Read this article in Hindi to learn about the conditions necessary for neutral money.

अर्थव्यवस्था में मुद्रा तटस्थ तब होगी, जबकि:

(1) मुद्रा भ्रम अनुपस्थित हो (Absence of Money Illusion):

जब व्यय करने वाली इकाइयां अपनी परियोजनाओं को मौद्रिक अर्थ में न बनाकर वास्तविक अर्थों में प्रस्तुत करती है तब इसे मुद्रा भ्रम कहा जाता है । पेटिनकिन का मत था कि मुद्रा भ्रम के अधीन व्यक्ति मुद्रा कीमतों में परिवर्तन के अनुरूप ही प्रत्युत्तर करता है ।

ऐसी स्थिति में सभी मौद्रिक कीमतों व प्रारम्भिक मुद्रा मात्राओं में समान अनुपातिक परिवर्तनों हेतु उपभोक्ता के वस्तु माँग आधिक्य की लोच शून्य रहती है । मुद्रा भ्रम होने पर मौद्रिक मुद्रा में परिवर्तन व कीमत स्तर में परिवर्तन में चयन मुद्रा की अतिरिक्त माँग के प्रति विकल्प नहीं रह जाते व मुद्रा अपने वास्तविक प्रभावों में तटस्थ नहीं रहती ।

ADVERTISEMENTS:

इन दशाओं में मुद्रा प्रसार मुद्रा के पूर्ति आधिक्य को दूर करने में असमर्थ रहता है । मुद्रा संकुचन मुद्रा की वृद्धिमान माँग को सन्तुष्ट नहीं कर पाती, क्योंकि व्यय करने वाली इकाइयाँ वास्तविक अधिशेषों की तुलना में मौद्रिक अधिशेषों की अधिक इच्छा रखते है ।

संक्षेप में मुद्रा भ्रम आर्थिक प्रणाली में ऐसा असमंजस मौद्रिक अधिकारी के लिए आवश्यक बना देता है कि यदि वह मुद्रा की तटस्थता के लक्ष्य को प्राप्त करना चाहे तो उसे मौद्रिक अधिशेषों की सुनिश्चित सही मात्रा उत्पन्न करनी होगी । इसका विकल्प तो यही है कि मुद्रा तब तटस्थ हो सकेगी जब मुद्रा भ्रम न हो ।

(2) प्रत्याशाओं की इकाई लोच (Unitary Elasticities of Expectation):

मुद्रा की तटस्थता तब सम्भव हे, जबकि कीमत प्रत्याशाएँ स्थिर हों या इनकी लोच इकाई के बराबर. हो । यदि प्रत्याशाओं की लोच इकाई नहीं है तो पूँजी एवं आय में वृद्धि से मुद्रा की वास्तविक अतिरिक्त माँग को सन्तुष्ट करने के मौद्रिक मात्रा में के बदले कीमतों में कमी बेहतर विकल्प नहीं हो सकती ।

मुद्रा की नकद मात्रा के दिए होने पर प्रत्याशाओं की इकाई से कम लोच व मुद्रा संकुचन के कारण दबाव और अधिक बढ जाएँगे । अब यदि मौद्रिक पूर्ति में वृद्धि न हो तब सम्भव है कि अल्प रोजगार की दशा सामने आए अथवा मौद्रिक कीमतें गिरने लगें, दूसरी ओर इकाई से अधिक लोच प्रत्याशा होने की दशा में भावी कीमतें अधिक तेजी से बढ़ेंगी । तब मुद्रा की वास्तविक माँग में कमी होगी व अति मुद्रा प्रसार की स्थिति आएगी । इसलिए मुद्रा केवल उस दशा में तटस्थ हो सकती है जब प्रत्याशाओं की लोच इकाई के बराबर हो ।

(3) मजदूरी-कीमत परिवर्तनीयता (Wage Price Flexibility):

ADVERTISEMENTS:

मुद्रा की तटस्थता हेतु आवश्यक शर्त है मजदूरी-कीमत परिवर्तनीयता । वह दशा जिसमें मजदूरी-कीमत दृढ हो तो आय व वास्तविक पूँजी की वृद्धि से मुद्रा की वास्तविक वृद्धिमान माँग में होने वाली वृद्धि मजदूरी व कीमतों के गिरने से नहीं बल्कि नकद मुद्रा की वृद्धि से उत्पन्न होती है ।

नकद मुद्रा के बढ़ने से वस्तु बाजार में कीमतों में वृद्धि होती है व दूसरी ओर बॉण्ड बाजार में ब्याज की दर कम हो जाएगी । कीमतों के दृढ़ होने पर वास्तविक शेष प्रभाव कार्य नहीं कर पाएगा व मुद्रा प्रसारिक दबावों को दूर करना सम्भव नहीं होगा अतः मुद्रा तटस्थ नहीं रह पाएगी ।

इसी कारण गुरले व शॉ ने कहा कि कीमत लोचशीलता ऐसा अदृश्य हाथ है जो मुद्रा के दिए नकद कोष से मौद्रिक सन्तुलन को बनाए रख पाने में समर्थ होता है । कीमतों की दृढ़ता इस अदृश्य हाथ को जकड लेती है ।

(4) वितरण प्रभावों की अनुपस्थिति (Absences of Distribution Effects):

मुद्रा के तटस्थ होने हेतु आवश्यक है कि वितरण प्रभाव अनुपस्थित हों अर्थात् नकद मुद्रा या आय में होने वाले परिवर्तनों से कीमतों में परिवर्तन के वितरण प्रभाव उत्पन्न नहीं होने चाहिएँ ।

ADVERTISEMENTS:

यदि वितरण प्रभाव उत्पन्न होते हैं तो भावी कीमतों व मुद्रा पूर्ति में परिवर्तनों के कारण वास्तविक आय, वस्तुओं व बॉण्डों का व्यक्ति व संस्थाओं में पुर्नवितरण होगा । कीमतों में होने वाली वृद्धि से यदि उपभोक्ता वस्तुओं की माँग में कमी आए व मुद्रा व बॉण्ड की माँग बढ जाए तो आय का पुनर्वितरण उच्च उपभोक्ता वर्ग के विषय में तथा उच्च बचत करने वालों के पक्ष में हो जाएगा ।

(5) सरकारी उधार एवं खुले बाजार की क्रियाओं की अनुपस्थिति (Absence of Government Borrowing and Open Market Operations):

मुद्रा की तटस्थता के लिए आवश्यक है कि सरकारी ऋण व खुले बाजार की क्रियाएँ न हों ।

(6) आन्तरिक एवं बाह्य मुद्रा का संयोग न हो (No Combination of Inside and Outside Money):

हरी जी॰ जानसन ने स्पष्ट किया कि मौद्रिक पूर्ति जो आन्तरिक व बाह्य मुद्रा का सयोग है, स्पष्ट करती है कि मौद्रिक मात्रा में परिवर्तन से कीमत के सामान्य स्तर में उच्चावचन होने के साथ सापेक्ष कीमतों में भी परिवर्तन होंगे अतः मुद्रा तटस्थ केवल तब होगी जब वह या तो शुद्ध रूप से आन्तरिक हो या शुद्ध रूप से बाह्य प्रकार की ।

Home››Money››