धातु: गुण और वर्गीकरण | धातुकर्म | Metals: Properties and Classification in Hindi | Metallurgy!
धातु के गुण (Properties of Metals):
धातु खानों से निकाले गए कच्चे पदार्थों से बनाई जाती है । ये कच्चे पदार्थ अयस्क कहलाते हैं । खनिज पदार्थ जब खानों से निकाले जाते हैं तो उनमें धातु की मात्रा के साथ-साथ मिट्टी और दूसरी प्रकार की अशुद्धियां भी होती हैं । खनिज पदार्थों से धातु प्राप्त करने के लिए सबसे पहले अशुद्धियों को दूर करना आवश्यक होता है ।
धातु के मुख्यतः निम्नलिखित तीन प्रकार के गुण पाए जाते हैं:
I. भौतिक गुण
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II. यांत्रिक गुण
I. भौतिक गुण:
धातु के भौतिक गुण प्राकृतिक होते हैं । भौतिक गुणों के कारण ही किसी धातु की पहचान की जा सकती है । ये गुण धातु में स्थाई रूप से पाए जाते हैं ।
भौतिक गुण प्रायः निम्नलिखित होते हैं:
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(i) रंग:
प्रत्येक धातु का कोई न कोई रंग होता है । जैसे पीतल का रंग पीला और एल्युमीनियम का सफेद होता है ।
(ii) रचना:
यदि धातुओं को तोड़कर देखा जाए तो उनके बीच की बनावट भिन्न-भिन्न होती है जैसे स्टील की भीतरी बनावट ग्रेनुलर, कास्ट ऑयरन की क्रिस्टलाइन और रट ऑयरन की फाइबरस होते हैं ।
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(iii) भार:
प्रत्येक धातु का भार अलग-अलग होता है । धातुओं में पारा और सीसा भारी होते हैं और एल्युमीनियम सबसे हल्का होता है ।
(iv) गलनीयता:
यह धातु का वह गुण है जिसमें धातु निश्चित तापमान पर पिघलकर द्रव के रूप में बन जाती है । प्रत्येक धातु का गलनांक अलग-अलग होता है । जैसे टिन का गलनांक 230०C और तांबे का गलनांक 1083० होता है ।
(v) ताप और बिजली की चालकता:
यह धातु का वह गुण है जिससे धातु में ताप और बिजली के संचालन का पता लगता है । जिन धातुओं में ताप और बिजली आसानी से एक सिरे से दूसरे सिरे तक पहुंच जाती है उन्हें सुचालक कहते हैं और जिन धातुओं में ताप और बिजली आसानी से एक सिरे से दूसरे सिरे तक नहीं जाती है उन्हें कुचालक कहते हैं ।
(vi) चुम्बकीयता:
धातु के इस गुण में चुम्बक धातु को अपनी ओर खींचता है । चुम्बक प्रायः फेरस धातुओं को ही अपनी ओर खींचता है । इस गुण से पता लगता है कि कौन-सी धातु फेरस है और कौन-सी नॉन-फेरस ।
(vii) विशिष्ट भार:
जब किसी पदार्थ के भार की तुलना उसके समान आयतन के पानी के भार से की जाती है तो उसे विशिष्ट भार कहते हैं । दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि कोई पदार्थ उसके समान आयतन के पानी के भार से कितना अधिक या कम है । सोने का विशिष्ट भार 19.26 और एल्युमीनियम का विशिष्ट भार 2.67 होता है ।
II. यांत्रिक गुण:
धातुओं में प्रायः निम्नलिखित यांत्रिक गुण पाए जाते हैं:
(i) इलास्टिसिटी:
यह धातु का वह गुण है जिसमें यदि धातु पर बल लगाया जाए तो वह अपनी दशा बदल लेती है और बल हटाने पर पुनः अपनी पहली स्थिति में आ जाता है । यह गुण प्रायः स्टिंग स्टील में पाया जाता है ।
(ii) मैलिएबिलिटी:
यह धातु का वह गुण है जिसमें यदि धातु को ठंडी दशा में रोलिंग या हैमरिंग की जाए तो वह चारों ओर फैल जाती है अर्थात् पतली चद्दर के रूप में परिवर्तित हो जाती है और टूटने नहीं पाती है । यह गुण सोने में सबसे अधिक होता है ।
(iii) डक्टिलिटी:
यह धातु का वह गुण है जिसमें धातु को खींचने पर उसके तार बनाए जा सकते हैं और वह टूट नहीं पाती है । यह गुण प्लेटिनम में सबसे अधिक होता है ।
(iv) हार्डनैस:
यह धातु का वह गुण है जिसमें धातु को आसानी से काटा-पीटा या खुरचा नहीं जा सकता है । हार्ड धातु दूसरी धातु को आसानी से खुरच सकती है । इस गुण वाली धातु बहुत कठोर होती है । जैसे यदि एक सीसे और स्टील के टुकड़ों पर हार्ड नुकीले टूल द्वारा एक जैसी ताकत से लाइन लगाई जाए तो सीसे के टुकड़े पर स्टील के टुकड़े की अपेक्षा अधिक गहरी लाइन लगेगी । इससे सिद्ध होता है कि सीसा मुलायम और स्टील हार्ड होती है ।
(v) टफनैस:
यह धातु का वह गुण है जिसमें धातु को यदि बार-बार मोड़ा जाए या ट्विस्ट किया जाए तो वह उसे सहन कर लेती है और टूटने नहीं पाती है ।
(vi) ब्रिटलनैस:
यह धातु का वह गुण है जिसमें यदि धातु पर चोट लगाई जाए तो वह टुकड़े-टुकड़े हो कर टूट जाती है । जैसे कास्ट ऑयरन, स्टील और लैड के टुकड़ों पर एक जैसी ताकत से चोट लगाई जाए तो लैड पर अधिक गहरा दाग बनेगा, स्टील पर कम गहरा दाग बनेगा और कास्ट ऑयरन टूट जाएगा । इससे सिद्ध होता है कि कास्ट ऑयरन में ब्रिटलनैस का गुण होता है ।
(vii) टेनासिटी:
यह धातु का वह गुण है जिसमें यदि धातु पर खिंचाव शक्ति लगाई जाए तो वह टूटने नहीं पाती है ।
(viii) फटीग रेजिस्टेंस:
यह धातु का वह गुण है जो धातु को उस पर लगातार लगने वाले झटकों के कारण अंतिम शक्ति तक उसे टूटने से बचाता है ।
धातुओं का वर्गीकरण (Classification of Metals):
i. फेरस मेटल:
जिस धातु में लोहा अधार होता है वह फेरस मेटल कहलाता है । जैसे माइल्ड स्टील कास्ट ऑयरन, रॉट आयरन आदि ।
ii. नॉन फेरसमेटल:
जिस धातु में लोहे के कण नहीं पाए जाते हैं उसे नॉन-फेरस मेटल कहते है । जैसे एल्युमीनियम, कॉपर, टिन आदि ।
iii. फेरस एलॉय:
दो या दो से अधिक फेरस धातुओं को मिलाकर जो मिश्र धातु बनती है उसे फेरस एलॉय कहते हैं । जैसे क्रोमियम स्टील, टंगस्टन स्टील, वेनेडियम स्टील आदि ।
iv. नॉन-फेरस एलॉय:
दो या दो से अधिक नॉन-फेरस धातुओं को मिलाकर जो मिश्र धातु बनती है उसे नॉन-फेरस एलॉय कहते है । जैसे बास, गन मेटल, ब्रांज आदि ।