Here is a list of top three cutting tools used in industries in Hindi language.

1. स्पेशल फाइलें (Special Files):

वर्कशाप में कार्य करते समय कई ऐसे कार्य भी करने पड़ते हैं जिनको साधारण फाइल के द्वारा नहीं बना सकते हैं । इसलिये ऐसे कार्यों को करने के लिये स्पेशल फाइलें बनाई गई हैं जो कार्यों के अनुसार भिन्न-भिन्न आकारों और साइजों में पाई जाती हैं ।

प्रायः निम्नलिखित प्रकार की स्पेशल फाइलें प्रयोग में लाई जाती हैं:

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I. स्विस या नीडल फाइलें:

इस प्रकार की फाइलें 100 से 200 मि.मी. लंबी पाई जाती हैं परंतु अधिकतर 100 मि.मी. साइज की फाइल ही प्रयोग में लाई जाती हैं । ये प्राय: सेट में पाई जाती हैं जिसमें 12 भिन्न-भिन्न आकार की फाइलें होती हैं । इनकी टैंग गोल आकारकी होती हैं और इन पर नर्लिंग की हुई होती है । यह टैंग ही इसके हैंडल का कार्य करती हैं अर्थात् इस पर अलग से हैंडल फिट नहीं किया जाता ।

ये फाइलें मोटाई में बहुत पतली होती हैं । इसलिये थोड़ा-सा दबाव पड़ने पर भी टूट सकती हैं । इस फाइल का अधिकतर प्रयोग टूल और डाई मेकरों, घड़ी साजों के द्वारा किया जाता है । कार्य के अनुसार ये अलग-अलग ग्रेडों में पाई जाती है जैसे 0,2,4,6 इत्यादि ।

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II. वार्डिंग फाइलें:

इस फाइल का क्रॉस सेवन आयताकार होता है परंतु मोटाई में यह बहुत पतली होती है । यह फाइल के कार्य के अनुसार 100 से 200 मि.मी. लंबी पाई जाती है । इस फाइल का अधिकतर प्रयोग तंग नालियों में फाइल करने के लिये किया जाता है । यह फाइल प्राय: चाबी बनाने वालों के द्वारा प्रयोग में जाती है ।

III. पिलर फाइलें:

इस प्रकार की फाइल देखने में हैंड फाइल जैसी होती है. अंतर केवल इतना होता है कि यह कम चौड़ी होती है । यह फाइल कार्य के अनुसार 150 से 250 मि.मी. तक लंबी पाई जाती है । इसके एक या दोनों छोरों पर दांते नहीं कटे होते हैं । इस फाइल का अधिकतर प्रयोग चाबीघाट में फाइल लगाने के लिये किया जाता है । इस फाइल का प्रयोग करने से संलग्न भुजा की फिनिशिंग खराब नहीं होती है ।

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IV. मिल फाइलें:

यह फाइल देखने में फ्लैट जैसी होती है जिसके एक या दोनों छोरों पर गोलाई में दांत बने होते हैं । कार्य के अनुसार यह 150 से 250 मि.मी. लंबी पाई जाती है । इसका अधिकतर प्रयोग आरी के दांत तेज करने के लिये और अर्ध गोल आकार की नालियों को फाइल करने के लिये किया जाता है । मशीन शॉप मैं इस फाइल को फ्लोट फाइल या लेथ फाइल भी कहते हैं ।

V. रैट टेल फाइलें:

यह फाइल देखने में राउंड फाइल जैसी होती है परंतु इसका व्यास कुछ कम होता है और इसकी पूरी बॉडी टेपर में बनी होती है । यह चूहे की पूंछ जैसी दिखाई देती है इसलिये इसको रैट टेल फाइल कहते हैं । कार्य के अनुसार यह 100 से 150 मि.मी. लंबी पाई जाती है । इसका अधिकतर प्रयोग छोटे साइज के सुराखों में किया जाता है ।

VI. क्राचेट फाइलें:

यह फाइल के दोनों छोर गोलाई में होते हैं और यह फाइल चौड़ाई में फ्लैट फाइल की तरह टेपर में बनी होती है । कार्य के अनुसार यह 100 से 250 मि.मी. लंबी पाई जाती है । इस फाइल का अधिकतर प्रयोग अंदरुनी गोलाइयों को फाइल लगाने के लिये किया जाता है ।

VII. क्रासिंग फाइलें:

इस फाइल को शेडबली फाइल भी कहते हैं । इस फाइल के दोनों फेस अलग- अलग अर्ध गोलाइयों में बने होते हैं । इस फाइल का अधिकतर प्रयोग भिन्न- भिन्न साइज की नतोदर सरफेस को बनाने के लिए किया जाता है ।

VIII. बैरेट फाइलें:

यह फाइल त्रिकोण आकार की होती है । इस फाइल का एक फेस चौड़ा और बाकी दोनों फेस कम चौड़े होते हैं । इसके अधिक चौड़ाई वाले फेस पर दांते कटे होते हैं और कम चौड़ाई वाले दोनों फेस पर दांते नहीं कटे होते हैं । यह फाइल कार्य के अनुसार 100 से 200 मि.मी. तक लंबी पाई जाती है । इस फाइल का अधिकतर प्रयोग किसी स्लॉट या ग्रूव के शार्प कार्नर कों फिनिश करने के लिए किया जाता है ।

IX. डाई सिंकर्स फाइलें:

इस प्रकार की फाइलें डाई सिंकरों के लिये बनाई गई है जिससे भिन्न-भिन्न डाईयों को फिनिश किया जा सकता है । ये फाइलें सेट में पाई जाती हैं जिसमें भिन्न- भिन्न आकार की 12 फाइलें होती हैं ।

2. स्क्रेपर (Scraper):

आजकल के औद्योगिक युग में मशीन के कुछ पार्टस ऐसे होते हैं जिनकी सरफेस को अधिक शुद्धता में बनाना पड़ता है चाहे वह सरफेस अंदरूनी हो या बाहरी । इन पार्ट्स को जब फाइलिंग, मशीनिंग या ग्राइडिंग कार्यक्रिया करके बनाया जाता है तो भी इनकी सरफेस पर कुछ हाई स्पॉटस् रह जाते हैं जो कि साधारणतया आंखों से दिखाई नहीं पड़ते ।

इन हाई स्पॉटस् को यदि हटाया न जाये तो ये मशीन की चाल में कुछ रूकावट डाल सकते हैं । जिससे पार्ट्स जल्दी खराब हो सकते हैं । इसलिए इन हाई स्पॉट्‌स को हटाना अति आवश्यक हो जाता है । अत: जिस टूल के द्वारा इन हाई स्पॉटस् को हटाया जाता है उसे स्क्रेपर कहते हैं ।

मेटीरियल:

स्क्रेपर प्रायः टूल स्टील से बनाए जाते हैं और इनके कटिंग ऐज को हार्ड कर दिया जाता है । इसके अतिरिक्त पुरानी घिसी हुई रेतियों से भी स्क्रेपर बनाए जा सकते हैं ।

पार्ट्स:

स्क्रेपर के प्रायः निम्नलिखित मुख्य पार्ट्स होते हैं:

(I) टैंग

(II) बॉडी

(III) हैंडल

(IV) कटिंग ऐज

प्रकार:

प्रायः निम्नलिखित प्रकार के स्क्रेपर प्रयोग में लाए जाते हैं:

I. फ्लैट स्क्रेपर:

इस स्क्रेपर का आकार चपटा होता है । इसका कटिंग ऐज थोड़ा सा कनवेक्स रूप में बना होता है जिससे यह हाई स्पॉट्‌स को आसानी से साफ कर देता है । इस स्क्रेपर का प्रयोग समतल सरफेस पर किया जाता है । भारतीय स्टैंडर्ड के अनुसार साधारण कार्यों के लिए 100 से 200 मि.मी. तक लंबाई वाले फ्लैट स्क्रेपर अधिकतर प्रयोग में लाए जाते हैं जिनकी चौड़ाई 20 से 30 मि.मी. तक होती है ।

II. हाफ राउंड स्क्रेपर:

इस स्क्रेपर का आकार अर्ध गोलाकार होता है और एक सिरा थोड़ा-सा गोलाई में मुड़ा होता है । इस स्क्रेपर का प्रयोग अंदरूनी गोलाकार सरफेस पर किया जाता है जैसे बुश बियरिंग की अंदरूनी सरफेस पर इस स्क्रेपर के द्वारा ही स्क्रेपिंग की जाती हैं । भारतीय स्टैंडर्ड के अनुसार साधारण कार्यों के लिए 125 से 150 मि.मी. तक लंबाई वाले हाफ राउंड स्क्रेपर अधिक प्रयोग में लाए जाते हैं ।

III. ट्रैंगुलर स्क्रेपर:

यह स्क्रेपर त्रिभुजाकार होता है जिसका आगे का सिरा टेपर में बनाकर शार्प प्वाइंट के रूप में बना दिया जाता है । इस स्क्रेपर की बॉडी पर तीन शार्प कटिंग ऐजस बन जाते हैं । इस स्क्रेपर का अधिकतर प्रयोग शार्प कार्नर को साफ करने के लिए और अंदरूनी गोलाकार सरफेस पर किया जाता है । भारतीय स्टैंडर्ड के अनुसार साधारण कार्यों के लिए 125 से 175 मि.मी. तक लंबाई वाले ट्रैंगुलर स्क्रेपर अधिकतर प्रयोग में लाए जाते हैं ।

IV. हुक्ड स्क्रेपर:

इस स्क्रेपर पर हुक्ड सिरा होता है । इस स्क्रेपर का प्रयोग स्लॉंट्स, ग्रुव्स इत्यादि तथा ओरनामेंटल स्क्रेपिंग के लिए भी किया जाता है ।

3. ड्रिल (Drill):

ड्रिल एक प्रकार का कटिंग टूल है जिसका प्रयोग गोल आकार के सुराख बनाने के लिए किया जाता है ।

ड्रिल का साइज:

साइज के अनुसार प्राय: निम्नलिखित प्रकार के ड्रिल पाये जाते हैं:

I. फ्रैक्शन ड्रिल:

ये ड्रिल इंचों में पाये जाते हैं जो कि 1/64” से 1” तक 1/64” के क्रम में बढ़ते है जैसे 1/64”, 1/32”, 3/64” इत्यादि तथा 1” से बड़े साइज के ड्रिल 1/32” के क्रम से बढ़ते हैं जैसे 1”, 1-1/32”, 1-1/16” इत्यादि ।

II. मीट्रिक ड्रिल:

ये ड्रिल मिलीमीटर में पाये जाते हैं जो कि प्रायः 5 मि.मी. से 10 मि.मी. तक 1 मि.मी. के क्रम से बढते हैं जैसे .5 मि.मी., 6 मि.मी. 7 मि.मी. इत्यादि । 10 मि.मी. से बड़े साइज के ड्रिल 5 मि.मी. के क्रम से बढ़ते हैं जैसे 10.5 मि.मी., 11.00 मि.मी. 11.5 मि.मी. इत्यादि ।

III. नंबर ड्रिल:

ये ड्रिल नंबरों में पाये जाते हैं जो कि 1 से 80 नं. तक होते हैं । नं. – 1 का ड्रिल सबसे बड़ा और 80 नं. ड्रिल सबसे छोटे साइज का होता है । नं. 1 ड्रिल का साइज .228 (5.791 मि.मी.) होता है और 80 नं. वाले ड्रिल का साइज 0.0135” (0.343 मि.मी.) होता है ।

IV. लेटर ड्रिल:

ये ड्रिल अक्षरों में पाये जाते हैं जो कि A से Z तक पाये जाते हैं । ‘A’ साइज का ड्रिल का सबसे छोटा और ‘Z’ साइज का सबसे बड़ा साइज का होता है । ‘A’ ड्रिल का साइज .234” (5.944) मि.मी. होता है और ‘Z’ का साइज .413” (10.49 मि.मी.) तक पाये जाते हैं ।

V. भारतीय स्टैंडर्ड ड्रिल:

ये ड्रिल मिलीमीटर साइज में होते हैं जो कि भारतीय स्टैंडर्ड के अनुसार बनाये जाते हैं । इसमें स्ट्रेट शैंक ट्‌विस्ट ड्रिल 2 मि.मी. से 40 मि.मी. तक पाये जाते हैं और टेपर शैंक ड्रिल 3 मि.मी. से 100 मि.मी. तक पाये जाते हैं ।

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