Read this article in Hindi to learn about the ten important mediums used for transmission of power in industries. The mediums are:- 1. शाफ्ट (Shaft) 2. पुली (Pulley) 3. बेल्ट और बेल्टिंग (Belt and Belting) and a Few Others.
पॉवर को ट्रांसमिट करने के लिए प्रायः निम्नलिखित साधन प्रयोग में लाए जाते हैं:
Medium # 1. शाफ्ट (Shaft):
शाफ्ट एक स्टील की बनी हुई गोल रॉड होती है जिसका मुख्य प्रयोग पॉवर को ट्रांसमिट करने में किया जाता है । इस पर पुली या गियर आदि को फिट कर दिया जाता है जिससे इसकी चाल के साथ पुली या गियर को भी घुमाया जा सकता है । इसको सहारा देने के लिए बियरिंग का प्रयोग किया जाता ।
प्रकार:
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मुख्यतः निम्नलिखित प्रकार की शाफ्टें पाई जाती हैं:
(I) मेन शाफ्ट:
इस प्रकार की शाफ्ट प्रायः वहां पर प्रयोग में लाई जाती है जहां पर ग्रुप में लगी हुई कई मशीनों को एक ही शाप से पॉवर देनी हो । इस शाफ्ट को मोटर के साथ बेल्ट या चेन के द्वारा जोड़ दिया जाता है । इस शाफ्ट पर कई पुलियां फिट रहती हैं जिससे पॉवर को काउंटर शाप पर ट्रांसमिट कर दिया जाता है और काउंटर शाफ्ट से पॉवर को मशीन के स्पिंडल तक ले जाकर मशीनों को चलाया जाता है ।
(II) काउंटर शाफ्ट:
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इस प्रकार की शाफ्ट वहां पर प्रयोग की जाती है जहां पर ग्रूप में लगी हुई मशीनों को एक ही मेन शाफ्ट से पॉवर देनी होती है । मेन शाफ्ट से पॉवर काउंटर शाफ्ट और काउंटर शाफ्ट से पॉवर को मशीन तक ट्रांसमिट किया जाता है ।
(III) क्रेंक शाफ्ट:
इस प्रकार की शाफ्ट की चाल उत्केंद्र होती है । इसका अधिकतर प्रयोग ऑटोमोबाइल इंजनों में किया जाता है ।
(IV) स्पलाइन शाफ्ट:
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इस प्रकार की शाप की परिधि पर अक्ष के समानान्तर लंबाई में कई स्लॉट बने होते हैं जिन्हें स्पलाइन कहते हैं । इस शाफ्ट का प्रयोग प्रायः ऑटोमोबाइल में किया जाता है ।
Medium # 2. पुली (Pulley):
पुली एक प्रकार की वृत्ताकार व्हील होती है जिसके सेंटर में एक सुराख बना होता है । इसको शाफ्ट पर फिट किया जाता है और इस प्रकार बेल्ट चढ़ाकर पॉवर को एक स्थान से दूसरे स्थान तक ट्रांसमिट किया जाता है ।
मेटीरियल:
पुली प्रायः कास्ट ऑयरन, माइल्ड स्टील, एल्युमीनियम और कड़ी लकड़ी से बनाई जाती है ।
प्रयोग:
पुली का प्रयोग प्रायः निम्नलिखित के लिए किया जाता है:
(अ) पॉवर को एक स्थान से दूसरे स्थान तक ट्रांसमिट करने के लिए ।
(आ) स्पीड को घटाने या बढ़ाने के लिए ।
पार्ट्स:
पुली के निम्नलिखित मुख्य पार्ट्स होते है:
a. फेस
b. आर्मस
c. बाँस
d. बोर
Medium # 3. बेल्ट और बेल्टिंग (Belt and Belting):
वर्कशाप में पॉवर को बिजली की मोटर, तेल के इंजन या स्टीम के इंजन आदि से उत्पन्न करके शाफ्टों को चलाया जाता है । मोटर के साथ एक पुली फिट रहती है जिसे प्राइम मुवर कहते हैं । प्राइम मूवर से पॉवर को दूसरी शाफ्टों पर ट्रांसमिट किया जाता है ।
इस प्रकार एक ऐसे माध्यम की आवश्यकता होती है जिससे दो अलग-अलग शाफ्टों पर लगी हुई पुलियों को आपस में जोड़ा जा सकता है । पॉवर को मोटर से मेन शाफ्ट और मशीन पर ले जाने के लिये ‘बेल्ट’ का प्रयोग किया जाता है ।
बेल्ट के कार्य:
i. दूर या पास में फिक्स की हुई दो पुलियों को बेल्ट से जोड़कर पॉवर को ट्रांसमिट किया जाता है ।
ii. बेल्ट के द्वारा शाफ्टों को उल्टी या सीधी किसी भी दिशा में घुमाया जा सकता है ।
iii. कार्य करते समय यदि मशीन के द्वारा अधिक मोटा कट लग जाये या मशीन के ओवर लोड हो जाने से बेल्ट स्लिप हो सकती है और मशीन रुक सकती है । इस प्रकार दुर्घटना से बचा जा सकता है ।
मेटीरियल:
बेल्ट प्रायः चमड़ा, केनवस और रबर आदि से बनाई जाती है ।
प्रकार प्रायः निम्नलिखित प्रकार के बेल्ट प्रयोग में लाए जाते हैं:
(क) फ्लैट बेल्ट
(ख) वी-बेल्ट
बेल्ट का चयन उनके अनुपात, सेंटर दूरी, फ्लेक्सीबिलिटी, स्ट्रेंग्थ इत्यादि के अनुसार किया जाता है ।
(क) फ्लैट बेल्ट:
फ्लैट बेल्ट का क्रॉस सेक्शन आयताकार होता है और इसका प्रयोग थोड़ी सी कनवेक्स टॉप सरफेस वाली पुली पर किया जाता है जिससे बेल्ट को सेंटर में रखा जा सके । इसका वर्गीकरण चौड़ाई, मोटाई और बेल्ट की लंबाई के अनुसार किया जाता है । जैसे फ्लैट बेल्ट 25 मि.मी. x 6 मि.मी. x 5 मीटर लंबा । फ्लैट बेल्ट का प्रयोग करके अधिकतम 1400 मी./मिनट सरफेस स्पीड को ट्रांसमिट किया जा सकता है (10 मीटर दूरी तक) ।
(ख) ‘वी’ बेल्ट:
‘वी’ बेल्ट का क्रॉस सेफ्यान लगभग समलंब चतुर्भुज जैसा होता है जिसे ‘वी’ युवों वाली पुलियों पर फिक्स किया जाता है । यह कम स्थान घेरती है । इसका जीवनकाल लंबा होता है और इसकी ग्रिपिंग पॉवर अधिक होती है । इसका वर्गीकरण इसके क्रॉस सेक्शन चिन्ह, नामिनल अंदरूनी लंबाई और आई.एस. नंबर के अनुसार किया जाता है । ‘वी’ बेल्ट का प्रयोग करके अधिकतम 1500 मी./मिनट सरफेस स्पीड को ट्रांसमिट किया जा सकता है । (10 मीटर दूरी तक) ।
Medium # 4. बेल्ट ड्राइव (Belt Driver):
बेल्ट के द्वारा पॉवर को ट्रांसमिट करने के लिए ड्राइवर और ड्रिविन पुलिया को एक बेल्ट के द्वारा जोड़ दिया जाता है । इस प्रकार कल और पुली के रिम के फेस के बीच में घर्षण के कारण दोनों पुलियां चलती हैं ।
बेल्ट ड्राइव के प्रकार:
मुख्यतः निम्नलिखित दो प्रकार की बेल्ट ड्राइवर प्रयोग में लाई जाती है:
(i) ओपन बेल्ट ड्राइव:
इस प्रकार की ड्राइव वहां पर प्रयोग मैं लाई जाती है जहां पर पॉवर को समानान्तर शाफ्टों पर ट्रांसमिट करना होता है और दोनों शाफ्टों की चाल एक ही दिशा में रखनी होती है ।
(ii) क्रॉस बेल्ट ड्राइव:
इस प्रकार की ड्राइव वहां पर प्रयोग में लाई जाती है जहां पर पॉवर को समानान्तर शाफ्टों पर ट्रांसमिट करना होता है और दोनों शाफ्टों की चाल की दिशा एक दूसरे के विपरित रखनी होती है ।
(iii) राइट ऐंगल ड्राइव:
इसका प्रयोग समकोण पर फिट शाफ्टों के बीच किया जाता है जिनमें गाइड पुलियों की सहायता से हॉरिजाटल ड्राइव को वर्टिकल ड्राइव में बदला जाता है ।
बेल्ट ड्राइव के लिए सामान्य नियम:
i. स्लैक साइड सबसे ऊपर वाली होनी चाहिए । यह स्पर्श की चाप को बढ़ाती हैं ।
ii. यदि आवश्यक हो तो, स्लिप को कम करने के लिए जॉकि पुली का प्रयोग करना चाहिए ।
iii. दो पुलियों के बीच की दूरी बड़ी पुली के व्याम का तीन गुना से कम नहीं होनी चाहिए ।
iv. दोनों पुलिया के व्यासों के बीच अनुपात 6:1 में अधिक नहीं होना चाहिए ।
Medium # 5. बेल्ट फास्टनिंग (Belt Fastening):
नये बेल्ट को प्रयोग में लाने से पहले या कार्य करते समय कभी-कभी बेल्ट टूट जाती है तो उसे जोड़ने की आवश्यकता पड़ती है । इसलिए बेल्ट को दोनों सिरों से जोड़ने को बेल्ट फास्टनिंग कहते हैं और जोड़ने के लिये जिस माध्यम को प्रयोग किया जाता है उसे बेल्ट फास्टनर कहते हैं ।
प्रकार:
प्रायः निम्नलिखित प्रकार से बेल्ट फास्टनर्स प्रयोग में लाए जाते हैं:
i. वायर टाइप:
इस प्रकार का फास्टनर ऐसी बेल्टों के लिए उपयुक्त होता है जो कि लाइट ड्यूटी मशीनों पर प्रयोग में लाई जाती है ।
ii. लैगरेले टाइप:
इस प्रकार का फास्टनर ऐसी बेल्टों के लिए उपयुक्त होता है जो कि हैवी ड्यूटी मशीनों के लिए प्रयोग में लाई जाती हैं ।
iii. जैकसन टाइप:
इस प्रकार का फास्टनर ऐसी बेल्टों के लिए उपयुक्त होता है जो कि मीडियम ड्यूटी मशीनों के लिए प्रयोग में लाई जाती हैं ।
iv. क्रीसेंट टाइप:
इस प्रकार का फास्टनर ऐसी बेल्टों के लिए उपयुक्त होता है जो कि मीडियम ड्यूटी मशीनों के लिए प्रयोग में लाई जाती है ।
v. ऐलिगेटर टाइप:
इस प्रकार का फास्टनर ऐसी बेल्टों के लिए उपयुक्त होता है जो कि सामान्य औद्योगिक कार्यों के लिए प्रयोग में लाई जाती हैं ।
Medium # 6. चेन (Chain):
पॉवर को मशीन के पार्ट्स तक ट्रांसमिट करने के लिए बेल्ट की तरह चेन का प्रयोग भी किया जाता है । चेन प्रायः स्टील की बनाई जाती है । कई लिंक जोड़ कर इसे बनाया जाता है । पॉवर को ट्रांसमिट करने के लिए चेन को उसके साइज के अनुसार बने हुए स्परॉकेट पर चढ़ाकर प्रयोग में लाया जाता है ।
उपयोग:
चेन के निम्नलिखित मुख्य उपयोग होते हैं:
A. समानान्तर फिट की हुई शाफ्टों पर पॉवर को ट्रांसमिट करने के लिए ।
B. धनात्मक ड्राइव लेने के लिये अर्थात् चेन के प्रयोग करने से स्लिपिंग और क्रीपिंग की संभावना नहीं होती है जैसे कि बेल्ट और पुली में होती है ।
C. बेल्ट की अपेक्षा अधिक शक्ति से पॉवर को ट्रांसमिट करने के लिए ।
स्पेसीफिकेशन:
चेनों को पिच के द्वारा निर्दिष्ट किया जाता है जो कि संलग्न पिनों के बीच सेंटर से सेंटर दूरी होती है (रोलर चेनों के लिए) ।
प्रकार:
मुख्यतः निम्नलिखित प्रकार की चेनें पाई जाती हैं:
(a) रोलर चेन:
इस प्रकार की चेन में रोलर लिंक लगाए जाते हैं जिससे चेन को प्रयोग करते समय रोलर घूमते हैं । प्रायः सिंगल रोलर टाइप और मल्टी रोलर टाइप रोलर चेनें पाई जाती हैं । सिंगल रोलर टाइप चेन साधारण कार्यों के लिए और मल्टी रोलर टाइप चेन हाई पॉवर को ठूंसमिट करने के लिए प्रयोग में लाई जाती है ।
(b) साइलेंट चेन:
इसकी इनवर्टिड टूथ चेन भी कहते हैं । इसके टूथ लिंकों को पिन के द्वारा जोड़ा जाता है जिससे लिंक पिन पर दांत फ्री रहता है । इस चेन के टूथ लिंकों को ऐसे डिजाइन करके बनाया जाता है कि जब स्परॉकेट पर चलाया जाता है तो आवाज बहुत कम होती है क्योंकि लिंक साइड स्परॉकेट की साइडों के साथ चलता हैं ।
(c) डिटैचेबल लिंक चेन:
इस प्रकार की चेन प्रायः कम स्पीड वाले कार्यों के लिए प्रयोग में लाई जाती है । कोयले की खानों में इस चेन को प्रयोग में लाने के लिए उपयुक्त अटैचमेंट लगाया जाता है ।
जॉकि स्परॉकेट:
चेन को टेंशन देने के लिए एक स्प्रिंग लोडिड स्परॉकेट का प्रयोग किया जा सकता है ।
Medium # 7. कपलिंग (Coupling):
वर्कशाप में पॉवर को ट्रांसमिट करने के लिए कई प्रकार की शाफ्टें प्रयोग में लाई जाती हैं । ये शाफ्टें प्रायः उचित और सीमित लंबाइयों में ही आती है । कभी-कभी अधिक लंबाई की शाफ्टों की आवश्यकता होती है । इसलिए दो या अधिक शाफ्टों को अलग-अलग माध्यमों से जोड़कर प्रयोग में लाया जाता है जिनमें से एक माध्यम कपलिंग हैं ।
प्रकार:
मुख्यतः निम्नलिखित प्रकार की कपलिंग प्रयोग में लाई जाती हैं:
(i) मफ कपलिंग:
इस प्रकार की कपलिंग साधारणतया एक हालो सिलंडर जैसी होती है जिसको जोड़ी जाने वाली दोनों शाफ्टों के सिरों पर एक ‘संक की’ के द्वारा फिट कर दिया जाता है । यह प्रायः कास्ट ऑयरन से बनाई जाती है । इस प्रकार की कपलिंग अधिक सुरक्षात्मक है, परन्तु जब दोनों शाफ्टों को अलग-अलग करना होता है तो इसे निकालने में कठिनाई होती है ।
(ii) फ्लेंज कपलिंग:
इस प्रकार की कपलिंग में दो हबस होते हैं । जिन्हें जोड़ी जाने वाली दोनों शाफ्टों के सिरे पर ‘की’ के द्वारा फिट कर दिया जाता है और नट व बोल्टों के द्वारा दोनों हबस को कस दिया जाता है ।
(iii) फ्लेक्सीबल कपलिंग:
इस प्रकार की कपलिंग ऐसी दो शाफ्टों को कनेक्ट करने के लिए उपयोग में लायी जाती है जोकि अलाइनमेंट में न हो । इस कपलिंग में झटके सहन की शक्ति होती है । कार्य के अनुसार यह कई डिजाइनों में पाई जाती है जैसे- एक प्रकार की फ्लेक्सीबल कपलिंग में कास्ट ऑयरन के दो फ्लेंज होते है जिन्हें कनेक्ट की जाने वाली दोनों शाफ्टों के सिरों पर सेट स्क्रू के द्वारा फिट कर दिया जाता है । इन दोनों फ्लेजों के बीच में लैदर डिस्क लगा दी जाती है जिससे फ्लेक्सीबिलिटी मिलती है ।
इस प्रकार की कपलिंग हाई एवं लो स्पीड पर चलने वाली शाफ्टों पर प्रयोग में लाई जा सकती है । इस प्रकार की कपलिंग से आवाज भी कम होती है । दूसरे प्रकार की फ्लेक्सीबल कपलिंग दो पीस में होती है जिनके ऊपर रोलर चेन फिट करने के लिए दांते बने होते हैं । इन दोनों पीसों को कनेक्ट की जाने वाली शाफ्टों के सिरों पर ‘की’ के द्वारा फिट कर दिया जाता है और दोनों को मिलाकर इन पर चेन फिट कर दी जाती है ।
(iv) यूनिवर्सल कपलिंग:
जब कनेक्ट की जाने वाली शाफ्टों के अक्ष परस्पर क्रॉस करते हों तो यूनिवर्सल कपलिंग का प्रयोग किया जाता है । इस प्रकार की कपलिंग में दो योक होते है जिनके साथ एक-एक पिन फिट रहती है । इन पिनों के अक्ष एक दूसरे के समकोण में होते हैं । इन पिनों के ऐक्शन द्वारा ही यह कपलिंग कार्य करती है ।
Medium # 8. गियर (Gear):
पॉवर को ट्रांसमिट करने के लिए गियर का प्रयोग भी किया जाता है । इसमें ड्राइवर और ड्रिविन गियर के दांतों को आपस में मैश करके चलाया जाता है । गियर से पॉवर को ट्रांसमिट करते समय बेल्ट की तरह स्लिपिंग व क्रीपिंग की संभावना नहीं रहती है ।
मेटीरियल:
गियर प्रायः कास्ट ऑयरन, माइल्ड स्टील, एलॉय स्टील, ब्रांज आदि से बनाई जाती हैं । आजकल फाइबर की गियर भी बनाई जाती है । गियर के मेटीरियल का चयन करते समय कार्य की क्षमता को ध्यान में रखा जाता हैं ।
उपयोग गियर के प्रायः निम्नलिखित उपयोग होते हैं:
(1) ड्राइवर और ड्रिविन शाफ्टों को एक ही दिशा में चलाने के लिए ।
(2) ड्राइवर और ड्रिविन शाफ्टों को एक दूसरे के विपरित दिशा में चलाने के लिए ।
(3) स्पीड को बदलने के लिए ।
(4) धनात्मक ड्राइवर के लिए ।
(5) पॉवर को समानान्तर, लम्बवत् या किसी कोण में चलाने के लिए ।
गियर के दांतों की मरम्मत करना:
यदि किसी कारणवश गियर के एक या दो दांत टूट जायें तो गियर को फिर से प्रयोग में लाने के लिए मरम्मत करने की आवश्यकता होती हैं ।
टूटे हुए दांत वाली गियर की मरम्मत निम्नलिखित विधियों के द्वारा की जाती है:
(अ) डॉवटेल फिटिंग द्वारा:
इस विधि में गियर पर डॉवटेल युव बन दिया जाता है और टूटे हुए दांत के स्थान पर उसके आकार और साइज का एक दूसरा दांत बनाया जाता है जिसका नीचे का हिस्सा डॉवटेल ग्रूव के अनुसार साइज में बना होता है । इसके बाद दांत को ड्राइविंग फिट करके एक स्क्रू लगा दिया जाता है ।
(ब) स्क्रूइंग द्वारा:
इस विधि में जिस स्थान पर गियर का दांत टूटा होता है उसको प्लेन करके एक ड्रिल होल करने के बाद टैपिंग कर दी जाती है । इसके बाद टूटे हुए दांत के आकार और साइज का दूसरा दांत बनाया जाता है जिसमें क्लीयर होल करके उसे स्टड के द्वारा गियर पर लगा दिया जाता है । अच्छी पकड़ के लिए दांत के आकार की दो प्लेटें बनाकर दोनों ओर से स्क्रू के द्वारा कस दी जाती है ।
(स) रिवॉटिंग द्वारा:
इस विधि में टूटे हुए दांत के आकार का दूसरा दांत बना लिया जाता है और साथ में उसी आकार की दो प्लेंटे भी बना ली जाती है जिनको दांत के साथ गियर पर दोनों ओर लगाकर रिवॉटिंग कर दिया जाता हैं ।
(द) वेल्डिंग द्वारा:
इस विधि में टूटे हुए दांत के स्थान पर वेल्डिंग के द्वारा धातु को भर दिया जाता है और फाइलिंग व मशीनिंग करके दांत को आकार और साइज में बना लिया जाता है ।
गियर को फिट करना:
गियर की फिटिंग करते समय निम्नलिखित संकेतों को ध्यान में रखना चाहिए:
1. जिन दो गियरों को आपस में मैश करना हो उनके दांतों के पिच बराबर होने चाहिएं ।
2. गियर को मैश करते समय क्लीयरेंस अवश्य रखना चाहिए ।
3. गियर की फिटिंग करते समय यदि चोट लगाने की आवश्यकता हो तो साफ्ट हैमर का प्रयोग करना चाहिए ।
4. गियर को फिटिंग करने के बाद पॉवर से चाल देने से पहले गियर को हाथ से घुमाकर चैक कर लेना चाहिए ।
5. गियर का प्रयोग करते समय उपयुक्त तेल का प्रयोग करना चाहिए ।
गियर की स्पीड:
गियर की स्पीड को निम्नलिखित सूत्र से ज्ञात किया जा सकता है- D x N = d x n
जहां पर:
D = ड्राइवर गियर की दांतों की संख्या या पिच डायमीटर ।
d = ड्रिविन गियर की दांतों की संख्या या पिच डायमीटर ।
N = ड्राइवर गियर की प्रति मिनट चक्करों की संख्या (r.p.m.) ।
n = ड्रिविन गियर की प्रति मिनट चक्करों की संख्या (r.p.m.) ।
Medium # 9. क्लच (Clutch):
पॉवर को ट्रांसमिट करते समय चाल के साथ पॉवर को जब बार-बार संलग्न करने या अलग करने की आवश्यकता होती है तो क्लच का प्रयोग किया जाता है । क्लच का अधिकतर प्रयोग ऑटोमोबाइल में किया जाता है ।
प्रकार:
प्रायः निम्नलिखित क्लच प्रयोग में लाए जाते हैं:
i. डॉग क्लच:
इस क्लच को तभी संलग्न किया जा सकता है जब क्लच के दोनों तत्व स्थिर हों ।
ii. कोन-क्लच:
इस क्लच को प्रगति में सलंग्न किया जा सकता है जब क्लच का एक या दोनों तत्व मूव करते हों । यह कम पॉवर को ट्रांसमिट करने के लिए उपयुक्त होता है ।
iii. मल्टीपल क्लच:
यह क्लच घना, शक्तिशाली और आपरेशन में स्मूथ होता है । इसका अधिकतर प्रयोग मशीन टूल्स के गियर बाक्स में किया जाता है ।
iv. इलेक्ट्रोमेग्नेटिक मल्टीपल डिस्क क्लच:
इस क्लच में मेग्नेटिक कॉयल पर डायरेक्ट करेंट मेग्नेटिक फील्ड बनाता है जो डिस्कस के बीच से गुजरता है और ड्राइव को ट्रांसमिट करने के लिए आर्मेचर डिस्क पर आक्रमण करता है ।
v. सेंट्रीफ्यूगल क्लच:
इस क्लच में सेंट्रीक्साल भार बाहर की ओर स्विवल करता है जिससे आउटर पीस पर पर्याप्त उच्च स्पीड पर फ्रिक्शन लाइनिंग के साथ जॉस को प्रैस किया जा सकता है । इसका अधिकतर प्रयोग मापेडो में किया जाता है ।
vi. अन्य-क्लच:
कुछ अन्य क्लच भी प्रयोग में लाए जाते हैं जैसे- (1) ऐअर क्लच जिसमें जब क्लच को सलंग्न किया जाता है तो हवा के प्रैशर को लगातार बनाए रखा जाना चाहिए; (ii) ओवर राइडिंग क्लच का प्रयोग तब किया जाता है जब इनर पीस तेज गति वाला रखना हो और ओवरराइडिंग क्लच सिलड़िंकल रोलरों के द्वारा टर्निंग मूवमेंट को ट्रांसफर करता है; (iii) ऑटोमोबाइल में प्रायः सिंगल प्लेट क्लच का प्रयोग किया जाता है जिसमें स्प्रिगों के द्वारा कांटेक्ट फोर्स को उत्पन्न किया जाता है ।
Medium # 10. केम (Cam):
केम एक सिलण्डर, प्लेट या सॉलिड पीस है जिसपर सरफेस या ग्रूव बना होता है जो कि उसके साथ संपर्क में आने वाले फॉलोअर के लिए स्पेशल या अनियमित मोशन उत्पन्न करता है । केम के साथ विभिन्न प्रकार के फॉलोअर प्रयोग में लाए जाते है जैसे नाइफ ऐज, रोलर, टेपर्ड रोलर, बेलनाकार इत्यादि ।
केम के प्रकार प्रायः निम्नलिखित प्रकार के केम प्रयोग में लाए जाते है:
(i) प्लेट या रेडियल केम:
इस प्रकार के केम में फॉलोअर केम के अक्ष के लंबरूप प्लेन में चलता है जिसमें केम के घूमने के साथ-साथ फॉलोअर ऊपर व नीचे की मूवमेंट करता है ।
(ii) ग्रुव्ड प्लेट केम:
इस प्रकार के केम में, फॉलोअर केम के ग्रूव में मूव करता है ।
(iii) सिलण्ड्रिकल केम:
इस प्रकार के केम में फालोअर केम शाफ्ट के अक्ष के साथ समानान्तर प्लेन में दौलन करता है ।
केम, रोप और फ्रिक्शन ड्राइव्स:
केम ड्राइव:
इस प्रकार की ड्राइव में पॉवर को प्रत्यक्ष रूप में ट्रांसमिट किया जाता है । केम धातु से बनाए जाते हैं जो कि उत्केंद्र होते हैं । कार्य के अनुसार शाफ्ट पर एक या अधिक कम फिट किये जा सकते हैं । इस ड्राइव से घुमावदार गति को आगे-पीछे या ऊपर नीचे चलने वाली गति में परिवर्तित किया जाता है ।
रोप ड्राइव:
इस प्रकार की ड्राइव में पॉवर को स्टील की तारों से बने हुए रस्सों और पुलियों के द्वारा ट्रांसमिट किया जाता है । इस प्रकार की ड्राइव प्रायः वहां पर प्रयोग में लायी जाती है जहां पर अधिक दूरी तक पॉवर को ट्रांसमिट करना होता है । इसमें जो पुली प्रयोग में लाई जाती है उस पर अर्धवृत्ताकार ग्रूव बना होता है । रोप ड्राइव प्रायः वर्कशाप में भार को एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाने के लिए प्रयोग में लाए जाते हैं ।
फ्रिक्शन ड्राइव:
इस ड्राइव में एक व्हील दूसरे व्हील को फिक्शन के द्वारा चलाता है । संपर्क में आने वाली सरफेसों को पर्याप्त रफ बनाया जाता है । यह ड्राइव पोजीटिव ड्राइव नहीं है क्योंकि यह हल्के लोड के ट्रांसमिशन के लिये उपयुक्त होता है ।