Read this article in Hindi to learn about:- 1. धातु के वेल्डिंग का अर्थ (Meaning of Welding of Metals) 2. वेल्डिंग के प्रकार (Types of Welding) 3. मशीनें (Machines) and Other Details.

Contents:

  1. धातु के वेल्डिंग का अर्थ (Meaning of Welding of Metals)
  2. वेल्डिंग के प्रकार (Types of Welding)
  3. वेल्डिंग मशीनें (Welding Machines)
  4. वेल्डिंग टूल्स (Welding Tools)
  5. वेल्डिंग ज्वाइंट के प्रकार (Types of Welding Joint)
  6. वेल्डिंग के गैसें और सिलण्डर्स (Gases and Cylinders for Welding)


1. धातु के वेल्डिंग का अर्थ (Meaning of Welding of Metals):

वेल्डिंग एक प्रकार की विधि है जिसमें धातु के टुकड़ों को आपस में प्रैशर या फ्यूजन वेल्डिंग विधियों द्वारा जोड़ा जाता है । वेल्डिंग करने वाले कारीगर को वेल्डर के नाम से जाना जाता है ।

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सुरक्षा नियम:

i. कारीगर की ड्रेस टाइट होनी चाहिए ।

ii. कारीगर को जूते पहन कर वेल्डिंग करनी चाहिए ।

iii. वेल्डिंग करते समय हाथ में चमड़े के दस्ताने पहनने चाहिए ।

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iv. वेल्डिंग करते समय आँख पर चश्मा, हेल्मेट या हैंड शील्ड का प्रयोग करना चाहिए ।

v. इलेक्ट्रिक आर्क वेल्डिंग को नंगी आंखों से नहीं देखना चाहिए ।

vi. सही इलेक्ट्रोड होल्डरों का प्रयोग करना चाहिए ।

vii. गर्म जॉब को बिना दस्ताने पहने हाथ से स्पर्श नहीं करना चाहिए ।

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viii. किसी भी ऐसी मशीन का प्रयोग नहीं करना चाहिए । जिसके बारे में जानकारी न हो ।

ix. गीले स्थान पर आर्क वेल्डिंग नहीं करनी चाहिए ।

x. गैस वेल्डिंग करते समय सही फ्लक्स का प्रयोग करना चाहिए ।

सुरक्षा साधन:

i. हेल्मेट,

ii. हैंड शील्ड,

iii. चश्मा,

iv. दस्तानें,

v. ऐप्रन ।


2. वेल्डिंग के प्रकार (Types of Welding):

आधुनिक वेल्डिंग विधियों को निम्नलिखित दो वर्गों में बांटा गया है:

i. प्रेशर वेल्डिंग:

इसमें जोड़ी जाने वाली धातु के टुकड़ों को प्लास्टिक अवस्था तक गर्म करके और उन पर बाहरी प्रेशर लगाकर जोड़ा जाता है, अर्थात् अतिरिक्त फिलर मेटल का प्रयोग नहीं किया जाता है । इसके अंतर्गत फोर्ज वेल्डिंग और रेजिस्टेंस वेल्डिंग आती हैं ।

ii. फ्यूजन वेल्डिंग:

इसमें धातु के टुकड़ों को पिघलाने वाली अवस्था तक गर्म करके वेल्डिंग की जाती है । इसमें फिलर मेटल का प्रयोग किया जाता है । इसके अंतर्गत थर्मिट वेल्डिंग, एटोमिक हाइड्रोजन वेल्डिंग, कार्बन आर्क वेल्डिंग और ऑक्सी एसीटिंलीन वेल्डिंग आती हैं ।


3. वेल्डिंग मशीनें (Welding Machines):

वेल्डिंग मशीन एक ऐसा साधन है जिनसे वेल्डिंग के लिए करेंट सप्लाई किया जाता है । इनसे पॉवर की सप्लाई को आवश्यकतानुसार वोल्टेज, करेंट और आवृति में परिवर्तन किया जाता है ।

प्रकार:

आर्क वेल्डिंग के लिए निम्नलिखित तीन मशीनें प्रयोग में लाई जाती हैं:

i. वेल्डिंग ट्रांसफार्मर- यह ए.सी. करेंट उत्पन्न करता है जिसको पॉवर लाइन से प्रत्यक्ष: पॉवर मिलती है । यह मशीन छोटी, हल्की व कम खर्चीली होती है ।

ii. मोटर जनरेटर- यह प्रत्यक्षत: करेंट उत्पन्न करता है जिसे पेट्रोल या डीजल से चलाया जा सकता है ।

iii. वेल्डिंग रेक्टिफायर- इसमें ए.सी. करेंट को डी.सी. करेंट में परिवर्तित किया जाता है । रेक्टिफायर पर लगे स्विच को घुमाकर आउटपुट टर्मिनलों को परिवर्तित किया जा सकता है और पोलारिटी के परिवर्तन द्वारा ए.सी. या डी.सी. को उत्पन्न किया जा सकता है ।


4. वेल्डिंग टूल्स (Welding Tools):

वेल्डिंग शाप में प्रयोग लाये जाने वाले कुछ मुख्य टूल्स निम्नलिखित हैं:

I. चिपिंग हैमर,

II. इलेक्ट्रोड होल्डर,

III. अर्थिंग क्लेम्प,

IV. टोंग्स,

V. वायर ब्रुश,

VI. स्पार्क लाइटर,

VII. ‘सी’ क्लेम्प,

VIII. स्क्राइबर,

IX. स्टील रूल,

X. ट्राई स्क्वायर ।


5. वेल्डिंग ज्वाइंट के प्रकार (Types of Welding Joint):

कई प्रकार के वेल्डिंग ज्वाइंट प्रयोग में लाए जाते हैं जिनमें से निम्नलिखित मुख्य हैं:

i. बट ज्वाइंट- इसमें वेल्ड की जाने वाली दो प्लेटों को आपस में ऐज से ऐज रखकर ज्वाइंट पर वेल्डिंग की जाती है ।

ii. लैप ज्वाइंट- इसमें वेल्ड की जाने वाली प्लेटों को आपस में ओवर लैप करके वेल्डिंग की जाती है ।

iii. ‘टी’ ज्वाइंट- इसमें वेल्ड की जाने वाली प्लेटें आपस में समकोण में रखकर वेल्डिंग की जाती है ।

iv. स्ट्रैप ज्वाइंट- इसमें वेल्ड की जाने वाली प्लेटों को ऐज से ऐज रखकर ज्वाइंट को एक या दो ओर से स्ट्रेप या प्लेट से कवर करके वेल्डिंग की जाती है ।

v. ऐज ज्वाइंट- इसमें वेल्ड की जाने वाली दो पतली प्लेटों को आपस में समानान्तर रखकर किनारों की वेल्डिंग की जाती है ।

vi. कार्नर ज्वाइंट- इसमें वेल्ड की जाने वाली दो प्लेटों को आपस में 90° में रखकर उनके कार्नर से वेल्डिंग की जाती है ।

vii. प्लग ज्वाइंट- इसमें वेल्ड की जाने वाली दोनों या एक प्लेट में सुराख या स्लॉट बनाकर, सुराख या स्लॉट से वेल्डिंग की जाती है ।


6. वेल्डिंग के गैसें और सिलण्डर्स (Gases and Cylinders for Welding):

ऑक्सी एसीटिलीन वेल्डिंग के लिए मुख्यत: दो प्रकार की गैसें ऑक्सीजन और एसीटिलीन प्रयोग में लाई जाती हैं । जिन्हें विभिन्न सिलण्डरों में भरा जाता है ।

जो कि निम्नलिखित प्रकार के होते हैं:

1. ऑक्सीजन सिलण्डर:

यह उच्च क्वालिटी की स्टील से बना काले रंग का सिलण्डर होता है जिसकी स्ट्रेंग्थ और टफनेस अच्छी होती है । इसमें आक्सीजन 120 से 150 कि.ग्रा. / से.मी.2 प्रैशर पर भरी जाती है । इसकी वाल्व सॉकेट पर राइट हैंड थ्रेड्स होती हैं ।

2. धुली हुई एसीटिलीन सिलण्डर:

यह गहरे लाल रंग का स्टील का सिलण्डर होता है जिसकी बनावट आक्सीजन सिलण्डर से भिन्न होती है । इसमें एसीटिलीन 15 से 16 कि.ग्रा. / से.मी.2 प्रैशर पर भरी जाती है । एसीटिलीन अधिक ज्वलनशील होती है इसलिए इस सिलण्डर को सदैव अपराइट पोजीशन में रखकर स्टोर करना चाहिए । इसकी वाल्व सॉकेट पर लेफ्ट हैंड थ्रेड्‌स होती हैं ।

प्रैशर रेगुलेटर:

इसे गैस सिलण्डर के बिलकुल मुंह के ऊपर फिट किया जाता है । इससे प्रेशर कंट्रोल होता है और कार्य करते समय उचित मात्रा में गैस सिलण्डर से बाहर निकलती है ।

रेगुलेटरों के लिए होज पाइप कनेक्शन:

इसका प्रयोग रबर के होस पाइपों को रेगुलेटरों के साथ जोड़ने के लिए किया जाता है एसीटिलीन कनेक्शन में लेफ्ट हैंड थ्रेड्‌स जबकि ऑक्सीजन कनेक्वान में राइट हैंड थ्रेड्स होती हैं ।

ब्लो पाइप के लिए होज पाइप कनेक्शन:

इसका प्रयोग रबर के होज पाइप को ब्लो पाइप के साथ जोड़ने के लिए किया जाता है जो कि वेल्डिंग के दौरान फ्लैश बैक या बैक फायल को रोकने के लिए नॉन रिटर्न डिस्क के साथ फिट किया होता है । एसीटिलीन कनेक्शन की लेफ्ट हैंड थ्रेड्‌स और ऑक्सीजन कनेक्शन की राइट हैंड थ्रेड्‌स होती हैं ।

वेल्डिंग टार्च:

इसे ब्लो पाइप भी कहते हैं । इसके द्वारा आक्सीजन और एसीटिलीन को लगभग बराबर आयतन में मिलाया जाता हैं । इसके सिरे पर वेल्डिंग टिप (नोजल) फिट रहता है । कार्य के अनुसार भिन्न-भिन्न साइज के टिप प्रयोग में लाये जा सकते हैं ।

वेल्डिंग टार्च निम्नलिखित दो प्रकार की होती है:

1. लो प्रेशर,

2. हाई प्रेशर ।

वेल्डिंग रॉडें:

वेल्डिंग करते समय सही वेल्डिंग रॉड या फिलर रॉड का प्रयोग करना चाहिए । इसका चयन करते समय ध्यान रखना चाहिए कि वेल्ड की जाने वाली धातु और वेल्डिंग रॉड की धातु की कंपोजीशन लगभग बराबर होनी चाहिए ।

साइज:

वेल्डिंग रॉड का साइज उसके व्यास के अनुसार निर्दिष्ट किया जाता है जैसे 1.6 मि.मी., 3.15 मि.मी., 5.00 मि.मि. और 6.30 मि.मी. ।

फ्लक्स:

वेल्डिंग करते समय ज्वाइंट को साफ करने और प्रभावपूर्ण वेल्डिंग के लिए फ्लक्स का प्रयोग करना आवश्यक है । फेरस धातुओं के लिए बोरेक्स और सोडियम कार्बोनेट अच्छे फ्लक्स है । वेल्डिंग करने के लिए के बाद ज्वाइंट से फ्लक्स को साफ कर देना चाहिए जिससे कोरोजन का प्रभाव उत्पन्न नहीं होगा ।

फ्लेम्स के प्रकार:

प्राय: निम्नलिखित प्रकार की फ्लेम्स बनती हैं:

1. न्यूट्रल फ्लेम- प्राय: ऐसी फ्लेम ऑक्सीजन और एसीटिलीन को लगभग बराबर मात्रा मिलाने से बनता है । इसका तापक्रम 3200°C होता है ।

2. कार्बुराइजिंग फ्लेम- ऐसा फ्लेम न्यूट्रल फ्लेम में एसीटिलीन की मात्रा बढ़ाने से बनता है । इसका तापक्रम 3100°C होता है ।

3. ऑक्सीडाइजिंग फ्लेम- ऐसा फ्लेम न्यूट्रल फ्लेम में ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ाने से बनता है । इसका तापमान 3300°C होता है ।


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