Read this article in Hindi to learn about:- 1. बियरिंग का परिचय (Introduction to Bearing) 2. बियरिंग का उपयोग (Functions of Bearing) 3. हाउसिंग (Housing) 4. मेटल्स (Metals) 5.  सिंथेटिक मेटीरियल्स (Synthetic Materials) 6. रीफिलिंग विधि (Refilling Process).

Contents:

  1. बियरिंग का परिचय (Meaning of Bearing)
  2. बियरिंग का उपयोग (Functions of Bearing)
  3. बियरिंग हाउसिंग (Bearing Housing)
  4. बियरिंग मेटल्स (Bearing Metals)
  5. बियरिंग के लिए सिंथेटिक मेटीरियल्स (Synthetic Materials for Bearing)
  6. बियरिंग की रीफिलिंग विधि (Refilling Process of Bearing)


1. बियरिंग का परिचय (Meaning of Bearing):

वर्कशाप में पॉवर को ट्रांसमिट करने का मुख्य माध्यम शाफ्ट है क्योंकि शाफ्ट के ऊपर ही कार्य के अनुसार पुली, गियर और केम आदि को फिट करके पॉवर को ट्रांसमिट किया जाता है ।

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शाफ्ट जब प्रयोग में लाई जाती है तो जिस माध्यम के द्वारा इसे पकड़ा या सहारा दिया जाता है उसे बियरिंग कहते हैं । अत: बियरिंग एक प्रकार का मशीन का अंग है जिसका प्रयोग शाफ्ट को पकड़ने और सहारा देने के लिए किया जाता है । इससे शाप सुगमता से फ्री चाल ले सकती है ।


2. बियरिंग का उपयोग (Functions of Bearing):

बियरिंग के निम्नलिखित मुख्य उपयोग होते हैं:

i. शाफ्ट को सहारा देने के लिये ।

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ii. शाफ्ट को पकड़ने और गाइड करने के लिए ।

iii. गति के समय शाफ्ट पर रगड की गर्मी कम करने के लिए ।


3. बियरिंग हाउसिंग (Bearing Housing):

बियरिंग को जिस माध्यम के द्वारा पकड़ा जाता है उसे बियरिंग हाउसिंग कहते हैं । हाउसिंग प्रायः दो पीस में होते हैं । नीचे वाला पीस बोल्ट और नट की सहायता से अच्छी तरह फिक्स कर दिया जाता है क्योंकि यही पीस शाफ्ट और लोड को सहारा देता है । इसके दोनों ओर दो स्टड लगे होते हैं जिनके साथ ऊपर वाला पीस नट लगाकर कसा जा सकता है । हाउसिंग के ऊपर वाले पीस को कसने से पहले शाफ्ट का अलाइनमैंट अवश्य चैक कर लेना चाहिए ।

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बियरिंग के लिए बेडिंग:

बियरिंग के लिए बेडिंग करने के लिए हाउसिंग के नीचे वाले पीस को फिट करते समय फांउडेशन बोल्ट के लिए मार्किंग करके बोल्ट को ऐसे फिक्स किया जाता है कि उसकी चूड़ी वाला भाग आवश्यकतानुसार बाहर रहे । इसके बाद हाउसिंग के नीचे वाले पीस को फाउंडेशन बोल्ट के साथ नट के द्वारा कस दिया जाता है । बियरिंग के लिए हाउसिंग के नीचे वाले पीस को बांधने की व्यवस्था को बियरिंग के लिए बेडिंग कहते हैं ।

लोडिंग:

बियरिंग पर लोड कई प्रकार से बल लगाता है जिसे लोडिंग कहते है । जैसे जर्नल बियरिंग में लोड शाफ्ट के अक्ष के समकोण में बल लगाता है और थ्रस्ट बियरिंग में लोड शाफ्ट के अक्ष के समानान्तर बल लगता है ।


4. बियरिंग मेटल्स (Bearing Metals):

फ्रिक्शन बियरिंग प्रायः नॉन-फेरस मेटल से बनाए जाते हैं जिनमें से निम्नलिखित मुख्य हैं:

(i) ब्रास:

यह एक मुलायम नॉन फेरस एलॉय है जिसका प्रयोग प्रायः बुश और जर्नल बियरिंग बनाने के लिए किया जाता है ।

(ii) गन मेटल:

यह बास की अपेक्षा हार्ड धातु होती है जिसको कॉपर, जिंक और टिन का मिश्रण करके बनाया जाता है । इस धातु पर पानी और वातावरण का असर कम होता है । इस धातु से प्रायः इंजन के बियरिंग बनाए जाते हैं ।

(iii) ब्रांज:

यह धातु बास की अपेक्षा हार्ड होती है । इसको कास्टिंग भी किया जा सकता है । इसका प्रयोग बुश और जर्नल बियरिंग बनाने के लिए किया जाता है ।

(iv) फास्कर ब्रांज:

यह धातु साधारण बाज की अपेक्षा अधिक हार्ड होती है । इसको कास्टिंग किया जा सकता है और इस पर पानी का असर नहीं पड़ता है । प्रायः साधारण कार्यों के बियरिंग बनाने के लिए इस धातु का प्रयोग किया जाता है ।

(v) मैंगनीज ब्रांज:

यह फास्फर ब्रांज की अपेक्षा अधिक हार्ड होती है जिस पर जंग नहीं लगता है । इसका प्रयोग प्रायः ऐसे बियरिंग बनाने के लिए किया जाता है जिनको भारी लोड और मीडियम स्पीड पर चलाना होता है ।

(vi) व्हाइट मेटल:

यह धातु लैड, टिन, कॉपर और एंटीमनी का एलॉय होती है । इसमें हार्डनैस और लो मेल्टिंग प्वाइंट का गुण होता है । इस धातु से प्रायः शैल बियरिंग में लाइनिंग की जाती है ।

(vii) बैबिट मेटल:

इस धातु का प्रयोग भी शैल बियरिंग में लाइनिंग करने के लिए किया जाता है । कार्य के अनुसार कई प्रकार के टिन बेस और लैड बेस वाले बैबिट मेटल प्रयोग में लाए जाते हैं ।


5. बियरिंग के लिए सिंथेटिक मेटीरियल्स (Synthetic Materials for Bearing):

बियरिंग के लिए प्रायः निम्नलिखित सिन्थेटिक मेटीरियल प्रयोग में लाये जाते हैं:

i. प्लास्टिक्स:

आजकल प्लास्टिक का प्रयोग भी बियरिंग मेटीरियल के लिए किया जाता है । इससे यह लाभ होता है कि इस जंग नहीं लगता, आवाज कम होती है, इसे किसी भी आकार में आसानी से मोल्ड किया जा सकता है और इसे लुब्रिकेशन की आवश्यकता नहीं होती । बियरिंग के लिए कई प्रकार के बियरिंग मेटीरियल्स प्रयोग में लाए जाते है जैसे फैनोलिक्स और नाइलोन आदि ।

ii. लेमिनेडिड फेनोलिक्स:

यह मेटीरियल कॉटन फेब्रिक अस्बेस्टोस आदि को फेनोलिक रोसिन के द्वारा जोड़ कर बनाया जाता है । यह मेटीरियल झटाकों को आसानी से सहन कर लेता है और इसमें स्ट्रेंग्थ भी अधिक होती है । इस मेटीरियल में थर्मल कंडक्टिविटी कम होती है, इसलिए इसे ठंडा रखने के लिए सावधानी बरतनी चाहिए । इसकी लोड क्षमता 42 कि.ग्रा. प्रति वर्ग से.मी. होती है और अधिकतम सरफेस स्पीड 762 मीटर प्रति मिनट होती है ।

iii. नाइलोन:

इस मेटीरियल के बियरिंग छोटे साइज के होते हैं और हल्के जोड़ के लिए प्रयोग में लाये जाते हैं । इसमें रगड़ की गर्मी कम पैदा होती है और इसमें लुब्रिकेशन की आवश्यकता भी नहीं होती है । इसकी लोड क्षमता 70 कि.ग्रा. प्रति वर्ग से.मी. होती है और अधिकतम सरफेस स्पीड 305 मीटर प्रति मिनट होती ।


6. बियरिंग की रीफिलिंग विधि (Refilling Process of Bearing):

शैल बियरिंग को रीफिल करने के लिए निम्नलिखित कार्य-क्रियाएं की जाती हैं:

i. पुरानी लाइनिंग को साफ करना:

शैल बियरिंग को गर्म करके व्हाइट मेटल या बैबिट मेटल की पुरानी लाइनिंग को साफ किया जाता है ।

ii. ग्रीस को साफ करना:

लाइनिंग साफ करने के बाद बियरिंग में लगी हुई ग्रीस को साफ करना चाहिए । इसके लिए पानी में थोड़ा सा कास्टिक सोडा मिलाकर पानी को गर्म करके शैल को उसमें डालकर साफ किया जा सकता है ।

iii. पिकलिंग:

ग्रीस को साफ करने के बाद बियरिंग की सरफेस पर रफनैस लाने के लिए पिकलिंग की जाती है जिससे बियरिंग की सरफेस के साथ व्हाइट मेटल या बैबिट मेटल की पकड मजबूत होती है । पिकलिंग करने के लिए 15% वाला सल्फ्यूरिक एसिड का घोल प्रयोग किया जाता है जिसको सरफेस पर 4 या 5 मिनट तक लगाया जाता है । इसके बाद कास्टिक सोडा मिले हुए पानी से बियरिंग को साफ कर देना चाहिए ।

iv. टिनिंग:

जिस सरफेस पर लाइनिंग करनी होती है उसको पहले टिनिंग कर लिया जाता है अर्थात् पिघले हुए टिन की पतली सी तह लगा दी जाती है । टिनिंग करने से यह लाभ होता है कि पिघला हुआ व्हाइट मेटल या बैबिट मेटल आसानी से सरफेस के साथ चिपककर भर जाता है ।

v. बियरिंग को क्लेम्प करना:

शैल बियरिंग के दोनों पीसों को एक जिग के द्वारा क्लेम्प कर दिया जाता है और बीच में राउंड ब्लॉक अर्थात् कोर सेट कर दिया जाता है । कोर का साइज शाफ्ट के साइज से थोड़ा कम होना चाहिए ।

vi. व्हाइट मेटल या बैबिट मेटल को पिघलाना:

व्हाइट मेटल या बैबिट मेटल को एक बर्तन में डालकर हल्के ताप पर पिघलाना चाहिए । इसको गर्म करने के लिए व्हाईट मेटल या बैबिट मेटल को गलनांक से लगभग 50°C अधिक तापमान रखकर धातु को पिघलाना चाहिए । पिघलाने के बाद क्लेम्प किये हुए शैल में भर देना चाहिए । धातु को भरने से पहले शैल को थोड़ा-सा गर्म कर लेना चाहिए जिससे नमी दूर हो जाती है ।

vii. धातु को भरना:

व्हाइट मेटल या बैबिट मेटल को पिघालने के बाद क्लेम्प किये हुए शैल में भर देना चाहिए । धातु को भरने से पहले शैल को थोड़ा-सा गर्म कर लेना चाहिए । जिससे नमी दूर हो जाती है ।

viii. मशीनिंग और स्क्रेपिंग करना:

व्हाइट मेटल या बैबिट मेटल की रीफिलिंग के बाद सही साइज के लिए बियरिंग को मशीनिंग और स्क्रेपिंग करना चाहिए ।


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