Read this article in Hindi to learn about the behaviour of nano particles.

हम जानते हैं कि सामान्य पदार्थों की रचना अणुओं से होती है अणु, परमाणुओं से मिलकर बनते है । पहले परमाणुओं को अविभाजित माना जाता था लेकिन परमाणुओं के अंदर (नाभिक जिसमें प्रोटीन तथा हन होते हैं) तथा उसके चारों ओर चक्कर काटने वाले इलेक्ट्रॉनों की खोज बहुत पहले ही हो चुकी है ।

लॉर्ड रदरफोर्ड ने नाभिक एवं जे. जे. थॉमसन ने इलेक्ट्रॉन की खोज की थी । बाद में प्रोटीन की खोज भी लॉर्ड रदरफोर्ड द्वारा की गयी तथा कहन की खोज जेमन चेडविक ने की । नवीन जानकारी के अनुसार प्रोटीन और नहान भी क्वार्क नामक और भी छोटे कणों से बने होते हैं ।

वैज्ञानिकों ने अप, डाउन, स्ट्रेंज, चार्म, बॉटम (या ब्यूटी) तथा टॉप (या ट्रूथ) नामक छह क्वार्क का पता लगाया है । उल्लेखनीय है कि क्वार्क पूर्ण आवेश वाले कण न होकर आंशिक आवेश वाले कण होते हैं । अप, चार्म तथा टॉप क्वार्क में इलेक्ट्रॉन आवेश का +2/3 जबकि डाउन, स्ट्रेंज और बॉटम क्वार्क मे इलेक्ट्रॉन आवेश का -1/3 आवेश होता है । प्रोटॉन दो अप और एक डाउन जबकि न्यूट्रान दो डाउन तथा एक अप कण से निर्मित होता है ।

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पदार्थ के अंदर मौजूद अणुओं एवं परमाणुओं के व्यवहार को विद्युत-चुंबकीय विकिरण के साथ उनकी अन्योन्य क्रिया द्वारा ही समझा जा सकता है । इसने (स्पेक्ट्रॉस्कोपी) नामक विज्ञान की एक नई शाखा को जन्म दिया ।

परमाणुओं का आकार 0.2 नैनोमीटर होता है जबकि अणुओं का आकार 1-2 नैनोमीटर से कम होता है । विशेष सूक्ष्मदर्शियों की मदद से अब परमाणुओं को अवलोकित कर पाना तथा उन्हें एक स्थान से उठाकर दूसरे स्थान पर रख पाना भी संभव हो पाया है ।

रिचर्ड फाइनमैन ने 29 दिसंबर 1989 को अमेरिकन फिजिकल सोसायटी की वार्षिक बैठक में दिये गए अपने ऐतिहासिक व्याख्यान में एक अति सूक्ष्म मशीनों संसार की कल्पना करते हुए यह भी कहा था कि इतने सूक्ष्म स्तर पर पदार्थों के गुणधर्म में अतर आ जाता है ।

लेकिन, आकार घटने के साथ पदार्थों के गुणधर्मों में आखिर अंतर क्यों आता है ? इसे चौंक के टुकडे के एक सरल उदाहरण द्वारा मोटे तौर पर समझा जा सकता है । चीफ के टुकड़े से हम ब्लैकबोर्ड पर लिख सकते हैं क्योंकि हमारे लिखने पर चौंक के लघु कण घर्षण द्वारा उससे अलग होकर ब्लैकबोर्ड पर चिपकते जाते हैं अगर चौंक के टुकडे को दो हिस्सों में हम तोड दे तब भी हम दोनों में से किसी भी टुकडे से ब्लैकबोर्ड पर लिख पाने में सक्षम होगे लेकिन अगर हम टुकड़ों को तोडना जारी रखें तो सूक्ष्म होते-होते उस चक के साथ अतत: ऐसी नौबत आ जाएगी कि उससे ब्लैकबोर्ड पर लिख पाना संभव नहीं रह जाएगा ।

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एक अन्य उदाहरण के अंतर्गत किसी धातु के एक टुकडे को हम ले सकते हैं । अब अगर उस धातु के 5 सेंटीमीटर आकार के एक टुकडे को हम लें तो २यष्ट है कि उस टुकडे का आकार 1 सेंटीमीटर या 1 मिलीमीटर कर देने पर भी उस धातु के गुणधर्म में कोई अतर नहीं आएगा ।

लेकिन, इसके विपरीत यदि हम उस धातु के कुछ गिने-चुने या सीमित परमाणुओं को ही ले तो उनका गुणधर्म स्थूल धातु के गुणधर्म से एकदम भिन्न होगा अत: स्पष्ट है कि स्थूल पदार्थ से परमाण्विक स्तर तक जाने में पदार्थों के गुणधर्म में बदलाव आता हैं लेकिन गुणधर्म में यह परिवर्तन आखिर किस स्तर पर दिखने लगता है ?

वैज्ञानिकों का कहना है कि पदार्थों के स्थूल गुणधर्म का परमाण्विक गुणधर्म में बदलाव नैनो मीटर स्तर पर ही होता है । इस सूक्ष्म स्तर पर परमाणु गुच्छा (क्लस्टार्स) का सृष्टि करते हैं । ऐसे गुच्छा को नैनो कण, क्वांटम डॉट, कृत्रिम परमाणु, क्यू कण आदि की संज्ञा दी जा सकती है ।

एक गुच्छ (क्लस्टर) का व्यास साधारणतया 1 से 100 नैनोमीटर के बीच होता है । हालांकि ये गुच्छ अणुओं की तुलना में काफी बडे होते हैं लेकिन स्थूल पदार्थ की तुलना में ये आकार में काफी सूक्ष्म होते हैं । अतः इन गुच्छों से एक नए ही किस्म के पदार्थ की उत्पत्ति होती है जिसे नैनो पदार्थ कहते हैं ।

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नैनो जगत के नए नियम:

नैनो पदार्थ के व्यवहार को वैज्ञानिक पिछले करीब ढाई दशकों से समझाने की कोशिश कर रहे हैं । वैसे तो सामान्य रूप से अवपरमाण्विक (सब-एटॉमिक) स्तर पर क्वांटम यांत्रिकी के नियम लागू होते हैं जबकि स्थूल पदार्थ चिरसम्मत (क्लासिकल) भौतिकी के नियमों का पालन करते हैं ।

लेकिन अपने शोध-अध्ययनों द्वारा वैज्ञानिक इस परिणाम पर पहुंचे हैं कि सीधे-सीधे न तो क्वांटम यांत्रिकी और न ही चिरसम्मत भौतिकी के नियमों द्वारा इन पदार्थों के व्यवहार को समझा जा सकता है । वैज्ञानिकों के अनुसार नैनो पदार्थों के संसार को सम्भवतया क्वांटम यांत्रिकी तथा चिरसम्मत भौतिकी के मिले-जुले नियमों से ही समझा जाना संभव है ।

हालांकि वैज्ञानिक अभी इन नियमों को पूरी तरह से खोज पाने में सफल नहीं हुए हैं लेकिन जो भी नियम उन्होंने खोजे हैं आम समझा के लिये वे कुछ कठिन हैं । इन्हें सरल रूप से समझाने के लिये समान अंतराल पर स्थित कुछ डंडों यानी एक सीढी की कल्पना करें ।

अब अगर इन डंडों द्वारा निर्धारित (विविक्त) मानों को ही किसी भौतिक राशि को दिया जा सकना संभव है तो क्वांटम यांत्रिकी की भाषा में उस राशि को हम क्वांटित (क्वांटाइज्ड) कहते हैं ।

इसका मतलब यह कि वह राशि डंडों के मध्य के अंतरालों द्वारा निरूपित मानों को नहीं ले सकती । स्पष्ट है कि नैनो जगत कुछ नए ही नियमों द्वारा संनियमित होता है । वैज्ञानिकों द्वारा अब तक खोजे गए कुछ नियमों के बारे में जानकारी हासिल करें ।

सन 1987 में डेल्फ्थ यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्नोलॉजी से जुडे अनुसंधानकर्ता बार्ट जे. वान वीज फिलिप्स रिसर्च लेबोरेटरीज से संबद्ध अपने साथी वैज्ञानिकों के साथ मिलकर किसी अर्धचालक के अंदर स्थित संकरे चालन पथों से होकर इलेक्ट्रॉनों के प्रवाह से उत्पन्न होने वाली विद्युत धारा का अध्ययन कर रहे थे ।

इन चालन पथों की चौडाई को क्रमबद्ध रूप से बदल कर अनुसंधान दल ने जब चालकत्व (कंडक्टेंस) में होने वाले परिवर्तन का मापन किया तो उन्हें सोपानी यानी सीढी दर सीढ़ी रूप से बदलता एक विचित्र (स्टेयरकेस) पैटर्न प्राप्त हुआ ।

बाद में कैंब्रिज विश्वविद्यालय के डेविड वाराम और माइकेल पैपर को भी इससे मिलते-जुलते ही परिणाम प्राप्त हुए । इन अध्ययनों से यह उदघाटित हुआ कि विद्युत चालकत्व सतत न होकर क्वांटित होता है ।

नैनो पैमाने पर विद्युत चालकत्व का क्वांटित होना यह दर्शाता है कि इस स्तर पर क्वांटम प्रभावों को पूरी तरह से दरकिनार नहीं किया जा सकता है । दरअसल, सूक्ष्म चालकों से प्रवाहित होने वाले इलेक्ट्रॉन अपने तरंग सदृश व्यवहार का प्रदर्शन करते हैं, और जब किसी नैनो युक्ति के निवेश (इनपुट) से निर्गम (आउटपुट) तक इलेक्ट्रॉनों के ये तरंगवत गुणधर्म बरकरार बने रहते हैं तो इस तरह से क्वांटम प्रभावों की उत्पत्ति होती है ।

विद्युत चालकत्व (अथवा प्रतिरोध) की तरह नैनो युक्तियों या नैनो परिपथों में तापीय चालकत्व (थर्मल कंडक्टेंस) भी सतत न होकर क्वांटित हो सकता है । कैलीफोर्निया इंस्टीट्‌यूट ऑफ टेक्नोलॉजी से संबद्ध कुछ भौतिकीविदों ने 1990 के दशक में पहले-पहल इस दिशा में अपना ध्यान केंद्रित किया था ।

माइकेल रूक्स ने थॉमस तिघे तथा कीथ श्वाब के साथ मिलकर यह पता लगाया कि नैनो युक्तियों से ऊष्मा का प्रवाह सतत रूप से न होकर सोपानी रूप से ही होता है । गौरतलब है कि किसी भी युक्ति में उत्पन्न होने वाली ऊष्मा का बहि:स्ररण आवश्यक है, नहीं तो अधिक ऊष्मा के संचयन के चलते उस युक्ति के अतितापन की समस्या मुंह बाए खडी हो सकती है ।

नैनो स्तर की युक्तियों और परिपथों में ऊष्मा का बहि:स्ररण सतत रूप से न होकर क्वांटित यानी सोपानी रूप से होता है । इससे नैनो युक्तियों और नैनो परिपथों के विनिर्माण में कठिनाइयां आती हैं क्योंकि ऊष्मा के बहि:स्ररण को ध्यान में रखना बहुत जरूरी होता है ।

नैनो पैमाने पर होने वाली एक विचित्र परिघटना:

सन् 1985 में मॉस्को स्टेट युनिवर्सिटी के प्रोफेसर कांस्टेंटिन लिखारेव ने अपने साथी वैज्ञानिकों एलेक्जेंडर जोरिन तथा दिमतरी अवेरिन के साथ मिलकर यह प्रस्तावित किया कि एक विशेष चालक, जिसे नैनो परिपथ के साथ क्षीण रूप से युग्मित किया गया हो, से होकर एकल इलेक्ट्रॉनों की आवाजाही को नियंत्रित किया जा सकता है ।

इस खास चालक को उन्होंने ‘कूलॉम आइलैंड’ का नाम दिया । दरअसल, कूलॉम आइलैंड से गुजरने वाले इलेक्ट्रान बडे ही अनुशासित हो जाते हैं यानी वे एक-एक कर इस चालक से होकर गुजरते है ।

इस परिघटना को ‘कूलॉंम ब्लॉकेड’ का नाम दिया जाता है । इसका इस्तेमाल कर बेल लेबोरेटरीज के वैज्ञानिकों थियोडॉर ए.फुल्टन तथा जेराल्ड जे. दोलान को 1987 में एकल-इलेक्ट्रॉन (सिंगल इलेक्ट्रॉन) ट्रांजिस्टर के विनिर्माण में सफलता मिली । वैज्ञानिकों को कूलॉम की यह परिघटना नैनो ट्यूबों में भी देखने को मिली है ।

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