हड़प्पा अवधि के दौरान अर्थव्यवस्था और व्यापा | Business and Trade during the Harappan Period.
सिंधु सभ्यता के लोगों के जीवन में व्यापार का बड़ा महत्व था । इसकी पुष्टि हड़प्पा मोहेंजोदड़ो और लोथल में अनाज के बड़े-बड़े कोठारों के पाए जाने से ही नहीं होती बल्कि बडे भू-भाग में ढेर सारी मिट्टी की मुहरों (सील) एकरूप लिपि और मानकीकृत माप-तौलों के अस्तित्व से भी होती है ।
हड़प्पाई लोग सिंधु-सभ्यता क्षेत्र के भीतर पत्थर, धातु, हड्डी आदि का व्यापार करते थे । लेकिन वे जो वस्तुएं बनाते थे उनके लिए अपेक्षित कच्चा माल उनके नगरों में उपलब्ध नहीं था । वे धातु के सिक्कों का प्रयोग नहीं करते थे । संभव है कि वे सारे आदान-प्रदान विनिमय द्वारा करते हों ।
अपने तैयार माल और संभवत: अनाज भी नावों और बैलगाड़ियों पर लाद कर पड़ोस के इलाकों में ले जाते और उन वस्तुओं के बदले धातुएँ ले आते । वे अरब सागर के तट पर जहाजरानी करते थे । वे पहिया से परिचित थे, और हड़प्पा में ठोस पहियों वाली गाड़ियाँ प्रचलित थीं ।
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लगता है कि हड़प्पाई लोग किसी-न-किसी प्रकार के आज के इक्के का इस्तेमाल करते थे, पर उनमें आरेदार पहिए नहीं थे । हड़प्पाई लोगों का व्यापारिक संबंध राजस्थान के एक क्षेत्र से था और अफगानिस्तान और ईरान से भी । उन्होंने उत्तरी अफगानिस्तान में अपनी वाणिज्य-बस्ती स्थापित की थी जिसके सहारे उनका व्यापार मध्य एशिया के साथ चलता था ।
उनके नगरों का व्यापार दजला-फरात प्रदेश के नगरों के साथ चलता था । बहुत-सी हड़प्पाई मुहरें मेसोपोटामिया की खुदाई में निकली हैं और प्रतीत होता है कि हड़प्पाई लोगों ने मेसोपोटामियाई नागरिकों के कई प्रसाधनों का अनुकरण किया है ।
हड़प्पाई लोगों ने लाजवर्द मणि (लापिस लाजूली) का सुदूर व्यापार चलाया था । अवश्य ही इस मणि से शासक वर्ग की सामाजिक प्रतिष्ठा बढ़ती होगी । 2350 ई॰ पू॰ के आसपास और उसके आगे के मेसोपोटामियाई अभिलेखों में मेलुहा के साथ व्यापारिक संबंध की चर्चा है; मेलुहा सिंधु क्षेत्र का प्राचीन नाम है ।
मेसोपोटामिया के पुरालेखों में दो मध्यवर्ती व्यापार केंद्रों का उल्लेख मिलता है-दिलमन और मकन । ये दोनों मेसोपोटामिया और मेलुहा के बीच में है । दिलमन की पहचान शायद फारस की खाड़ी के बहरैन से की जा सकती है । उस बंदरगाह नगर में हजारों कब्रें खुदाई का इंतजार कर रही हैं ।