तक निर्माण को शीघ्र प्रारम्भ करने की अनुशंसा की ।
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अप्रैल 1947 तक योजना के क्रियान्वयन के लिए केन्द्रीय, पश्चिम बंगाल तथा बिहार सरकारों के बीच व्यवहारिक रूप से पूर्णतया करार निष्पादित किया गया तथा मार्च 1948 में दामोदर घाटी निगम के गठन के उद्देश्य हेतु तीन सरकारों-केन्द्रीय सरकार तथा पश्चिम बंगाल सरकार और बिहार (अब झारखण्ड) के राज्य सरकारी की संयुक्त सहभागिता की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए केन्द्रीय विधानमंडल द्वारा दामोदर घाटी निगम अधिनियम (1948) पारित किया गया ।
2. रिहन्द परियोजना (Rehand Project):
रिहन्द या रेणु का सोन की सहायक नदी है जो मध्य प्रदेश में ऊदलपुर की पहाड़ियों से निकलकर उत्तर की ओर प्रवाहित होकर सिन्धुरिया नामक स्थान पर पहुँचकर सोन नदी में मिल जाती है । इस नदी की लम्बाई 193 किमी. है ।
वर्षा ऋतु में इस नदी में भयंकर बढ़ें आती है जबकि ग्रीष्म ऋतु में यह नदी एक पतली जलधारा के रूप में सिमट जाती हैं तथा इसके निकटवर्ती प्रदेश सूखा या अकाल की चपेट में रहते हैं ।
अत: इस नदी की वर्षाकालीन जलराशि का समुचित उपयोग करने तथा इसके निकटवर्ती उत्तर प्रदेश, बिहार एवं मध्य प्रदेश के आर्थिक दृष्टि से पिछड़े अंचलों के बहुमुखी विकास हेतु इस नदी पर एक योजना क्रियान्वित करने के लिए सर्वप्रथम सन् 1936-37 में एक ब्रिटिश इंजीनियर जी.एम.बारलो द्वारा पिपरी नामक स्थान पर बाँध बनाने का प्रस्ताव रखा गया था, परन्तु द्वितीय विश्व युद्ध के कारण इस प्रस्ताव पर कोई कार्य नहीं किया जा सका ।
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सन् 1945 में इस योजना पर कुछ आरम्भिक कार्य शुरू कर दिये गये थे परन्तु नदी घाटी परियोजना के रूप में इसका वास्तविक निर्माण कार्य सन् 1952 से ही प्रारम्भ हो सका ।
3. नागार्जुन सागर परियोजना (Nagarjuna Sagar Project):
यह भारत की एक प्रमुख नदी घाटी परियोजनाओं में एक हैं । नागार्जुन सागर बाँध परियोजना इस बाँध को बनाने की परिकल्पना 1903 में ब्रिटिश राज के समय की गयी थी । 10 दिसंबर 1955 में इस बाँध की नींव तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने रखी थी ।
नागार्जुन बाँध हैदराबाद से 150 किमी. दूर, कृष्णा नदी पर स्थित है । इसका निर्माण 1966 में पूरा हुआ था । 4 अगस्त, 1967 में पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी द्वारा इसकी दोनों नहरों में पहली बार पानी छोड़ा गया था । यह भारत का सब से उँचा और लंबा बाँध है । इस बाँध से निर्मित नागार्जुन सागर झील दुनिया की तीसरी सब से बड़ी मानव निर्मित झील है ।
4. कोसी परियोजना (Kosi Project):
कोसी नदी अपने मार्ग परिवर्तन तथा विनाशकारी बाढ़ों के लिए कुख्यात कही जाती है । विगत दो सौ वर्षों में यह नदी लगभग 125 किमी. पश्चिम की ओर हट चुकी है ।
इस नदी का उद्गम बिहार के उत्तर में लगभग 40 किमी. दूर तिब्बत के पठार से 5500 मीटर की ऊँचाई से होता है जहाँ से निकलकर यह वृहत हिमालय क्षेत्र में कई तंग घाटियों से होकर तिब्बत तथा नेपाल में प्रवाहित होती हुई बिहार राज्य में प्रवेश करती है तथा इस राज्य में 260 किमी. की यात्रा तय करके गंगा नदी में मिल जाती है ।
वर्षा ऋतु में तो इस नदी का जल कहीं-कहीं 32 किमी. की चौड़ाई में फैल जाता है जिससे बिहार राज्य में प्रतिवर्ष लगभग 3000 से 5000 वर्ग किमी. क्षेत्र जलप्लावित हो जाता है । जिसके फलस्वरूप यह क्षेत्र मलेरिया आदि बीमारियों के प्रकोप से ग्रस्त हो जाते हैं ।
इस नदी का पानी कभी-कभी चौबीस घण्टे में 1 मीटर बढ़ जाता है, जिससे गाँव के गाँव जलमग्न हो जाते हैं । अत: इस विनाशकारी प्रक्रिया को रोकने के लिए कोसो नदी पर एक परियोजना का निर्माण किया गया है ।
5. टिहरी बांध परियोजना (Tehri Dam Project):
यह भारत की एक प्रमुख नदी घाटी परियोजना है । टिहरी बांध दो महत्वपूर्ण हिमालय की नदियों भागीरथी तथा भीलांगना के संगम पर बना है । टिहरी बांध दुनिया में उच्चतम बांधों में गिना जाता है ।
टिहरी बांध करीब 260.5 मीटर ऊंचा है, जो कि भारत का अब तक का सबसे ऊंचा बाँध है भारत का सबसे ऊंचा बाँध भाखड़ा नांगल बाँध था जो करीब 226 मीटर ऊंचा था ।
टिहरी बांध से 3,22 मिलियन घन मीटर पानी को संसय की उम्मीद है इसके जलाशय से तकरीबन 2,70,000 हेक्टेयर भूमि की सिंचाई और तकरीबन 346 मेगावाट पनबिजली की उत्पन्न की उम्मीद है बांध पूरी तरह से डूब टिहरी शहर और 23 गांवों, जबकि 72 अन्य गांवों को आंशिक रूप से लाभ होगा ।
6. भाखड़ा-नांगल परियोजना (Bhakra-Nangal Project):
यह परियोजना देश की सबसे बड़ी बहुउद्देशीय योजना है, जिसके निर्माण कार्य पर कुल 236 करोड़ रुपये का परिव्यय हुआ है । इस परियोजना की शुरुआत 1948 में की गयी थी, जो अब पूर्ण हो चुकी है । यह परियोजना पंजाब, हरियाणा तथा राजस्थान सरकारों का एक संयुक्त प्रयास है ।
इस परियोजना के निम्नलिखित प्रमुख उद्देश्य हैं:
(i) इन्दिरा नहर द्वारा राजस्थान में सिंचाई हेतु आवश्यक जल की आपूर्ति करना ।
(ii) सरहिन्द नहर में जल-प्रवाह की मात्रा को बढ़ाकर सिंचाई क्षेत्र में वृद्धि करना ।
(iii) पंजाब व हरियाणा राज्यों में सतलुज व यमुना नदियों के मध्यवर्ती भाग में सिंचाई सुविधाएँ उपलब्ध कराना ।
7. हीराकुण्द परियोजना (Hirakud Project):
महानदी भारत की एक महत्वपूर्ण नदी है जो छत्तीसगढ़ राज्य के रायपुर जिले में बस्तर की पहाड़ियों से निकलकर अपनी कुल लम्बाई 885 किमी. तथा 860 किमी. लम्बा मार्ग उड़ीसा राज्य में तय करती । इसका प्रवाह क्षेत्र लगभग 1.42 लाख वर्ग किमी. क्षेत्र में फैला हुआ है ।
दामोदर नदी की भांति यह नदी भी अपनी बाढ़ों के लिए प्रसिद्ध है । विगत 100 वर्षों में इस नदी की निचली घाटी विशेष रूप से कटक के आगे का डेल्टाई प्रदेश 30 बार बाढ़ से पीड़ित रहा है । इसके परिणामस्वरूप समय-समय पर इस प्रदेश की काफी जन-धन की हानि हुई है ।
वर्षा ऋतु के अतिरिक्त वर्ष के शेष महीनों में नदी में पानी की काफी अल्प-मात्रा के कारण इसके अपवाह क्षेत्र में सूखा एवं अकाल की दशायें उपस्थित होती रही हैं ।
अत: इस नदी के घाटीवर्ती क्षेत्र के निवासियों को बाढ़, सूखा एवं अकाल से उत्पन्न भीषण समस्याओं से छुटकारा दिलाने तथा इस क्षेत्र का चतुर्मुखी विकास करने के लिए सन् 1948 में महानदी पर एक बहुउद्देशीय परियोजना आरम्भ की गयी जिसे हीराकुण्द परियोजना के नाम से जाना जाता है ।
इस परियोजना के निम्नलिखित प्रमुख उद्देश्य हैं:
1. मत्स्य उद्योग का विकास करना ।
2. राऊरकेला के लोहा इस्पात कारखाने के लिए जल एवं जल-विद्युत की आपूर्ति करना ।
3. बाँधों के निकट विद्युत-गृह स्थापित कर जल विद्युत का उत्पादन करना ।
4. महानदी तथा उसकी सहायक नदियों पर बाँध बनाकर प्राय: प्रतिवर्ष आने वाली बाढ़ों पर नियन्त्रण करना ।
5. बाँधों द्वारा निर्मित जलाशयों से सिंचाई एवं आन्तरिक जल परिवहन हेतु नहरें निकालना ।
उपरोक्त उद्देश्यों के अतिरिक्त मिट्टी के कटाव पर अंकुश लगाना, डेल्टाई भाग में चावल तथा जूट की खेती को प्रोत्साहन देना, वन लगाना तथा घाटीवर्ती क्षेत्र के खनिज संसाधनों का समुचित रूप से दोहन करना आदि ।
8. नर्मदा घाटी परियोजना (Narmada Valley Project):
भारत की पाँचवीं सबसे बड़ी नर्मदा नदी घाटी परियोजना का उद्देश्य, सिंचाई, जल विद्युत उत्पादन व विभिन्न कार्यों के लिए जल की आपूर्ति करना है । यह गुजरात, मध्य प्रदेश और महराष्ट्र की संयुक्त परियोजना है । नर्मदा नदी का उद्गम सतपुड़ा पर्वतमाला की अमरकंटक चोटी से हुआ है ।
इसकी लम्बाई 1312 किमी. है । इस परियोजना के अन्तर्गत नर्मदा व उसकी सहायक नदियों पर 30 बड़े बाँध, 135 मध्यम श्रेणी व 3000 छोटे बाँधों का निर्माण किया जायेगा । इनमें से दो बाँध सबसे बड़े बाँध होंगे, जिनका विस्तार वर्तमान में विवादास्पद विषय बन गया है ।
9. मयूराक्षी परियोजना (Mayurakshi Project):
मयूराक्षी परियोजना यह पश्चिम बंगाल की एक वृहत परियोजना है जिसमें झारखण्ड तथा पश्चिम बंगाल के समीपवर्ती क्षेत्र में मयूराक्षी नदी पर दो बाँध बनाये गये हैं ।
पहला बाँध झारखण्ड में सन्थाल परगना जिले के मेसनजोर पहाड़ी क्षेत्र में पश्चिम बंगाल के सूर नामक नगर से 35 किमी. उत्तर में बनाया गया है जो 640 मीटर लम्बा तथा 47 मीटर ऊंचा है । इसे मेसरजोर अथवा कनाडा बाँध के नाम से जाना जाता है ।
यह सन् 1955 में बनकर तैयार हो चुका था । इस बाँध द्वारा निर्मित जलाशय में 70 हजार हेक्टेयर मीटर जल एकत्र किया जा सकता है । दूसरा बाँध (अवरोधक) इसी नदी पर कनाडा बाँध से लगभग 35 किमी. नीचे पश्चिम बंगाल राज्य के बीरभूम जिले में सूरी नामक स्थान पर बनाया गया है जो 310 मीटर लम्बा है ।
बाँध के दोनों किनारों से दो नहरें निकाली गयी हैं जिनमें से प्रत्येक की लम्बाई 120 किमी. है । इनके द्वारा बीरभूम, मुर्शिदाबाद, बर्दवान जिलों की लगभग 25 लाख हेक्टेयर भूमि की सिंचाई की जाती है । मयूराक्षी परियोजना से बिहार भी काफी लाभान्वित हो रहा है, क्योंकि इसके लगभग दस हजार हेक्टेयर क्षेत्रफल की सिंचाई पश्चिम बंगाल की मयूराक्षी परियोजना की ही देन है ।
सिंचाई सुविधाओं के साथ-साथ इस परियोजना से 400 किलोवाट जल विद्युत शक्ति भी प्राप्त होती है जिसका उपयोग झारखण्ड के संथाल परगना तथा पश्चिम बंगाल के बीरभूम व मुर्शिदाबाद जिलों में किया जाता है ।
10. चम्बल परियोजना (Chambal Project):
यह परियोजना मध्य प्रदेश तथा राजस्थान राज्यों की सम्मिलित योजना है जिसे चम्बल नदी के ऊपर विकसित किया गया है । चम्बल नदी राजस्थान एवं उत्तरी मध्य प्रदेश की एक महत्वपूर्ण नदी है, जो मध्य प्रदेश में विन्ध्याचल श्रेणी के उत्तरी ढालों से 854 मीटर की ऊँचाई से निकलकर लगभग 320 किमी. उत्तर दिशा में बहकर, इन्दौर व सीतामऊ के निकट से होती हुई, मध्य प्रदेश में कुल 362 किमी. की यात्रा करने के उपरान्त राजस्थान में प्रवेश कर जाती है तथा कोटा के निकट पठारी प्रदेश को छोड़कर मैदानी प्रदेश में प्रविष्ट हो जाती है ।
यहाँ से यह उत्तर पूर्वी दिशा में मुड़कर राजस्थान में 306 किमी. प्रवाहित होकर उत्तर प्रदेश में प्रवेश करके इटावा जिले में पहुँचकर यमुना में मिल जाती है । 1045 किमी. की लम्बाई, में विस्तृत इस नदी में 1.4 लाख वर्ग किमी. क्षेत्र का जल बहकर आता है । वर्षा ऋतु में यह नदी पूर्ण जल प्लावित होकर अपनी घाटी के निचले भागों में बाढ़ तथा वर्ष के शेष महीनों में सूखा एवं अकाल की दशाएँ प्रस्तुत करती है ।
अत: नदी की वर्षाकालीन अपार जल राशि का उचित उपयोग करने तथा घाटीवर्ती क्षेत्र के निवासियों को सूखा एवं अकाल की दशाओं से छुटकारा दिलाने हेतु सिंचाई की सुविधाएं उपलब्ध करने हेतु सर्वप्रथम सन् 1943 में चम्बल नदी पर एक परियोजना क्रियान्वित करने का प्रस्ताव रखा गया परन्तु इस परियोजना की वास्तविक शुरुआत सन् 1953 से ही सम्भव हो सकी ।