Read this article in Hindi to learn about:- 1. ड्रिलिंग के प्रकार (Types of Drilling) 2. ड्रिलिंग विधि (Methods of Drilling) 3. क्षमता (Capacity) 4. प्रकार (Types) 5. सावधानियां (Precautions).
ड्रिलिंग के प्रकार (Types of Drilling):
I. थ्रू होल ड्रिलिंग:
यह एक प्रकार का आपरेशन है जिसमें ड्रिल और ड्रिल मशीन की सहायता से किसी जॉब में उसके आरपार गोल सुराख किये जाते हैं ।
II. ब्लाइंड होल ड्रिलिंग:
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यह एक प्रकार का आपरेशन है जिसमें ड्रिल और ड्रिल मशीन की सहायता से किसी जॉब में उसकी मोटाई से कम गहराई के गोल सुराख किये जाते हैं । इसमें ड्रिल जॉब के आरपार नहीं जाता है ।
III. पायलट होल ड्रिलिंग:
यह एक प्रकार का आपरेशन है जिसमें ड्रिल और ड्रिल मशीन की सहायता से बड़े साइज का सुराख करने से पहले छोटे साइज सुराख बनाया जाता है ।
इसके निम्नलिखित कारण होते हैं:
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(क) चौड़े चीजल ऐज के कारण ड्रिल को सही लोकेट करने के लिए ।
(ख) बड़े साइज के ड्रिल को सेंटर में करने के लिए ।
(ग) यदि बड़े साइज के ड्रिल को फीड देने के लिए अधिक प्रैशर की आवश्यकता हो ।
ड्रिलिंग विधि (Methods of Drilling):
ड्रिलिंग आपरेशन करते समय निम्नलिखित क्रम को ध्यान में रखना चाहिये:
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I. सर्वप्रथम ड्राइंग के अनुसार जॉब पर ड्रिल होल के लिये मार्किंग कर लेनी चाहिये ।
II. ड्रिल होल के साइज के अनुसार डिवाइडर की सहायता से एक वृत्त खींच लेना चाहिये यदि ड्रिल होल बडे साइज का हो तो उसके लगभग आधे साइज का एक और वृत्त खींच लेना चाहिये जिससे पायलट होल किया जा सके ।
III. खिंचे हुए वृत्त पर कम से कम चार स्थानों पर डाट पंच की सहायता से हल्के पंच के निशान लगा देने चाहिये और वृत्त के सेंटर में सेंटर पच से पंच का निशान लगा देना चाहिये ।
IV. कार्य के अनुसार ड्रिल का चयन कर लेना चाहिये और उसके कटिंग ऐंगल को धातु के अनुसार सही कोण में ग्राइंड कर लेना चाहिये ।
V. ड्रिल मशीन को चैक कर लेना चाहिये कि वह चालू हालत में है कि नहीं । यदि मशीन चालू हालत में हो तो उसे अच्छी तरह से साफ कर लेना चाहिये ।
VI. मार्किंग किये हुए जॉब को ड्रिल मशीन के टेबल के साथ मशीन वाइस व क्लेम्प की सहायता से अच्छी तरह से बाँध लेना चाहिये । यदि जरूरत पड़े तो जॉब के नीचे लकड़ी की पेकिंग भी दे देनी चाहिये ।
VII. ड्रिल मशीन के टेबल को जरूरत के अनुसार ऊँचाई में समायोजित कर लेना चाहिये ।
VIII. ड्रिल को मशीन के स्पिंडल के साथ अच्छी तरह से बांध लेना चाहिए और ड्रिल को सेंटर में लगे पच के निशान की शीध में सेट कर लेना चाहिये ।
IX. ड्रिल मशीन के स्पिंडल को घुमा कर चैक कर लेना चाहिये कि ड्रिल सेंटर में घूम रहा है कि नहीं ।
X. ड्रिल मशीन की स्पीड को आवश्यकता के अनुसार सेट कर लेना चाहिये ।
XI. ड्रिल मशीन को चालू करके ड्रिलिंग आपरेशन शुरू करना चाहिए ।
XII. जब ड्रिल जॉब के अंदर थोड़ा सा प्रवेश कर जाये तो मशीन को बंद करके चैक कर लेना चाहिए कि ड्रिल सेंटर में हो रहा है कि नहीं ।
XIII. यदि ड्रिल सेंटर से आउट हो जाये तो राउंड नोज चीजल का प्रयोग करके ड्रिल होल का सेंटर ठीक करके दुबारा ड्रिलिंग शुरू करनी चाहिये ।
XIV. ड्रिलिंग करते समय यदि ड्रिल जॉब के दूसरे सिरे तक पहुंच जाये तो फीड कम कर देनी चाहिए ।
XV. धातु के अनुसार उचित कुलेंट का प्रयोग करना चाहिये ।
XVI. कटे हुए चिप्स को ब्रुश के द्वारा साफ करना चाहिये ।
XVII. ड्रिलिंग आपरेशन समाप्त होने के बाद मशीन व जॉब को अच्छी तरह से साफ कर देना चाहिये ।
ड्रिलिंग मशीन की क्षमता (Capacity of Drilling Machines):
ड्रिल मशीन के द्वारा अधिक से अधिक जितने साइज का सुराख किया जा सकता है वह ड्रिल मशीन की क्षमता कहलाती है ।
ड्रिलिंग से सम्बधित कुछ महत्वपूर्ण संकेत:
i. कास्ट आयरन के जॉब पर ड्रिलिंग करते समय यदि अन्त में फीड को कम न किया जाए तो किए हुए होल के पिछले सिरे पर सुराख के चारों ओर टूटे हुए सिरे दिखाई देते हैं ।
ii. प्लास्टिक पर ड्रिलिंग करते समय कुलेंट के रूप में कम्प्रैष्ट एअर का प्रयोग किया जाता है ।
iii. ड्रिलिंग करते समय फीड की दर बहुत अधिक होने से ट्विस्ट ड्रिल जॉब पर रफ होल बनाएगा ।
ड्राइव के प्रकार (Types of Drive):
ड्रिल मशीन के स्पिंडल को भिन्न-भिन्न चालों से चलाने के लिए विभिन्न प्रकार के साधान जुटाए जाते हैं जिससे मशीन को कार्य और ड्रिल के साइज के अनुसार स्पीड में चला सकते हैं ।
मशीन को चलाने के लिए प्रायः निम्नलिखित साधन प्रयोग में लाते हैं:
i. काउंटर शाफ्ट पद्धति:
इस पद्धति में एक मेन शाफ्ट होती है जिसको प्रायः बिजली की मोटर के द्वारा चलाया जाता है । मेन शाफ्ट को पुली और बेल्ट के द्वारा काउंटर शाप से जोड़ा जाता है और काउंटर शाफ्ट से बेल्ट और पुली का प्रयोग करके मशीन के स्पिंडल को चलाया जाता है ।
इस प्रकार एक मेन शाफ्ट से कई मशीनें एक साथ चलाई जा सकती है । यह पद्धति पुराने युग में प्रयोग में लाई जाती थी । आजकल इस पद्वति का प्रयोग बहुत कम होता है ।
ii. इंडीविजुअल मोटर पद्वति:
इस पद्धति में प्रत्येक मशीन के साथ अलग से मोटर लगी होती है । इस प्रकार प्रत्येक मशीन को अलग से कंट्रोल किया जा सकता है । यह पद्वति आधुनिक युग में अधिकतर प्रयोग में लाई जाती है ।
मशीन को कार्य के अनुसार विभिन्न स्पीडों पर चलाने के लिए बेल्ट को स्टेप पुली पर अलग-अलग स्टेपों पर खिसका कर अलग-अलग स्पीडें ली जा सकती है । आधुनिक मशीनों में मशीन पर लीवर लगे होते है और स्पीड के चार्ट बने होते हैं जिससे चार्ट को देखकर लीवर को पॉजीशन में सेट करके मशीन के स्पिंडल को कार्य के अनुसार अलग-अलग स्पीड पर चलाया जा सकता है ।
फीड को कंट्रोल करने की विधियां:
प्रत्येक चक्कर में ड्रिल धातु को काटता हुआ जितना जॉब में प्रवेश कर जाता है वह उसकी फीड कहलाती है ।
ड्रिलिंग करते समय प्रायः निम्नलिखित साधनों के द्वारा फीड दी जा सकती है:
i. बिक हैंड फीड:
इस फीड का प्रयोग तब किया जाता है जब सुराख करते समय जल्दी और अधिक धातु काटनी होती है । इसमें विवक फीड लीवर को हाथ से चलाया जाता है ।
ii. सेंसिटिव हैंड फीड:
इस फीड का प्रयोग प्रायः ट्रायल कट या छोटे सुराख करने के लिए किया जाता है इसमें सेंसिटिव हैंड फीड लीवर या व्हील को हाथ से चलाया जाता है ।
iii. ऑटोमेटिक फीड:
इस फीड का प्रयोग तब किया जाता है जब बड़े साइज का सुराख करना हो और आवश्यकता के अनुसार कटिंग प्रेशर अधिक रखना होता है । जॉब पर कितनी फीड का प्रयोग करना होता है उसे फीड लीवर के द्वारा सेट कर दिया जाता है जिससे बिना हाथ के प्रेशर से ड्रिलिंग हो जाती है ।
ड्रिलिंग मशीन की सावधानियां (Precautions Taken while Using Drilling Machines):
I. ड्रिल आपरेशन करते समय जॉब व ड्रिल को मशीन पर अच्छी तरह से बाँधना चाहिये ।
II. ड्रिल का कटिंग ऐंगल अच्छी तरह से ग्राइंड किया हुआ होना चाहिये ।
III. बड़े साइज का सुराख करने से पहले पायलट होल करना चाहिये ।
IV. ड्रिलिंग करते समय धातु के अनुसार उचित मात्रा में कुलेंट का प्रयोग करना चाहिए ।
V. कटिंग चिप्स को कभी भी हाथ से साफ नहीं करना चाहिए बल्कि ब्रुश का प्रयोग करना चाहिये ।
VI. चलती हुई मशीन की स्पीड को बदलने की कोशिश नहीं करनी चाहिये ।
VII. गहराई में ड्रिलिंग करते समय ड्रिल को थोड़ी-थोड़ी देर में बाहर निकालते रहना चाहिये ।
VIII. ड्रिलिंग आपरेशन करने के बाद ड्रिल या ड्रिल चॅक को मशीन के स्पिडल से बाहर निकालने के लिए ड्रिल ड्रिफ्ट का प्रयोग करना चाहिये ।