Read this article in Hindi to learn about the practices followed for farming and animal husbandry during Harappan period.
कृषि (Farming):
सिंधु प्रदेश में आज पहले की अपेक्षा बहुत ही कम वर्षा होती है इसलिए यह प्रदेश अब उतना उपजाऊ नहीं रहा । यहाँ के समृद्ध देहातों और शहरों को देखने से प्रकट होता है कि प्राचीन काल में यह प्रदेश खूब उपजाऊ था । अब यहाँ केवल 15 सेटीमीटर वर्षा होती है । ईसा-पूर्व चौथी सदी में सिकंदर का एक इतिहासकार बता गया है कि सिंध इस देश के उपजाऊ भागों में गिना जाता था ।
पूर्वकाल में सिंधु प्रदेश में प्राकृतिक वनस्पति-संपदा अधिक थी जिसके कारण यहाँ अधिक वर्षा होती थी । यहाँ के वनों से ईंट पकाने और इमारत बनाने के लिए लकड़ी बड़े पैमाने पर इस्तेमाल में लाई जाती थी । लंबे अरसे तक खेती का विस्तार बड़े पैमाने पर चराई और ईंधन के लिए लकड़ी की खपत होते रहने से यहाँ की प्राकृतिक वनस्पति-संपदा क्षीण होती गई ।
ADVERTISEMENTS:
इस प्रदेश की उर्वरता का विशेष कारण शायद सिंधु नदी से हर साल आने वाली बाढ़ थी । गाँव की रक्षा के लिए खड़ी की गई पकी ईंट की दीवारों से प्रकट होता है कि बाढ़ हर साल आती थी ।
सिंधु नदी मिस्र की नील नदी की अपेक्षा कहीं अधिक जलोढ़ मिट्टी बहाकर लाती थी और इसे बाढ़ वाले मैदानों में छोड़ जाती थी । जैसे नील ने मिस्र का निर्माण और वहाँ के लोगों का भरण-पोषण किया वैसे ही सिंधु नदी ने सिंध क्षेत्र का निर्माण और वहाँ के लोगों का भरण-पोषण किया ।
सिंधु सभ्यता के लोग बाढ़ उतर जाने पर नवंबर के महीने में बाढ़ वाले मैदानों में बीज बो देते थे और अगली बाद के आने से पहले अप्रैल महीने में गेहूँ और जौ की अपनी फसल काट लेते थे । यहाँ कोई फावड़ा या फाल तो नहीं मिला है, लेकिन कालीबंगा की प्राक्-हडप्पा अवस्था में जो कूँड (हलरेखा) देखे गए हैं उनसे अनुमान लगाया जाता है कि हड़प्पा काल में राजस्थान में हल जोते जाते थें ।
हड़प्पाई लोग शायद लकड़ी के हलों का प्रयोग करते थे । इस हल को आदमी खींचते थे या बैल इस बात का पता नहीं है । फसल काटने के लिए शायद पत्थर के हंसियों का प्रयोग होता था ।
ADVERTISEMENTS:
गबरबंदों या नालों को बाँधों से घेरकर जलाशय बनाने की परिपाटी बलूचिस्तान और अफगानिस्तान के कुछ हिस्सों की विशेषता रही है किंतु लगता है कि नहरों या नालों से सिंचाई की परिपाटी नहीं थी ।
हड़प्पाई गाँव जो अधिकतर बाढ़ वाले मैदानों में थे प्रचुर अन्न उपजा लेते थे जो न केवल उनकी अपनी आवश्यकता की पूर्ति के लिए बल्कि खेती के काम से मतलब न रखने वाले नगरनिवासी शिल्पियों व्यापारियों और सामान्य नागरिकों की जरूरत पूरी करने के लिए भी पर्याप्त होता था ।
सिंधु सभ्यता के लोग गेहूँ, जौ, राई, मटर आदि अनाज पैदा करते थे । वे दो किस्म का गेहूँ और जौ उगाते थे । बनावली में मिला जौ बढ़िया किस्म का है । इनके अलावा वे तिल और सरसों भी उपजाते थे । परंतु हड़प्पाकालीन लोथल में रहनेवाले हड़प्पाइयों की स्थिति भिन्न रही है ।
लगता है कि लोथल के लोग 1800 ई॰ पू॰ में ही चावल उपजाते थे जिसका अवशेष वहाँ पाया गया है । मोहेंजोदड़ो और हड़प्पा में और शायद कालीबंगा में भी अनाज बड़े-बड़े कोठारों में जमा किया जाता था । संभवत: किसानों से राजस्व के रूप में अनाज लिया जाता था और वह पारिश्रमिक चुकाने और संकट की घड़ियों में काम के लिए कोठारों में जमा किया जाता था ।
ADVERTISEMENTS:
यह बात हम मेसोपोटामिया के नगरों के दृष्टांत से कह सकते हैं जहाँ मजदूरी में जौ दिया जाता था । सबसे पहले कपास पैदा करने का श्रेय सिंधु सभ्यता के लोगों को है । चूंकि कपास का उत्पादन सबसे पहले सिंधु क्षेत्र में ही हुआ इसलिए यूनान के लोग इस सिन्डन (Sindon) कहने लगे जो सिंधु शब्द से निकला है ।
पशुपालन (Animal Husbandry):
कृषि पर निर्भर होते हुए भी हड़प्पाई लोग बहुत-सारे पशु पालते थे । वे बैल-गाय, भैंस बकरी भेड़ और सूअर पालते थे । उन्हें कूबड़ वाला साँड़ विशेष प्रिय था । कुत्ते शुरू से ही पालतू जानवरों में थे । बिल्ली भी पाली जाती थी । कुत्ता और बिल्ली दोनों के पैरों के निशान मिल हैं ।
वे गधे और ऊँट भी रखते थे और शायद इन पर बोझा ढोते थे । घोड़े के अस्तित्व का संकेत मोहेंजोदड़ो की एक ऊपरी सतह से तथा लोथल में मिली एक संदिग्ध मूर्तिका (टेराकोटा) से मिला है । गुजरात के पश्चिम में अवस्थित सुरकोटड़ा में घोड़े के अवशेषों के मिलने की रिपोर्ट आई है और वे 2000 ई॰ पू॰ के आसपास के बताए गए हैं परंतु पहचान संदेहग्रस्त हैं ।
जो भी हो इतना तो स्पष्ट है कि हड़प्पाई सभ्यता अश्वकेंद्रित नहीं थी । हड़प्पा संस्कृति के आरंभिक और परिपक्व अवस्था में न तो घोड़े की हड्डियाँ और न ही उसके प्रारूप मिले हैं । हड़प्पाई लोगों को हाथी का ज्ञान था । वे गैंडे से भी परिचित थे ।
मेसोपोटामिया के समकालीन सुमेर के नगरों के लोग भी इन्हीं लोगों की तरह अनाज पैदा करते थे और उनके पालतू पशु भी प्राय: वही थे जो इनके थे । परंतु गुजरात में बस हड़प्पाई लोग चावल उपजाते थे और हाथी पालते थे । ये दोनों बातें मैसोपोटामिया के नगरवासियों पर लागू नहीं होती हैं ।