प्रेम की शक्ति । Speech of Mother Teresa on “The Power of Love” in Hindi Language!
मदर टेरेसा का जन्म सन 1910 में, 26 अगस्त के दिन यूगोस्लाविया के स्कोपले नामक नगर में हुआ था । उनके अलबेनियन माता-पिता ने उनका नाम एग्नेस गौंझा बोजाक्सयू रखा था । अठारह साल की आयु में वह सेवा-भावना से प्रेरित होकर ईसाई भिक्षुणी बन गयीं ।
डब्लिन में कुछ महीने के प्रशिक्षण के पश्चात् उन्हें भारत भेजा गया । मदर टेरेसा को उनकी मानवता की सेवा के लिए सन् 1970 में ‘नोबेल शान्ति पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया ? मदर टेरेसा ने अपनी प्रार्थना सभा में गर्भपात के विरोध में यह भाषण वाशिंगटन में सन् 7994 में 3 फरवरी को दिया था ।
आखिरी दिन ईसा मसीह अपने दक्षिण तरफ के लोगों से कहेंगे: ‘आओ स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करो; क्योंकि जब मैं भूखा था तुमने मुझे भोजन दिया; जब मैं प्यासा था, तुमने मुझे पानी दिया; जब मैं बीमार था, तुम मेरे पास आये ।’ फिर ईसा अपने बायो तरफ वालों से कहेंगे: ‘दूर चले जाओ; क्योंकि जब मैं भूखा था, तुमने मुझे खाने को नहीं दिया; जब मैं प्यासा था, तुमने मुझे पीने को नहीं दिया; जब मैं बीमार था, तुम मेरे पास नहीं आये ।’
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वे उनसे पूछेंगे: ‘हमने आपको कब भूखा, प्यासा या बीमार देखा और मदद के लिए आपके पास नहीं आये ?’ ईसा उन्हें जवाब देंगे: ‘इनमें से जो सबसे अधिक था, अभागा था, उसके साथ जो कुछ तुमने नहीं किया, वह मेरे साथ नहीं किया ।’ हमें यहां इकटठे होकर एक साथ प्रार्थना करने का जो मौका भगवान् ने दिया है, हम उसके लिए उसका धन्यवाद करते हैं ।
हम यहां विशेषरूप से शान्ति, आनन्द और प्रेम के लिए प्रार्थना करने आये है । यहा हमें स्मरण होता है कि ईसा मसीह गरीबों के लिए खुशखबरी लेकर आये थे । उन्होंने यह कहकर हमें बताया कि वह खुशखबरी क्या थी: ‘मैं अपनी शान्ति तुम्हारे पास छोड़ता हूँ । मैं अपनी शान्ति तुम्हें प्रदान करता हूं ।’ वह हमें सांसारिक प्रेम देने नहीं आये थे जो एक-दूसरे को दुखी न करना है ।
वह हृदय की शान्ति देने आये थे जो दूसरों को प्रेम करने उनकी भलाई के लिए कार्य करने से प्राप्त होती है । और ईश्वर को संसार से इतना प्रेम था कि उन्होंने उसे अपना पुत्र दे दिया । अपना पुत्र उन्होंने कुंआरी मेरी को दिया और मेरी ने उसका क्या किया ? जब ईसा उसके जीवन में आये वह फौरन यह खुशखबरी देने दौड़ पड़ी ।
जैसे ही वह अपनी रिश्ते की बहिन एलिजाबेथ के निवास पर पहुंची धर्म गप्थ हमें बताते हैं कि एलिजाबेथ के पेट में जो बालक था वह प्रसन्नता से उछल पड़ा । ईसा अभी मरियम के पेट में ही थे तब उन्होंने बपतिस्मा हाता जॉन को शान्ति प्रदान की जो एलिजाबेथ के पेट में प्रसन्नता से उछल पड़े । शायद यह पर्याप्त नहीं था ।
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ईश्वर के पुत्र हममें से एक बने और उन्होंने इससे भी अधिक प्यार प्रदर्शित करने के लिए सलीब पर अपनी देह त्याग दी । उन्होंने मेरे और आपके लिए देह त्यागी । उन्होंने कुष्ठ रोगी के लिए भूख से मरते व्यक्ति के लिए सड़क पर पड़े निर्वस्त्र भिखारी के लिए देह त्याग दी । केवल कलकत्ता की सड़क पर ही नहीं अफ्रीका और समस्त विश्व की सड़कों पर पड़े ऐसे व्यक्तियों के लिए ।
हमारी सिस्टर सम्पूर्ण विश्व के 105 देशों में ऐसे लोगों की सेवा में संलग्न है । ईसा ने कहा कि हमें एक-दूसरे से उसी प्रकार प्रेम करना चाहिए जैसे उन्होंने हममें से प्रत्येक से प्रेम किया । ईसा न हमें प्रेम करने के लिए अपनी देह त्यागी । वह नितान्त स्पष्ट शब्दों में हमें कहते हैं: ‘उसी प्रकार प्रेम करो जैसे मैंने तुम्हें प्रेम किया ।’
ईसा ने हमारा भला करने के लिए और हमें स्वार्थ व पाप से बचाने के लिए सलीब पर अपनी देह त्याग दी । अपने पिता परमेश्वर की इच्छापूर्ति के लिए उन्होंने अपना सब कुछ न्योछावर कर दिया । वह हमें दिखाना चाहते थे कि हम भी ईश्वर की इच्छा पूर्ण करने के लिए सर्वस्व न्योछावर करने को तत्पर रहें । एक-दूसरे से उसी प्रकार प्रेम करें जैसे वह हममें से प्रत्येक से प्रेम करते हैं ।
सन्त जॉन का कहना है कि यदि तुम ईश्वर से प्रेम करते हो और अपने पड़ोसी से प्रेम नहीं करते तो झूठे हो । तुम अदृश्य ईश्वर से कैसे प्रेम कर सकते हो यदि अपने दृष्टिगोचर पड़ोसी से प्रेम नहीं करते जिसे तुम छू सकते हो जिसके साथ रहते हो? ईसा ने स्वयं को भूखा निर्वस्त्र बिना घर के अवांछित बनाया और बोले ‘तुमने मेरे साथ ऐसा किया ।’
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मैं एक वृद्ध आश्रम में हुए अपने अनुभव को कभी भूल नहीं सकती । वही वे सब बूढ़े माता-पिता थे जिन्हें उनके पुत्र-पुत्रियों ने वहा छोड़ दिया था और फिर सम्भवत: उन्हें भूल गये थे । मैंने देखा उस आश्रम में इन बूढ़े व्यक्तियों को सभी सुविधाएं उपलब्ध थीं । अच्छा भोजन सुविधाजनक घर टेलीविजन सब कुछ । लेकिन उनमें से प्रत्येक व्यक्ति दरवाजे की ओर देख रहा था ।
मैंने वहाँ किसी के भी चेहरे पर मुसकान नहीं देखी । मैंने सिस्टर से पूछा: ‘इन लोगों को यहाँ सभी सुख-सुविधाएं उपलब्ध हैं, फिर ये लोग दरवाजे की ओर क्यों देख रहे हैं ? मुसकराते क्यों नहीं ? मैं तो लोगों को मुसकराता देखने की इतनी अभयस्त हो चुकी हूँ । यहां तक कि चलते समय पर लोग मुसकराते हैं ।’
सिस्टर ने उत्तर दिया: ‘लगभग प्रतिदिन ऐसा ही होता है । वे उम्मीद करते हैं कि उनकी कोई पुत्री या पुत्र उनसे मिलने आयेगा ।’ आपने देखा प्रेम की निन्दा आत्मिक दरिद्रता लाती है । शायद हमारे अपने परिवार में भी कोई हो जो अकेलापन अनुभव कर रहा हो जो बीमार अनुभव कर रहा हो चिन्तित हो ।
क्या हम उसे परिवार के साथ जुटाये रहने के लिए कष्ट सहने की सीमा तक त्याग करने को तैयार हैं ? या फिर हम अपना हित पहले देखते हैं ? पश्चिम में कई लड़के-लड़कियों को मादक पदार्थों का सेवन करते हुए देखकर मैं आश्चर्यचकित हो गयी । मैंने जानने का प्रयास किया कि ऐसा क्यों है ? ऐसा क्यों है, जबकि जो पूर्व में है, उनकी अपे क्षा पश्चिम वालों के पास बहुत ज्यादा वस्तुएं हैं ?
इसका जवाब था: ‘क्योंकि कुटुम्ब में उनका स्वागत करने वाला कोई नहीं होता ।’ हमारे बच्चे प्रत्येक वस्तु के लिए हम पर आश्रित होते हैं । अपने स्वास्थ्य के लिए पौष्टिकता के लिए सुरक्षा के लिए ईश्वर को जानने और उससे प्रेम करने के लिए इन सबके लिए वे हमारी ओर भरोसे आशा व उम्मीद के साथ देखते हैं ।
लेकिन माता-पिता अकसर इतने व्यस्त होते हैं कि उनके पास अपने बच्चों के लिए वक्त नहीं होता या फिर सम्भवत: उनकी शादी नहीं हुई होती या विवाह-विच्छेद हो चुका होता है । तब बच्चे सड़कों पर चले जाते हैं । उन्हें ड़ग्स और अन्य बुरी आदतों की लत लग जाती है ।
हम बच्चे के प्रति प्रेम की बात कर रहे है, जहा से प्रेम और शान्ति शुरू होनी चाहिए । परन्तु मेरे विचार में आज शान्ति को क्या करने वाला सबसे बड़ा कारण गर्भपात है; क्योंकि यह अजनमे बच्चे के खिलाफ युद्ध है । निरीह बच्चे की सीधे-सीधे हत्या है-खुद उसकी मी द्वारा ।
यदि हम यह स्वीकार कर लें कि किसी मा को अपने बच्चे की हत्या करने का अधिकार है, तो फिर हम दूसरे लोगों को एक-दूसरे की हत्या करने से कैसे रोक सकते हैं ? हम किसी स्त्री को गर्भपात न कराने के लिए कैसे मना सकते हैं ? हमेशा की तरह हमें उसे केवल प्यार से मनाना होगा । उस बच्चे का पिता चाहे वह कोई भी हो उसे भी स्वीकृति देनी होगी ।
गर्भपात कराकर माता स्नेह करना नहीं सीखती अपितु अपनी समस्या के समाधान के लिए स्वयं अपने बच्चे की हत्या करती है । गर्भपात द्वारा पिता को बताया जाता है कि इस बच्चे को संसार में लाकर उसे जो उत्तरदायित्व निभाने पड़ते उससे वह आजाद हो गया है ।
कोई भी देश जो गर्भपात को मान्यता देता है, वह प्रेम करना नहीं सिखाता । वह तो जो चाहिए उसके लिए हिंसा का प्रयोग करना सिखाता है । इसलिए मैं भारत में और विश्व में हर जगह अपील करती हूं: ‘इस बच्चे को लाना चाहिए ।’
बच्चा कुटुम्ब को ईश्वर की भेंट है । प्रत्येक बच्चे को अलग छवि देकर बनाया गया है । यह ईश्वर की देन प्रेम करने तथा प्रेम किये जाने के लिए है । हमारे बच्चे भविष्य की एकमात्र आशा हैं । जब लोगों को ईश्वर अपने पास बुलाते हैं तो उनके बच्चे उनकी जगह लेते हैं ।
लेकिन ईश्वर हमसे क्या कहते हैं ? वह कहते हैं: ‘यदि कोई मां अपने बच्चे को याद न रखे तो भी मैं तुम्हें नहीं भूलूंगा । मैंने तुम्हें अपनी हथेलियों में चिह्नित किया हुआ है ।’ हम उनकी हथेलियों में चिह्नित हैं । अजन्मा बालक भी गर्भधारण की स्थिति में ही ईश्वर की हथेली में चिह्नित था । ईश्वर की इच्छा थी कि वह प्रेम करे और उससे प्रेम किया जाये । इस जीवन में ही नहीं हमेशा-सर्वदा ।
ईश्वर कभी हमें भूल नहीं सकते । केवल कलकत्ता के बालकों के निवास स्थान में ही हमने तीन हजार से ज्यादा बच्चों को गर्भपात से बचाया है । इन बच्चों ने अपने गोद लेने वाले माता-पिता को बहुत आनन्द व प्रेम किया है और प्रेम व आनन्द से परिपूर्ण होकर बड़े हुए हैं ।
मैं मानती हूं कि दम्पती को अपने परिवार का नियोजन करना होता है । उसके लिए गर्भ-निरोधक नहीं प्राकृतिक परिवार नियोजन है । किसी पति या पत्नी को अपनी ओर ध्यान न देकर एक-दूसरे की ओर ध्यान देना चाहिए जैसा कि प्राकृतिक परिवार नियोजन में होता है । अपनी तरफ ध्यान देना तो गर्भ-निरोधन में होता है ।
जब एक बार गर्भ-निरोधकों के कारण जीवन्त प्रेम खत्म हो जाता है, तो उसके पश्चात् गर्भपात की स्थिति भी आती है । गरीब महान होते हैं । वे हमें कई सुन्दर बातें सिखा सकते हैं । एक बार उनमें से एक उसे प्राकृतिक परिवार नियोजन सिखाने के लिए हमें धन्यवाद देने आया ।
वह बोला: कुंआरेपन का व्यवहार करने वाले आप लोग प्राकृतिक परिवार नियोजन की शिक्षा देने में सर्वश्रेष्ठ हैं; क्योंकि यह एक-दूसरे के प्रति प्रेम के कारण आत्मसैयम के अलावा और कुछ नहीं । उस गरीब व्यक्ति ने जो कहा वह पूर्ण सच है । इन गरीबों के पास भले ही खाने को कुछ न हो रहने को कोई जगह न हो परन्तु जब वे आत्मिक धन से समृद्ध होते हैं, तो महान् होते हैं ।
जो भौतिक रूप से गरीब होते हैं, वे लोग तारीफ के काबिल होते हैं । एक दिन हमने बाहर जाकर सड़क से चार महिलाओं को अपने साथ ले लिया । उनमें से एक की दशा अत्यन्त शोचनीय थी । मैंने सिस्टर से कहा: ‘आप लोग अन्य तीन की सेवा-सुभूषा करें । मैं चौथी की देखभाल करती हूं जो सबसे खराब स्थिति में है ।’
अत: मैंने उसके लिए सब कुछ किया जो मेरे प्रेम के लिए सम्भव था । मैंने उसे बिस्तर पर लिटाया । उसके चेहरे पर मीठी मुसकान थी । उसने मेरा हाथ पकड़कर मात्र इतना कहा: ‘धन्यवाद ।’ उसके पश्चात् उसने प्राण त्याग दिये ।
मैंने अपनी आत्मा को टटोला और खुद से सवाल किया: ‘यदि मैं उस महिला के स्थान पर होती तो क्या कहती?’ मेरा सीधा-सा जवाब था मैं अपनी तरफ ध्यान आकर्षित करने का प्रयत्न करती । मैं कहती: ‘मैं भूखी हूं कांप रही हूं मुझे पीड़ा हो रही है ।’
या फिर ऐसा ही और कुछ । लेकिन उस महिला ने मुझे इससे कहीं ज्यादा दिया । उसने मुझे अपना कृतज्ञ प्रेम दिया और फिर वह अपने चेहरे पर मुसकान लिये सँसार से विदा हो गयी । एक व्यक्ति को हमने नाले से उठाया ।
उसकी आधी देह कीड़े खा गये थे । जब हम उसे घर ले आये तो वह बोला: ‘मैं सड़क पर किसी जानवर की भांति रहा हूँ लेकिन अब मैं किसी फरिश्ते की भांति मरूंगा ।’ फिर जब हमने उसके शरीर से सारे कीड़े दूर कर दिये तो वह बहुत-सी मुसकान बिखेरता हुआ बोला: ‘सिस्टर मैं घर जा रहा हू ईश्वर के पास ।’ इसके पश्चात् उसकी मृत्यु हो गयी ।
उस व्यक्ति की महानता आश्चर्यजनक थी । वह किसी को दोष दिये बिना किसी प्रकार की तुलना किये बिना ऐसे बात कर सकता था फरिश्ते की भांति । जो लोग भौतिक दृष्टि से गरीब होते हुए भी आत्मिक दृष्टि से समृद्ध होते हैं, वे ऐसे ही महान् होते हैं ।
तो मैं यहां आज आपसे वार्तालाप कर रहा हूं । मैं चाहती हूं कि आप पहले अपने यहां गरीबों को ढूंढें, उन्हें प्रेम दें । पहले अपने लोगों को खुशखबरी दें अपने पड़ोसियों के विषय में पता करें । क्या आप जानते हैं कि वे लोग कौन हैं ?
मुझे एक हिन्दू परिवार से स्नेह का एक असाधारण अनुभव हुआ । एक सज्जन हमारे यहां आये और बोले: ‘मदर टेरेसा एक परिवार ने कई दिनों से कुछ नहीं खाया । कृपया कुछ दीजिये ।’ मैं तुरन्त कुछ चावल लेकर वहां गयी ।
मैंने वहाँ बच्चों की आंखों में भूख देखी । मुझे पता नहीं आपने कभी भूख देखी है या नहीं परन्तु मैंने बहुत बार देखी है । उस परिवार की माता ने मेरे दिये चावल ले लिये । ‘आप कहां चली गयी थीं, आपने क्या किया ?’ जब मैंने पूछा इसके जवाब में वह बोली: ‘वे लोग भी भूखे हैं ।’ मैं इस बात से प्रभावित हुई कि उसे यह बात पता थी । और वे लोग कौन थे ? एक मुस्लिम परिवार । उसे यह भी पता था ।
मैं उस दिन सन्ध्या को उनके लिए और चावल नहीं लायी । मैं चाहती थी कि हिन्दू और मुस्लिम दोनों मिल-बांटकर खाने का मजा लें । क्योंकि मैं मुसकराकर देने की बात बहुत करती हू एक बार अमेरिका के एक प्रोफेसर ने मुझसे पूछा: ‘क्या आप शादीशुदा हैं ?’ ‘जी हां ।’
मैंने जवाब दिया, परन्तु मैं अकसर अपने जीवनसाथी ईसा पर मुसकराने में बहुत कठिनाई महसूस करती हूँ क्योंकि वह बहुत ज्यादा अपेक्षा रखते हैं । कई बार तो यह बात वास्तव में बहुत सत्य सिद्ध होती है । और ऐसी स्थिति में ही प्रेम का आविर्भाव होता है । जब मांग बहुत ज्यादा हो और हम खुशी से दें ।
यदि हम स्मरण रखें कि ईश्वर हमें स्नेह करते हैं और हम दूसरों से उसी प्रकार स्नेह कर सकते हैं, जैसे कि ईश्वर हमसे करते हैं, तो अमेरिका समस्त संसार के सामने शान्ति का प्रतीक बन सकता है । यहां से कमजोर से भी ज्यादा कमजोर, अजन्मे बालक के लिए जिम्मेदारी और परवाह का प्रतीक चिह्न समस्त संसार में जाना चाहिए । यदि आप विश्व में न्याय और शान्ति का ज्वलन्त प्रकाश बनेंगे तो आप इस देश के संस्थापकों के आदर्शों पर खरे सिद्ध होंगे ।