पाकिस्तान की संविधान सभा का उद्‌घाटन भाषण | Speech of Mohamed Ali Jinnah on “Inaugural Address at the Constituent Assembly of Pakistan” in Hindi Language!

मि॰ प्रेसीडेण्ट, देवियो और सज्जनो ! आपने मुझे अपना प्रथम राष्ट्रपति चुनकर जो सम्मान दिया है: वह सर्वोच्च सम्मान, जो इस सार्वभौम सभा के लिए सम्भाव है: मैं उसके लिए आपका हार्दिक धन्यवाद करता

हूं ।

मैं उन नेताओं को भी धन्यवाद देता हूं, जिन्होंने मेरी सेवाओं की और मेरी सराहना की है । मुझे पूरा भरोसा है कि हम आपके समर्थन और सहयोग से इस संविधान सभा को दुनिया के लिए एक मिसाल बना      देंगे । संविधान सभा को दो मुख्य काम करने हैं ।

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पहला है पाकिस्तान के भावी संविधान बनाने का कठिन और उत्तरदायित्व भरा काम और दूसरा पाकिस्तान के संघीय विधानमण्डल के रूप में एक सम्पूर्ण सार्वभौम संस्था की भांति काम करना । पाकिस्तान के संघीय विधानमण्डल के लिए एक आखिरी संविधान अपनाने के लिए हमें अपनी सर्वोत्तम प्रतिभा का परिचय देना होगा ।

आप सब जानते हैं कि न केवल हम स्वयं इस पर हैरान हो रहे हैं, अपितु इस अभूतपूर्व तूफानी क्रान्ति जिसने इस उपमहाद्वीप में दो स्वतन्त्र सार्वभौम राष्ट्रों की स्थापना की योजना को साकार किया है, पर सारी दुनिया हैरान हो रही है । अपने आप में यह अभूतपूर्व है; दुनिया के इतिहास में इसका समकक्ष नहीं है ।

यह विशाल उपमहाद्वीप जिसमें सभी प्रकार के व्यक्ति रहते हैं एक ऐसी योजना के अन्तर्गत लाया गया है, जो दैत्याकार, अनजाना और अतुलनीय है और इसके सम्बन्ध में जो बात अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है, वह यह है कि हमने इसे शान्ति और नैतिक साधनों से हासिल किया है ।

मैं इस सभा के पहले समारोह में शामिल होने के कारण इस समय बहुत सुविचारित घोषणाएं नहीं कर सकता परन्तु मैं कुछ बातें कहूंगा जो इस समय मेरे मन में आ रही हैं । पहली और मुख्य बात जिस पर मैं बल देना चाहूंगा, यह है: स्मरण रखिये अब आप एक सार्वभौम विधायी संस्था हैं और आपके हाथों में समस्त शक्तियां हैं ।

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इसलिए वह आप पर भारी उत्तरदायित्व डालता है कि आपको अपने निर्णय किस प्रकार लेने चाहिए । मैं इस पर जो पहली टिप्पणी करना चाहूंगा, वह यह है । निस्सन्देह, आप मुझसे सहमत होंगे कि एक सरकार का पहला कर्तव्य है कानून और व्यवस्था लागू करना जिससे राज्य जनता के जान-माल और उसके धार्मिक विश्वासों को पूरा संरक्षण दे सके ।

मेरे मन में जो दूसरी बात आती है, वह यह है । भारत जिन सबसे बड़े शापों से ग्रस्त है: मैं यह नहीं कहता कि दूसरे देश इससे मुक्त हैं, परन्तु हमारी स्थिति कहीं बदतर है: वे हैं पूस और भ्रष्टाचार । वे सचमुच विष हैं । हमें उससे कठोरता से निपटना होगा और मुझे उम्मीद है कि आप जितनी शीघ्र सम्भव हो, ऐसे कदम उठायेंगे कि यह सभा उस दिशा में कुछ कर सके । एक अन्य अभिशाप है: कालाबाजारी ।

यह ठीक है कि मैं जानता हूं कि कालाबाजारिये प्राय: पकड़े जाते हैं और उन्हें सजा मिलती है । अदालतें उन्हें सजा देती हैं और कभी-कभी उन पर केवल जुर्माना लगाया जाता है । अब आपको इस राक्षस से निपटना है, जो कि समाज के विरुद्ध एक बहुत बड़े पैमान पर हो रहा गुनाह है-हमारी विपदाग्रस्त स्थिति में जब हम भोजन और जीवन की दूसरी आवश्यक वस्तुओं की लगातार कमी झेल रहे हैं ।

मैं समझता हूं कि एक कालाबाजारी सबसे बड़े और जघन्य अपराधों से भी बड़ा अपराध करता है । ये कालाबाजारिये वास्तव में जानकार बुद्धिमान् एवं आमतौर पर उत्तरदायी लोग होते हैं और जब वे कालाबाजारी करते हैं, तो मैं समझता हूं कि उन्हें कठोर दण्ड दिया जाना चाहिए; क्योंकि वे खाद्य पदार्थों और दूसरी आवश्यक वस्तुओं पर नियन्त्रण व नियमन की पूरी प्रणाली को कमजोर बनाते हैं तथा बड़े पैमाने पर भुखमरी और अभाव उत्पन्न करते हैं ।

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अगली वस्तु जो मेरा ध्यान खींचती है, वह यह है: यह भी हमें विरासत में मिली है । कई अच्छी और बुरी बातों के साथ यह भयंकर बुराई भी आ गयी है: भाई-भतीजावाद और भ्रष्टाचार की बुराई । इस बुराई को कठोरता से मसल दिया जाना चाहिए ।

मैं यह बिकुल स्पष्ट कर देना चाहता हू कि मैं किसी प्रकार का भ्रष्टाचार भाई-भतीजावाद या प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से मुझे प्रभावित करने के प्रयास को  बिल्कुल सहन नहीं करूगा । मैं जहां कहीं भी इसका चलन देखूंगा चाहे वह ऊंचे स्तर पर हो या नीचे उसे समाप्त कर मैं जानता हूं कि ऐसे व्यक्ति हैं, जो हिन्दुस्तान के बंटवारे तथा पजाब और बंगाल के बंटवारे से पूरी तरह सहमत नहीं हैं ।

उसके विरुद्ध बहुत कुछ कहा गया है, लेकिन अब जबकि वह स्वीकार कर लिया गया है, हममें से प्रत्येक का यह कर्तव्य है कि निष्ठा से उसका पालन करें तथा उस समझौते के अनुसार ईमानदारी से काम करें जो अब आखिरी और सब पर बाध्यकारी है । लेकिन आपको स्मरण रखना चाहिए कि जैसा मैंने कहा यह महान् क्रान्ति अभूतपूर्व है ।

दोनों समुदायों की भावनाओं को कोई भी अच्छी तरह समझ सकता है; जहां एक समुदाय अधिक संख्या में है और दूसरा कम संख्या में परन्तु प्रश्न यह है कि क्या यह सम्भव या व्यवहार्य था कि हमने जो कुछ किया है, वह न करके कुछ और कर लें ? विभाजन आवश्यक था ।

हिन्दुस्तान और पाकिस्तान दोनों ओर ऐसे वर्ग हैं जो इससे एकमत न हों इसे पसन्द न करते हों; परन्तु मेरे से इस समस्या का और कोई समाधान नहीं था और मुझे भरोसा है कि भावी इतिहास इसके पक्ष में अपना निर्णय दर्ज करेगा । यही नहीं जैसे-जैसे हम आगे बढ़ते हैं, हमारे वास्तविक अनुभव से यह प्रमाणित हो जायेगा कि भारत की संवैधानिक समस्या का वही एक हल था ।

एक संयुक्त भारत का कोई भी विचार कार्य नहीं करता और मेरे विचार से वह हमें महाविनाश की तरफ ही ले जाता । यह दृष्टिकोण सही हो सकता है और गलत  भी यह देखा जाना शेष है । फिर भी इस विभाजन में दोनों में से किसी राष्ट्र में अल्पसंख्यकों के प्रश्न से बचा नहीं जा सकता था । अब वह तो अपरिहार्य है ।

इसका कोई दूसरा समाधान नहीं है । अब हम क्या करेंगे ? अब यदि हम इस महान् राष्ट्र पाकिस्तान को सुखी और सम्पन्न बनाना चाहते हैं, तो हमें अपनी कोशिशों को पूरी तरह से और केवल लोगों-विशेषरूप से आम और निर्धन जनता-की भलाई पर केन्द्रित करना होगा ।

यदि आप भूतकाल को भूलकर दुश्मनी को समाप्त कर मिलकर कार्य करेंगे तो निश्चित रूप से सफल होंगे । यदि आज जो कुछ हुआ उसे भूलकर इस भावना से कार्य करते हैं कि आप में से प्रत्येक व्यक्ति चाहे वह किसी भी समुदाय का हो चाहे भूतकाल में आपके साथ उसके सम्बन्ध कैसे भी हों; चाहे उसका रंग जाति या धर्म कुछ भी हो वह सबसे पहले दूसरे और अन्त में इस मुल्क का नागरिक है, जिसे उतने ही अधिकार सुविधाएं और कर्तव्य उपलब्ध हैं, जितने किसी और को तो आप यकीनन बेइंतहा उन्नति करेंगे ।

मैं इस पर जितना बल दूं, वह फिर भी कम होगा । हमें इस भावना से कार्य आरम्भ कर देना चाहिए और समय के साथ बहुसंख्यक समुदाय एवं अल्पसंख्यक समुदाय की कठोरताएं: हिन्दू समुदाय और मुस्लिम समुदाय और मुसलमानों में भी पठान, पंजाबी, शिया, सुनी और दूसरे कई विभाजन हैं ।

इसी प्रकार हिन्दुओं में भी ब्राह्मण वैष्णव क्षेत्री आदि और उसके साथ बंगाली मद्रासी जैसे क्षेत्रीय विभाजन अपने आप ही समाप्त हो जायेंगे । वास्तव में यदि आप मुझसे पूछें, तो भारत की स्वाधीनता के मार्ग में यही सबसे बड़ी रुकावट थी और यह न होती तो हमें बहुत पहले स्वतन्त्रता मिल गयी होती ।

कोई शक्ति किसी दूसरे राष्ट्र को विशेषरूप से 40 करोड़ की आबादी वाले राष्ट्र को गुलाम बनाकर नहीं रख सकती; कोई आपको हरा नहीं सकता था और यदि ऐसा हो भी जाता तो यह रुकावट न होने पर इतने लम्बे समय तक अपना प्रभुत्च कायम न रख पाता ।

इसलिए हमें इससे एक सबक सीखना चाहिए । पाकिस्तान राष्ट्र में आप स्वतन्त्र हैं; आप अपने मन्दिरों में जाने के लिए स्वतन्त्र हैं; आप अपनी मस्जिदों या किसी भी पूजा-स्थल में जाने के लिए आजाद हैं । आप किसी भी धर्म जाति या पंथ से सम्बन्धित हो सकते हैं, उसका राज्य के क्रियाकलापों से कोई  संबंध नहीं है ।

जैसा कि आप जानते हैं, इतिहास बताता है कि कुछ समय पहले इंग्लैण्ड में स्थिति आज के भारत से कहीं खराब थी । रोमन कैथोलिक और प्रोटेस्टेण्ट एक-दूसरे पर अत्याचार करते थे । अब भी कई अन्य राज्य ऐसे हैं जहाँ किसी वर्ग विशेष के साथ भेदभाव किया जाता है और उसकी आजादी का हनन किया जाता है । खुदा का शुक्र है कि हम उन दिनों में अपनी शुरुआत नहीं कर रहे हैं ।

हम एक ऐसे वक्त में आरम्भ कर रहे हैं, जब एक समुदाय और दूसरे के मध्य कोई भेदभाव नहीं है, एक जाति या पंथ और दूसरे के मध्य कोई भेदभाव नहीं है । हम इस मूलभूत सिद्धान्त से आरम्भ कर रहे हैं कि हम एक राष्ट्र के नागरिक समान दर्जे के नागरिक हैं ।

इंग्लैण्ड को एक समय इस स्थिति की सचाइयों का सामना करना पड़ा था और उस देश की सरकार द्वारा उन पर डाली गयी जिम्मेदारियों का पालन करना पड़ा था और वे क्रमश: इस अग्नि परीक्षा से गुजरे । आज आप यह कहें कि रोमन कैथोलिक और प्रोटेस्टेण्ट अब अस्तित्व में नहीं हैं, तो गलत नहीं होगा; अब वहां जिस वस्तु का अस्तित्व है, वो यह है कि प्रत्येक व्यक्ति ग्रेट ब्रिटेन का एक नागरिक एक बराबरी का नागरिक है और वे सभी राष्ट्र के सदस्य हैं ।

अब, मैं समझता हूं कि हमें एक आदर्श के रूप में इसे अपने समक्ष रखना चाहिए और आप एक दिन पायेंगे कि हिन्दू हिन्दू नहीं रहेंगे और मुसलमान मुसलमान नहीं रहेंगे-एक धार्मिक अर्थ में नहीं; क्योंकि वह हर व्यक्ति का व्यक्तिगत भरोसा है: अपितु एक राष्ट्र के नागरिक के रूप में राजनीतिक अर्थ में ।

सज्जनो ! मैं आपका और ज्यादा वक्त नहीं लेना चाहता और आपने मुझे जो सम्मान दिया है, उसके लिए एक बार पुन: आपको धन्यवाद देता हूं । मैं जैसा कि राजनीतिक भाषा में कहा जाता है, बिना किसी पूर्वग्रह और बुरी भावना के-दूसरे शब्दों में बिना किसी भेदभाव के सदैव न्याय और ईमानदारी के सिद्धान्तों पर चलता रहूंगा ।

मेरे मार्गदर्शी सिद्धान्त होंगे: न्याय और सम्पूर्ण निष्पक्षता । मुझे भरोसा है कि मैं आपके समर्थन और मदद से पाकिस्तान को विश्व के महानतम देशों में से एक के रूप में देखने की आशा कर सकता हूं । मुझे संयुक्त राज्य अमेरिका से अपने नाम एक सन्देश मिला है ।

वह इस प्रकार है:  मुझे, पाकिस्तान की संविधान सभा के प्रेसीडेण्ट के नाते श्रीमान् आपको यह सन्देश पहुंचाने का सौभाग्य मिला है, जो मुझे अभी-अभी अमेरिका के विदेश मन्त्री से मिला है:  ‘मैं पाकिस्तान की संविधान सभा की पहली बैठक के मौके पर आपको और सभा के सदस्यों को: जो काम आप हाथ में लेने जा रहे हैं: उसके सफल क्रियान्वयन के लिए अमेरिका की सरकार और उसके नागरिकों की तरफ से हार्दिक शुभकामनाएं देता हूं ।’