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नैनो प्रौद्योगिकी वैश्विक एवं राष्ट्रीय परिदृश्य:

नैनो प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में अपार संभावनाओं को देखते हुए अमेरिका, जर्मनी, जापान और ब्रिटेन जैसे विकसित देशों ने इस क्षेत्र में अनुसंधान के द्वार खोल दिए हैं । इसके लिए वित्तीय सहायता भी ये देश प्रदान करते हैं । नैनो प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में अनुसंधान के लिए अमेरिका ने नेशनल नैनो टेक्नोलॉजी इनिशिएटिव (एनएमआई) कार्यक्रम की शुरूआत की थी ।

इसके बाद वहाँ जाइंट इंस्टीट्‌यूट ऑफ नैनो साइंस एंड नैनो टेक्नोलॉंजी की स्थापना की गई इस संस्थान में सौ से भी अधिक वैज्ञानिकों के अनुसंधान करने की व्यवस्था है । नैनो प्रौद्योगिकी में डाक्टरेट की उपाधि भी यह संस्थान प्रदान करता है ।

नैनो कणों, नैनो पदार्थों आदि के व्यावसायिक उपयोग के लिए अमेरिका में कई अग्रणी कंपनियां भी सक्रिय हैं । ह्यूस्प्टन स्थित कार्बन नैनो टेक्नोलॉजीस इंकार्पोरेटेड नामक कंपनी कार्बन नैनो ट्यूबों के विकास कार्य में जुटी है । डी कैमिकल्स नामक जानी-मानी अमेरिकी कंपनी ऐसे नैनो सम्मिश्रों (कॉपोजिट्‌स) के विकास में लगी है जो कृत्रिम उपग्रहों का वजन कम करने में सहायक होंगे ।

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उल्लेखनीय है कि वर्तमान में प्रति पाउंड वजन को अंतरिक्ष में प्रमोचित करने के लिए दस हजार डॉलर पृथ्वी की निम्न कक्षा हेतु जबकि दस लाख डॉलर मंगल पर भेजने के लिए खर्च होते हैं । डी कैमिकल की ओर से विकसित किए जा रहे नैनो सम्मिश्र पदार्थों की मदद से हल्की कारें भी बनाई जा सकेगी । ऐसी कारों के इस्तेमाल से ईंधन की काफी बचत होगी ।

नैनो स्टेल नामक एक ओर अमेरिकी कंपनी मोटर वाहनों में प्रयुक्त होने वाले कैटेलिटिक कंवर्टरों की दक्षता बढाने तथा उनकी लागत को कम करने के लिए अति दक्ष नैनो-सम्मिश्र उत्प्रेरकों के विकास में जुटी है ।

जर्मनी के शिक्षा एवं अनुसंधान मंत्रालय ने नैनो टेक्नोलॉजी से जुडे नैनो एनालिसिस, नैनो पदार्थ, अल्ट्राप्रिसिशन, इंजीनियरिंग आदि विषयों में अनुसंधान के लिए अनुदान दिए जाने की व्यवस्था की है ।

जापान सरकार ने भी नैनो प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में अनुसंधान के लिए अनुदान राशि मुहैया कराई है । यहां के अनुसंधान केन्द्रों में मुख्य ध्यान जैव प्रौद्योगिकी और क्वांटम कार्यकारी युक्तियों (फंक्शनल डिवाइसेज) तथा स्मार्ट पदार्थों के विकास पर दिया जा रहा है ।

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और रूस भी पिछले डेढ दशक से नैनो प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में अनुसंधान कर रहे है । रूस ने नैनो कणों और नैनो क्रिस्टलों के विकास में विशेष प्रगति की है । अन्य राष्ट्रों की देखादेखी सिंगापुर दक्षिण कोरिया और ताइवान ने भी पिछले कुछ वर्षों से इस क्षेत्र में अनुसंधान पर ध्यान केन्द्रित करना आरंभ किया है ।

नैनो प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में होने वाले अनुसंधान एवं विकास के वैश्विक परिदृश्य से हटकर आइए अब देखे कि भारत में क्या स्थिति है ।

भारत में नैनो प्रौद्योगिकी:

भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग ने नैनो विज्ञान एवं नैनो प्रौद्योगिकी में अनुसंधान एवं विकास हेतु पाँच वर्षा की अवधि (2004-2009) के लिये करीब 80 करोड रूपए की अनुदान राशि मुहैया कराई है । भारत ने यूरोपीय संघ (ईयू) के साथ संयुक्त रूप से एक नैनो टेक्नोलॉंजी इनिशिएटिव की भी स्थापना की है ।

भारत के अनेक संस्थानों में नैनो प्रौद्योगिकी संबंधी अनुसंधान एवं विकास कार्य चल रहे हैं इनमें से कुछ प्रमुख संस्थान हैं- जवाहर लाल नेहरू सेंटर फॉर एडवांस्ड साइंटिफिक रिसर्च, बंगलौर; भाभा परमाणु अनुसंधान केन्द्र (बीएआरसी), मुबई; टाटा आधारभूत अनुसंधान संस्थान (टीआईएफआर), मुबई; राष्ट्रीय रसायन प्रयोगशाला (एनसीएन), पुणे; राष्ट्रीय प्रयोगशाला (एनपीएल), नई दिल्ली; सेंट्रल साइंटिफिक इंस्ट्रूमेन्ट्‌स आर्गेनाइजेशन (सीएसआईओ), चडीगढ; केन्द्रीय इलेक्ट्रॉनिक इंजीनियरिंग अनुसंधान संस्थान, पिलानी (राजस्थान); तथा भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, नई दिल्ली ।

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इसके अलावा भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, मुबई; भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान खडगपुर; दिल्ली विश्वविद्यालय तथा बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में भी नैनो टेक्नोलॉंजी पर अनुसंधान एवं विकास कार्य चल रहे हैं ।

दिल्ली विश्वविद्यालय के रसायन विशेषज्ञों ने कार्बनिक बहुलकों (आर्गेनिक पॉलिमर्स) से बनने वाले नैनो कणों का विकास किया है जिनका उपयोग ड्रग डिलिवरी प्रणाली में किया जा सकता है । बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने जल शुद्धिकरण हेतु कार्बन नैनोट्‌यूब फिल्टरों को बनाने की एक सरल विधि विकसित की है ।

जवाहरलाल नेहरू सेंटर फार एडवांस्ड साइंटिफिक रिसर्च, बंगलौर ने प्रो. सी.एन. आर. राव के नेतृत्व में नैनो विज्ञान एवं नैनो प्रौद्योगिकी में उच्च स्तरीय अनुसंधान कार्य किया है । प्रो राव को अपने सहकर्मियों के साथ बहू-सतही (मल्टी-वॉल्ड) नैनो ट्‌यूबों का विकास करने में सफलता मिली ।

बाद में एक-सतही (सिंगल-वॉल्ड) नैनो ट्यूबों के विकास में भी उन्हें सफलता मिली इन नैनो ट्यूबों का औसत व्यास 1.5 नैनोमीटर है । इसके अलावा वाई-जंक्शन नैनो ट्‌यूबों के विकास सफलता मिली । गौरतलब है कि ऐसे नैनो ट्‌यूबों इलेक्ट्रॉनिकी में इमारती खंडों (बिल्डिंग ब्लाक्स) के रूप में किया जा सकता है ।

जवाहरलाल नेहरू केन्द्र ने धातु एवं अर्धचालकों के नैनो क्रिस्टलों पर भी अनुसंधान कार्य किया है । इसके अलावा अकार्बनिक पदार्थों, जैसे कि 70 नियोबियम सल्फाइड, नियोबियग सेलेनाइड, टंगस्टन सल्फाइड तथा हेफनियम से भी नैनो ट्यूबों का विकास करने में इस केन्द्र को सफलता मिली है प्रौद्योगिकीय दृष्टि से ऐसे नैनो ट्यूबों का बडा महत्व है तथा ठोस स्नेहकों (लुब्रिकेंट्‌स) से लेकर अतिचालकों तक इनके अनेक अनुप्रयोग हैं ।

इसी केन्द्र को नैनो तारों (नैनो बायर्स) के विकास में भी सफलता मिली है, यहां तक कि अकार्बनिक नैनो तारों के विकास में भी इसे सफलता मिली । महत्वपूर्ण बात यह है कि ये नैनो तार जिस विधि से तैयार किए जाते थे उनकी तुलना में केन्द्र द्वारा तैयार नैनो वायर्स कहीं अधिक सरल प्रक्रिया से तैयार किए गए ।

इन नैनो तारों के विकास में इस्तेमाल होने वाली धातुओं में भी विविधता पाई गई धातुओं के ऑक्साइडों जैसे कि जिंक ऑक्साइड, एल्युमिनियम ऑक्साइड, गैलियम ऑक्साइड, इंडियन ऑक्साइड, सिलिकॉन ऑक्साइड के अलावा उनके नाइट्राइडों, जैसे कि एल्युमिनियम नाइट्राइड, बोरॉन नाइट्राइड तथा सिलिकन नाइट्राइड का प्रयोग भी इन नैनो तारों को बनाने के लिए किया गया ।

नैनो छडों (नैरो रॉड्स) का विकास जवाहरलाल नेहरू सेंटर फॉर एडवांस्ड साइंटिफिक रिसर्च की एक और महत्वपूर्ण उपलब्धि थी । एक जलीय माध्यम के प्रयोग द्वारा इस केन्द्र को कमरे के तापमान पर 10-200 नैनोमीटर व्यास वाले सेलिनियम नेनो-रॉड्‌स को बनाने में सफलता मिली ।

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, खडगपुर के वैज्ञानिकों ने यह महत्वपूर्ण खोज की है कि कुछ रसायनने मे सिल्वर के नैनो कण एक उत्प्रेरक की तरह कार्य कर सकते है । इसका इस्तेमाल पानी के नमूनों मे आर्सेनिक के संसूचन के लिए किया जा सकता है । पश्चिम बंगाल के कुछ हिस्सों में भूमिगत जल का आर्सेनिक द्वारा प्रदूषण विकट रूप में देखने को मिलता है ।

संस्थान के वैज्ञानिकों ने पराबैंगनी विकिरण का इस्तेमाल सिल्वर एवं गोल्ड के नैनो कणों को तैयार करने के लिए किया । इस तकनीक द्वारा विश्व स्वास्थ्य संगठन (डबल्यू. एच. ओ.) द्वारा अनुगोदित 0.05 भाग प्रति दस लाख भाग (पीपीएम) से भी कम परिमाण में मौजूद आर्सेनिक के संसूचन में सफलता मिली ।

भाभा परमाणु अनुसंधान (बीएआरसी), मुंबई के पदार्थों विज्ञान (मटेरियल्स साइंस) विभाग के वैज्ञानिक नैनो क्रिस्टलों को बनाने की विभिन्न विधियों का अध्ययन कर रहे हैं । उन्हें विशेष किस्म के नैनो क्रिस्टलों को बनाने में सफलता भी मिली हे । बी ए आर सी के रसायनविद नैनो आकार के यूरेनियम ऑकराइड के क्रिस्टलाणुओं का अध्ययन-संश्लेषण करने में जुटे है ।

इसका उद्देश्य नाभिकीय कचरे के प्रबंधन हेतु संगत प्रक्रिया का अन्वेषण तथा इसका अध्ययन करना भी है कि अवक्षयित यूरेनियम का विकास एक उपयोगी उत्प्रेरक के रूप में किया जा सकता है या नहीं । मुंबई के भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान तथा टाटा आधारभूत अनुसंधान संस्थान (टी आई एफ आर) के वैज्ञानिकों ने आदर्श प्रकाशीय गुणधर्म वाले अर्धचालक नैनो सम्मिश्रों की नई तकनीक का विकास किया ।

नेनो टेक्चोलॉजी के क्षेत्र में बंगलौर स्थित भारतीय विज्ञान संस्थान (इंडियन इंसप्टीट्‌यूट ऑफ साइंस की उपलब्धियाँ भी उल्लेखनीय है इस संस्थान के विभिन्न विभाग नैनो टेक्नोलॉजी पर अनुसंधान कार्य में जुटे है । संस्थान की ठोस अवस्था एवं संरचनात्मक रसायन इकाई (सॉलिड स्टेट एंड स्ट्रक्चरल केमिस्ट्री यूनिट) वर्ष 1990 से ही अर्धचालक नैनो कणों पर अनुसंधान कार्य को अंजाम दे रही है ।

इस इकाई में कार्यरत अनुसंधानकर्ताओं को न केवल नैनो कणों के आकार को नियत्रित करने में सफलता मिली है बल्कि इन नैनो कणों के आकार के पालन (फंक्शन) के रूप में उनके इलेक्ट्रॉनिक तथा प्रकाशीय गुणधर्मों का व्यापक अध्ययन भी उन्होंने किया है ।

इसी इकाई के अनुसंधानकर्ताओं को कैडमियम सल्फाइड, जिंक सल्फाइड, लेड सल्फाइड, कैडमियम सेलेनाइड, जिंक सेलेनाइड तथा जिंक ऑक्साइड के नैनो कणों के निर्माण एवं उनके आकार के नियंत्रण में सफलता मिली है ।

उन्होंने पाया कि नैनो कणों के आकार को 1.5 नैनोमीटर से 7.0 नैनोमीटर तक परिवर्तित किया जा सकता है । इस इकाई के वैज्ञानिकों को नैनो कणों की इलेक्ट्रॉनिक संरचना पर पहले-पहल विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत करने में सफलता मिली ।

इसी इकाई के एक अनुसंधान दल को विभिन्न डोपित (डोप्ड) नैनो कणों को बनाने में कामयाबी मिली । इन डोपित नैनो कणों के निर्माण में पदार्थों को कोबाल्ट, कॉपर तथा मैंग्नीज आदि के साथ मिश्रित किया गया था उल्लेखनीय है कि डोपिंग द्वारा उपयोगा इलेक्ट्रॉनिक एवं प्रकाशीय गुणों को हासिल किया जा सकता है ।

नैनो संरचनाओं के निर्माण हेतु इस अनुसंधान दल ने पारगमन (ट्रांसमिशन) एवं क्रमवीक्षण (स्केनिंग) इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शियों तथा रामन् एवं इंफ्रारैड स्पेक्ट्रमदर्शियों (स्पेक्ट्रॉस्कोप्स) का इस्तेमाल किया ।

अलग-अलग नैनो कणों के अध्ययन-विश्लेषण द्वारा इस अनुसंधान दल ने विभिन्न युक्तियों, जैसे कि कैडमियम सल्फाइड आधारित फोटॉन संवेदकों (सैंसर्स) में इन कणों के संभावित अनुप्रयोगों को प्रदर्शित किया है यह अनुसंधान दल कुछ और परियोजनाओं जैसे कि विभिन्न संदीप्ति तरंगदैर्ध्य वाले उच्च संदीप्तिशील नैनो कणों के विकास तथा विभिन्न आकार के नैनो कणों के विकास पर भी कार्य कर रहा है ।

भारतीय विज्ञान संस्थान का भौतिकी विभाग भी नैनो विज्ञान के अध्ययन में सक्रिय रूप से जुटा है । इस विभाग ने एक सतही कार्बन नैनो ट्‌यूब बंडलों के संरचनात्मक इलेक्ट्रॉनिक, कम्पनिक (वाइब्रेशनल) तथा यांत्रिक गुणधर्मों का व्यापक अध्ययन किया है । विभाग ने परमाण्विक बल सूक्ष्मदर्शी (एटॉमिक फोर्स माइक्रोस्कोप) द्वारा भी नैनो संरचनाओं पर अनेक अध्ययन किए हैं ।

प्रो. अजय सूद के नेतृत्व में इस विभाग के एक वैज्ञानिक दल को नैनो ट्‌यूबों के इस्तेमाल से एक ऐसे प्रयोग को अंजाम देने में सफलता मिली है जिसमें नल के पानी से विद्युत उत्पन्न की जा सकती है । इस परिप्रेक्ष्य में यह उल्लेखनीय है कि इजराइल के वाइजमान इंस्टीट्‌यूट ऑफ साइंस से संबद्ध पी. क्रॉल तथा एम. शैपिरो ने ही पहले-पहल नैनो ट्यूबों से प्रवाहित होने वाले द्रव द्वारा विद्युत धारा उत्पन्न किए जाने की संभावना के बारे में अपना सैद्धांतिक पूर्वानुमान प्रस्तुत किया था ।

भारतीय विज्ञान संस्थान के भौतिक विभाग द्वारा किए गए प्रयोग में वैज्ञानिकों ने एक सतही (सिंगल-बोल्ड) नैनो ट्यूबों के एक बंडल के दोनों सिरों पर इलेक्ट्रोड लगाए । इन नैनो ट्यूबों, जिनका विकास प्रो. सी.एन.आर. राव की प्रयोगशाला में किया गया था, का औसत व्यास 1.5 नैनोमीटर था । नैनो ट्यूबों के इस बंडल के एक सिरे को बहते नल के पानी से जोडा गया ।

वैज्ञानिकों ने पाया कि नैना ट्‌यूबों से होकर प्रवाहित होती जलधारा का वेग एक मीटर प्रति सेकंड केएक लाखवें हिस्से जितना निम्न होने के बावजूद उत्पन्न विद्युत धारा की वोल्टता का मान कुछ मिली वोल्ट के बराबर था । जलधारा के वेग को बढाने पर इस वोल्टेज के मान में वृद्धि प्रेक्षित की गई । वैज्ञानिकों ने पाया कि जब जल में हाइड्रोक्लोरिक एसिड मिलाया गया तो भी वोल्टता के मान में वृद्धि हुई ।

इस प्रयोग ने यांत्रिक ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में बदलने वाले एक साधारण ऊर्जा रूपांतरण युक्ति के निर्माण के लिये आधार प्रदान किया । प्रयोग द्वारा प्राप्त परिणाम ने यह प्रदर्शित किया कि अति निम्न परिमाण में भी द्रवों की उपस्थिति को संसूचित करने वाले एक प्रवाह संवेदक (फ्लो सेंसर) का विकास कर पाना संभव है । ऐसे संवेदकों का प्रयोग पेसमेकर जैसे जैव युक्तियों में किया जा सकता है ।

पुणे स्थित राष्ट्रीय रसायन प्रयोगशाला (नेशनल केमिकल लेबोरेटरी- एन सी एल) ने भी नैनो विज्ञान के विभिन्न पहलुओं पर महत्वपूर्ण कार्य किया है यहां के वैज्ञानिकों को कवकों (फंजाई) एवं जीवाणुओं के प्रयोग द्वारा विभिन्न रासायनिक संघटनों वाले नैनो कणों के विकास में सफलता मिली है ।

इस तरह जैव तंत्रों के प्रयोग द्वारा नैनो कणों एवं नैनो पदार्थों का विकास पर्यावरण हितैषी होने के कारण भविष्य के लिए अति महत्वपूर्ण होगा क्योंकि नैनो कणों आदि के संभावित खतरों की ओर सकेत किया जा रहा है ।

एन सी एल के वैज्ञानिकों ने 200 विभिन्न किस्म के कवकों का परीक्षण कर उनमें से कुछ का चयन नैनो पैमाने पर धातु एवं धात्विक सल्फाइडो के संश्लेषण के लिए किया वर्टीसिलिया प्रजाति, परिणम ऑक्सीस्पोरम जैसे कवकों का इस्तेमाल कर सिल्वर तथा गोल्ड नैनो कणों के विकास में वैज्ञानिकों को सफलता मिली ।

वैज्ञानिकों ने पाया कि एंजाइमों को प्राप्त करने में कवक महत्वपूर्ण स्त्रोत का कार्य करते हैं ये एंजाइम उन विशिष्ट अभिक्रियाओं, जो नैनो कणों की उत्पत्ति के लिए जिम्मेदार होती हैं, के लिये उत्प्रेरक का काम करते है । इसके अलावा कवकों से प्रान्त एंजाइम एकदम विशुद्ध अवस्था में होते है जो भिन्न रासायनिक संघटन, आकार एवं आकृति वाले नैनो कणों के विकास में बहुत मददगार होते हैं । वैज्ञानिकों ने पाया कि इस तरह से प्राप्त नैनो कणों पर न केवल कम लागत आती है बल्कि वे पर्यावरण अनुकूल भी होते है ।

एन सी एल के वैज्ञानिकों को फ्यूसेरियम ऑक्सीस्पोरम नामक कवक के प्रयोग द्वारा कैडमियम सल्फेट के क्वांटम डॉट्‌स के विकास में भी सफलता मिली है डॉ शास्त्री के नेतृत्व में यहां के एक अनुसंधान दल को नीम के पत्तों के सारसत्त से जीवजनित (बायोजेनिक) धातु एवं द्विधातुक (बाइमेटेलिक) नैनो कणों को बनाने में सफलता मिली है ।

भारत के कई अन्य संस्थान भी नैनो टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में महत्वपूर्ण कार्य कर रहे है देश के रक्षा मंत्रालय द्वारा नैनो संरचनाबद्ध (नैनोस्ट्रक्चर्ड) चुंबकीय पदार्थों थिन फिल्मों, चुंबकीय संवेदकों तथा नैनो एवं अर्धचालक पदार्थों के निर्माण की दिशा में अनेक महत्वपूर्ण परियोजनाएं तैयार की गई हैं ।

वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद (काउंसिल ऑफ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च-सी एस आई आर) का भी नैनो प्रोद्योगिकी के क्षेत्र में महती योगदान है परिषद् द्वारा नैनो प्रौद्योगिकी से जुडे कई पेटेंट भी लिए गए है जिनमें दवाओं को सही परिमाण एवं सही ठिकाने तक पहुंचाने के लिए ड्रग डिलिवरी सिस्टम, नैनो आकार के रसायनों का उत्पादन तथा नैनो आकार के टाइटेनियम कार्बाइड का उच्च तापमान पर संश्लेषण शामिल है ।

कुछ निजी क्षेत्र की कंपनियों भी इस दिशा में कार्य कर रही हैं । नई दिल्ली स्थित पेनेशिया बायोटेक म्यूकोएडहेसिव नैनो कणों के प्रयोग से ड्रग डिलिवरी के क्षेत्र में अच्छा अनुसंधान कार्य कर रही है । इसी तरह गाजियाबाद स्थित निजी संस्थान डाबर रिसर्च फाउंडेशन की अनुसंधान एवं विकास इकाई द्वारा चिकित्सा के क्षेत्र में नए अनुसंधान किए जा रहे है ।

यह संस्थान एंटीकैंसर ड्रग ‘पेक्लिटेक्सल’ की नैनो कण डिलिवरी के प्रथम चरण के चिकित्सीय परीक्षण में भागीदारी कर रहा है । बहुराष्ट्रीय कंपनियों के साथ मिलकर भी कुछ भारतीय निजी कंपनियां नैनो टेक्नोलॉंजी के क्षेत्र में कार्य कर रही हैं । कुछ ऐसी विदेशी कंपनियां, जिनके साथ भारतीय कंपनियों ने साझेदारी में कार्य करना प्रारंभ किया है, में एल जी, बी ए एस एफ, बॉयर, हरीवैल, मित्सुबिशी तथा ड्यूपांट आदि शामिल हैं । मुंबई की यश नैनो टेक नामक कंपनी ने भी यूके की साइंटिफिक नामक कंपनी के साथ नैनो टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में काम करने के लिए गठबंधन किया है ।

टाटा स्टील टाटा कैमिकल्स, महिंद्रा एंड महिंद्रा, निकोहॉलन पिरामल तथा इंटेल जैसी कंपनियों की नजर भी नैनो टेक्नोलॉंजी पर है । इन कंपनियों ने भारतीय बाजार में करीब 250 मिलियन (25 करोड़) डॉलर का पूंजी निवेश भी किया है ।

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