Read this article in Hindi to learn about the manufacturing processes of steel.
1. सीमेंटेशन प्रोसेस (Cementation Process):
इस विधि में रॉट ऑयरन की बार को चारकोल के साथ भट्टी में डाकलर लगभग तक तापमान दिया जाता है । यह तापमान स्टील की क्वालिटी के अनुसार 10 दिन तक रखा जा सकता है । इस प्रकार चारकोल की कार्बन रॉट ऑयरन की बार पर जम जाती है ।
फिर रॉट ऑयरन की बार को ठंडा कर दिया जाता है । इससे जो स्टील बनती है उसे बलिस्टर स्टील कहते हैं । बलिस्टर स्टील को टुकड़ों में काट कर बोरेक्स और रेत के साथ दुबारा गर्म किया जाता है और आपस में वेल्डिंग किया जाता है । इसके बाद ड्राइंग आपरेशन करके विभिन्न आकारों में बना लिया जाता है ।
इस प्रकार इससे जो स्टील बनती है उसे शियर स्टील कहते हैं । यदि इस स्टील को दुबारा गर्म किया जाए तो जो स्टील बनेगी उसे डबल शियर स्टील कहते हैं । यह एक अच्छी क्वालिटी की स्टील होती है जिसका प्रयोग कटिंग टूल्स और इंस्ट्रूमैंट्स बनाने के लिए किया जाता ।
2. बेसेमर प्रोसेस (Bessemer Process):
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इस विधि में पिघले हुए कास्ट ऑयरन को बेसेमर कनवर्टर में भर दिया जाता है और पिघले हुए कास्ट ऑयरन के ऊपर से तेज गर्म हवा को छोड़ा जाता है जिससे धातु की कार्बन और अशुद्धियां जलकर बाहर निकल जाती हैं । इस विधि से अच्छी क्वालिटी की माडल स्टील अ जाती ।
3. क्रूसिबल प्रोसेस (Crucible Process):
इस विधि में एक बर्तन का प्रयोग किया जाता है जिसे क्रूसीबल कहते हैं । इसमें बलिस्टर स्टील के टुकड़ों को भरकर अधिक तापमान पर गर्म किया जाता है जिससे स्टील की अशुद्धियां जलकर दूर हो जाती हैं । इसके बाद पिघली हुई धातु को सांचों में भर दिया जाता है । इस विधि से जो स्टील बनती है उसे कास्ट स्टील कहते हैं ।
4. ओपन हर्थ प्रोसेस (Open Hearth Process):
इस विधि में कास्ट ऑयरन या पिग ऑयरन को पिघलाकर उसकी कार्बन और दूसरी अशुद्धियों को दूर किया जाता है । कार्बन, मैंगनीज और सिलिकन को आक्सीडाइज करने के लिए रेड हेमाटाइट का प्रयोग किया जाता है । इसके साथ फेरो मैंगनीज का प्रयोग भी किया जाता है । इस विधि के द्वारा ब्रिटलनैस को कम करके मौलिएबल स्टील बनाई जाती है ।
ओपन हर्थ एक प्रकार की आयताकार बाथ होती है जिसके सामने वाले भाग मे कई चार्जिंग डोर होते है और पीछे की ओर एक टैपिंग होल होता है । इसके नीचे रीजेनरेटिंग चैम्बर होता है जो कि हवा और गैस को अलग-अलग करता है ।
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गर्म, गैस और हवा को जब इसमें प्रवेश कराया जाता है तो दोनों के मिलने पर ज्वाला उत्पन्न होती है जिसकी लो धीरे से नीचे की ओर जाती है और बाथ की सरफेस को स्पर्श करती है और धातु से कार्बन और अशुद्धियों को जलाकर कम करती है । उपयोग में लाई गई लो को दो सुराखों और चिमनी के रास्ते से बाहर निकाल देते हैं ।
इस विधि से प्रायः निम्नलिखित लाभ होते हैं:
a. पिग ऑयरन के साथ स्टील के स्कैप का प्रयोग किया जा सकता है ।
b. केमिकल ऐक्शन धीमा होने से अच्छा कंट्रोल संभव होता है ।
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c. इस विधि से जब उचित मात्रा में कार्बन रह जाए तो प्रोसेस को बंद किया जा सकता है ।
5. इलेक्ट्रिक प्रोसेस (Electric Process):
इस विधि का प्रयोग स्टील को जल्दी बनाने के लिए किया जाता है । साफ और पिघली हुई धातु की अंतिम रिफाइनिंग के लिए और स्टील में स्पेशल गुण लाने के लिए तथा मिश्रण तत्वों को बढ़ाने के लिए इलेक्ट्रिक फरनेस का प्रयोग किया जाता है । इस विधि में कार्बन स्टील के साथ दूसरे मिश्रण तत्त्व भी बढ़ाये जाते हैं ।
प्रायः दो प्रकार की इलेक्ट्रिक फरनेसें प्रयोग में लाई जाती हैं:
(क) इलेक्ट्रिक आर्क फरनेस
(ख) हाई फ्रिक्वेंसी फरनेस
इलेक्ट्रिक आर्क फरनेस में आवश्यक ताप को कार्बन इलेक्ट्रोडों और मेटल बाथ के बीच टकराने वाली इलेक्ट्रिक आवर्स के द्वारा उत्पन्न किया जाता है । हाई फ्रिक्वेंसी फरनेस में आवश्यक ताप को एक इंडक्टर कॉयल के द्वारा उत्पन्न किया जाता है जिस पर आल्टरनेटिंग करेंट होता है । इस विधि द्वारा प्रायः स्टेनलैस स्टील, हाई स्पीड स्टील इत्यादि का उत्पादन किया जाता है ।
6. एल. डी. प्रोसेस (L.D. Process):
इस विधि में अपेक्षाकृत कम समय में एक बेसिक कनवर्टर का प्रयोग करके हाई क्वालिटी स्टील का उत्पादन किया जाता है । इस विधि में पिघले हुए पिग ऑयरन और स्टील स्क्रैप का प्रयोग किया जाता है तथा कार्बन व अन्य अशुद्धियों के ऑक्सिडेशन के लिए वाटर कूल्ड लांस से ऑक्सीजन का बहाव दिया जाता है । जब यह बहाव पूर्ण हो जाता है, झाग को साफ कर दिया जाता है और धातु को लेडल में भर दिया जाता है ।