Read this article in Hindi to learn about the properties of nano particles.
नैनो जगत पर लागू होने वाले नियमों की चर्चा के बाद, नैनोमीटर आकार में लघुकृत करने पर पदार्थों के गुणधर्म में क्या बदलाव आते हैं । नैनो आकार में लाए जाने पर पदार्थों का गलनांक (मेल्टिंग पाइंट) स्थूल आकार के गलनांक की तुलना में कम हो जाता है ।
दरअसल, लिंग की परिघटना सतही क्षेत्रफल पर निर्भर करती है । यह सतह पर स्थित परमाणुओं की गति द्वारा आरंभ होती है । चूंकि नैनो में बेहद छोटे होते हैं, अतः उनका सतही क्षेत्रफल भी बढ जाता तरह अधिक सतही क्षेत्रफल की उपलब्धता गलनांक को कम करने का कार्य करती है ।
नैनो आकार में पदार्थों के उत्प्रेरकीय गुणधर्म बढ जाते हैं यानी के रूप में वे अधिक क्रियाशील एवं दक्ष हो जाते हैं । उदाहरण के अपने नैनो रूप में प्लेटिनम और रोहडियम दोनों में बेहतर उत्प्रेरकीय गुणधर्म देखने को मिलता है । दरअसल, नैनो रूप में लघुकृत किए जाने पर क्षेत्रफल और आयतन का अनुपात बेहद बढ जाता है जो बदले में उत्प्रेरकीय गुणधर्मों को बढाने का कार्य करता है ।
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नैनो आकार में पदार्थों का सामर्थ्य यानी मजबूती (स्ट्रेंथ) भी बढ जाती है । उदाहरण के लिए, तांबे के एक टुकडे के आकार को 50 नैनो मीटर तक घटा देने पर, अपने स्थूल रूप की तुलना में उसका सामर्थ्य दोगुना बढ जाता है । अगर उसके आकार को 6 नैनोमीटर तक घटा दिया जाए तो अपने स्थूल रूप की तुलना में उसकी मजबूती पाँच गुना हो जाती है ।
दरअसल, किसी क्रिस्टलीय पदार्थ (इस श्रेणी में धातु भी शामिल होती है) की मजबूती इस बात पर निर्भर करती है कि प्रतिबल इस लगाए जाने पर कोई परमाण्विक तल उसके निकटस्थ तलों पर कितनी आसानी से सरकता है । तल को जितनी सरलता से सरकाया जा सकेगा पदार्थ की मजबूती भी उतनी ही कम होगी ।
आमतौर पर ठोस पदार्थों में दोष (डिफेक्ट) मौजूद होते हैं । इन दोषों की उपस्थिति में परमाण्विक तल एक-दूसरे पर आसानी से सरकते हैं खासतौर पर प्रभंश (डिस्लोकेशन) नामक एक अतिरिक्त दोष, जो क्रिस्टलीय जातक (लेटिस) में स्वतः जनित हो जाता है, परमाण्विक तलों को एक-दूसरे के सापेक्ष सरकने में मदद करता है और इस तरह किसी पदार्थ की मजबूती को कम करने के लिए जिम्मेदार होता है ।
जब पदार्थ पर कोई प्रतिबल लगाया जाता है तो प्रभंश प्रतिबल की दिशा में गति करता है जिसके चलते पदार्थ में चटक उत्पन्न हो सकती है । लेकिन एक बहुक्रिस्टलीय पदार्थ में ये प्रभंश रेणुओं प्रश्न में जनित होते हैं । इन रेणुओं को क्रिस्टलाणु (क्रिस्टलाइट्स) भी कहते है ।
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सामान्यतया किसी स्थूल पदार्थ में ये रेणु या क्रिस्टलाणु माइक्रॉन आकार यानी 10-6 मीटर आकार के होते हे । ये रेणु अपने आस-पास के रेणुओं से रेणु परिसीमाओं (ग्रेन बाउंड्रिज) द्वारा पृथक्कृत होते हैं । इन रेणु परिसीमाओं के कारण प्रभंशों की गति बाधित हो जाती है जिससे पदार्थ चटकने से बच जाता है ।
लेकिन, नैनो पदार्थों में बडी संख्या में रेणु परिसीमाएं होती हैं जो प्रभंशों की गति को बाधित करती हैं । एक व्याख्या के अनुसार इन प्रभंशों की गति में इस तरह बाधा उत्पन्न हो जाने के कारण ही अपने स्थूल प्रतिरूपों की तुलना में नैनो पदार्थों की मजबूती में वृद्धि होती है ।
लेकिन, यह व्याख्या अब पुरानी पड चुकी है । नई वैज्ञानिक व्याख्या के अनुसार रेणुओं के नैनोमीटर आकारों में होने के कारण नैनोकण अपने अंदर प्रभंशों को आश्रय ही नहीं देते हैं इस तरह नैनो पदार्थ के रेणुओं या क्रिस्टलाणुओं के प्रभंशयुक्त होने के कारण अपने स्थूल प्रतिरूपों की अपेक्षा नैनो पदार्थों की मजबूती कहीं अधिक होती है ।
हम जानते है कि सिरेमिक एक भंगुर (ब्रिटल) पदार्थ है । लेकिन नैनो मीटर पर लघुकृत किए जाने पर सिरेमिक आघातवर्धनीय (मेलिएबल) एवं तन्य (डक्टाइल) बन जाते है दरअसल, किसी बहुक्रिस्टलीय पदार्थ के आघातवर्धनीयता और तन्यता के गुणधर्म उसे रचित करने वाले क्रिस्टलीय रेणुओं (क्रिस्टलाणुओं) के आकार पर निर्भर करते हैं ।
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चूंकि स्थूल पदार्थ में रेणु परिसीमाएं कम होती है, अतः प्रतिबल को आरोपित करके रेणुओं को एक-दूसरे के ऊपर गतिमान कर पाना कठिन होता है लेकिन नैनो रूप में आने पर रेणु परिसीमाओं की संख्या में बेहद वृद्धि हो जाती है ।
प्रतिबल लगाए जाने पर ये रेणु परिसीमाएं रेणुओं को एक-दूसरे के ऊपर गति करने की क्षमता प्रदान करती है अतः नैनो रूप में लाए जाने पर सिरेमिक पदार्थ आघातवर्धनयिता एवं तन्यता के गुणधर्मों को अर्जित कर लेते हैं । मोटर वाहनों के इंजन बनाने तथा इसी तरह के अन्य अनुप्रयोगों में नैनों सिरेमिक पदार्थों का उपयोग किया जा सकता है ।
नैनो रूप में आने पर सामान्यतया भंगुर सिरेमिक पदार्थों में आघातवर्धनीयता एवं तन्यता के गुणधर्म कैसे आ पाते हैं, इसे एक सरल उदाहरण द्वारा समझा जा सकता है ।
टूटे हुए ईंटों के एक ढेर की कल्पना करें इस ढेर के ऊपर अगर आप अपने एक पैर को रखकर उस पर दबाव डालेंगे तो आपके पैर के दबाव का प्रतिरोध करने में सक्षम होने के कारण वह ढेर नीचे नहीं आएगा इसका कारण यह है कि टूटे हुए ईंट के टुकडे आकार में बडे है और इसलिए उनके बीच में परिसीमाओं की संख्या कम है ।
इसके विपरीत अगर आप इसी प्रक्रिया को बालू के ढेर के साथ दोहराए तो आपका पैर तुरंत बालू में धंस जाएगा । दरअसल, आकार में सूक्ष्म होने के कारण बालू के कणों के बीच परिसीमाओं की संख्या अधिक होती है ।
तभी आपके पैर के दबाव से बालू के कण गतिशील हो जाते है और आपका पांव धंस जाता है । नैनो सिरेमिकों में मोटे तौर पर यही प्रक्रिया काम करती है जिसके चलते वे आघातवर्धनीय एवं तन्य हो जाते हैं ।
कुछ स्थूल पदार्थ नैनो रूप में लाए जाने पर पारदर्शी भी हो जाते है दरअसल, दृश्य प्रकाश (जिसका तरंगदैर्ध्य 360 से 800 नैनो मीटर के परिसर में होता है) की तुलना में नैनो कण आकार में अति लघु होने के कारण ये आपतित प्रकाश को प्रकीर्णित कर पाने में सक्षम नहीं होते हैं ।
नैनो रूप में लाए जाने पर पदार्थ की पारदर्शिता के पीछे यही कारण होता है । इसे एक सरल उदाहरण से समझा जा सकता हैं मान लें कि गड्ढों से भरी एक सडक पर एक व्यक्ति साइकिल की सवारी कर रहा है अब अगर सडक पर बने गड्ढे साइकिल के पहियों के व्यास की तुलना में बेहद छोटे हैं तो वह साइकिल सवार बिना किसी परेशानी के उन गड्ढों को पार कर पाएगा ।
लेकिन अगर गड्ढों के आकार साइकिल के पहियों के व्यास के लगभग बराबर हैं तो उन्हें पार करने की कोशिश में साइकिल सवार गिर पडेगा इस तरह गड्ढों से बार-बार गिरते चले जाने के कारण वह अपनी मंजिल तक कभी भी नहीं पहुंच पाएगा ।
इस तरह छोटे गड्ढों से तो साइकिल सवार आसानी से निकल जाता है जबकि बडे गड्ढों से वह गिर पडता है । अनुरूपता का सहारा लेकर हम कह सकते हैं कि छोटे गड्ढों (नैनो कणों) से साइकिल का पहिया (प्रकाश का तरंगदैर्ध्य) अटकता नहीं है (यानी प्रकीर्णित नहीं होता है ।) जबकि बडे गड्ढों (स्थूल पदार्थ) से साइकिल का पहिया उलझ जाता है जिससे साइकिल सवार गिर पडता है यानी प्रकीर्णित हो जाता है ।
नैनो रूप में कुछ पदार्थों के पारदर्शी होने के गुणधर्म को अनेक अनुप्रयोगों में लगाया गया है । विभिन्न उपयोगों के लिये चेहरे पर लगाए जाने वाले लोशनों को पारदर्शी बनाने में ऐसे नैनो कणों का उपयोग किया जा सकता है ।
नैनो कणों में पराबैंगनी (अल्ट्रावायलेट) किरणों को अवशोषित करने की अभूतपूर्व क्षमता भी पाई जाती है । अतः नैनो कणों से बनी फिल्म को खिडकियों के शीशों, कार विंडशील्ड आदि पर चढाकर पराबैंगनी किरणों के पारदर्शी होने के गुणधर्म को अनेक अनुप्रयोगों में लगाया गया है । विभिन्न उपयोगों के लिये चेहरे पर लगाए जाने वाले लोशनों को पारदर्शी बनाने में ऐसे नैनो कणों का उपयोग किया जा सकता है ।
नैनो कणों में पराबैंगनी (अल्ट्रावायलेट) किरणों को अवशोषित करने की अभूतपूर्व क्षमता भी पाई जाती है । अतः नैनो कणों से बनी फिल्म को खिडकियों के शीशों, कार विंडशील्ड आदि पर चढाकर पराबैंगनी किरणों के घातक असर से बचाव हो सकता है ।
नैनो कणों से तैयार की गई स्याही का प्रकाश घनत्व भी अधिक पाया गया है । अतः इस स्याही को इंकजैट मुद्रण में इस्तेमाल करने पर चित्रों के रंगों में बहुत अच्छे प्रभाव देखने को मिलते हैं । यही नहीं बल्कि नैनो स्याही के इस्तेमाल से प्रिंट हैड भी लंबी अवधि तक काम करता है ।
नैनो कणों से बनी फिल्मों की मजबूती भी अधिक पाई गई है । इन फिल्मों को कांच की बनी वस्तुओं, जैसे कि कार विंडशील्ड, हैडलाइट आदि की सतह पर चढाकर उन्हें खरोंच से बचाया जा सकता है ।
प्लास्टिक के बने नेत्र लेंसों पर नैनो कणों का लेप चढाकर उन्हें खरोंचरोधी बनाया जा सकता है । इसके लिए जिरकोनिया (जिरकोनियम ऑक्साइड) के नैनो कणों का इस्तेमाल किया जाता है । अपने स्थूल रूप में जिरकोनिया विद्युतरोधी लेकिन पारदर्शी होता है । नैनो रूप में लाए जाने पर जिरकोनिया के नैनो कण दृश्य प्रकाश के प्रति अपनी पारदर्शिता को बरकरार रखते हैं ।
अंत: इन लघु कणों द्वारा प्रकाश का अवशोषण नहीं होता है । दृश्य प्रकाश के तरंगदैर्ध्य की तुलना में इन नैनो कणों का आकार कम होने के कारण ये प्रकाश को प्रकीर्णित भी नहीं करते हैं । इस तरह प्लास्टिक के नेत्र लेंसों पर जिरकोनिया के नैनो कणों की चढी परत अपनी पारदर्शिता के गुणधर्म को बरकरार रखती हुई खरोंचरोधी बन जाती है ।
अर्धचालकों से बने नैनो क्रिस्टलों को ही क्वांटम डॉट कहते हैं । एक पिन की घुंडी पर अरबों क्वांटम डॉट समा सकते हैं । इन्हें कृत्रिम परमाणुओं की संज्ञा भी दी जाती है क्योंकि क्वांटम डॉट के अत्यंत लघु क्षेत्र के अंदर नियत संख्या में इलेक्ट्रॉन समाविष्ट होते हैं ।
आमतौर पर कैडमियम सेलेनाइड (CdSe) जैसे अर्धचालकों से ही क्वांटमडॉट्स का विकास किया जाता है । अर्धचालकों में इलेक्ट्रॉन दो ऊर्जा पट्टिकाओं (एनर्जी बैंडस), जिन्हें चालक (कंडक्शन) तथा सयोजकता (बैलेस) बैंड कहते हैं, में ही पाए जाते है । इन दोनों बैड्स के बीच के ऊर्जा अंतराल को बैंड गैप कहते हैं । सामान्यतया, (अर्धचालकों में) यह बैंड गैप एक इलेक्ट्रॉन वोल्ट के बराबर होता है ।
उल्लेखनीय है कि अर्धचालक पदार्थ बैंड गैप ऊर्जा से अधिक ऊर्जा वाले किसी भी फोटॉन को अवशोषित कर सकता है । पर यह केवल बैंड गैप ऊर्जा के बराबर ऊर्जा रखने वाले फोटॉनों को ही उत्सर्जित करता है । लेकिन, अर्धचालक पदार्थों से बने क्वांटम डॉट्स में एक विशिष्ट गुणधर्म का समावेश हो जाता है जो अर्धचालकों में नहीं पाया जाता ।
क्वांटम डॉट्स से उत्सर्जित होने वाले प्रकाश का तरंगदैर्ध्य (या रग) उनके आकार पर निर्भर करता है । अतः भिन्न आकार के क्वांटम डॉट्स अलग-अलग रंगों के प्रकाश का उत्सर्जन कर सकते हैं । उदाहरण के लिए, 25 नैनोमीटर आकार का गोल्ड क्वांटम डॉट लाल रंग के प्रकाश का उत्सर्जन करता है । लेकिन उसके आकार को 50 नैनोमीटर कर देने पर वह हरे रंग के प्रकाश का उत्सर्जन करता है जबकि 100 नैनोमीटर आकार वाला गोल्ड क्वांटम डॉट पीले रंग के प्रकाश का उत्सर्जन करता है ।
क्वांटम डॉट्स का यह विशिष्ट गुणधर्म जैव अनुप्रयोगों में उन्हें बहुत उपयोगी बनाता है । प्रोटीन एवं न्यूक्लीय अम्लों आदि की पहचान के लिये क्वांटम डॉट्स का प्रयोग जैव लेबलों या जैव चिन्हकों (बायोलॉजिकल मार्कस) के रूप में किया जा सकता है । अमेरिकी कंपनी क्वांटम डॉट कारपोरेशन ने इन अनुप्रयोगों के लिये क्वांटम डॉट्स का व्यापक रूप से विकास किया है ।
क्वांटम डॉट्स को एक लेटेक्स बीड के अंदर प्रविष्ट करा कर डीएनए अणुओं के लेबलों के रूप में वैज्ञानिकों ने इन बीडों का इस्तेमाल किया है । इस तरह इनके प्रयोग से जैव नमूनों की आनुवंशिक संरचना का पता लगाया जा सकना संभव हुआ है ।
क्वांटम डॉट्स के 13 नैनोमीटर आकार के स्वर्ण कणों (गोल्ड पार्टिकल्स) का इस्तेमाल वैज्ञानिकों ने आनुवंशिक अनुक्रमण (जैनेटिक सिक्वेंसिंग) में किया है । इस तकनीक का विकास अमेरिका के नार्थ वेस्टर्न यूनिवर्सिटी से संबद्ध चैड ए. मिरकिन तथा रॉबर्ट एल लैटसिंगर द्वारा किया गया है ।
सिलिकॉन, जो इलेक्ट्रानिक प्रौद्योगिकी का आधार पदार्थ है, अपने स्थूल रूप में प्रकाश का उत्सर्जन नहीं करता है । इसका कारण यह है कि सिलिकॉन एक परोक्ष (इन्डाइरेक्ट) बैंड गैप किस्म का पदार्थ है जिसकी बैंड गैप ऊर्जा दृश्य परिसर में प्रकाश की ऊर्जा की तुलना में कही कम होती है । लेकिन अपने नैनो रूप में लाए जाने पर सिलिकॉन को प्रकाश उत्सर्जक बनाया जा सकता है ।
इस प्रक्रिया को बैंड गैप इनजिस्टंरी की संज्ञा दी जाती है । सिलिकॉन के नैनोकण लाल रंग के प्रकाश का उत्सर्जन करते हैं लेकिन कणों के आकार को और भी छोटा करने पर उनसे नीले प्रकाश का उत्सर्जन होता है । वैज्ञानिकों को सिलिकन तथा जर्मेनियम के क्वांटम डॉट्स को बनाने में भी सफलता मिली है । अमोरका के लॉरेंस लिवरमोर लेबोरेटरी के अनुसंधानकर्ताओं को इन क्वांटम डॉट्स की मदद से प्रकाश उत्सर्जक डायोडों को बनाने में सफलता मिली है क्वांटम डॉट्स को फोटो सेल, प्रकाशीय युक्तियों तथा द्रुत गति से काम करने वाले प्रकाशीय स्विचों के रूप में भी काम में लाया जा सकता है ।
सिलिकॉन क्वांटम डॉट्स का इस्तेमाल क्वांटम डॉट लेजर में भी किया जा सकता है क्योंकि वे प्रकाश स्पेदों को द्रुतता से भेज सकते हैं । अभी इसदिशा में विश्व भर की अनेक प्रयोगशालाओं में अनुसंधान चल रहे हैं । इस तरह हमने देखा कि किसी स्थूल पदार्थ के आकार को नैनोमीटर आकार में लघुकृत करने पर उसके गुणधर्मों में जबर्दस्त बदलाव उत्पन्न हो जाता है । नवीन प्रौद्योगिकियों, जिनके अनेक व्यावहारिक अनुप्रयोग खासकर इलेक्ट्रॉनिकी तथा चिकित्सा के क्षेत्र में हो सकते हैं, के विकास में इन परिवर्तित गुणधर्मों को उपयोग में लाया जा सकता है ।