Here is a list of top five non-ferrous metals in Hindi language.

वे धातुएं जिनमें कण पाये जाते उन्हें नॉन-फेरस मैटल कहते हैं । ये प्रायः साफ्ट, मैलिएबल और डक्टाइल होती है जैसे तांबा, जिंक, एल्युमीनियम, टिन, लैड आदि ।

प्रायः निम्नलिखित प्रकार के नॉन-फेरस मेटल पाये जाते हैं:

1. कॉपर (Copper):

कॉपर प्रायः कॉपर पाइराइट नामक अयस्क से बनाया जाता है । जब पाइराइट को खानों से निकाला जाता है तो उसमें लगभग 33% कॉपर होता है जिसको फरनेस से साफ करके कॉपर प्राप्त किया जाता है ।

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गुण:

(a) इसका रंग ब्लैकिश रैड होता है ।

(b) इसका गलनांक 1083°C होता है ।

(c) इसका आपेक्षिक घनत्व 8.93 होता है ।

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(d) यह साफ, डक्टाइल और मैलिएबल होता है ।

(e) यह ताप और बिजली का सुचालक होता है ।

उपयोग:

इसका अधिकतर प्रयोग स्टीम पाइप, ट्‌यूब, रिवट और बिजली के उपकरण बनाने के लिए किया जाता है । इसके अतिरिक्त इसको टिन, जिंक आदि के साथ मिलाकर कई प्रकार के एलॉय भी बनाए जाते हैं । इसके गहने भी बनाए जाते हैं ।

2. एल्युमीनियम (Aluminum):

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एल्युमीनियम प्राय: बाक्साइट नामक अयस्क से बनाया जाता है जिसको इलेक्ट्रिक फरनेस से साफ करके एल्युमीनियम प्राप्त किया जाता है ।

गुण:

(a) इसका रंग ब्लूइश व्हाइट होता है ।

(b) इसका गलनांक 648° होता है ।

(c) यह बहुत हल्का होता है ।

(d) इसका आपेक्षिक घनत्व 2.7 होता है ।

(e) यह साफ, डक्टाइल और मैलिएबल होता है ।

उपयोग:

यह हल्का और सॉफ्ट होता है । इसका अधिकतर प्रयोग हवाई जहाज, घर के बर्तन, बिजली के तार आदि बनाने के लिए किया जाता है । इसका प्रयोग पेंट बनाने के लिए भी किया जाता है ।

3. लैड (Lead):

लैड प्रायः गैलेना नामक अयस्क से बनाया जाता है ।

गुण:

(a) इसका रंग ब्लूइश ग्रे व्हाइट होता है ।

(b) इसका गलनांक 327°C होता है ।

(c) यह अधिक भारी धातु है ।

(d) यह साफ, मैलिएबल और डक्टाइल होता है ।

(e) इसका आपेक्षिक घनत्व 11.3 होता है ।

(f) इस पर पानी और तेजाब का प्रभाव नहीं पड़ता ।

उपयोग:

इसका अधिकतर प्रयोग बंदूक की गोलियां, बेटरी सेल, बिजली की तारों के कवर, और एलॉय बनाने के लिए किया जाता है । जैसे टिन के साथ लीड मिलाकर सोल्डर बनाया जाता है ।

4. टिन (Tin):

टीन प्राय: टिन स्टोन नामक अयस्क से बनाया जाता है ।

गुण:

(a) इसका रंग सिल्वरी व्हाइट होता है ।

(b) इसका गलनांक 232°C होता है ।

(c) यह मैलिएबल और डक्टाइल होता है ।

(d) इसका आपेक्षिक घनत्व 73 होता है ।

(e) इस पर तेजाब का प्रभाव नहीं पड़ता है ।

उपयोग:

इसका अधिकतर प्रयोग पीतल के बर्तनों पर कलई करने के लिए टिन कोटिंग के लिए और विभिन्न प्रकार के एलॉय बनाने के लिए किया जाता है । जैसे बियरिंग मेटल और सोल्डर आदि ।

5. जिंक (Zinc):

यह प्रायः जिंक सल्फाइड और जिंक कार्बोनेट नामक अयस्कों से बनाया जाता है ।

गुण:

(a) इसका रंग ब्लूइश व्हाइट होता है ।

(b) इसका गलनांक 420°C होता है ।

(c) यह ब्रिटल होता है परंतु गर्म करने पर यह मैलिएबल हो जाती है और इसको रोलिंग भी किया जा सकता है ।

(d) इस पर तेजाब का असर जल्दी पड़ता है ।

उपयोग:

इसका अधिकतर प्रयोग एलॉंय बनाने के लिए किया जाता है । इसका प्रयोग धातुओं पर जिंक की कोटिंग करने के लिए भी किया जाता है । इससे जिंक पेंट भी बनाए जाते हैं ।

6. ब्रास (Brass):

कॉपर और जिंक मिलाकर जो एलॉय बनाया जाता है उसे बास कहते हैं । कॉपर और जिंक को अलग-अलग अनुपात में मिलाकर कई प्रकार के एलॉय बनाए जाते हैं । इस पर जंग नहीं लगता और हवा व पानी का प्रभाव भी इस पर नहीं पड़ता है । कुछ तेजाब भी इस पर प्रभाव नहीं डाल पाते हैं ।

यह साफ और डक्टाइल होता है । इसमें हाई टेंसाइल स्ट्रेंग्थ होती है । जिसके साथ-साथ इसमें अच्छी क्यूसीबिलिटी होती है । इसको चुम्बक अपनी ओर नहीं खींचता है और यह बिजली का अच्छा चालक नहीं होता है । यदि इसमें 1 से 2% तक लैड मिला दिया जाए तो इसकी मशीनिंग क्वालिटी को सुधारा जा सकता है । इसका अधिकतर प्रयोग घरेलू बर्तन, बियरिंग, बुश इत्यादि बनाने के लिए किया जाता है ।

7. मूंज मेटल (Muntz Metal):

यह 60% कॉपर और 40% जिंक का एलॉय है जिसमें कभी-कभी लैड भी मिलाया जाता है । यह साधारण बास की अपेक्षा हार्ड और अधिक डक्टाइल होता है । इसका अधिकतर प्रयोग बिजली के सामान, फ्यूज, मशीनों के छोटे-छोटे पुर्जे इत्यादि बनाने के लिए किया जाता है ।

8. ब्रांज (Bronze):

यह कॉपर और टिन का एलॉय होता है । प्रायः 75% से 95% कॉपर और 5% से 25% तक टिन मिलाकर ये एलॉय बनाए जाते हैं । यह एलॉय कठोर होता है । इसका अधिकतर प्रयोग बियरिंग, बुश, शीट, रॉड और तारें आदि बनाने के लिए किया जाता है ।

i. फासफर ब्रांज:

यदि जान में फास्फोरस मिला दिया जाए तो जो लान बनता है उसे फासफर ज्ञान कहते हैं । इसमें फोर्ज, रॉट या कास्टिंग के अनुसार अलग-अलग मात्रा में मिश्रण तत्व मिलाए जाते हैं । एक सामान्य रॉट फासफर ब्रांज में 93.7% कॉपर, 6% टिन और 0.3% फासफोरस होते हैं ।

फासफोरस मिलाने से इसकी स्ट्रेंग्थ और डक्टिलिटी बढ़ जाती है एवं कास्टिंग भी अच्छी होती है । इस एलॉय का अधिकतर प्रयोग पंप के पार्ट्स, बियरिंग, गियर आदि बनाने के लिए किया जाता है । यह एलॉय स्टिंग बनाने के लिए भी उपयुक्त है ।

ii. सिलिकन ब्रांज:

यदि ज्ञान में सिलिकन मिला दिया जाए तो वह सिलिकन ज्ञान कहलाता है । प्रायः 96% कॉपर, 3% सिलिकन और 1% मैंगनीज या जिंक वाला एलॉय प्रयोग में लाया जाता है । इस पर मौसम का प्रभाव नहीं पड़ता है । इसे कास्टिंग, रोलिंग, स्टैम्पिंग, फोर्जिंग और गर्म व ठंडी दशा में प्रैस किया जा सकता है । इसे प्राय: सभी विधियों से वेल्डिंग भी किया जा सकता है । इसका अधिकतर प्रयोग टैंक, स्टोव और बॉयलर के पार्टस बनाने के लिए किया जाता है ।

9. गन मेटल (Gun Metal):

88% कॉपर, 10% टिन और 2% जिंक वाले एलॉय को गन मेटल कहते हैं । ठंडी हालत में इस पर कार्य को आसानी से नहीं किया जा सकता है परंतु 600°C तक इसे गर्म करके फोर्जिंग किया जा सकता है । यह अधिक मजबूत एलॉय है जिस पर हवा, पानी और मौसम का प्रभाव नहीं पड़ता है । प्राचीन काल में इससे बंदूकें बनाई जाती थीं । आजकल इसका अधिकतर प्रयोग बायलर फिटिंग्स, बियरिंग और बुश आदि बनाने के लिए किया जाता है ।

10. मैंगनीज ब्रांज (Manganese Bronze):

यह एलॉय कॉपर, जिंक, लैड और थोड़ी मात्रा में मैंगनीज मिलाकर बनाया जाता है । यह फासफर ज्ञान की अपेक्षा अधिक कठोर और मजबूत होता है । इसका अधिकतर प्रयोग प्लन्जर, फीड पंप, रॉड और बुश इत्यादि बनाने के लिए किया जाता है । इससे कभी-कभी वर्म गियर भी बनाई जाती है ।

11. बैबिट मेटल (Babbitt Metal):

यह टिन बेस एलॉय है जिसमें प्राय: 88% टिन, 8% एंटीमनी और 4% कॉपर होता है । यह एक मुलायम एलॉय है जिसकी स्ट्रेंग्थ भी कम होती है । इसका अधिकतर प्रयोग बियरिंग में लाइनिंग के लिए किया जाता है । इसका प्रयोग प्रायः ऐसे बियरिंग पर किया जाता है जिसको हाई प्रेशर और अधिक लोड पर चलाना होता है ।

12. मोनल मेटल (Monel Metal):

इस एलॉय में प्रायः 60% निकल और 38% कॉपर और थोड़ी मात्रा में एल्युमीनियम या मैंगनीज मिलाया जाता है । यह एलॉय टफ और डक्टाइल होता है । इसे आसानी से मशीनिंग भी किया जा सकता है । इस पर ऊष्मा उपचार भी किया जा सकता है ।

इस पर जंग नहीं लगता और अधिक तापमान पर इसकी मजबूती बनी रहती है । यह रॉड, शीट और तार के रूप में पाया जाता है । इसका अधिकतर प्रयोग स्टील टर्बाइन ब्लेड और सेंटीफ्यूगल पंप के इंपेलर पर किया जाता है ।

13. ड्‌यूरैलूमिन एलॉय (Duralumin Alloy):

यह एक प्रसिद्ध एलॉय है जिसमें 3.5 से 4.5 कॉपर, 0.4 से 0.7% मैंगनीज, 0.4 से 0.7% मैगनीशियम और बाकी एल्युमीनियम होता है । कार्य के बाद 3 या 4 दिन तक रखकर इसे एज हार्डनिंग किया जा सकता है जिससे यह कठोर हो जाता है । इस पर जंग नहीं लगता और यह बिजली का सुचालक होता है । इसका अधिकतर प्रयोग बिजली के केवल और हवाई जहाज के पुर्जे बनाने के लिए किया जाता है ।

14. ‘वाई’ एलॉय (‘Y’ Alloy):

इस एलॉय में 3.5 से 4.5% कॉपर, 1.8 से 2.3% निकल, 1.2 से 1.7% मैगनीशियम और बाकी एल्युमीनियम होता है । यह प्राय: शीट और स्ट्रिप के रूप में पाया जाता है । अधिक तापमान पर इसकी मजबूती बनी रहती है । इसका अधिकतर प्रयोग इंजन के पिस्टन बनाने के लिए किया जाता है ।

15. जर्मन सिल्वर (German Silver):

इस एलॉय में मुख्यतः कॉपर और निकल मिलाए जाते हैं । कभी-कभी इसमें टिन और लैड भी मिलाए जाते हैं । इसका प्रयोग बर्तन बनाने और इलेक्ट्रिकल कार्य के रेजिस्टेंस बनाने के लिए किया जाता है ।