वेल्डिंग: तरीके और दोष | Welding: Methods and Faults in Hindi!

Read this article in Hindi to learn about:- 1. वेल्डिंग विधियां (Welding Methods) 2. सामान्य गैस वेल्डिंग दोष (Common Gas Welding Faults) 3. उद्देश्य (Purpose) and Other Details.

Contents:

  1. वेल्डिंग विधियां (Welding Methods)
  2. सामान्य गैस वेल्डिंग दोष (Common Gas Welding Faults)
  3. रूट गैप और टैक वेल्डिंग के उद्देश्य (Purpose of Root Gap and Tack Welding)
  4. वेल्डिड ज्वाइंटों की इंस्पेक्शन और टेस्टिंग (Inspection and Testing of Welded Joint)
  5. वेल्डिंग कोड्स (Welding Codes)

1. वेल्डिंग विधियां (

Welding Methods):                                                                                                                                                                

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गैस वेल्डिंग प्राय: निम्नलिखित विधियों द्वारा की जा सकती हैं:

i. लेफ्टवर्ड वेल्डिंग:

इसको फारवर्ड वेल्डिंग भी कहते हैं । इसके लिए फिलर रॉड को बायें हाथ में और ब्लो पाइप को दायें हाथ में पकड़ा जाता है तथा वेल्डिंग दायीं ओर से आरंभ करके बायीं ओर बढ़ाई जाती है । यह विधि 6 मि.मी. तक मोटी प्लेटों के लिए उपयोगी है ।

ii. राइटवर्ड वेल्डिंग:

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इसमें भी फिलर रॉड को बायें हाथ में और ब्लो पाइप को दायें हाथ में पकड़ा जाता है परंतु वेल्डिंग बायीं ओर से आरंभ करके दायीं ओर बढ़ाई जाती है । यह विधि 6 मि.मी. से अधिक मोटी प्लेटों के लिए उपयोगी हैं ।

iii. वर्टिकल वेल्डिंग:

यह बहुत ही उपयोगी और बचतपूर्ण विधि है जिसका प्रयोग किसी भी मोटाई की प्लेट पर किया जाता है परंतु यह वेल्डिंग तभी संभव है जब प्लेटें वर्टिकल पोजीशन में रखी हों । इसमें वेल्डिंग प्लेट के बॉटम से आरंभ करके टॉप की ओर बढ़ाई जाती है ।

ऑक्सीजन कटिंग:

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आधुनिक उद्योगों में ऑयरन और स्टील की कटिंग के लिए ऑक्सीजन कटिंग विधि का प्रयोग अधिकतर किया जाता है । इसके लिए काटी जाने वाली धातु को फ्लेम के द्वारा लाल गर्म कर दिया जाता है ।

और इसके बाद आक्सीजन की तेज धारा प्रवाहित करके धातु की कटिंग की जाती है । इस विधि के लिए विशेष प्रकार की टार्च का प्रयोग किया जाता है । आजकल फ्लेम कटिंग के लिए कई प्रकार की ऑटोमेटिक मशीनों का प्रयोग किया जाता है ।


2. सामान्य गैस वेल्डिंग दोष

(Common Gas Welding Faults):

गैस वेल्डिंग में पाए निम्नलिखित सामान्य दोष पाए जाते हैं:

i. फ्यूजन की कमी,

ii. अपूर्ण पेनिट्रेशन,

iii. अंडरकट,

iv. क्रेकिंग,

v. ऑक्सीडाइज्ड वेल्ड,

vi. ओवर हीटिड वेल्ड,

vii. पोरोसिटी या गैस पॉकेट,

viii. बिना भरा हुआ क्रेटर,

ix. अपूर्ण वेल्ड साइज और आकार,

x. जलना या पिघल जाना ।


3. रूट गैप और टैक वेल्डिंग के उद्देश्य

(Purpose of Root Gap and Tack Welding):

 

I. रूट गैप:

वेल्डिंग करने से पहले असेम्बली के जोड़े जाने वाले पार्टस को कुछ निश्चित दूरी पर रखा जाता और तब वेल्डिंग की जाती है । ऐसा करने से वेल्डिंग के दौरान फ्यूजन आवश्यक गहराई तक हो जाता है या ज्वाइंट की पूरी गहराई तक पूर्ण पेनेट्रेशन हो जाता है ।

II. टैक वेल्डिंग:

वेल्डिंग करने से पहले जोड़ने वाले पीसों को असेम्बल करने के लिए उनपर थोड़ी-थोड़ी दूरी पर छोटे वेल्ड लगाए जाते हैं । ऐसा करने से निश्चित गहराई तक फ्यूजन के लिए असेम्बली के पार्टस के बीच गैप और अलाइनमेंट बनाए रखा जा सकता और वेल्डिंग के दौरान डिस्टार्शन को कंट्रोल किया जा सकता है ।


4. वेल्डिड ज्वाइंटों की इंस्पेक्शन और टेस्टिंग (

Inspection and Testing of Welded Joint):

इंस्पेक्शन के उद्देश्य (Purposes of Inspection):

i. वेल्डिंग ज्वाइंट की क्वालिटी, स्ट्रेंग्थ और गुणों को सुनिश्चित करना ।

ii. वेल्डिंग के पहले, दौरान और बाद के दोषों को दूर करने के लिए सावधानियां अपनाना ।

iii. कारीगर की कौशलता और योग्यता को आंकना ।

वेल्डिड ज्वाइंटों की टेस्टिंग करना (Testing of Welded Joints):

वेल्डिड ज्वाइंटों की टेस्टिंग निम्नलिखित के द्वारा की जा सकती है:

i. नॉन-डिस्ट्रक्टिव टेस्टिंग:

इसमें वेल्डिड ज्वाइंट को खराब किए बिना टेस्टिंग की जाती है । इसके लिए कई विधियां प्रयोग में लाई जाती है परन्तु विजुअल इंस्पेक्शन मुख्य है ।

विजुअल इंस्पेक्शन:

इसमें सरल हैंड टूल्स और गेजों जैसे मेग्नीफाइंग ग्लास, स्टील रूल, ट्राई स्क्वायर और वेल्ड गेजों का प्रयोग करके वेल्ड को बाहर से देखा जाता है । यह इंस्पेक्शन तीन स्टेजों में की जाती है- वेल्डिंग से पहले; वेल्डिंग के दौरान; और वेल्डिंग के बाद ।

ii. डिस्ट्रक्टिव टेस्टिंग:

इसमें वेल्डिड ज्वाइंट प्राय: खराब हो जाता है । इसके लिए कई विधियां प्रयोग में लाई जाती है परन्तु बेंट टेस्ट मुख्य है ।

बेंड टेस्ट:

इसमें वेल्डिड ज्वाइंट को बाइस में फेस साइड या रूट साइड से पकड़कर मोड़ा जाता है जिन्हें क्रमश: फेस बेंट या रूट बेंट कहते हैं । यदि बेंट दोषयुक्त होता है तो वह टूट जाता है ।


5. वेल्डिंग कोड्स (

Welding Codes):

प्राय: निम्नलिखित वेल्डिंग कोडों का प्रयोग किया जाता है:

(a) AAW जिसका अर्थ है एअर एसीटिलीन वेल्डिंग ।

(b) GCAW जिसका अर्थ है गैस कार्बन आर्क वेल्डिंग ।

(c) LBW जिसका अर्थ है लेसर बीम वेल्डिंग ।

(d) PAW जिसका अर्थ है प्लास्मा आर्क वेल्डिंग ।

(e) SAW जिसका अर्थ है सबमर्ज्ड आर्क वेल्डिंग ।


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